अयोध्या में रामलला मिले पर वह नहीं मिला जिसकी मुझे तलाश थी
कल दीपावली का त्योहार है जिसे देशभर में बड़े उत्साह और उमंग से मनाया जायेगा। भारत में ही नहीं दुनिया के कई देशों में यह महापर्व मनाया जाता है। जिन मुल्कों में भारत के हिन्दू समाज के लोग रहते हैं यह दीप पर्व पल्लवलित है। हिन्दुस्तान में भी अलग अलग प्रांतों, जाति या समुदाय के लोग इस लोकपर्व को पूरी श्रद्धा के साथ पलित करते हैं। दिवाली मनाने के पीछे एकाधिक मान्यतायें हैं। सबसे अधिक प्रचलित कथा है कि राम चौदह वर्ष बाद वनवास पूरा करके अयोध्या लौटे वह अमावस का दिन था। इसीलिये राम की वापसी के उपलक्ष्य में पूरी अयोध्या को दीयों से जगमगाया गया। आतिशबाजी हुई। अयोध्या नगर को राम के आने के स्वागत में सजाया गया। राजा राम का राजतिलक भी होना था और अयोध्या नगरी में बाहर के राजा भी इस ऐतिहासिक मोके पर आये थे। अभूतपूर्व उत्साह, उमंग से भरे लोग अपने राजा की प्रतीक्षा में पलक पंावड़े बिछाकर उत्सुक्ता में प्रतीक्षा कर रहे थे। राजा राम के आने भी खुशी के पलों को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।
यह संयोग की बात है कि पूजा की छुटिट्यों बाद मैं अपने पूरे परिवार के साथ वाराणसी और उसके बाद अयोध्या गया। कई वर्षों बाद बदले हुए वाराणसी और फैजाबाद को अयोध्या के लिबास में परिणित देखने का मिला। अयोध्या नगरी में भी दो दिन के प्रवास का पूरा आनन्द उठाया। बनारस में तो भ्रमण के कई पड़ाव थे पर अयोध्या में तो एक ही मिशन था। रामलला के दर्शन। मंदिर का निर्माण अभी पूरा नहीं हुआ है। सैंकड़ों लोग उसके विस्तार के निर्माणार्थ रात दिन लगे हुए हैं। चारों तरफ नक्काशी का काम चल रहा है। रामलला की सांध्या आरती में भी भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ। रविवार का दिन था, श्रद्धालुओं की भीड़ भी थी। फिर भी रामलला की मूर्ति के सन्निकट ही सांध्य आरती में भाग लेकर अविभूत हुए। राम मंदिर निर्माण को लेकर कई वर्षों से चल रही चर्चा और विवाद के परिपेक्ष में यह अहसास भी असाधारण और मार्मिक था कि हम उस स्थल पर हैं जिसके निर्माण का मुद्दा भारत की राजनीति का कई वर्ष से केन्द्र बना हुआ है। अनेक वर्ष पहले जब मंदिर का ढांचा टूटा नहीं था। अपने पत्रकार साथियों के साथ उस खंडहर को देखा था जिसके गर्भगृह में भगवान राम का जन्म हुआ। रामानन्द सागर की धारावाहिक सीरियल रामायण में राम मंदिर के उद्घार और तत्सम्बंधी दृश्य का अवलोकन से हमें नैसर्गिक सुख भी अनुभूति होती थी।
अयोध्या के प्रवास के दौरान सोच रहा था रामकथा के उस धोबी के बारे में जिसकी सुगबुगाहट ने राम कहानी में मोड़ ला दिया था। अयोध्या में राजा राम के वंसज भी रहते हैं। शायद उस धोबी के वंसज भी रहते ही होंगे। पता भी लगाया कि यहां कोई धोबियों का मोहल्ला भी है क्या तो उनसे मिलंू। यह कटु सत्य है कि धोबी को हम राम राज्य का खलनायक ही मानते हैं। यह सोचकर भी ग्लानि होती है कि धोबी ने मां सीता के चरित्र पर लांछन लगाने की धृष्टता की थी। यह जानते हुए भी कि सीता सम्बन्धी धोबी की दलील बेहूदी है, मुझे पता नहीं क्यों उसकी याद बहुत आई। भले ही राम राज्य का वह सबसे अवांछित व्यक्ति रहा हो पर राम कथा का वह सबसे विभत्स एवं अति निन्दित, व्यक्ति रहा है। पेशे से पत्रकार या सम्पादक होने के नाते वह हमारा ‘हीरो’ भी था क्योंकि राम राज्य में हजारों वर्ष पहले लोकतंत्र का जब जिक्र आता है तो धोबी ही एकमात्र कार्यपालक के रूप में खड़ा मिलता है। राम राज्य में उसी धोबी के मुखरित होने भी कहानी उस युग में जनतंत्र के होने के गवाह के रूप में कही जाती है। ऐसा दूसरा कोई उदाहरण नहीं दिया जाता। इस नाते वह वाक् स्वतंत्रता का संवाहक है और लोकतंत्र का योद्धा भी। योद्धा इसलिये कि उस समय राम के आगमन के आगोश में पूरी अयोध्या डूबी हुई थी और जयजयकार के नारे थम नहीं रहे थे। राम के राज्याभिषेक की प्रतीक्षा थी। ऐसे समय राज्य का सामान्य धोबी की हिमाकत कैसे हुई कि वह सीता जिसके उद्धार के लिये राम ने पूरी शक्ति का प्रयोग किया और जिसके वियोग में जंगल जंगल राम घूमते रहे उसके बारे में ऐसी ओछी बात कहे। सीता की खोज में हनुमान, जटायु और भील जैसे शक्तियां एकजुट हुई उस देवी स्वरूपा सीता के चरित्र पर शक करना, किसी अक्षम्य अपराध से कम नहीं था। आज का समय होता तो धोबी को दबोचने ‘ईडी’ और सीबीआई की पूरी मशीनरी लग जाती। अयोध्या की प्रजा का कपड़ा धोने वाला एक साधारण व्यक्ति सीता को लांछित करने की हिम्मत कैसे जुटा पाया। इससे भी बड़ी बात सह सोचने की है उसकी बात राम के दरबार में, जहां सुरक्षा के सारे प्रबन्ध रहें होंगे, पहुंची कैसे। उस समय न अखबार थे न सूचना के दूसरे साधन फिर किसने राम तक यह बात पहुंचाई।
हम सभी यह जानते हैं कि धोबी के संशय का कोई आधार नहीं था। लेकिन यह अकाट्य है कि अयोध्या के घरों में यह चर्चा हो रहर थी। ऐसा मैं इसलिये कह सकता हंू क्योंकि धोबी की घरों के अंदर इन्ट्री होती है। कपड़े लेने और देने में वह अच्छा खासा वक्त घरों के अंदर गुजारना पड़ता। धोबी की बातचीत स्त्रियों से होती है। सीता के बारे में जो लांछन था, वह अक्सर महिलाओं की बातचीत कर विषय होता है। राम एक कुशल प्रशासक थे इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि उन्होंने धोबी की बात को गंभीरता से लिया क्योंकि वे जानते हैं कि धोबी की बात आम घरों की दिवारों से निकली हुई सोच है। राम ने सही माने में धोबी को जनमत का विश्वसनीय माध्यम समझा। राम जानते थे कि सीता पर लांछन में कोई सच्चाई नहीं है किन्तु प्रजा के बीच इस चर्चा को विराम देने के उद्देश्य से उन्होंने अपनी भावना से समझौता किया। यही राम राज्य है जिसका कई बार हम उदाहरण देते हैं।
अयोध्या की सरयू नदी के तट पर भी मैंने कुछ समय बिताया जहां किनारे पर कई नौका लगी हुई थी। वहां कोई धोबीघाट नहीं है और न ही कोई धोबी मुझे कपड़े धोते दिखाई दिया। खोजना मेरा फर्ज था, मैंने उसे पूरा किया। कोई धोबी मिलता तो पूछता क्या वह उसी का वंसज है जिसने सीता सम्बन्धी संशय को राजा राम के दरबार तक पहुंचाकर यह प्रमाणित किया कि भारत में लोकतंत्र की जड़े युगों पुरानी है।
मेरा बस चले तो अयोध्या के किसी कोने में धोबी की बुत भी बनवा दंू ताकि हमारा प्राचीन इतिहास सजीव हो उठे। रामलला को भी इसमें आपत्ति नहीं होगी हां अन्ध भक्तों को मेरा यह सोचना शायद यह गंवारा न हो।

श्री राम की प्रतिज्ञा थी
ReplyDelete... यदि वा जनकीमपि आरधानाय लोकस्य मुंचतो नास्ति मे व्यथा।
धोबी की खोज का आपका प्रयास राम की लोक निष्ठा के प्रति आपकी ही नहीं नहीं, हम सब की श्रद्धांजलि है ।