गांधी से बहुत दूर चला गया है हिंदुस्तान
गांधी को गए 77 वर्ष से अधिक हो गए। अब भी गाहे बगाहे कुछ लोग गांधी का नाम लेते हैं। सरकारी कार्यालयों में धूल जमीं तस्वीर भी लगी रहती है। न्यायालय में जब साहब के पीछे एक फकीर की तस्वीर लटकती है और सामने क्या होता है बताने की जरूरत नहीं। फिर भी पता नहीं क्यों हम उसे भूल नहीं पाते। 77 वर्ष बाद भी उसका नाम लेवा लोग बचे हुए हैं।
2012 पर गांधी की चादर ओढ़ कर पूजनीय अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ी थी। मिनी क्रांति के ‘प्रोडक्ट’ थे अरविंद केजरीवाल। वे दिल्ली राज्य के मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री का आलीशान बंगला बनाने और अपनी मनी-मेकिंग शराब नीति के चलते हैं उनको जेल की हवा खानी पड़ी। उसके बाद दिल्ली चुनाव में हुए जनमत से भी हाथ धो बैठे। पतंजलि के रामदेव बाबा भी इसी आंदोलन की अग्निकुंड से तपकर निकले थे। उनका कई हजार करोड़ का साम्राज्य बन गया है। भगवा वस्त्र पहनकर पतंजलि बेचने में भी हिंदू-मुसलमान का सहारा लेना पड़ा। उनका कहना था कि जो पतंजलि दवा का सेवन करता है वह आगे चलकर गुरुकुल खोलता है और हमदर्द की दवा खाने वाला दरगाह पर चादर ओढ़ाता है। हालांकि बाबा पर जब मुसीबत आन पड़ी तो किसी महिला की सलवार पहनकर मंच से चंपत हुए थे।
अभी हाल में लेह में सोनम वांगचुक भी लद्दाख को राज्य का दर्जा देने के विरोध पन्द्रह दिन अनशन किया। वह भी गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता कहे जाते हैं। उनके बाद वहां के ‘जेन-जी’ किशोरों ने सरकार की वादा खिलाफी के खिलाफ आंदोलन किया जिसमें चार लोग मारे गए। वांगचुक को अनशन तोडऩा पड़ा। अब उन पर विदेशी एजेंट होने का आरोप लगा है। उनके खिलाफ सीबीआई जांच शुरू हो गई है उनके स्वयंसेवी संगठन का लाइसेंस रद्द कर दिया गया है। वांगचुक फरवरी में पाकिस्तान क्यों गए थे? वांगचुक के स्वयं सेवी संगठन में कई करोड़ का लेन-देन जांच एजेंसी के एजेंडे में है। सरकार को संदेह है कि लद्दाख में भडक़ी हिंसा के पीछे कोई विदेशी हाथ है?
बापू की पाकिस्तान के मामले में उदारता देश के बंटवारे के साथ हुए दंगे के कारण बनी उसे पाकिस्तान को भारत ने अपना अघोषित शत्रु करार कर रखा है। उसकी सीमा से आकर हाल में कुछ आतंकवादी भारत के निर्दोष 26 पर्यटकों को मौत के घाट उतार गए, उस पाकिस्तान से हमने क्रिकेट का खेल अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कानून के दबाव से जरूरी समझा वर्ना हमारी कताई इच्छा नहीं थी। दो मैच हो लिए और दोनों में भारत की जीत हुई पर जश्र नहीं मानाया जा रहा है क्योंकि देश का मूड इसे गंवारा नहीं करेगा। किंतु आयोजकों को इस बात से कोई मतलब नहीं कि आतंकवादी पाकिस्तान से हमारी सीमा में घुसकर निर्दोष नागरिकों को मार डाला। उन्हें मतलब क्रिकेट के एक मैच से क्रिकेट दिग्गजों को हो रहे करोड़ों की आमद से है।
भाईचारे के लिए खेल को एक प्रभावशाली अस्त्र माना गया है। इसलिए जरूरी था कि क्रिकेट खेला जाये। भारत ने क्रिकेट खेलने पाकिस्तान से दो-दो हाथ भी इसीलिए किए गए कि शायद कुछ भाईचारा हो जाए। इसी से उत्साहित होकर हम कई बार मुसलमान को भारत की मिट्टी का अभिन्न अंग बता बैठते हैं। किंतु कई बार हमारी इसी बात पर लोगों को सांप संूघ जाता है।
हमारा इतिहास इस बात का गवाह है कि हिंदू मुस्लिम ने मिलकर जंगे आजादी लड़ी थी। भगत सिंह का नाम आता है तो इस्फातुल्लाह का नाम भी लिया जाता है। देश की आजादी में खान बहादुर अब्दुल गफ्फार खां को सीमांत गांधी के नाम से पुकारा जाता था उसे दूसरे गांधी सीमांत गांधी की संज्ञा दी गई। सुभाष चंद्र बोस के सबसे घनिष्ठ एवं निर्भर योग सिपाही थे शाहनवाज। लेकिन आज देश के स्वाधीनता संग्राम में मुसलमानों का नाम लेना आफत को माल लेना हो गया है। ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सम्मति दे भगवान, गांधी जी का प्रिय भजन था। अब इस तरह की प्रार्थना जोखिम से भरी रहती है। आजादी के पहले हमने बराबरी की बात की थी- अमीर गरीब की खाई पाटने की बात की थी। आज गडकरी साहब की बात ही मान लीजिए तो गरीब और अमीर के बीच की खाई कई गुना चौड़ी हो गई है। अमीर अधिक अमीर और गरीब अधिक गरीब हो रहा है।
पहले गांधी को स्वच्छता अभियान का ब्रांड एंबेसडर बनाया गया था। स्वच्छ भारत अभियान के साथ गांधी का गोल-गोल चश्मा दिखाया जाता था। शायद गांधी की इससे बेहतर उपयोगिता नहीं समझी गई। यह बात और है कि जी-20 के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में 20 देशों के राष्ट्रीय अध्यक्षों ने पैदल गांधी की समाधि तक जाकर गांधी का झुककर श्रद्धा नमन किया। वे सभी गांधी को अपने साथ ले गए। दुनिया के 80 देशों में गांधी के बुत लगाए हैं। पर अपने ही देश में गांधी कुछ बेगाने से हो गए हैं या फिर हिंदुस्तान गांधी से बहुत दूर चला गया है।

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