युद्ध, प्रेम और अब क्रिकेट में भी सब जायज है

 युद्ध, प्रेम और अब क्रिकेट में भी सब जायज है 

एक पुरानी कहावत है कि युद्ध और प्रेम में सब जायज है। इन दोनों स्थितियों में कोई आचार संहिता नहीं होती। युद्ध का एकमात्र लक्ष्य दुश्मन को नेस्तनाबूत करना होता है और प्रेम में तो कुछ भी गलत नहीं होता। आध्यात्मिक प्रेम में मीरा ने महल की दीवारें फांद दी थी और शारीरिक प्रेम में कब किसने परहेज किया है। दुनिया में बहुचर्चित लैला- मजनू,  शीरी-फरहाद, हीर - रांझा, रोमियो- जूलियट और यहां तक की कृष्ण- राधा के प्रेम का अंत भले ही परिणय-सूत्र में नहीं हुआ हो पर एक दूजे के लिए हर सीमा तक जाने का जुनून था। खैर यह सब तो अतीत की बातें हैं। पर आज के समय में क्रिकेट ने भी इस जुनून में अपना नाम दर्ज करवा लिया है। इसलिए आइंदा यह कहा जाएगा कि प्रेम, युद्ध और क्रिकेट में सब जायज है। मैदान में भले ही रेफरी का न्याय ही सुप्रीम हो पर इतिहास रचने में प्रेम और युद्ध के साथ क्रिकेट का जुनून भी बाहें पसारकर खड़ा हो गया है। 

विगत 14 सितंबर को एशिया कप क्रिकेट मैच में दुबई में हुए भारत-पाकिस्तान का मुकाबला में ना तो किसी की दिलचस्पी थी ना ही इस अनचाहे मैच को उत्साह के साथ देखा गया। पाकिस्तान के मुकाबले भारत की जीत पर ना भारत में कोई खुशी, आतिशबाजी की गई और ना ही पाकिस्तान में कोई मातम दिखाई दिया। मैच होने के पहले कई लोगों ने इस खेल का उपहास किया एवं पाकिस्तान से मैच नहीं खेलने की मांग की किंतु सभी विरोध को खारिज कर मैच खेला गया। शायद यह क्रिकेट के इतिहास में पहली घटना है कि भारत- पाक का खेल को लोगों ने बुझे दिल से स्वीकार किया। चर्चा इस बात की थी कि क्या यह मैच जरूरी था। कुछ समय पहले ही पाकिस्तान से आए घुसपैठियों ने कश्मीर के पहलगाम में 26 सैलानियों को उनका धर्म पूछ कर गोली से भून दिया गया था। परिणामस्वरुप पूरा देश शोक में डूब गया। कश्मीर जैसे संवेदनशील राज्य में सुरक्षाहीन पर्यटन स्थल में शहीद की विधवाओं के  सिंदूर के नाम करने वाला यह मैच था। ऑपरेशन सिंदूर के समय प्रधानमंत्री जी ने बड़ी भावुकता से कहा था कि उनकी रगों में गर्म सिंदूर दौड़ रहा है। वह सभी हमलावरों को पकड़ेंगे और सजा देंगे। प्रधानमंत्री का उद्गार कि पानी और खून एक साथ नहीं बह सकता भी लोगों के जहन में था। सिंधु नदी जल रोककर भारत ने पाकिस्तान के प्रति अपने गुस्से को प्रकट भी किया था लेकिन इन सब का भारत क्रिकेट मैच के जुनून पर कोई असर नहीं हुआ। 

क्रिकेट मैच के बाद भारत के खिलाडिय़ों ने पाकिस्तान के क्रिकेटरों से हाथ मिलाने से परहेज किया। मैच के बाद यह रस्म होती है की जीत हार के बावजूद क्रिकेट खिलाड़ी हाथ मिलाकर विदा होते हैं। लेकिन ऐसा नहीं कर भारतीय खिलाडिय़ों ने शिष्टाचार की रस्म का उल्लंघन किया। जब नमाज अता करने ही बैठ गए तो वजूद किया कि नहीं कोई नहीं पूछता। 

राजनीति में पिछले एक दशक में जो गिरावट आई है वह पूरे भारतीय समाज के लिए चिंता का विषय है। आज के युवक को इस तरह की राजनीति से विरक्ति हो गई है। आम आदमी राजनीति से नफरत करने लगा है। अब इस राजनीति ने राष्ट्रीय सम्मान को भी किनारे लगा दिया। भाषणों में राष्ट्रभक्ति और देश के सम्मान के लिए मर मिटने की बात बा-मुलायजा की जा रही है और वास्तविकता यह है कि क्रिकेट से 2000 से 3000 करोड़ रुपए की आमद के सामने राष्ट्र का सम्मान धूल चाट रहा है। हमारे 26 नागरिकों की जान का कोई मूल्य नहीं रहा। उनकी विधवाओं को क्षतिपूर्ति के नाम पर कुछ लाख रुपए की राशि देकर उसने  मैच जीतने की ताली बजवाना एक वीभत्स तमाशा बनकर रह गया है। पुलवामा में बिना लड़े हमारे चालीस सैनिक शहीद हो गए, उसका जवाब अभी तक नहीं मिला। 

महाभारत में प्रसंग आता है कि जब युधिष्ठिर से पूछा गया कि संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है तो उसने कहा - ‘मनुष्य नित्य प्राणियों को मारते हुए देखता है फिर भी इस भ्रम में जीवन व्यतीत करता है कि वह नहीं मरेगा।’ कुछ ऐसा ही आश्चर्य है कि जो क्रिकेट विश्व के एक विशाल फ्रॉड के रूप में प्रमाणित हो चुका है उसके लिए लाखों करोड़ों लोग खुले आम उत्सव मनाते हैं और दुनिया भर के हजारों लाखों बुद्धिजीवी अनभिज्ञ व दिन रात चर्चाएं करते हैं। यह खेल पिछले कुछ समय से सट्टेबाजी और फिक्सिंग की गिरफ्त में है। इसको लेकर आम खेल प्रेमियों में कई तरह की बुरी धारणाएं बन गई हैं। 

इस बार का भारत-पाक मैच में आम धारणा थी कि भारत ही मैच जीतेगा। संभवत: पाकिस्तान भी यही जानता था। पाकिस्तान भी इस पूर्व निर्धारित नियति को समझ कर ही खेल रहा था। कई खेल विशेषज्ञों की भी यह धारणा है कि पाकिस्तान ने यह खेल बेमन से खेल इसलिए इसके परिणाम से वह शर्मिंदा नहीं था। फिर भारत को यह मैच क्यों झेलना पड़ा। एक दिन पूर्व प्रमुख टीवी चैनल में एक भारतीय महिला को बोलते हुए दिखाया गया कि वह दिल से चाहती है कि मैच भारत हार जाए। महिला के अवसाद की यह अभिव्यक्ति थी। कुल मिलाकर इस रसहीन, रोमांच शून्य, पूर्वा अनुुमानित, विभत्स फिक्स्ड मैच में भारत ने जीत कर भी वैदेहीजनक जैसा रुख बनाकर रखा। 

महान क्रिकेट खिलाड़ी सुनील गावस्कर ने एक वक्तव्य में कहा कि भारत क्रिकेट एशिया कप मैच भारत सरकार ने दबाव डालकर करवाया गया था। इससे साफ जाहिर होता है कि भारत - पाक क्रिकेट सिर्फ राजनीतिक मजबूरी था। इसका खेल से कोई संबंध नहीं है। 

कुछ खेल प्रेमियों का कहना है कि खेल में राजनीति नहीं करनी चाहिए। मैं इससे सहमत हूं किंतु यह सारा मामला राजनीतिक नहीं देश के सम्मान का है। राष्ट्रीय सम्मान की कीमत पर एशिया कप खेलना शर्मनाक है और अगर सरकार द्वारा यह खेल प्रायोजित है तो यह देश का दुर्भाग्य है। 

कोई मजबूरी रही होगी वरना यूं ही कोई बेवफा नहीं होता। 



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