सोशल मीडिया ने युवाओं के हाथ में जलती मशाल थमा दी

सोशल मीडिया ने युवाओं के हाथ में जलती मशाल थमा दी

 नेपाल में सरकार द्वारा सोशल मीडिया बैन किए जाने के विरोध में 8 सितंबर को युवा वर्ग (जनरेशन जेन जी) सडक़ पर उतरता है उसका गुस्सा फूूटता है। सांसद, सुप्रीम कोर्ट, प्रधानमंत्री आवास और अन्य सरकारी भवन, आलीशान होटलों को आग के हवाले किया जाता है। भारी दबाव में प्रधानमंत्री व कई मंत्री न सिर्फ इस्तीफा देते हैं बल्कि देश को छोडक़र फरार हैं और जो ‘जेन जी’ के हत्थे चढ़ गए उन्हें बुरी तरह मारा पीटा गया। पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी को जिंदा जला दिया गया।  बांग्लादेश में पिछले साल 1 अगस्त को युवा वर्ग आरक्षण नीति को लेकर सडक़ पर उतरते हैं। गुस्सा फूटता है और हिंसा होती है परिणामस्वरुप प्रधानमंत्री शेख हसीना को सत्ता छोडक़र भारत में शरण लेनी पड़ती है।  श्रीलंका में वर्ष 2022 को युवा आर्थिक संकट का विरोध करते हुए सडक़ पर उतरती है और जुलाई में आंदोलन इतना तीव्र हो जाता है कि जनता राष्ट्रपति भवन को दो घंटे घेर लेती है और राष्ट्रपति को जान बचाकर भागना पड़ता है। 


यह तीन घटनाएं भारत के तीन पड़ोसी देशों में महज उदाहरण है यह बताने के लिए कि विश्व में युवाओं का मिजाज बदल रहा है। इन आंदोलनों के वाहक या प्रणेता युवावर्ग हैं जिन्हें आजकल जेन जी कहा जाता है। जेन जी का मतलब वर्ष 1995 के बाद पैदा हुए लोग हैं जिनकी उम्र अब 18 से 30 वर्ष के बीच है जो इंटरनेट टेक्नोलॉजी के साथ बड़े हुए हैं। वह डिजिटल नागरिक हैं। दुनिया में क्या चल रहा है उससे अवगत हैं।  न्याय और समानता क्यों जरूरी है उसके प्रति सचेत हैं। युवाओं के गुस्से की बड़ी वजह ‘नेपो किड्स’ भी है। 

सोशल मीडिया के दौर में नेपो किड्स यानी सत्ता की संरक्षण में पनपती युवा पीढ़ी की जीवनशैली जेन जी को उकसाती है। उनके वोट से जो लोग सरकार में आते हैं वह अपने बच्चों को तो एक शानदार ऐशो-आराम से भरी जिंदगी देते हैं लेकिन आम युवा फाका मस्ती में अपनी डिग्रियां लेकर दर-दर भटकते हैं। नेपाल में नेपो किड्स के ऐशो आराम की तस्वीरें सोशल मीडिया में खूब वायरल हुई। इन सब के चलते युवाओं में गुस्सा बढ़ जाता है और इन लेवल तक पहुंच जाता है कि फिर देश में तख्ता पलट जैसी स्थिति बन जाती है। नेपो किड्स की ऐशो आराम की जिंदगी जेन जी को उद्वेलित करती है।

सोशल मीडिया युवाओं का सबसे बड़ा हथियार बन गया है जिसके जरिए वे अपना गुस्सा व्यक्त कर रहे हैं। कभी धीरूभाई अंबानी ने मोबाइल के भारत में अवतरण पर कहा था कि दुनिया मेरी मु_ी में। इसके बाद अब सोशल मीडिया को एक मशाल की तरह युवाओं ने उसी मु_ी से पकड़ लिया है। 

आज के युवा सूचनाओं के मामले में इंटरनेशनल सिटीजन बन चुका हैं। वह अपने विचारों और महत्वाकांक्षाओं को इसके जरिए उजागर करता है। युवा ग्लोबल हो चुके हैं। वह अखबार नहीं पढ़ते और ना ही किताबें। उनके लिए सोशल मीडिया हैंडल ही उनकी दुनिया है जहां वे तमाम तरह की सूचनाओं को कंज्यूम करते हैं और उनके आधार पर अपने विचारधारा बनाते हैं। इस तरह से उनकी महत्वाकांक्षा और समझदारी दोनों में बड़ा बदलाव हो चुका है और यह स्थिति पूरे विश्व की है। युवाओं में आक्रोश की एक बड़ी वजह नेपो किड्स भी है।

विगत कुछ वर्षों में जिस तरह दक्षिण एशियाई देशों में जनता का गुस्सा सरकारों द्वारा बनाई गई व्यवस्था के प्रति बढ़ा है उसे पढऩे में वहां की सरकारें और मीडिया दोनों ही एक तरह से विफल रही है। मीडिया की भूमिका आज इस तरह की होती जा रही है जैसे सब कुछ ठीक चल रहा है जबकि ऐसा है नहीं।


आज का युवा समाचार पत्रों एवं तथाकथित राष्ट्रीय चैनलों के भरोसे नहीं बैठा है। उसे सोशल मीडिया की सूचनाओं पर ज्यादा यकीन है। इसका पता तब चलता है जब नेपाल की हुकूमत ने सभी 26 सोशल मीडिया पर एक साथ बैन कर दिया। परिणामस्वरुप युवाओं को महसूस हुआ कि उसे एक अंधेरी कोठरी में बंद कर दिया गया है जिसकी खिड़कियां दरवाजे सभी बंद हैं और कोई रोशनदान भी नहीं है। ऐसे में उसका गुस्सा फूटा और फिर वही हुआ जो नहीं होना चाहिये था। नेपाल में हिंसा और विस्फोट के पीछे और भी शक्तियां काम कर रही थी। उसके बारे में न तो मीडिया में चर्चा हुई और ना ही सरकारों ने इस और ध्यान दिया। बेरोजगारी और गरीबी जैसी समस्याओं पर सरकार ध्यान नहीं देती है जिसकी वजह से आम जनता परेशान और आक्रोशित है। 

कुछ लोगों का मानना है कि नेपाल की घटना भारत में भी दोहराई जा सकती है किंतु मैं समझता हंू कि ऐसा कहना जल्दबाजी होगी। भारत नेपाल के मुकाबले बहुत बड़ा देश है और हमारे देश ने ब्रिटिश साम्राज्य के साथ लंबी लड़ाई लड़ी थी और उसका नेतृत्व अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के हाथ में था। इस लंबे संघर्ष एवं अहिंसा के बलशाली अस्त्र का उपयोग कर हमने भारत में लोकतंत्र को स्थापित किया है। लेकिन नेपाल की घटनाओं के बाद हम निश्चिन्त न रहें क्योंकि हमारे यहां भी आर्थिक विषमता का चेहरा भयानक होता जा रहा है। इस बात को ना भूले की महाभारत का युद्ध भी कौरव पांडव के बीच भी विषामता की इसी पराकाष्ठा की ही परिणति था। ठ्ठ


Comments

  1. पड़ोसी देशों में हो रही घटनाओं पर भारत को पैनी दृष्टि रखनी चाहिए. पक्ष विपक्ष दोनों को इस संबंध में संवेदनशीलता के साथ लोक निर्णय लेने चाहिए. आपके तर्क-सम्मत विश्लेषण से हम सहमत हैं.

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