इस बार मां दुर्गा अंधविश्वास के महिषासुर का वध करती भी दिखेगी

इस बार मां दुर्गा अंधविश्वास के महिषासुर का वध करती भी दिखेगी

हाल ही में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा था कि दुनिया का पहला अंतरिक्ष यात्री थे हनुमान जी। कुछ लोग हैं जिन्होंने ठाकुर को इस अनुसंधान की बधाई दी होगी। अखबारों में सुर्खियों में यह खबर छपी और ठाकुर जी को खोज राजनीति से लेकर बाजारों के गलियारों में चर्चा का विषय भी रहा लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जिसे चिंता हुई होगी कि हम देश को कहां ले जा रहे हैं। अंधविश्वास को दूर करना शिक्षा का पहला मकसद होता है। आम आदमी अंधविश्वास के चलते अपने जीवन को अंधकार में धकेल देता है जिसका भुगतान उसके बाद भी पीढिय़ां करती हैं। आज हमारी गलत सोच या उल्टे कदम कल के समाज की परंपरा बनेगी। एक तरफ आधुनिक शिक्षा या वैज्ञानिक शिक्षा के लिए सरकार अपने साधन मुहैया करती है। टेक्निकल कॉलेज खोले जा रहे हैं। नारी शिक्षा को भी प्रसारित किया जा रहा है ताकि सदियों तक समाज के अग्निकुंड की पीडि़ता नारी शक्ति आधुनिक विचारों के साथ सांस ले सके। दूसरी तरफ हमारे आका अंधविश्वास की जड़ों को मजबूत करने एवं नई पीढ़ी के भविष्य को गर्त में ले जाने का उपक्रम कर रहे हैं। धर्म और विज्ञान में कोई विरोधाभास नहीं है बल्कि वे एक दूसरे के पूरक हैं। कोई धर्म यह नहीं सिखाता कि हम जड़ता से बंधे रहें। सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा के अहम योगदान को कोई नहीं नकारता। ऐसे में अनुराग ठाकुर के इस आलाप को राजनीति से ऊपर उठकर सोचना और समझना चाहिए। ठाकुर साहब को स्मरण करा दूं कि हनुमान जी जड़ी बूटी लाने हिमालय पर्वत तक गए थे। उनके इस साहसिक प्रयास से लाई गई औषधि का सेवन कर ही लक्ष्मण जी की जानलेवा मूर्छा का उपचार हुआ था। राम ने अपने ईश्वरीय शक्ति या चमत्कार का उपयोग नहीं किया। ठाकुर साहब इस बात को सोचें कि एक वैद्य के परामर्श पर जड़ी बूटी यानी औषधि से ही लक्ष्मण जी को नया जीवन मिला यानी हमारी पौराणिक कथाओं में भी अंधविश्वास को स्थान नहीं मिला। यही वजह है कि हम राम की आराधना करते हैं एवं हनुमान जी के साहस और वीरता का स्मरण करते हैं। विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टाइन की भी एक ज्ञानवद्र्धक युक्ति है कि धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है और विज्ञान के बिना धर्म अंधा है। 


 बंगाल की धरती शिक्षा एवं विज्ञान का केंद्र रही है। भारत में सर्वाधिक नोबेल पुरस्कार इसी कोलकाता के शोधकर्ताओं को मिले हैं। बंगाल भक्तों की भूमि है। चैतन्य महाप्रभु से लेकर स्वामी विवेकानंद अपने आध्यात्मिक चेतना के लिए विश्व भर में पूजे गये। दुर्गा पूजा बंगालियों का सबसे बड़ा त्यौहार है। मां दुर्गा के बारे में कहां जाता है कि दैत्यों के संहार हेतु देवताओं ने मिलकर एक नारी शक्ति को गढ़ा था। दुर्गा ने उस महिषासुर का वध किया जो देवताओं के लिए भी एक चुनौती बना हुआ था। दुर्गा के आदर्श को नारी शक्ति अपना इष्ट मानती है और हम दुर्गा के इस शक्ति रूपेण स्वरूप की पूजा करते हैं। मेरे कहने का अर्थ है कि धार्मिक मान्यताओं में भी संघर्ष और आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त करने हेतु शक्ति के प्रयोग को ही साधन माना गया था। करिश्मा या चमत्कार का कोई स्थान नहीं था। 

यह बात अनुराग ठाकुर और उनकी नस्ल के पाखंडियों को समझनी चाहिए कि शासन और सत्ता पर बैठकर अंधविश्वास फैलाना एवं ज्ञान विज्ञान को नकरना एक अपराध है जो ठाकुर जैसे लोग युवा पीढिय़ा के विरुद्ध करते हैं।

दुर्गा पूजा का एक महीना ही रह गया है। तैयारियां शुरू हो गई हैं। बंगाल में पूजा अब थीम पर आधारित होती है और लोगों का आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। थीम के माध्यम से पूजा को आधुनिक ज्ञान विज्ञान से जोडऩे की पहल भी बंगाल की अनुकरणीय खूबी है।

पंडालों में अनोखी थीम का मकसद लोगों में तर्कसंगत सोच को बढ़ावा देना है। इसी क्रम में तेेलेंगाबागान का ‘अचलायतन’ में होने वाली पूजा में एक तर्क संगत और शैक्षणिक थीम को मैं उल्लेख करना चाहूंगा। 

तेलेंगानाबागान पूजा समिति इस साल अपनी 66वीं वर्षगांठ पर ‘अचलायतन’ थीम के साथ समाज में पहले अंधविश्वासों के खिलाफ जागरूकता फैला रही है। मकसद लोगों के तर्कसंगत सोच को बढ़ावा देना है। पंडाल में प्रवेश करते ही सब कुछ चलित हो जाएगा। कलाकार परिमल पाल ने यह अनूठा प्रयोग ऑगमेटेड रियलिटी (एआर) तकनीकी के माध्यम से किया है। पंडाल में जगह अंधविश्वासों के प्रतीक बिखरे होंगे जैसे नींबू-मिर्च की माला, रास्ता काटती हुई काली बिल्ली या पेड़ से शादी। इनके पास स्कैनर लगा होगा। जैसे ही दर्शक अपने मोबाइल फोन को स्कैनर के सामने लाएंगे यह सभी चीज जीवंत को उठाएंगे। इसके लिए एक लोकप्रिय कंपनी से मदद ली जा रही है। परिमल पाल के अनुसार इस बार की उनकी मूर्तियों में एक विशेष आकर्षण होगा। पंडाल में लाख परफॉर्मेंस भी होगी जबकि संजय-सुष्मिता का संगीत इस थीम को और भी प्रभावित बनाएगा।

अंधविश्वास के खिलाफ संदेश देने वाला यह पंडाल बंगाल के बारे में उसे कथन को चरितार्थ करेगा कि बंगाल जो आज सोचता है, पूरा देश कल सोचता है।


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