कुत्तों की आई शामत
कुत्तों के काटने के मामले बहुत तेजी से बढ़े हैं। केंद्रीय पशुपालन मंत्री ने संसद में बताया कि पिछले साल देश में कुत्ते के काटने के कुल मामलों की संख्या 37,17,336 थी। जबकि संदेहास्पद मानव रेबीज से मौतें 54। रेबीज बेहद खतरनाक बीमारी है। इससे व्यक्ति तड़प कर मारता है। ऐसे में स्वाभाविक है कि कुत्तों के खिलाफ गुस्सा भी तेजी से बढ़ रहा है। मिसाल के लिए झुंझुनू (राजस्थान) में एक दिल दहलाने वाली घटना हुई। रेबीज से मौत की वजह से विचलित एक इंसान ने बंदूक उठाई और 25 आवारा कुत्तों को गोली से भून दिया।
कुछ ही दिन पूर्व मैं कोलकाता एयरपोर्ट गया था। वहां भी कुत्तों का आतंक देखकर मुझे भी बहुत गुस्सा आया। एयरपोर्ट जैसे चौक चौबंद स्थान पर 3 नंबर प्रवेश द्वार में चार कुत्ते जोर-जोर से भौंक रहे थे और मेरे सामने कई बार यात्रियों के बच्चों पर लपके। अफरा तफरी मची हुई थी। पुलिस एवं सिक्योरिटी के लोग थे पर किसी ने यह जरूरी नहीं समझा कि कुत्तों को वहां से हटाने की व्यवस्था कर दें। बेजुबान जानवर को मारने के निर्मम कदम का तो मैं पक्षधर नहीं हूं किंतु कुत्तों के आतंक पर स्थानीय प्रशासन को कुछ कारगर कदम जरूर उठाना चाहिए।
कोलकाता और आसपास के जिले में कुत्तों के आतंक से स्थानीय लोग परेशान हैं। कई मोहल्लों में रहने वाले लोग कुत्तों के हमले से बचने के लिए पत्थर या कोई उपकरण साथ लेकर चलते हैं। पशु प्रेमियों को जरा इस पर भी नजरे इनायत करनी चाहिए। कई बार डॉग स्क्वॉड के लोग उन्हें शेल्टर होम भेजते हैं लेकिन सबसे अधिक खतरा बच्चों को है। विडंबना है कि छोटे बच्चे सबसे अधिक कुत्तों के फैन होते हैं और उन्हें ही सर्वाधिक शिकार भी होना पड़ता है।
इन समस्याओं को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट का ताजा आदेश और शक्ति दोनों अहम है। सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार व स्थानीय निकायों से कहा है कि सभी आवारा कुत्तों को 8 सप्ताह के भीतर आश्रय स्थलों में स्थानांतरित किया जाए। हालांकि समस्या की व्यावहारिक दिक्कतों को लेकर कई यक्ष प्रश्न हैं। फिलहाल कुत्तों के लिए ऐसे आश्रय स्थल उपलब्ध नहीं है। इस बड़ी समस्या का समाधान सिर्फ प्रतिक्रियात्मक नहीं होना चाहिए।
देश में पशु प्रेमियों की भी एक बड़ी समृद्ध परंपरा है। गाय और स्वान को ग्रास देना हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है
आवारा कुत्तों को आश्रय स्थलों में भेजने के खिलाफ लोगों ने प्रदर्शन किया तो कुछ लोग तख्तियां लिए हुए थे जिसमें लिखा था काल भैरव सब देख रहे हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार हमारे हर देवी देवता का वाहन कोई जानवर या पक्षी है। यही नहीं श्राद्ध पक्ष में गो- ग्रास काग - ग्रास व कुत्ते के लिए ग्रास होने निकाला जाता है। सदियों से कुत्ता मनुष्य का सबसे भरोसेमंद पशु रहा है। कहा जाता है पांडवों के स्वर्ग आरोहण के वक्त उनके साथ कुत्ता ही गया था। लेकिन आज शहरों की फ्लैट कल्चर में पालतू जानवरों की भूमिका खत्म होने से वह सडक़ों पर आ गए। आम लोग मांसाहारी भोजन की जूठन कचरे में फेंक देते हैं। कूड़े के ढेर में उन्हें मांस खाने को मिल जाता है। परिणाम स्वरुप कुत्ते हिंसके हो जाते हैं।
दुनिया के तमाम छोटे बड़े देशों ने इस समस्या के निवारण हेतु समाधान निकाले हैं। भारत जैसे विशाल देश में संसाधनों के अभाव में पशु कल्याण को प्राथमिकता महसूस नहीं की जाती। विदेश में पालतू कुत्तों को पालना भी बहुत महंगा है। संख्या पर नियंत्रण के लिए पुलिस बल तैनात किए गए हैं। साथ ही कुत्तों की नसबंदी, टीकाकरण और लोगों को उन्हें गोद लेने के लिए प्रेरित करके समस्या का समाधान तलाशा गया। भूटान का उदाहरण सामने है जिसने व्यापक वित्त पोषित राष्ट्रीय अभियान के जरिए कुत्तों की पूर्ण नसबंदी का लक्ष्य हासिल किया।
तृणमूल के सांसद (राज्यसभा) साकेत गोखले ने प्रधान न्यायाधीश को लिखे पत्र में आग्रह किया है कि उच्चतम न्यायालय को इस मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए इस मुद्दे के मानवीय समाधान के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित करनी चाहिए। संख्या में पशु आश्रय स्थल स्थापित करने के बारे में कदम उठाने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान फैसले का परिणाम यह होगा कि दिल्ली के सभी आवारा कुत्ते बेहद अमानवीय परिस्थितियों में ‘निश्चित मौत’ के हवाले कर दिए जाएंगे। निहत्थे जानवरों पर बेतहाशा क्रूरता करना कभी समाधान नहीं हो सकता।
कुत्तों के विरुद्ध सुप्रीम आदेश के विरुद्ध कोलकाता में प्रदर्शन।
वैसे यह राजनीतिक मुद्दा नहीं है किंतु आवारा कुत्तों के मामले में अदालत के हस्तक्षेप में 40 वर्ष पहले गांधी परिवार से अलग हुई मेनका गांधी व उनके पुत्र वरुण गांधी के स्वर में स्वर मिलाकर राहुल और प्रियंका ने इस आदेश को आमानवीय करार दिया। परिवार के दोनों समूहों ने कहा कि यह आदेश क्रूरता को संस्थागत स्वरूप दे देगा। परिवार के दोनों हिस्सों ने इस आदेश को अमानवीय निर्णय बताया है। जानवरों के अधिकारों के लिए लडऩे वाली मेनका गांधी ने कहा कि अदालत का फैसला देश के पर्यावरण को नष्ट करेगा और इकोलॉजिकल संतुलन को बिगड़ेगा। मेनका गांधी ने कहा कि यह आदेश सिर्फ एक समाचार पत्र में प्रकाशित उस रिपोर्ट के आधार पर है जिसमें कुत्तों के काटने से एक बच्चे की मृत्यु हो गई जबकि बाद में बच्चों के परिवार वाले ने कहा कि बच्चे की मृत्यु मस्तिष्क संबंधी बीमारी के कारण हुई थी।
कुत्तों के आतंक से उपजी इस समस्या ने भारतीय समाज को दो भागों में विभक्त कर दिया है। एक तरफ समाज का वह हिस्सा है जहां कुत्तों को पूरी खातिर और सुविधाओं के साथ पाला जाता है। दूसरा समाज का वह हिस्सा है जिसके लिए कुत्ता एक आवारा पशु है जो भौंकता है पर कटता नहीं है। किंतु कोई नहीं जानता है कि वह कब भौंकना बंद कर काटना शुरु कर दे। एक समाज है जिसके लिए कुत्ता सुरक्षा का भरोसेमंद प्राणी है और दूसरा समाज का वह हिस्सा है जो कुत्तों की आवारागर्दी से परेशान है और सुरक्षा के लिए खतरा मानता है। वर्तमान स्थिति में आवारा कुत्तों के आतंक पर अंकुश हेतु मानवीयता बरतनी चाहिए ताकि लाठी न टूटे और सांप मर जाए। कुत्तों की वफादारी का हमें कायल होना चाहिए वरना कोई वफादार क्यों होगा?


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