335 वर्ष के युवा शहर का जन्म आज के ही दिन हुआ था - कोलकाता मेरी जान

 335 वर्ष के युवा शहर का जन्म आज के ही दिन हुआ था 

कोलकाता मेरी जान

आज 24 अगस्त कोलकत्ता का जन्मदिन है। इसी दिन सन 1690 में जॉब चारनोक गंगा नदी के तट पर उतरे थे। यह अंग्रेज व्यापारी पटना से आया था नौका में। उसे फैक्ट्री खोलनी थी। कुछ दूर पर सूतानाटी गांव तक पैदल चलने के बाद वहीं ठहर गया। इस जगह को आज का कोलकाता शोभा बाजार के नाम से जाना जाता है। मेट्रो रेल वालों ने इसी परिपेक्ष में शोभा बाजार स्टेशन का नाम सूतनाटी रखा। चारनोक की खोज के बाद इसका नाम कलकत्ता रखा गया। कोलकाता नाम कैसे पड़ा इसके पीछे कई कहानियां हैं। खैर संयोग से आज रविवार और 24 अगस्त भी। कोलकाता की 335वीं वर्षगांठ है। जॉब चारनोक ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रतिनिधि के रूप में आए थे। आप सभी जानते हैं कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने किस तरह कोलकाता में व्यापार शुरू किया और बाद में उसने तीन गांव सूतानाटी, गोविंदपुर और कालीकाटा जिसके नाम कलकत्ता रखा गया, खरीद लिए। भारत में ब्रिटिश राज लाने का श्रेय भी ईस्ट इंडिया कंपनी को है क्योंकि इसी ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश हुकूमत ने कोलकाता की मलकियत पाई थी।


कोलकाता आने वाले लोगों को अपनी गोद में बैठा कर  गंगा पार करता है यह हावड़ा पुल।

मैंने संक्षेप में कोलकाता के उद्भव की जानकारी दी है। वैसे यह कहानी एक लंबा घटनाक्रम है मैं उसके विस्तार में नहीं जाऊंगा। बंगाल के मूल निवासी यानी बंगाली जिन्हें हम भद्र लोक बोलते हैं भी यहां के बहुत पुराने वाशिंदे नहीं हैं। इनके पूर्वज यूपी आदि प्रदेशों से आए थे इसलिए उपाध्याय को जोडक़र यह बंदोपाध्याय, गंगोपाध्याय, मुखोपाध्याय कहलाते हैं। बंगाल की शस्य श्यामला भूमि में जलाशयों की भरमार थी। पानी बाहुल्य वाले इस भूखंड में कभी अभाव नहीं रहा। पानी की बहुतायत के फलस्वरुप मछली सहज उपलब्ध थी और धान की खेती को भी आप जानते हैं सिर्फ पानी की जरूरत होती है। इसीलिए जलाशयों और धान के खेतों ने बंगाल को हमेशा पोषण दिया। बंगाली ने कभी खाने-पीने का अभाव महसूस नहीं किया। यही वजह है की कला, साहित्य एवं रचनात्मकता में बंगाली देश में अग्रणी है। जब पेट की चिंता ना हो तो दिमाग बिना किसी संकोच के काम करता है, परिणामस्वरुप बंगाभूमि बुद्धिजीवियों की जननी कहलाती है। बंगाल ने देश को उच्चकोटि के साहित्यकार, कलमकार, कलाकार, वैज्ञानिक एवं कलाप्रेमी दिए। लेकिन जहां सब कुछ उपलब्ध होता है वहां श्रम का कौशल उभर नहीं पाता। पानी, मछली और धान (चावल) ने बंगालियों की उदरपूर्ति में कोई कसर नहीं छोड़ी। खाने में चावल की बहुल्यता मनुष्य में आलस्य पैदा करता है, यह शरीर विज्ञान की सर्वविदित सच्चाई है। अब आप समझ सकते हैं कि दिमागी तौर पर प्रखर बंगाली शरीर से उतना शक्तिमान क्यों नहीं बन सका?

बंगाल में कृषि  सम्पन्नता के बावजूद उद्यमशीलता का अभाव था। यह कमी हजारों कोस चलकर आए राजस्थान और हरियाणा (तत्कालीन पंजाब) के लोगों ने पूरी की। अभाव पूर्ति के लिए नहीं तो अपनी आवश्यकता को पूरा करने बंग भूमि में राजस्थान, हरियाणा के लोग आए थे। उनकी त्रासदी यह थी कि मरुभूमि में ना खेती होती थी, ना जल सम्पदा थी। न नदी, न पहाड़, ऐसा मारवाड़ बंग भूमि का पथिक बना। अभाव ने उनको खानाबदोश बनाया और संपन्न बंग भूमि ने उनको आकर्षित किया। बंगाली में हजार खूबियां थी पर वह उद्यमी नहीं था क्योंकि उसको उदर पूर्ति के लिए उद्यमी होने की आवश्यकता नहीं पड़ी। राजस्थान, हरियाणा जहां प्रचंड गर्मी और ठिठुरा देने वाली ठंड पड़ती थी को बंगाल की जलवायु ने आकर्षित किया। न अधिक गर्मी, न प्रचंड सर्दी और जेठ- आषाढ़ की आद्रता के पश्चात बारिश ने पश्चिमी प्रदेशों के मानुस को एक ऐसा शानदार विकल्प दिया कि वह बोरिया बिस्तर के साथ यहां आ गया। लेकिन बंगाली और राजस्थानी यानी दिमाग और उद्यमशीलता का साथ शारीरिक श्रम के बिना गाड़ी कैसे चलेगी? इस आवश्यकता की पूर्ति पड़ोसी बिहार ने पूरी की। बिहार में भी पानी की प्रचुरता, मौसम की उदारता एवं समावेशी स्वभाव पर प्रबंध कौशल और जोखिम लेने की क्षमता की कमी थी। समय ने रास्ता दिखाया और बिहार का श्रम बंगाल की बुद्धि के साथ राजस्थान हरियाणा के उद्यमशीलता ने कोलकाता को और बंगाल के अंचलों को वह समृद्धि दी जिसके फलस्वरूप बंगाल भारत का अग्रणी प्रदेश बन गया। पाट (कच्चा जूट) यहां उपजता है इसलिए उसे ‘गोल्डन फाइबर’ की संज्ञा दी गई। 

तीन सौ से पैंतीस वर्ष का कोलकाता अपने में कई खूबियां समेटे हुए हैं। ऊपर मैंने यहां की समृद्धि के लिए जिन तीन कारणों का विश्लेषण किया उससे समृद्ध कलकत्ता पूर्वी भारत का प्रमुख व्यावसायिक ही नहीं घटनाचक्र का उद्गम स्थल बन गया है बल्कि विश्व के उल्लेखनीय शहरों में से एक है। आज का कोलकाता इसलिए भी चर्चा में रहा है क्योंकि यहां एक आधुनिक बंदरगाह है, हावड़ा पुल जैसे दो खंभे पर खड़ा एक विशालकाय पुल है। पूर्वी भारत का मुख्य द्वार होने के नाते सात बहनों असम, सिक्किम, मेघालय, अरुणाचल, मणिपुर, त्रिपुरा एवं नागालैंड के स्नेहांचल से सिंचित रहने का भी इसे सौभाग्य प्राप्त है। पड़ोस में बांग्लादेश अभिशाप और वरदान दोनों हैं। अभिशाप इस मामले में कि पड़ोस के पलायन का दंश इसे ही सर्वाधिक भोगना पड़ता है किंतु 20 करोड़ जनसंख्या का एक विशाल बाजार भी कोलकाता को ही उपलब्ध है।

बंगाली एक ऐसी कौम है जो 100 वर्ष आगे और 100 साल पीछे की सोचती है। नोबेल पुरस्कार सबसे ज्यादा कोलकाता की ही झोली में पड़े। कला संस्कृति साहित्य की उज्ज्वलता ने प्रवासी गैर बंगालियों के मन में भी बंगाल के प्रति जो आदर और सद्भाव पैदा किया है उसकी परिणति कोलकाता की समृद्धि एवं सौरभ में महसूस की जा सकती है। भूगोल जितना मेहरबान है इतिहास किंतु निर्मम रहा है। बंटवारे की पीड़ा और केंद्रीय सत्ता की बेरुखी भी झेलनी पड़ी। किंतु कोलकाता धार्मिक एवं जातीय सद्भाव के कारण अपनी श्रेष्ठता बनाए हुए हैं। मेरी तरह लाखों लोग इसके मुरीद हैं और यह हमारी पवित्र कर्मभूमि बन गई है। 

प्रसिद्ध शायर मिर्जा गालिब एक बार कोलकाता आए थे। बंगालियों की यह उदारता है कि कोलकाता का एक प्रमुख रास्ता मिर्जा गालिब स्ट्रीट उन्हीं के नाम पर है। चचा गालिब ने कोलकाता से लौटकर यह लिखा- 

कलकत्ते का जो जिक्र किया 

तुमने हमनशीं 

एक तीर मेरे सीने में मारा 

कि हाय! हाय!  


Comments

  1. जानकारी की उपलब्धता के साथ रोचक लेख

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