शिव भक्तों से क्षमा याचना के साथ

 शिव भक्तों से क्षमा याचना के साथ 

सावन का महीना हमारे देश के लिए बहुतअहम है। कृषि प्रधान देश होने के नाते सावन की फुहार जब खेत-खलिहानों पर पड़ती है तो किसानों के भाग्य जाग जाते हैं। भारतीय संस्कृति में सावन इसीलिए त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक दृष्टि से इसका बड़ा महत्व इसलिए है कि यह भगवान शिव का प्रिय माह है और मीलों दूर से कावड़ के दोनों छोर पर पानी का कलश लेकर शिव भक्त पैदल रास्ता पार कर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। सभी सावन का महीना पानी पर केंद्रित है। हमारे तीज त्यौहार के तार लोक कल्याण के साथ जुड़े रहते हैं। इस बुनियाद पर करोड़ों की आस्था सदियों से टीकीं हुई है। समय के साथ इस आस्था को कुछ लोगों ने अराजकता में बदलने की कोशिश भी की है। भारत में धर्म परायणता का केंद्र विश्वास है जिसपर कोई तर्क नहीं किया जाता। हमारे यहां कहा जाता है धर्म अपना अपना, त्यौहार सबका। भारतीय संस्कृति की महानता है कि पर्व लोक पर्व के रूप में मनाए जाते हैं। वह चाहे दिवाली हो या होली, दशहरा हो या दुर्गा पूजा। इसी तरह अन्य धर्म के उत्सव में भी लोग शामिल होते हैं। रमजान के महीने में मुस्लिम भाई रोजा रखते हैं और शाम को किसी निश्चित समय में वे रोजा खोलते हैं। उस वक्त इफ्तार पार्टी की जाती है। अब तो इफ्तार पार्टी हिंदू भी करने लगे हैं जिसमें मुस्लिम धर्मावलंबी शामिल होते हैं। दिवाली, दशहरे पर आयोजन कुछ मुसलमान भी करते हैं जिसमें मुझे भी शामिल होने का अवसर मिला है।



अभी चल रहे सावन के महीने शिवालयों में रुद्राभिषेक की परंपरा है। कई लोग घरों एवं सार्वजनिक स्थानों में भी रुद्राभिषेक करते हैं। भगवान शिव को जल, दूध, दही, घी, चीनी, चंदन, केसर, भांग, पुष्प चढ़ाए जाते हैं। सभी शिवभक्त बड़ी तन्मयता से रुद्राभिषेक में भाग लेते हैं।

 शिव पुराण में बताया गया है कि जल, दूध, दही, शहद, घी, चीनी, ईत्र, चंदन, केसर, भांग इन सभी चीजों से शिवलिंग को अभिषेक स्नान कराने से सभी इच्छाएं पूरी होती है। लेकिन मुख्यत: शिवलिंग पर गंगाजल की वर्षा की जाती है। बैद्यनाथ धाम देवघर जिसे बाबा की नगरी कहा जाता है भक्तगण कांवड़ लेकर आते हैं वह एवं जल शिवलिंग पर विसर्जित करके भक्ति भाव से पूजा करते हैं। शिवजी पर दूध चढ़ाने का भी प्रचलन है लेकिन कुछेक भक्त पानी की बजाय दूध चढ़ाकर बड़े पुण्य के भागीदार बनना चाहते हैं। कई शिव मंदिरों में इस दूध अभिषेक को बड़ा विभत्स बना दिया जाता है। मैंने देखा है कि कुछ तथाकथित भक्तों को मनोमन दूध चढ़ाना शुरू कर दिया है। शिवलिंग पर दूध की बाल्टियों से वर्षा की जाती है। देखा गया है कि मंदिर में शिवलिंग के पास से दूध बहकर गंदी नदियों में बह जाता है। 

मेरा मानना है कि यह आस्था कम और धार्मिक उन्माद या अराजकता अधिक है। दूध को प्रभाहित कर अंधभक्त समझते हैं कि भगवान शिव खुश हो जाएंगे। मान्यता है कि शिव जिन्हें भोले बाबा भी कहा जाता है जल्दी ही खुश हो जाते हैं और भक्तों की इच्छा पूरी कर देते हैं। शायद इसी मान्यता से प्रेरित होकर कुछ भक्तगण दूध का खुला अपव्य करते हैं। मंदिर में बाहर खड़े नंगे और अर्धनग्न बच्चे इस तरह के दृश्य देखकर अपने निर्धनता या अभाव को मन ही मन कोस कर नृशंसता की घूंट पी लेते हैं। जब वह बड़े होते हैं तो इनमें कुछ बगावती तेवर दिखाने लगते हैं, कई भटक जाते हैं। हिंसा से समाज बदलने की उनमें आग प्रज्वलित हो जाती है और ऐसे बच्चे ही समाज में हिंसा का रास्ता अपनाते हैं।

 मैंने कुछ सभाओं में दूध के इस अपव्ययता का जिक्र तो कुछ लोगों के गले उतरा किन्तु कई लोगों ने मेरी इस सोच को धर्म की कसौटी पर खारिज कर दिया। यही नहीं उन्हें लगा कि मेरी मानसिकता धर्म विरोधी है। मैंने कई विद्वानों से बात की तो उन्होंने कहा कि शिवलिंग पर दूध चढ़ाने का प्रावधान है पर भगवान शिव को मनो मन दूध से उनके स्नान का कहीं भी उल्लेख नहीं है। बल्कि उन्होंने मेरी इस बात पर सहमति प्रकट की कि दूध का अपव्यय नहीं होना चाहिए। इसलिए पूरे मनोबल से मैंने महेश्वरी भवन रिसड़ा में समाज की एक सभा में वहां एकत्रित लोगों से जिनमें अधिकांश महिलाएं थी से अपील कर दी कि सावन के महीने में शिवपूजन पूरी आस्था से करें एवं दूध का सांकेतिक अभिषेक करना यथेष्ट है। मैंने विनम्रता के साथ यह सुझाव दिया कि सावन के पूरे महीने गरीब बच्चों को दूध पिलायें। विशेषकर महिलाओं से मैंने अपील की कि बस्ती में जाकर सावन के महीने प्रतिदिन कम से कम 10 बच्चों को दूध पिलायें या उनके बीच दूध पैकेट वितरित करें। मुझे विश्वास है कि उनके सभी मनोरथ पूरे होंगे। सभा के बाद कई महिलाओं ने कहा उन्हें मेरा सुझाव बहुत आत्मीय लगा। कई महिलाओं ने शुरू भी किया है। पर जैसी मुझे आशंका थी आयोजकों को वहां मेरी अपील कुछ नागवार गुजरी।

खैर जो हो मुझे खुशी है कि सावन में दूध का बच्चों में वितरण शुरू हो गया है। महानगर की सुपरिचित संस्था भारत रिलिफ सोसाइटी विगत सात वर्षों से यह उपक्रम कर रही है। पूरे सावन महीने कोलकाता महानगर एवं उसके आसपास कई बस्तियां एवं क्षेत्र में दूध-बिस्किट का वितरण करती है। इस बार भी यह कार्य किया जा रहा है। भले ही कुछ लोगों को यह नागवार गुजारा है पर मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि समाज की प्रवृत्ति में सुधार आया है। इस तरह के कार्यक्रम से गरीबी दूर नहीं होती मैं मानता हूं पर गरीब बच्चों के प्रति संवेदनशीलता जगती है और अभावग्रस्त लोगों की मदद करने की प्रवृत्ति का बीज प्रस्फुटित होता है। भगवान शिव अपने भक्तों के कल्याण हेतु जब पूरी गंगा को अपनी जटा में समेट सकते हैं तो यह सोचना कि उन्हें दूध के बड़े कनस्तरों से नहलाकर खुश करना मात्र आस्था का भटकाव है।

 व्यास मुनि (महाभारत के रचयिता) ने लिखा है

अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम्। 

परोपकार: पुण्याय पापाय परपीडनम्।।

इसी बात पर रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने बड़े सरल शब्दों में वर्णित किया 

परहित सरिस धर्म नहीं भाई 

पर पीड़ा सम नहीं अधमाई । 


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