वाह कलकत्ता! ओह कोलकाता!!

वाह कलकत्ता!

ओह कोलकाता!!

कलकत्ता ब्रिटिश भारत की राजधानी थी। इसलिये इस शहर ने अंग्रेजों की गुलामी के दंश को भोगा है। कई थपेड़े भी सहे हैं। अंग्रेजी हुकूमत के बारे कहा जाता है कि उसका सूर्यास्त कभी नहीं होता था यानि 24 घंटे में ब्रिटिश उपनिवेश पर कहीं न कहीं सूर्योदय होता था। कलकत्ता में ब्रिटिश के पहले पुर्तगाल और अर्मेनियन भी आये थे। ये भी व्यापारी थे। अपने वाणिज्य के लाभ हेतु पुतर्गीज और अर्मेनियन कलकत्ता में बसे। किंतु उनमें वह व्यापारिक कुशाग्रता नहीं थी जो ब्रिटेन के सौदागरों में देखी गई। इसलिए अपना पांव नहीं जमा सके। लेकिन उनके पदचाप आज भी कलकत्ता में महसूस किये जा सकते हैं। वृहत्तर बड़ाबाजार इलाके में जो आज मुख्य व्यवसायिक केन्द्र अर्मेनियन चर्च भी है, आर्मेनियन स्ट्रीट भी है और पोतुर्गीज स्ट्रीट भी।


कलकत्ता का एक सुडौल पक्ष यह भी है कि राजस्थान, हरियाणा, पंजाब के व्यापारी इसी शहर में आकर बसे। ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में पहले अपनी व्यापारिक गतिविधि शुरू की थी और बाद में इसी कंपनी के कंधे पर बैठकर ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत को अपनी हुकूमत का गुलाम बना लिया। कलकत्ता शहर अंग्रेजी, उर्दू, हिन्दी, पंजाबी इन सब भाषाओं के अखबारों की जननी है। साथ ही कलकत्ता में बंगाली समाज की बुद्धि, उनका देश प्रेम एवं बलिदान, मारवाड़ी समाज की उद्यमशीलता और बिहारी समाज का श्रम तीनों ने मिलकर कलकत्ता को समृद्ध किया। आज भी कलकत्ता इसी त्रिवेणी शक्ति पर फल फूल रहा है।

कलकत्ता आज भारत की राजधानी नहीं है। दिल्ली से पूरे देश की हुकूमत चलती है। कलकत्ता के साथ संघर्ष की कहानी भी अंतहीन है। इतिहास गवाह है कि बंगाल की इस राजधानी ने कभी भी दिल्ली की मनमानी बर्दाश्त नहीं की। ब्रिटिश शासन को उखाडऩे की भूमिका में बंगाल और पंजाब अव्वल रहे। स्वतंत्रता के पश्चात् भी कलकत्ता कभी दिल्ली के फरमान का मोहताज नहीं रहा। प. बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डा विधानचन्द्र राय भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को जवाहर ही कहते थे और नेहरू जी ने भी कभी विधान बाबू को कम नहीं आंका। दिल्ली के साथ शक्ति संघर्ष आज भी कलकत्तावासियों में देखने को मिलता है। दिल्ली की सत्ता को बंगाल की धरती से अक्सर चुनौतियां मिलती रहती है। बंग भंग और स्वतंत्रता के पश्चात विभाजन की पीड़ा भी कलकत्ता को, सर्वाधिक भोगनी पड़ी। अंगाल का औद्योगिक विकास मंथर गति से इसलिये हुआ क्योंकि मारवाड़ी उद्यमियों का यह पंसदीदा शहर था। बंगाल ने बुद्धि बल से अपना सिक्का जमाया तो मारवाडिय़ों की उद्यमशीलता ने इस राज्य को लक्ष्मी और सरस्वती, का संगम दिया। बिहार, यूपी का श्रमिक त्रिवेणी की तीसरी धारा बना। लेकिन कालान्तर में कुछ राजनीतिक कारणों से विशेषकर 1967 से 1980 तक कुछ गैर जिम्मेदाराना श्रमिक संगठनों ने उद्योगों को बंद करवाने की राजनीति को प्रश्रय दिया जिसके परिणमस्वरूप कई उद्योग यहां से चेले गये, कई बंद हो गये। माक्र्सवादी नेता ज्योति बसु ने भी मुख्यमंत्री के रूप में इस हकीकत को समझा और अपनी प्रशासनिक कुशलता के कारण, राजनीतिक अस्थरता नहीं होने दी। उद्योगों की बदहाली दुर्भाग्यजनक थी किन्तु बंगाल ने साम्प्रदायिक अथवा जातीय संघर्ष को हमेशा दबाकर रखा। श्रमिकों के प्रति नरम बामपंथी किन्तु जातीय या साम्प्रदायिक विभाजन के मामले में बहुत कुछ स्पष्ट एवं  सकारात्मक थे। लेकिन बंगाल के इस चरित्र को संजोकर रखने एवं साम्प्रदायिक ताकतों से लडऩे में कलकत्ता को बड़ी बदनामी के आलम से गुजरना पड़ा। राजनीतिक रूप से कुछ साम्प्रदायिक ताकतों ने अपना पैर जमाने के लिये एक जाति विशेष के विरुतद्ध इतना प्रचार किया कि कि मध्यम श्रेणी विशेषकर व्यापारी वर्ग की मानसिकता बदल गई। राष्ट्रीयता का पक्षधर, देश में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध बलिदान एवं उत्सर्ग में अव्वल बंगाल साम्प्रदायिक विवादों के घेरे में फंस गया। 1967 के आसपास नक्सल आंदोलन से सफलतापूर्वक जुझने वाला कोलकाता किल्तु साम्प्रदायिक मानसिकता के भ्रमजाल में उलझ गया। आज एक बड़े वर्ग का ऐसा मानना है कि बंगाल और कलकत्ता सुरक्षित नहीं रहा। कैसी विडम्बना है कि इस सच्चाई के बावजूद कि आधीरात भी युवतियां बिना किसी व्यवधान के कलकत्ता शहर में आ जा सकती हैं। कोलकाता आज हड़ताल व जुलूसों से मुक्त हो गया है। सडक़ें किसी भी शहर से बेहतर है। जल जमाव में भी कमी आई है। कोलकाता का राजरहाट, न्यूटाउन इलाकों में कभी जाइये तो लगेगा किसी यूरोपीय शहर में आ गये। महानगर के ट्राफिक व्यवस्था भी उल्लेखनीय है। बड़ी संख्या में विशाल कॉम्प्लेक्स बने हैं। हाईराइज बिल्डिंग में बेतहाशा वृद्धि हुई है। इस सबके बावजूद कलकत्ता की छवि सुरक्षा मामले में धूमिल हो गई है। कई अफवाहों के जरिये इस छवि को और चर्चित एवं निन्दित बनाया गया। मसलन पार्क सर्कस के पास साल भर पहले एक बड़े मॉल के बारे में यह खबर दवानल की तरह फैल गई कि एक युवक युवती का अपहरण कर लिया गया और बाद में फिरौती लेकर उसे रिहा किया गया। हमने स्थानीय थाने से सम्पर्क किया पर उन्होंने भी इसे अफवाह बताकर टाल दिया। आसपास रहने वालों से भी सघन पूछताछ की किन्तु कहीं कोई घटना का सुराग नहीं मिला। जिन लोगों ने इस घटना को फैलाने को अंजाम दिया उनका यह जवाब था कि डर के मारे कोई कुछ बताना या कहना नहीं चाहता। हमें यह बड़ा नागवार लगा कि जिस उद्यमी समाज ने बहुत विपरीत परिस्थितियों मे भी व्यापार को फैलाया वह अचानक इतना भीतू कैसे बन गया। जिस मॉल को पास की यह घटना बताइर्ग उसके इर्द गीर्द  लड़कियों की दो बड़ी स्कूलें है। अगर ऐसी घटना हुई है और उसकी रिपोर्ट थाने में नहीं दी गई तो ऐसे लोगों ने यह नहीं सोचा कि अगर दुर्भाग्य से इस तरह की घटना बढ़ी तो पास में उन दो कन्या पाठशालों का क्या होगा?

खैर, दु:ख इस बात का है कि कलकत्ता की छवि बाहर इस कदर विभत्स हो गई है कि इसका उसी उद्यमी समाज को दुष्परिणाम भोगना पड़ रहा है जिसने कलकत्ता को अपने व्यावयायिक साहस और उद्यमशील मानसिकता से पल्लवित एवं पोषित किया। हाल ही में विवाह शादियां कराने वाले कुछ सभ्रान्त बिचौलियों से बातचीत हुई। उन्होंने कलकत्ता को लेकर एक नई बात की हमें जानकारी दी जो हमारे लिये ब्रेकिंग न्यूज से कम नहीं है। उनका यह कहना है कि मुम्बई, सूरत, चेन्नई, हैदराबाद, बेंगलुरू, कानपुर, जयपुर, रायपुर, आदि आदि शहरों की विवाह योग्य लड़कियां कोलकाता आना नहीं चाहती। इसके बारे में पूछताछ करने पर और भी कई लोगों ने इस बात की पुष्टि की। मेरे लिये यह सूचना इसलिये कष्टदायक है कि मुझे अपने पौत्र का प्रसंग करना है और यह स्थिति हमारे पारिवारिक इच्छाओं का दमन कर सकती है। मैं भगवान से मनाता हूं कि इस तरह की धारणायें निर्मूल हों एवं कलकत्ता के शौर्य और उसकी ऐतिहासक पृष्टभूमि का सही आकलन किया जाये। जो लोग अफवाहों पर कान देते हैं, उनको इसके दुष्परिणामों से होने वाले नुकसान के बारे में भी सोचना चाहिये। 

Comments

  1. अति सुन्दर चित्रण एक बदलते महानगर का

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  2. कोलकाता को एक आलेख में समेटना सम्भव नहीं,जो आपने कर दिखाया आदरणीय, 'गागर में सागर भरना' शायद इसे ही कहते हैं। कोलकाता आज भी कई मायने में देश के अन्य शहरों से अलग है। आज किसी शहर में 40 रूपये में कोई भूखा भर पेट भोजन नहीं कर सकता. कलकत्ता की साहित्यिक संस्कृतिक सामाजिक भूमि जितनी उर्वर है,शायद ही भारत में कहीं की होगी।...आपकी कलम बहुरंगी विषय लेकर आती है, हम पाठकों को आपके रविवारीय की प्रतीक्षा रहती है आदरणीय।😊🙏

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