बारूद के ढेर पर बैठी है यह दुनिया
हाल ही में यूक्रेन ने रूसी बम वर्ष विमानों पर भयानक ड्रोन हमला किया। रूस के भीतर 40 से अधिक रूसी विमान को नष्ट कर दिये गये। रूस -यूक्रेन युद्ध 2022 में प्रारंभ हुआ और लगभग चार वर्षों में दोनों देशों ने एक दूसरे को तबाह करने में कोई कसर नहीं उठा रखी। 18 महीने की चुपके चुपके तैयारी के बाद यूक्रेन ने रूस पर उसकी सीमा के पास से अब तक का सबसे बड़ा हमला किया है। रुस हतप्रद है कि इस विनाशकारी एवं उसपर सबसे बड़े हमले का किस तरह जवाब दे। इस ताजा घटना ने यह सिद्ध कर दिया कि अपने को दुनिया की बड़ी ताकत समझने वाले मुल्क भी सुरक्षित नहीं हैं। संभव है रूस भी तबाह यूक्रेन को नेस्तनाबूद करने की कोई रणनीति बना रहा हो और किसी दिन उस मास्टर प्लान को अंजाम दे। रिपोर्ट के मुताबिक इस लड़ाई में अब तक 14 लाख लोग हताहत हुए हैं। इस अभियान में शामिल यूक्रेन के 75000 सैनिक या तो मारे गए या बुरी तरह से घायल हो गए हैं। जेलेंस्की सीजफायर के लिए तैयार हैं लेकिन रूस इसके लिए राजी नहीं है। यूक्रेन पर परमाणु हमला कर सकता है रूस अमेरिका अधिकारियों के दावे से दहशत में है दुनिया, ऐसे में विश्व में तनाव बढऩा तय है।
भारत और पाकिस्तान के बीच पिछले महीने 6 से 10 मई तक भीषण संघर्ष देखने को मिला। दोनों ओर से मिसाइल और ड्रोन हमले किए गए। इस दौरान परमाणु युद्ध के खतरे की बात भी दुनियाभर में होने लगी क्योंकि भारत और पाकिस्तान दोनों ही परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं। ये खतरा ना सिर्फ भारत और पाकिस्तान बल्कि पूरे क्षेत्र की सुरक्षा के लिहाज से नाजुक स्थिति को दिखाता है। दोनों देशों के बीच परमाणु हथियारों का इस्तेमाल दुनिया के बड़े हिस्से में तबाही ला सकता है।
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक,भारत-पाक में परमाणु हथियारों के खतरे को देखते हुए एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने डरावनी स्थिति को पेश किया था। इस रिसर्च में कहा गया था कि 2025 (मौजूदा साल) में भारत की संसद पर आतंकी हमला हो सकता है। ये हमला भारत-पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध की वजह बन सकता है। इस साल एक बड़ा हमला भारत के पहलगाम में हुआ भी, जिसने भारत-पाकिस्तान को बड़े युद्ध की कगार पर ला दिया।
भारत और पाकिस्तान की परमाणु नीति की बात की जाए तो परमाणु हथियारों के परीक्षण के बाद से ही पाकिस्तान ने औपचारिक रूप से आधिकारिक परमाणु सिद्धांत घोषित नहीं किया है। इसके विपरीत भारत ने अपने परमाणु परीक्षणों के बाद इन हथियारों के पहले उपयोग ना करने की नीति अपनाई है। हालांकि भारत ने रासायनिक या जैविक हमलों के जवाब में परमाणु हथियारों का उपयोग करने का अधिकार सुरक्षित रखा है।
पाकिस्तान की परमाणु नीति में कुछ स्पष्टता उस समय के एनसीए के रणनीतिक योजना प्रभाग के प्रमुख खालिद किदवई ने लाने की कोशिश की। खालिद ने कहा कि बड़े क्षेत्रीय नुकसान, प्रमुख सैन्य संपत्तियों का विनाश या आर्थिक नाकेबंदी में परमाणु का इस्तेमाल हो सकता है। इसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि पाकिस्तान के परमाणु हथियार भारत पर लक्षित हैं। इनका इस्तेमाल तभी किया जाएगा, जब देश के रूप में पाकिस्तान का अस्तित्व दांव पर लग जाएगा। पाकिस्तान का ये रुख कहीं ना कहीं खतरे को बढ़ा देता है।
पाकिस्तान के निर्माण काल से आज तक हमारा पड़ोसी भारत के लिए खतरा बना हुआ है।आतंकवाद को हथियार बनाकर यह देश भारत को डरता रहा है। हाल ही में पहलगाम की घटना के बाद यह देखने को मिला कि पाक अपनी परमाणु ऐंठ में भारत को ब्लैकमेल करने की भी चेष्टा कर रहा है। दुर्भाग्य है कि दुनिया के दोनों शक्तिशाली देश अमेरिका और चीन भारत के लिए शनि की दशा जैसा बन चुके हैं। चीन ने भारत पाक संघर्ष के दौरान कहा कि वह पाकिस्तान के साथ है हालांकि उसने कहीं भी पाकिस्तान का प्रत्यक्ष रूप से साथ नहीं दिया। हाल ही में सर्वदलीय दल का नेतृत्व कर रहे कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा कि भारत एवं पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष के परिदृश्य में चीन का ऐसा कारक है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
अमेरिका के बारे में यह कहा जाता है कि वह आज तक किसी का नहीं हुआ। भारत-पाक युद्ध के बीच सीजफायर का दावा तो उसने किया और दो पड़ोसी देशों के बीच शांति का मसीहा बनने की चेष्टा की। लेकिन युद्ध विभीषिका के मध्य अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से पाकिस्तान को 1 मिलियन डॉलर का ऋण देकर उसने साबित कर दिया कि वह पाकिस्तान को सैनिक रूप से मजबूत करने में लगा हुआ है। अमेरिका को डर लगता है तो सिर्फ चीन से इसलिए वह भारत के साथ है भी और नहीं भी है। पाकिस्तान अपने ऋण का इस्तेमाल जाहिर है सैन्य शक्ति बढ़ाने में खर्च करेगा। स्वाभाविक रूप से भारत पाकिस्तान से दो कदम आगे रहने में फिर वह भी हथियारों की खरीदारी करेगा। भारत की अर्थव्यवस्था प्रतिरक्षा के दबाव में कहीं समझौता करती नजर आएगी।
आज पूरी दुनिया हुज्जतबाजों के हाथ में चली गई है। शांति का नाम लेनेवाला कोई भी नहीं रहा। संयुक्त राष्ट्र संघ कहने को तो 193 देश का साझा मंच है पर वह दुनिया में हो रहे हथियारों एवं परमाणु बम के खतरों से निर्लिप्त वैदेही जनक बन गया है। जिसके पास जिसकी लाठी वही भैंस चराएगा वाली स्थिति बन गई है।
इस भयानक स्थिति में भारत भी जाहिर है अब बुद्ध और गांधी का देश बनकर कब तक रहेगा। इन सब घटनाक्रमों के बीच भारत का आर्थिक विकास युद्ध या युद्ध जैसी स्थिति की भेंट चढ़ सकता है। अब गांधी तो वापस आने से रहे और न ही पंचशील को कोई याद करता है। स्थिति निराशाजनक है। देखना है ऊंट किस ओर करवट लेगा। आज की स्थिति को देखते हुए यह पंक्तियां बड़ी माकूल हैं -
मेरा घर शीशे का, तेरा घर शीशे का
मेरे हाथों में पत्थर, तेरे हाथों में पत्थर
मैं भी सोचूं तू भी सोच।

विश्लेषणात्मक लेख
ReplyDeleteसविता पोद्दार
सर आपने इस आलेख के माध्यम से युद्ध की विभीषिका को रेखांकित किया। अमेरिका के राष्ट्रपति घूम घूम कर प्रचार कर रहे थे कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान का सीरीज फायर उन्हीं ने करवाया है। आज अमेरिका स्वयं गृह युद्ध में झुलस रहा है।
ReplyDeleteपाकिस्तान के लिए मेरी ग़ज़ल का एक शेर याद आता है कि -
हम तो बढ़ते ही गए दूरियां घटाना को।
दो कदम वह न चल फासले मिटाने को। ~इस वैचारिक आलेख हेतु आपको साधुवाद आदरणीय!!🙏
सर आपने इस आलेख के माध्यम से युद्ध की विभीषिका को रेखांकित किया। अमेरिका के राष्ट्रपति घूम घूम कर प्रचार कर रहे थे कि भारत-पाकिस्तान का सीरीज फायर उन्हीं ने करवाया है। आज अमेरिका स्वयं गृह युद्ध में झुलस रहा है।
ReplyDeleteपाकिस्तान के लिए मेरी ग़ज़ल का एक शेर याद आता है कि -
हम तो बढ़ते ही गए दूरियां घटाने को।
दो कदम वह न चल फासले मिटाने को। ~इस वैचारिक आलेख हेतु आपको साधुवाद आदरणीय!!🙏