सूपर- 30
नए भारत की दस्तक
संतप्त गर्मी वाले मई महीने का अंतिम दिन। कोलकाता के पांच सितारा आईटीसी होटल में नजारा देखने और चिंतन के लायक था। इस अनुष्ठान का नामकरण सूपर 30 किया गया जिसमें मारवाड़ी समाज के वे 30 बच्चे थे जिन्होंने बोर्ड की परीक्षाओं में 99% या उससे अधिक अंक हासिल किए थे। इतने उत्कृष्ट अंक प्राप्त करने वाले बच्चों की सूची में 70 बच्चों के नाम थे। इनमें 33 सिर्फ मारवाड़ी समाज के थे। मुझे सुखद आश्चर्य हुआ सूची देखकर कि राजस्थान से किसी समय रोजगार या व्यापार के लिए आए इस मूलत: व्यापारी समाज ने शिक्षा के क्षेत्र में इतनी बड़ी छलांग लगाई है। स्वाभाविक है कि मुझे अपने छात्र जीवन का स्मरण हो आया। मैं एक औसत छात्र था। 35- 40 प्रतिशत अंक वाला। हां, हिंदी में 50-52 तक आया करते थे। उस समय 60% अंक को ‘डिस्टिंक्शन’ माना जाता था। लेकिन आज तो इस नंबर को कोई पूछता नहीं है। कॉलेज में उन्हें दाखिला नहीं मिलता। 90% अंक वाले बच्चों की लिस्ट लंबी होती जा रही है। सभी अच्छे कॉलेज उनका दाखिला लपक लेते हैं। उत्कृष्ट अंक प्राप्त करने वाले बच्चों का एडमिशन करा कर कई स्कूलें अच्छे रिजल्ट का दम भरती है और नगाड़े बजाकर प्रचार करती है कि उनके संस्थान में बेहतर पढ़ाई होती है। कोई उनसे पूछे कि 80% से नीचे के छात्र या छात्रा का आप दाखिला नहीं लेते हैं आपके स्कूल का परिणाम अच्छा हुआ तो इसमें पीठ थपथपाने वाली क्या बात है? 40-50% वाले छात्रों को लीजिए फिर अपना परिणाम अच्छा दिखाकर वाहवाही लूटिए। पर नहीं, वे सिर्फ उत्कृष्ट नंबर वाले को अपने शिक्षण संस्थान में जगह देते हैं और फिर अपने तथाकथित करिश्मे की तारीफ कर थाली बजाते हैं।
सूपर-30 छात्रों का सामूहिक चित्र।
मेरा बस चले तो हर कॉलेज के लिए कमजोर बच्चों के दाखिले को अनिवार्य कर दूं। मेरे ख्याल से कॉलेज के लिए यह जरूरी होना चाहिये कि वह एक तिहाई कमजोर (30 से 40') बच्चों को अपने संस्थान में पढ़ायें और उन्हें होनहार बनाएं।
खैर, जो हो यह तो शिक्षण व्यवस्था का मुद्दा है। जिस पर बहस चलनी भी चाहिए और चलती भी रहेगी। लेकिन जिस सूपर 30 का मैंने जिक्र किया उनके बच्चों ने बड़ी सफलता का दम भरने की जगह अपने ही समाज के नामधारी उच्च पदस्थ लोगों के साथ एक मंच पर अपने करियर को लेकर खुला संवाद किया। जिन समाज शिरोमणि के साथ उनका संवाद हुआ, वे आश्चर्य में पड़ गए हैं कि यह क्या हो रहा है। इससे पहले तो कभी नहीं हुआ। कुछ लोगों को यह लग रहा था कि बच्चे क्या पूछ बैठें। समाज की इस हाई प्रोफाइल पंगत के लिए भी यह पहला अवसर था कि वह अपने पौत्र यानी तीसरी पीढ़ी के नोनीहालों के सामने सवाल-जवाब के लिए रूबरू हुए। खैर, बातचीत में बच्चों ने अपने दिल की बात कही तो वह अपने करियर के बारे में क्या सोचते हैं, का भी खुलासा हुआ। शुरुआत में कुछ तनाव था पर कुछ मिनट में घरेलू ड्राइंग रूम में बच्चों की गुफ्तगू में बदल गया और फिर तो ऐसा लगा कि बातचीत का यह क्रम कुछ देर और चलता तो अच्छा रहता।
एक प्रश्न यह भी उठता हैं कि सूपर-30 में मारवाड़ी का तडक़ा क्यों लगाया गया। यह दिलचस्प तो है ही इस पूरे इवेन्ट का केन्द्र बिन्दु भी था। पहलगाम में आतंकियों ने धर्म पूछा और अपने घृणित इरादों को अंजाम दिया। हर स्तर पर इसकी निन्दा हुई। फिर इन छात्रों के भविष्य की चौपाल में जाति की सीमा की क्यों बाड़ लगाई गई। यह आयोजकों की मनसा थी इसलिए एक आयोजक के रूप में मेरा जवाब देना समय का तकाजा है।
राजस्थान से आकर मारवाड़ी समाज जिन सुदूर प्रदेशों में जाकर बस गया बंगाल उसमें सर्वोपरि है। एक कड़वा सच यह भी है कि राजस्थान का बनिया समाज जिसे मारवाड़ी के नाम से जाना और माना जाता है, ही मरुधर प्रदेश से बाहर निकाला। दूसरी जमात के लोग मसलन जाट, राजपूत, आदिवासी, ब्राह्मण ने अपने पितृ प्रदेश को छोडऩे की पहल नहीं की। बनिया स्वभाव से उद्यमी होता है। महत्वाकांक्षा उबाल मारती रहती है। यह आशा है की कालांतर में ब्राह्मण और बाकी तबके के लोगों ने भी इस ‘परदेस’ यात्रा में बनियों का साथ दिया। आज तो राजस्थान के सभी बाशिंदे देश भर में अपनी सुविधा और आवश्यकता के अनुसार बस गए। जो भी हो हम ‘गीतांजलि’ पढऩे के लिए या उससे प्रेरित होकर बंगाल कूच नहीं किए थे। हमारे पलायन के पीछे एक और एकमात्र कारण रोजगार या व्यवसाय करना था। शिक्षा ने हमारे पंखों को ऊर्जा दी और देशावर में हमारी पढ़ाई लिखाई भी धीरे-धीरे परवान चढ़ी। लड़कियों ने बहुत बाद में सामाजिक विसंगतियों के दबाव में आर्थिक स्वावलंबन को सब समस्याओं का हाल समझकर पढ़ाई की ओर मुख किया। आज तो लडक़ा हो या लडक़ी स्कूल-कॉलेज में दोनों की धूम रहती हैं।
समाज कैसे बदलते हुए आयाम में सूपर 30 के नए भारत का ट्रेलर है जिसमें आने वाले कल की एक झांकी प्रस्तुत की गई। आजकल तो यह संवाद बहुत प्रचलित हो गया है - यह तो ट्रेलर है पिक्चर तो अभी बाकी है। इस ट्रेलर में विद्यार्थियों ने दिल खोलकर समाज के प्रवक्ताओं से बात की। कार्यक्रम में पहली बार मारवाड़ी समाज के वे लोग जिनका शिक्षण संस्थानों से सीधा संबंध है, ने शिरकत की। इसलिए कहा जा सकता है कि मारवाड़ी समाज का यह पहला कार्यक्रम है जिसमें शिक्षा को एकमात्र एजेंडा बनाया गया। समाज के जिन प्रभावशाली लोगों ने इस बेजोड़ कार्यक्रम में भागीदारी की उनमें प्रमुख हैं पद्मश्री सम्मान से सम्मानित हर्षवर्धन नेवटिया, समाजसेवी हरि प्रसाद बुधिया, समाज चिंतक एवं साहित्यप्रेमी डॉ. बि_लदास मूंधड़ा, पश्चिम बंगाल सरकार के पूर्व वित्त सचिव श्री सीएम बच्छावत, चुनाव आयुक्त मनोज अग्रवाल, हेरिटेज के प्रदीप अग्रवाल, आशा माहेश्वरी, ललित-शशि कांकरिया, आरपी पंसारी, ब्रह्मानंद अग्रवाल, अरुण लड्ढा, किशन केजरीवाल, डा. वसुंधरा मिश्रा, दुर्गा व्यास, अल्केश अग्रवाल, अंकित डागा, सुरेश जैन, सतीश शर्मा, बृजमोहन बेरीवाल, विष्णु मित्तल, नारायण प्रसाद डालमिया, रतन शाह प्रभृत्ति।
आयोजक पश्चिम बंगीय मारवाड़ी सम्मेलन शिक्षा कोष के साथ ताजा टीवी ने भी इस मौके पर अपनी नई पीढ़ी को मैदान में उतारा। कार्यक्रम का संचालन वेदांश नेवर ने सफलतापूर्वक करके अपनी संभावनाओं का परिचय दिया।
सूपर-30 में हर छात्र को प्रमाण पत्र, 100 ग्राम चांदी का सिक्का प्रदान किया गया। विद्यार्थी के साथ उनके परिवार को भी मंच पर बुलाकर सम्मान प्रदान किया गया जिससे यह संदेश प्रेषित किया गया कि सफल छात्र के पीछे परिवार की भी बड़ी भूमिका होती है। समाज ने तुम्हें बहुत कुछ दिया, इस पादान पर ला खड़ा किया, बड़े होकर तुम भी समाज के प्रति दान करो के एक सार गर्भित संदेश को लेकर प्रफुल्लित एवं उत्साही बच्चों ने घर वापसी की।

इस पहल के लिए मारवाड़ी समाज और सुपर ३० के सभी छात्रों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
ReplyDeleteमारवाड़ी समाज शुरू से ही परिश्रमी और समाज सेवी रहा है, यह उसी का प्रतिफलन है।
Great program and great article
ReplyDeleteमारवाड़ी न कहकर राजस्थानी शब्द का प्रयोग अधिक सार्थक लगता,मारवाड़ राजस्थान का एक क्षेत्र विशेष है।...राजस्थान की वीर धरा आज व्यापार के साथ शिक्षा में भी अग्रसर है यह इस अयोजन से परिलक्षित हुआ।...बच्चों को अन्यतम बधाई।
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