युद्ध को लेकर बुनियादी फर्क है भारत और पाकिस्तान में
हम अक्सर भारत की तुलना पाकिस्तान से करने की भूल करते हैं चाहे युद्ध का समय हो या शांति का। यह दुर्भाग्य है कि हम भारत को पाकिस्तान के समानांतर मानते हैं। इस दुर्भाग्यजनक स्थिति के लिए कुछ हद तक हमारी सरकार और प्रशासन भी जिम्मेदार है क्योंकि वह भी बात-बात पर पाकिस्तान का हवाला देती है। मुझे स्मरण है कि लगभग 50 वर्ष पहले मैं मास्को में हुई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत के प्रतिनिधिमंडल का सदस्य था। वहां हमारे एक साथी ने अपने भाषण में भारत और पाकिस्तान की तुलना की एवं अपने को हर मामले में सुपिरियर बखान किया तभी पाकिस्तान से आई एक महिला ने सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि को फटकारते हुए कहा कि दुर्भाग्य है आप पाकिस्तान से अपनी बराबरी करते हैं। जबकि हमारा मुल्क तो एक कॉलोनी है जबकि भारत एक महान देश है एवं प्रगति की रफ्तार पकड़ रहा है।
भारतीय सेना की कर्नल सोफिया कुरैशी एवं वायुसेना की विंग कमांडर व्योमिका सिंह।
हाल ही में पहलगाम की घटना के पश्चात संघर्ष को लेकर क्या फर्क है भारत और पाकिस्तान में, इसे समझने की जरूरत है। दोनों देश के राजनीतिक डीएनए में जमीन आसमान का अंतर है।
भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर के बाद दोनों देशों में अलग माहौल है। पाकिस्तान में लोग विजय जुलूस निकाल रहे हैं , पटाखे छोड़ कर सेलिब्रेट कर रहे हैं। दूसरी ओर भारत में लोग सरकार से सवाल पूछ रहे हैं कि पाकिस्तान पर रहम क्यों किया? भारत में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें यह महसूस हो रहा् है कि सीजफायर को स्वीकार कर लेना हमारे लिए हार को मान लेने जैसा ही है। दरअसल भारत और पाकिस्तान दोनों ही एक देश रहे हैं। बंटवारे के बाद दोनों की देशों की प्रकृति में बहुत बड़ा बदलाव हो गया। पाकिस्तान ने खुद को एक इस्लामिक मुल्क घोषित कर दिया, जो इस्लामिक के साथ साथ सैन्य प्रभुत्व वाले देश में बदल गया, जबकि भारत ने खुद को एक धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में पोषित किया और लोकतंत्र को यहां फलने फूलने का मौका मिला। परिणामस्वरूप भारत और पाकिस्तान दोनों के ही प्रकृति में जमीन और आसमान का अंतर हो गया। यही कारण है कि दोनों देशों के लोग युद्ध को लेकर भी अलग दृष्टिकोण रखते हैं।
भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 की जंग एक निर्णायक जंग थी। इस जंग के बाद ही पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर बांग्लादेश बन गया था। पाकिस्तान की यह एक बहुत बड़ी हार थी। पाकिस्तान के करीब 93 हजार सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने झुककर अपने हथियार सौंपे थे। यह पाकिस्तान के लिए बहुत ही शर्मनाक था। लेकिन पाकिस्तान में हार को जीत बनाने की परम्परा रही है। वहां के जूनियर कक्षाओं में छात्रों को यही बताया जाता है कि पाकिस्तान ने इस जंग में भारत को कड़ी मात दी थी। पाकिस्तान का सबसे बड़ा अखबार डॉन उस दिन दिन अपने पहले पेज की लीड में लिखता है WAR TILL VICTORY. 1947, 1965 और 1999 (कारगिल) के युद्धों को भी पाकिस्तान जीता हुआ बताता है।
असिम मुनीर- सेनाध्यक्ष, पाकिस्तान
दरअसल पाकिस्तान में सेना और सरकार को जनता का समर्थन बनाए रखने के लिए भारत के खिलाफ मजबूत छवि की जरूरत होती है। हार को स्वीकार करने से नेतृत्व की विश्वसनीयता कम हो सकती है, इसलिए इसे जीत के रूप में पेश किया जाता है। भारत के खिलाफ भावनाओं को भडक़ाकर जनता को एकजुट किया जाता है। हार को जीत बताना इस भावना को जीवित रखता है और जनता का ध्यान आंतरिक समस्याओं जैसे आर्थिक संकट, बलूचिस्तान अशांति आदि से हटता है। पाकिस्तानी सेना देश की राजनीति में केंद्रीय भूमिका निभाती है। हार को स्वीकार करना सेना की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए युद्ध के परिणामों को तोड़-मरोडक़र पेश किया जाता है।
पाकिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था और सीमित सैन्य संसाधनों के कारण पूर्ण युद्ध विनाशकारी हो सकता था। भारत की कार्रवाई के चलते पाकिस्तान में इतनी बरबादी हुई है कि युद्ध को रोकना ही उनके नेताओं के लिए उपलब्धि है। स्वयं पीएम शहबाज शरीफ ने युद्ध रोकवाने के लिए अमेरिका और चीन की जिस तरह प्रशंसा की है उसे देखकर साफ लगता है कि पाकिस्तान युद्ध रोकने के लिए कितना आग्रही रहा होगा। सरकार और सेना ने सीजफायर को भारत के खिलाफ मजबूत रुख के रूप में दिखाकर जनता का समर्थन हासिल किया। भारत की कार्रवाइयों को कमजोर दिखाने के लिए दुष्प्रचार किया गया कि भारतीय सेना ने मस्जिदों पर हमले किए, बच्चों और सिविलियन को निशाना बनाया गया।
पाकिस्तान किसी भी कीमत पर भारत से लंबे युद्ध के लिए तैयार नहीं था। जो देश युद्ध के बीच ही आईएमएफ से बेलआउट पैकेज ले रहा हो उसके बारे में क्या ही सोचा जा सकता है। मतलब साफ है कि एक हाथ में कटोरा और दूसरे हाथ में बंदूक। पाकिस्तान में महंगाई अपने चरम पर है, विदेशी मुद्रा भंडार इतना ही रहता है कि बस महीने भर का खर्च किसी तरह चल जाए।
कहने का कुल मतलब यही है कि वहां की जनता, वहां के राजनीतिक दल वही जानते हैं जो उन्हें सेना बताती है। जबकि भारत में ऐसा नहीं है। भारत में सरकार जनता के इच्छा पर चलती है। इंदिरा गांधी जिन्होंने पाकिस्तान पर इतनी बड़ी जीत हासिल की थी उन्हें जनता ने जरूरत होने पर कुर्सी से उतार दिया था। फिर जरूरत समझी तो उसी इन्दिरा को शानदार जीत दिलवाकर सत्तासीन कर दिया। यहां के लोग सवाल करते हैं। यही कारण है कि 7 मई और 9 मई को भारतीय सेना ने पाकिस्तान को धूल चटा दी इसके बावजूद भारतीय इसे जश्न के रूप में नहीं ले रहे हैं, उल्टा सरकार से सवाल कर रहे हैं कि पाकिस्तान से सीजफायर करने के पहले जनता से क्यों नहीं राय ली गई। यह भारत की राजनीतिक संस्कृति है। यहां पर सरकार से सवाल करने की आजादी है। यहां आंख मूंदकर अपनी सेना या सरकार का समर्थन नहीं किया जाता है।


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