बड़ाबाजार लाक्षागृह बन गया है


 बड़ाबाजार लाक्षागृह बन गया है

बड़ाबाजार की प्रसिद्ध बांगड़ बिल्डिंग के पीछे पेट्रोल पंप के बगल की गली में घुसते ही मदन मोहन बर्मन स्ट्रीट है। इस क्षेत्र को मछुआ कहते हैं। विगत मंगलवार को वहां एक होटल में रात को आग लग गई जिसमें कुल 15 लोगों की जान चली गई। चूंकि यह होटल बड़ाबाजार के केंद्र में है इसलिए यहां बाहर से आने वाले व्यापारी ठहरते हैं। अधिकांश पश्चिम बंगाल के विभिन्न जगहों से आते हैं लेकिन कुछ लोग राज्य के बाहर से भी आकर इस होटल में ठहरते हैं। होटल का नाम है रितुराज। नाम जो भी हो पर हर ऋतु में इसमें अतिथियों का रैन बसेरा होता है। होटल चालू है, चार्ज भी ठीक है, खाना भी अच्छा है, इसलिए बाहर के आगंतुकों को होटल पसंद है। यह व्यापारिक क्षेत्र है इसलिए होटल के कमरे अधिकांश दिनों में भरे ही रहते हैं। व्यवसायिक केन्द्र में है इसलिये गन्दगी को बर्दाश्त करना पड़ता है। इस भयावह अग्निकांड में आग लगने पर सभी को दु:ख हुआ, निर्दोष लोगों की मौत हुई, मुख्यमंत्री मर्माहत हुई, वे उस वक्त दीघा में जगन्नाथ मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के सिलसिले में गई हुई थी किंतु वहीं से उन्होंने संवेदना प्रकट की एवं सूचना दी कि वह दीघा से सीधे हेलीकॉप्टर में आएंगी और घटना क्षेत्र का मुआयना करेंगी। उसी रात बारिश के कारण उनका हेलीकॉप्टर से आना संभव नहीं हो सका इसलिए वह अगले दिन गई। मृतकों के परिजनों को दो लाख रुपए एवं घायलों को 50-50 हजार रुपए देने की घोषणा भी की। 



वहां देखा गया कि अग्निशमन व्यवस्था का सही ढांचा नहीं था। फलस्वरुप आग लगने से वह काम नहीं कर सका। लेकिन 80 के दशक से चल रहा यह छह मंजिला होटल ही नहीं पूरी सडक़ पर इधर-उधर धर्मशालाओं से लेकर पुरानी इमारतें भी हैं। वहीं स्पष्ट रूप से अवैध निर्माण भी है। फायर फाइटिंग सिस्टम का कोई नामोनिशान नहीं है। साथ ही छोटे-छोटे कमरे में निवास और व्यवसाय चल रहा है। सिर्फ इधर ही क्यों बड़ाबाजार के अन्यत्र हर गली की यही तस्वीर है।  पुराने मकानों में बिजली के तार झूल रहे हैं। संकरी गली में भट्टी पर खौलता हुआ दूध नजर आता है तो कहीं जलेबियां तलते हुए देखी जा सकती है। उन तीन-चार फीट की तंग गलियों में दोनों तरफ से लोग गुजरते हैं। सीधी जगह ना मिली तो कुछ तिरछे होकर राहगीर चलते हैं। इसीमें मुटिया मजदूर सिर पर सामान भी ले जाते हुए दिखाई देंगे। सब कुछ बदस्तूर चल रहा है। वास्तव में बड़ाबाजार साक्षात एक लाक्षागृह है। 

कुछ वर्ष पहले महात्मा गांधी रोड में लुधियाना मार्केट कहे जाने वाले कई मंजिला मकान में आग लग गई थी। वहां मरा तो कोई नहीं पर कई दुकानें जलकर राख हो गई। कई किराएदार बेघर हो गए। बड़ाबाजार के मनोहर दास कटरा में ऐतिहासिक आग लगी थी - तीन साल बाद उसका नवीनीकरण किया गया। थोड़ी ही दूर पर विशाल बागड़ी मार्केट धूं-धूं करके जल गया। ब्रेबर्न रोड तिरपाल पट्टी के पास नंदराम मार्केट की भयावाह आग को कोई भूल कैसे सकता है। 

फिर हम मछुआ के रितुराज होटल के मुद्दे पर आ जाएं। आग बुझाने दमकल गाडिय़ां लगी हुई थी। होटल के सामने फुटपाथ पर कई बड़े-बड़े बोरों में समान भरे पड़े रहते हैं। सामने वाली इमारत की हालत भी होटल के हालात की तरह खस्ता ही है। कहीं प्लास्टर उखड़ गया है, कहीं प्लास्टिक से ढके सामान पड़े हैं। अग्निशमन व्यवस्था तो दूर की बात है। नीचे दुकान में सामान के बीच में रात में लोग सोते हैं। जिस रात आग लगी दूसरी तीसरी मंजिल से लोगों ने छलांग लगाकर जान बचाई। होटल के आसपास दुकान या मकान इसी अव्यवस्थित होटल की जुड़वा की समझिये। 

इस होटल के बारे में ‘छपते छपते’ में प्रकाशित हुआ था कि यहां बार खोलने की अनुमति राज्य सरकार ने कैसे दी। होटल के बगल में मंदिर है और दो स्कूलें भी हैं। सरकार का नियम है कि 100 मीटर के दायरे में अगर स्कूल या मंदिर हों तो वहां बार नहीं खोली जा सकती। इस नियम के पालन की खातिर बार खोलने हेतु क्षेत्र में विधायक की अनुमति या ‘नो ऑब्जेक्शन पत्र’ लेने की जरूरत होती है। वहां के स्थानीय विधायक की अनुमति के बिना बार नहीं खोला जा सकता है।  ‘छपते छपते’ ने बड़े जोरदार ढंग से होटल के नीचे बार खोलने के विरुद्ध सरकार को आगाह किया था। हमारे लिखने के बाद कुछ स्थानीय नेताओं ने बार के सामने प्रदर्शन भी किया। 

अग्निकांड की जांच तो होनी ही चाहिए साथ ही वहां शराब खाने के चलने की भी जांच हो। उस वक्त स्कूल में पढऩे वाली शिक्षिकाओं ने भी विरोध किया था। किंतु स्थानीय विधायक के दबाव में राज्य सरकार ने आपत्ति नहीं की।  उसके बाद विधायक बदल गए पर शराब खाना बदस्तूर चल रहा है। इसी से समझिए कि सब पैसे का खेल हो गया है। कोविड में भी क्या विडंबना थी कि स्कूल, कॉलेज, दफ्तर सब बंद थे, मधुशालाएं खुली थी। हमारे देश में नैतिकता के आदर्श और संस्कारों की बातें बहुत होती है पर पैसे के सामने सारे नियम धरे रह जाते हैं। नैतिकता के स्तर की पहचान संकट के समय होती है। कानून की भी धज्जियां उड़ती है जब पैसा भारी पड़ता है। एक राजनीतिक कार्यकर्ता ने बताया कि बार लाइसेंस देने में भी बड़ा भ्रष्टाचार होता है। 

होटल में जिन 15 लोगों की मौत हुई उनमें से 13 आग से झुलस कर नहीं बल्कि दम घुटने से हुई। होटल के अंदर वेंटिलेशन की समुचित व्यवस्था नहीं थी, वरना ज्यादातर लोगों की जान बचाई जा सकती थी।

 हर घटना के पक्ष सरकारी तंत्र हरकत में आ जाता है। पर यह मात्र कुछ दिन का होता है। चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात की तरह गुनाह के किरदार कुछ दिनों के लिए छुप जाते हैं और वह खुलेआम बेपर्दा होकर घूमते हैं।  फिर अगली दुर्घटना का इंतजार होता है। क्या इस बार भी कुछ ऐसा ही होगा? 

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