धरती के स्वर्ग में आतंकियों का तांडव
पहलगाम की घटना धरती पर स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर में आतंकियों का मिनी जलियांवाला बाग कांड का रीटेक कहा जा सकता है। तब जनरल डायर ने निहत्थे भारतवासियों को अपनी गोलियों का शिकार बनाया था। पहलगाम कांड में छह आतंकियों ने भारतीय सेना भेष में पर्यटकों का नरसंहार किया। इस जघन्य कांड के खलनायक का इरादा सिर्फ सैलानियों का खून करना ही नहीं था बल्कि उन्होंने वह स्क्रिप्ट (पांडुलिपि) भी पढ़ी जिसके लिए उन्हें भेजा गया था। पहले मजहब की पहचान की और फिर निर्दोष चेंजरों को गोलियों से भून दिया। इन पिशाचों ने कहने को अपने धर्म की तरफगारी की पर सच तो है कि गैर मुसलमान की जान लेकर उन्होंने भारत में रहने वाले 20 करोड़ सहधर्मियों की जान आफत में डाल दी। भारत के मुसलमान भाईयों को तो समझिए जीते जी मार डाला। घटना के तुरंत बाद भारत सरकार ने पाकिस्तानियों को 48 घंटा में भारत छोडऩे का फरमान जारी किया किन्तु पाकिस्तान बनने के उपरांत भी भारत में पीढिय़ों से रहने वाले मुस्लिम परिजनों के गले में शक का फंदा डाल दिया। अब मुसलमान बंधुओं ने दहशतगर्दों की घिनौनी हरकत की कड़े लफ्जों में निंदा करने के बावजूद भारत में फिरकापरस्त लोगों की आक्रमकता को और पैनी धार दे दी है। भाईचारा और प्रेम से रहने के हिमायती लोगों की आवाज अवरुद्ध कर देश में चले आ रहे विभाजन को फौलादी बना दिया। मुस्लिम परिवारों में जो अमन-चैन के हिमायती थे उनको हाशिए पर धकेल दिया गया है।
पहलगाम की घटना का सबसे अहम पहलू यह है कि खून की होली खेलने से पहले रंगों की शिनाख्त की गई। आपको कौन सा रंग पसंद है, उसी से खून की होली खेली गई। यही इस नृशंस घटना का सबसे अमानवीय पहलू है। उन चन्द दहशतगर्दों ने ऐसा सवाल क्यों किया इसे समझने की ओर उसे पर विचार करने की जरूरत है। भारत में हिंदू -मुसलमान का खेल तो पहले से ही चल रहा था, दो बड़ी आस्थाओं के बीच खाई चौड़ी की जा रही थी अब इसे चीरने की नौबत ला दी गई। टेररिस्ट किसी खास मकसद से भेजे गए थे। सिर्फ निहत्थे को मारना ही एजेंडा नहीं था उससे भी अधिक खौफनाक एजेंडे को अंजाम देना था।
कश्मीर के बारे में यह सही कहा जाता है कि धरती पर स्वर्ग है उनके फूलों का देश के वाशिंदों को किंतु सिर्फ कांटे ही मिलते हैं। धरती का स्वर्ग कश्मीर कश्मीरियों के लिए तो नर्क है। 370 धारा हटाकर उनको भारत की मुख्य धारा में लाने की चेष्टा का बहुत बुरा हश्र हुआ। कहां तो लगता था पाक अधिकृत कश्मीर भारत में विधिवत शामिल होगा लेकिन इस घटना के बाद खाई और चौड़ी हो गई।
1969 में मैं कश्मीर गया था। पहलगाम में रोमांचक प्रवास की याद आज भी सिहरन पैदा करती है। श्रीनगर में मैं कश्मीरी युवाओं के साथ उनके यूथ हॉस्टल में बात की थी। भारत के बारे में कश्मीरी युवकों की जानकारी ने मेरी बेचैनी बढ़ा दी थी। एक युवक ने अपने को भारतीय कहने से साफ इनकार कर दिया। यह उस वक्त की बात है जब कश्मीर में 2 रुपए किलो की दर से चावल राशन में बेचा जाता था। उसका सिला यह मिला कि स्थानीय प्राइमरी स्कूल के एक टीचर ने आक्रोश भरे शब्दों में कहा कि आप (भारत) क्या दो रुपए सेर चावल खिलाकर हमें खरीदना चाहते हैं? मेरे समझाने पर कि गरीबी सिर्फ कश्मीर की मोनोपोली नहीं है। भारत में गरीबी का आलम है और इसको खत्म करने का या कम करने की चेष्टा चल रही हैं।
कश्मीर के बारे में कुछ बुनियादी बातें समझने की जरूरत है। कश्मीर खासकर युवक अपने राज्य से बाहर नहीं निकला। उनको गलतफहमी है कि भारत अमीर देश है। कश्मीर के भाग्य में गरीबी है। मैंने तब भारत सरकार को एक स्मरण पत्र भेजा था कि कश्मीर के युवकों को भारत दर्शन कराया जाए। लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ। कश्मीरी ही नहीं कई सुदूर सुदूर प्रांतों जैसे मणिपुर, नागालैंड, अरुणाचल, असम, मेघालय जैसे राज्यों के लोग भारत से व्यावहारिक रूप से कटे हुए हैं। वह अपने को (अधिकांश) भारतीय नहीं मानते।
खैर, हम फिर कश्मीर की बात पर आ जाएं। आकाओं के हाथ में खेलने वाले आतंकियों को कोल्हू के बैल की तरह रखा जाता है। जो बाएं दाएं कुछ नहीं देख सकते। वह इतिहास पढ़ते नहीं है। उन्हें इतिहास पढ़ाया जाता है।भारत के बारे में भ्रांतियां को जन्माया जाता है । आम कश्मीरी सीधे और सरल हैं। किंतु मजहब के नाम पर उनमें जिहादी अंकुर पप्रस्फुटित किया किए जाते हैं।
सिंधु जल को रोकना या शिमला समझौते को ठंडा बस्ती में डालकर पाकिस्तान को सबक सिखाया जा सकता है पर कश्मीर में आवाम के दिमाग में जमी हुई परतों को मिटाना आसान नहीं है।
कश्मीर में आतंक की ताजा घटना की भत्र्सना पूरे दुनिया में हो रही है। शायद ही किसी देश ने अपने को इसमें तटस्थ रखा है। फिलीस्तीन ने भी भारत से सहानुभूति प्रकट की है और मुस्लिम देशों ने भी आतंकी इस अपराधी घटना का विरोध किया है। पर सभी देशों ने पाकिस्तान का नाम लेने से परहेज कर हमें सच्चाई से रूबरू भी कराया है।
हम यह अच्छी तरह जानते हैं कि इनआतंकियों का आका पाकिस्तान में है। पाकिस्तान की सेना के प्रमुख आसिफ मुनीर ने घटना के चार दिन पहले भारत के खिलाफ जो विष वमन किया था उससे साफ जाहिर है कि पहलगाम की घटना का केंद्र बिंदु कहां है। फौजी मुनीर ने भारत की आत्मा को झकझोरने की हिमाकत की। जब तक दुनिया यह नहीं समझेगी कि कश्मीर के आतंकवाद का प्रजनन एवं पोषण कहां से हो रहा है हम पूरे परिदृश्य को समझा नहीं जा सकता। पाकिस्तान की कोई अपनी वकतनहीं है। इसलिए वह मजहबी उन्माद को सबसे बड़ी ताकत समझता है।
‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना’ सही है। इकबाल को इस रचना के लिए सलाम पर मजहब से भी बड़ी ताकत मानवीय संवेदनाओं एवं भाईचारे की होती है। आज की तारीख में इस ताकत का उपहास भले ही पर अंततोगत्वा यही संबल है। हम क्या करें, हमारी सोच ही ऐसी है। आप भी सोचिए।

अच्छा लेख
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