नये भारत की दो तस्वीरें
सुनीता के धरती पर लौटने की खुशी और औरंगजेब की कब्र के नाम पर घमासान
पिछले हफ्ते भारत के लिये दो बड़ी घटनायें लैंडमार्क है। एक थी भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स की धरती पर सकुशल वापसी। दूसरी घटना थी नागपुर में मुगल साम्राज्य के अंतिम दौर के बादशाह औरंगजेब की नागपुर में कब्र हटाने की मांग और उसके बाद दो समुदायों में झड़प, कुछ लोगों का उस संघर्ष में घायल होना। दोनों घटनाओं को लोगों ने अलग अलग नजरिये से देखा और चर्चा की। महाकुम्भ के अमृतस्नान के बाद एक बार पुन: आज के भारत का दर्शन लाभ हुआ।
सुनीता भारत के गुजरात प्रान्त की बेटी के पुरखे अमेरिका में बस गये थे। नासा की बहुचर्चित अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स अपने सहयोगी बुच विलमोर के साथ सकुशल पृथ्वी पर आ ही गई। अमेरिका ही नहीं भारत में करोड़ों लोगों की नींद उड़ी हुई थी क्योंकि आठ दिन के लिए निर्धारित मिशन के लिये बीते साल 6 जून को स्टारलाइनर स्पेस क्राफ्ट के जरिये वे अमेरिका के स्पेस स्टेशन पहुंचे थे लेकिन स्पेस क्राफ्ट में तकनीकी खामी आने के कारण उनकी वापसी नौ महीने तक टलती रही। जिसको लेकर भारत पर अमेरिका समेत पुरी दुनिया में चिन्ता व्यक्त की जा रही थी। देर आए दुरुस्त आए। कुल 286 दिन स्पेस में रहने के दौरान सुनीता ने नौ सौ घंटे का शोधकार्य किया और डेढ़ सौ वैज्ञानिक प्रयोग किए। इस सफल किन्तु बहुत ही जोखिम भरे अभियान का लाभ यह होगा कि इस दशक के अन्त तक मंगल पर मनुष्य को उतराने का अभियान का रास्ता प्रशस्त हो जायेंगा। सुनीता के धरा पर लौटने के पहले बड़ी चिन्ता हो रही थी। दरअसल अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण के अभाव में भारहीनता के परिणामस्वरूप शरीर की सामान्य प्रक्रिया पर प्रतिकूल असर पड़ता है जिस से हड्डियों व मांसपेशियां कमजोर होने से खून का प्रवाह बाधित होता है। आंखों पर भी बुरा असर पड़ता है क्योंकि रेडियेशन का खतरा बढ़ जाता है।
भारत में सुनीता को लेकर अनुराग व चिंता दिखी उसकी वजह उनका भारतीय संस्कारों से जुड़ा रहना ही है। अपनी पहली अंतरिक्ष यात्रा में वे गीता-उपनिषद् और खाने के लिये समोसे लेकर गई थी। वे भारतीय संस्कार और व्यंजन की मुरीद हैं। सन् 2012 में उन्होंने दिल्ली के नेशनल साइंस सेंटर में छात्रों से कहा था कि रेकार्ड टूटने के लिये ही बनते हैं। क्या संयोग है कि वे अंतरिक्ष में सर्वाधिक समय तक रहनेवाली पहली महिला बन गई है। उन्हें सभी धर्मों का सम्मान करना सिखाया गया जो हिन्दू धर्म का मूलमंत्र है।
आमतौर पर अंतरिक्ष में पहुंचने या चांद पर उतरने का जश्न मनाया जाता है किन्तु इस बार सुनीता के पृथ्वी पर लौटने का जश्न मनाया गया क्योंकि इसके पहले भारतीय मूल की हरियाणा प्रवासी कल्पना चावला को हम इसी अंतरिक्ष अभियान में खो चुके हैं। इसका यह भी संदेश है कि लौट कर घर वापसी सबसे सुखदायी होती है।
दूसरी घटना भारत के महाराष्ट्र की आंशिक राजधानी नागपुर की है। भारत में मुगल साम्राज्य के अंतिम चरण में हुए बादशाह औरंगजेब जिसकी छवि एक क्रूर शासक की रही है, की कब्र हटाने को लेकर 17 मार्च को हुई हिंसा है। इस हिंसा के मास्टमाइंड फहीम पर 500 से ज्यादा दंगाइयों को इकट्ठा करने और हिंसा को बढ़ावा देने का आरोप है। पुलिस ने इस मामले में अब तक 84 लोगों को गिरफ्तार किया है। इसमें विश्व हिन्दू परिषद् के 8 कार्यकर्ता भी शामिल हैं। हिंसा के कारण प्रभावित इलाकों में तीन दिन तक कफ्र्यू लगा रहा। घटना को अेंजाम देने और अफवाह फैलाने में 34 सोशल मीडिया अकाउंट पर कार्रवाई की है। हिंसा में 33 पुलिसकर्मी भी घायल हुए।
सभी को विदित है कि औरंगजेब भारत में मुगल साम्राज्य का बादशाह था। इतिहास में उसे एक क्रूर शासक बताया गया है। औरंगजेब के सम्बन्ध में कुछ इतिहासज्ञ यह भी मानते हैं कि इस मुगल बादशाह के बारे में गलत धारणायें बनायी गई है। विशंभर नाथ पांडे जाने माने इतिहासकार हैं। वे राज्यसभा के सांसद रह चुके हैं एवं भारत के किसी राज्य के राज्य के राज्यपाल भी। उनकी लिखी एक किताब में इस मुगलकालीन शासक को महिमा मंडित की किया गया है। लिखा गया है कि उसने अपने पिता शाहजंहा को जेल में इसलिये डाला था कि अपनी पत्नी के मोह में पडक़र ताजमहल बनाया जिसमें सारा सरकारी खाजाना लुटा दिया गया। उसी का दंड औरंगजेब ने अपने पिता औरंगजेब को सबक सिखाने के लिए दिया। यही नहीं औरंगजेब ने कई हिन्दू मन्दिरों को दान दिया एवं कुछ मंदिर भी बनवाये। ईमानदार इतना था कि टोपियां सिलकर जो आय होती थी उससे अपना व्यक्तिगत गुजारा करता था। सरकारी कोष से कभी खर्च नहीं किया। उसका सेना में बड़ी संख्या में हिन्दू अफसर थे। खैर, जो हो औरंगजेब की मृत्यु 3 मार्च सन् 1707 में हो गई थी। यानि उसे मरे हुए 318 वर्ष हो गये। अचानक औरंगजेब को मुद्दा बनाकर नागपुर में हिंसा भडक़ी और भारत के पश्चिमी क्षेत्र के इस नामी शहर में जानमाल कीे क्षति हुई। इसके पहले बाबर के जमाने में बनी बाबरी मस्जिद विवादों में घिरी रही और कई राजनीतिक घटनाक्रम उसके इर्द-गिर्द घूमते रहे।
एक तरफ सुनीता विलियम्स के भारतीय मूल का होना हमारे लिये फक्र का विषय है। उसके कुशल लौटने का चिन्ता भारत में सबसे अधिक थी। अमेरिका को इस बात की ‘टेंशन’ थी कि कल्पना चावला की तरह कहीं यह भी अंतिरक्ष में न समा जाये। सुनीता को कुछ हुआ तो अमेरिका पिछड़ जाता और अंतरिक्ष क्षेत्र में चीन के साथ प्रतिस्पर्धा में अमेरिका के नाम पर बट्टा लगता, इसी बात की फिक्र दुनिया के इस सबसे अधिक समृद्ध देश को खाये जा रही थी और अंतोतगत्वा सुरक्षित वापसी के कफलस्वरूप अंतरिक्ष दौड़ में अमेरिका ने अपना सिक्का जमा लिया।
आज के भारत की युवा पीढ़ी अैारंगजेब को मुद्दा बनायेगी या विज्ञान और तरक्की की इस दौड़ में अपने को शामिल करेगी- यह युवाशक्ति को तय करना है। भारत की नारी जो अपने सशक्तिकरण एवं पुरुषों के साथ समान अवसर पर अपना संघर्ष जारी रखते हुए क्या इस बात पर गौरव बोध नहीं करेगी कि सुनीता विलियम्स भारतीय मूल की पहली ब्रह्म कन्या है जिसमें सर्वाधिक समय अंतरिक्ष में बिताकर रेकार्ड बनाया। औरंगजेब की कब्र को लेकर मुद्दा बनाने वालों को भी यह सोचना है कि पूरे 318 वर्ष बाद हम औरंगजेब या बाबर को अपनी स्मृतियों में कब तक संयोये रखेंगे? आइये इन सबसे अलग नये भारत की सोचें, आगे की सोचें।


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