दुश्मन न करे दोस्त ने वो काम किया है

दुश्मन न करे दोस्त ने वो काम किया है

अमेरिका का नाम आते ही हमारे सामने एक भव्य एवं ‘हाई फाई’ दृश्यावली आंखों के सामने घूमने लगती है। दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र। पृथ्वी का सबसे समृद्ध देश। भले ही वहां की पूंजीवादी व्यवस्था से हमारा मन नहीं मिलता पर यह तो अकाट्य है कि आधुनिक काल में सबसे अधिक अन्वेषण या रिसर्च वहीं हुए हैं। यही नहीं दुनिया में सबसे अधिक विश्वविद्यालय वहीं हैं। सबसे अधिक नोबेल पुरस्कार भी अमरीकी लोगों को मिले। जहां का अर्थ तंत्र इतना मजबूत है कि वह पूरी गाजा पट्टी खरीद सकता है। दुनिया का सबसे  बड़ा सामरिक हथियार बनाने वाला देश। अमेरिका के पास अपनी जरूरत का पूरा तेल (पेट्रोल) भंडार है। इस पर उसके तेल भंडार विश्वयुद्ध होने पर भी खाली नहीं होगा। अब्राहम लिंकन जैसा राष्ट्रपति वहां हुआ जो दुनिया में लोकतंत्र का प्रतीक है। स्टैचू ऑफ लिबर्टी एक बड़ा लैंडमार्क है। शिक्षा, अर्थ, अस्त्र सभी में शिरोमणि देश है वहां आज भी किसी कानूनी रूप से गुनहगार, देश के नियम कायदे तोडऩे पर उसके हाथ में हथकड़ी और पांव में बेडिय़ां पहना दी जाती है, यही नहीं उसी बंधे हाथ से खाने पर मजबूर हो और शौचालय भी उसी बन्द हाथों एवं पांव की बेडिय़ां पहन कर जाना पड़ता है। क्या कोई विश्वास करेगा? मुझे विश्वास नहीं है कि यह सब अमेरिका जैसे देश में इस तरह कानूनी अनुशासन है। फिर भी हम इसे पृथ्वी का सबसे सभ्य देश मानते हैं। क्यों न मानें जिसके पास धन और विद्या दोनों का पराक्रम हो, सभ्यता और मानवीय संवेदना उसका सबसे बड़ा श्रृंगार होना चाहिये। लेकिन इसी देश का यह कानून है कि अगर उसकी सीमा में  कोई गैर नागरिक रोजगार के लिए घुस गया तो उसके साथ अमानवीय तालिबानी व्यवहार किया जाता है। हमारे देश के विदेश मंत्री जयशंकर साहब ने भारतीय नागरिकों के साथ किये गये अमानवीय एवं नृशंस व्यवहार पर संसदीय रोष का जवाब देते हुए बताया कि वहां कोई गलत व्यवहार नहीं किया गया ऐसा पहले भी हो चुका है और वह वहां के कानून के मुताबिक जायज है। यह सही है कि अमेरिका की सीमा में अवैध रूप से घुसकर उन भारतीय कामगारों ने वहां के कानूनों का उल्लंघन किया है और उसको दंड देना बनता है। कानून-नियम तोडऩा सभी देशों में दंडनीय है पर दंड संहिता मापदंड होता है कि वह देश कितना सभ्य और संवेदनशील है। जिन भारतीयों ने अवैध रूप से अमेरिका की सीमा में प्रवेश किया सभी कामगर हैं कोई न कोई जॉब यानि रोजगार करते हैं। वे न तो खुंखार अपराधी हैं और न ही दहशतगर या आतंकवादी है। सभी नागरिकों ने मोटा रुपया (लगभग चालीस लाख रुपये) खर्च कर किसी एजेन्सी द्वारा बताये गये रास्ते से घुसे हैं। 


यह हमारा दुर्भाग्य है कि उन्हें हम अपने देश में काम नहीं दे पाये। उन्हें गिरफ्तार करना जायज है, नियमानुकूल है। हमने सुना है कि अफगानिस्तान में जहां तालिबानी हुक्म चलता है मामूली अपराध के लिये हाथ-पांव काटे जाने का प्रावधान है। लेकिन भारत जैसे देश में जो अमेरिका जितना समृद्ध और सभ्य देश तो नहीं है पर हमारे कानून इतने नृशंस या अमानवीय नहीं हैं। हां अतीत में हमारे दशे में भी न्याय के नाम पर ऐसा होता था पर आज नहीं है। सभी देश अपने कानूनों के उल्लंघन हेतु न्यायोचित दंड ही देता है। सडक़ पर खड़े होकर शौच करने वाले को प्राणदंड या आजीवन कारावास नहीं दिया जाता। हां, उसे फाइन चुकाना पड़ सकता है या कुछ दिन का कारावास भी भुगतना पड़ सकता है।

यह तो हुई कानून या नियम की बात। अवैध प्रवेश पर कानूनी कार्रवाई करना अमेरिका का हक है। किन्तु भारतीयों पर यहां मुद्दा है उनके साथ घोर अपराधी या आतंकवादियों जैसा व्यावहार करना किसी के गले नहीं उतरता। भारत का आतंकी पन्नू को अमेरिका ने शरण दे रखी है, भारत ने कई बार प्रतिवाद किया पर पन्नू भारत का अपराधी होते हुए भी अमेरिका का शाही मेहमान है। यही नहीं ट्रंप साहब के राज तिलक के दिन 20 जनवरी को भारत विरोधी नारे भी लगे किन्तु अमेरिका ने कोई कार्रवाई नहीं की।

अवैध भारतीय प्रवासियों की संख्या लगभग 7 लाख 25 हजार है। इनमें से 18 हजार भारतीयों को पकड़ा जा चुका है जिन्हें क्रमवार भारत भेजा जायेगा। जिन लोगों की शिनाख्त हो चुकी है एवं जिनकी अभी शिनाख्त नहीं हुई है सभी को हिरासत में लेकर अमेरिका में नर्क का पर्याय माने जाने वाले स्वांतानामो सहित अन्य जेलों में रखा गया है। इस तरह अमेरिका गये लोगों का एक ओर जहां सपना टूटा है वहीं अपने को विश्वगुरु समझने वाले हमारे माननीय प्रधानमंत्री की चुप्पी भी लोगों को नागवार गुजर रही है। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या यह सब हमारी सरकार की जानकारी में हो रहा है?

ट्रंप ने अपने चुनाव अभियान में यह कहा था कि अगर वे राष्ट्रपति चुने गये तो अवैध रूप से अमेरिका में रह रहे बाहरी लोगों को निकाल बाहर करेंगे। तब हमें लगा कि यह ट्रंप साहब का शिगूफा या जुमला है। लेकिन सत्ता सम्हालते ही ट्रंप प्रशासन ने अपने फौजी विमानों ने इस काम को अंजाम दे डाला।

कोलम्बिया हमारे भारत के मुकाबले एक छोटा सा और विश्व के नक्शे में एक साधारण सा देश है। उसके अवैध नागरिकों के साथ भी ऐसा ही बर्ताव किया गया। कोलम्बिया के राष्ट्रपति ने प्रतिकार किया। कोलम्बिया ने अपना नागरिक विमान अमेरिका भेजा और नागरिकों की वापसी की। किन्तु भारत जैसा एक महान देश की सरकार ने कोई प्रतिवाद नहीं किया। फलत: अमेरिकी सैनिक विमान द्वारा भारतीय नागरिकों को अमृतसर उतारा गया। पंजाब, हरियाणा और गुजरात के लोगों को बंदी बनाकर सैनिक विमानों को वापस भेजा। अमृतसर में प्रेस वालों से उन्हें मिलने नहीं दिया गया। क्या भारत को अपना विमान भेजकर उन्हें वापस नहीं लाना चाहिये था? भारत की प्रतिष्ठा इसमें कुछ बच जाती। यही नहीं आशा थी कि सैनिक विमान को अमृतसर क्यों उतारा गया, जबकि हिसाब से उन्हें दिल्ली लाना चाहिये थे। अमृतसर का चयन अमेरिका ने शायद इसलिए किया कि पंजाब के लोग अमेरिका, कनाडा में सबसे अधिक रोजगार के लिए जाते हैं। अमेरिका ने जो कुछ किया उसे भारत की सरकार भले ही माफ कर दे किन्तु भारत पर यह जख्म की तरह चुभता रहेगा। मुझे याद है भारत पीएल 480 समझौते के अन्तर्गत खाद्यान आयातित करता था। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने इसे भारत की आत्म सम्मान पर बड़ी चोट के मद्देनजर कृषि विशेषज्ञ स्वामीनाथन का यह बड़ी जिम्मेदारी दी कि भारत को खाद्यान्न के मामले में शीघ्र आत्मनिर्भर करे ताकि हम अपने आत्मसम्मान की रक्षा कर सकें। आज वही भारत अमेरिका के इस अमानवीय रवैये के चलते अपमान की घूंट पी रहा है। ट्रम्प हमारे प्रधानमंत्री के दोस्त हैं किन्तु अगर दुश्मन होते तो इससे बुरा व्यावहार भी क्या करते?

लता मंगेश्कर और अमित कुमार का फिल्म आखिर क्यों में गाये इस गाने की दो पंक्यिां मुझे इस वाकया पर याद आ गयी-

दुश्मन न करे दोस्त ने वो काम किया है

उम्र भर का गम हमें इनाम दिया है।

Comments

  1. अवैध रूप से रह रहे भारतीयों को निकालना ठीक है लेकिन जिस तरीके से निकाला गया यह एक मित्र राष्ट्र के लिए शोभा नहीं देता है ।यह निंदनीय है

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