‘वैलेन्टाइन डे’
कहो ना प्यार है
भारतीय समाज कई मामलों में समृद्धशाली है। उसने हाथ फैलाकर सभी धर्म, जाति और उनके उत्सवों का स्वागत किया है। शायद यही वजह है कि भारत को विश्वगुरु कहा गया। 14 फरवरी को भारत में वैलेन्टाइन डे मनाया जाता है। हर वर्ष पिछले वर्ष से अधिक उमंग से। अपने देश में ही बहुत से लोग हैं जिन्हें यह बड़ा नागवार गुजरता है जब वे किसी जोड़े को हाथ में हाथ या कमर पर हाथ डाले घूमते देखते हैं। उन्हें यह दृश्य इसलिए हृदय विदारक महसूस होता है क्योंकि झुरमुट में बैठे प्रेम प्रसंग करने वाले जोड़े से उन्हें यह अहसास होता है कि उनकी बेटी या बहन भी शायद ऐसा ही तो नहीं कर रही है। इसके अलावा हमारी मानसिकता प्रेम करने को दुस्साहस मानती रही है। वह समझती है कि यह एक प्रकार की बगावत है जिसको बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिये। वर्तमान काल खंड में इस बगावत में धर्म की भी इंट्री हो गई है। पहले सिर्फ बेजातीय या बेमेल चिढ़ाता था पर अब धार्मिक भावनाओं की असहनीय चोट मर्माहत करने लगी है। कहा भी जाता है कि प्रेम अंधा होता है। शायद वह बहरा भी होता होगा किसी की सुनता भी तो नहीं है। अब देखिये किसी दुखिया ने ढि़ंढोरा पीट -पीटकर चेताया-
जो मैं जानती प्रेम करे दु:ख होय
नगर ढि़ंढोरा पीटती प्रेम न करियो कोय।
प्रेम प्रक्रिया की नीयति दु:ख और वेदना है जो दूध में चीनी की तरह घुल गयी है। लैला-मजनू हमारी धरती के नहीं थे किन्तु हमारे यहां प्रेम का पर्यायवाची बन गये हैं। कौन नहीं जानता कि मजनू को लैला के प्रेम में लहूलुहान होना पड़ा था जब वहां की धरती के दंड स्वरूप उसके पांव को जमीन पर गाड़ दिया गया और लोगों ने दोनों पर पत्थर बरसाये। शिरी फरहाद, रोम्यो-ज्युलेट की रोमांचक कहानी सर्व विदित है। हरियाणा की खाप पंचायत जातिगत विसंगतियों के चलते प्रेमी-प्रेमिका को पेड़ पर उल्टा लटकाकर कोड़े लगाने को लेकर चर्चा में रही। भोपाल में मुस्लिम युवक और हिन्दू युवती आपसी सहमति से शादी करना चाहते थे। उन्होंने कोर्ट मैरेज के लिए स्थानीय अदालत का दरवाजा खटखटाया। जब हिन्दूवादी संगठनों को इसकी जानकारी मिली तो हंगामा मच गया। प्रेम के दुश्मनों ने दोनों को इतना पीटा कि वे अदालत में ही बुरी तरह जख्मी हो गये। और ऐसे वारदात कई जगह हुए हैं। हालांकि दूसरी तरफ लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला जी की सुपुत्री ने एक मुसलमान से शादी कर ली जिसमें स्वयं स्पीकर महोदय भी शामिल हुए। भाजपा के सबसे प्रतिष्ठित वयोवृद्ध लालकृष्ण आडवानी के भाई की कन्या ने अपने मुस्लिम दोस्त से निकाह किया।
इसीलिए किसी ने कहा कि इश्क एक आग का दरिया है और डूब के जाना है। फिर भी लोग आग के दरिया में कूदे हैं और डूब कर दरिया भी पार किया है। प्रेम को ईश्वर का पर्यायवाची तक बताया गया। लेकिन प्रेम एक संघर्ष है। यह अच्छाई और बुराई के बीच एक नैतिकता की लड़ाई है जिसमें अंतोतगत्वा प्यार की जीत होती है बशर्ते की लम्बी या सघन लड़ाई करने का माद्दा दोनों में हो। पानी के बुलबुले की तरह प्रेम करनेवाले मैदान छोडक़र भाग उठते हैं। दरअसल शारीरिक आकर्षण के चलते जो प्रेम हिलोरे मारता है वह समुद्र की लहरों की तरह किनारे से टकराकर बिखर जाता है। ‘डेटिंग’ और वाट्सएप ग्रुप के आधार पर बने सम्बन्ध जल्दी बनते भी हैं और उनका बुरा हस्र भी शीघ्र होता है। ‘गर्ल फ्रेन्ड’ तो घरेलू शब्द की तरह रोजमर्रा जीवन में प्रयोग होता है। इसी तरह की मानसिकता एवं इससे जुड़े संस्कृति के परिणामस्वरूप वैवाहिक सम्बन्ध टूट रहे हैं। पति-पत्नी अपने को जीवन साथी मानने की बजाये मौज मस्ती का साधना मानने लगे हैं। पहले डेस्टीनेशन मैरेज में डेस्टीनेशन तक हवाई यात्रा के बाद हनीमून स्वीट्जरलैंड और फिर घर पर वकील बुलाकर कानूनी मंत्रोचारण की नौबत आ जाती है। हां एक बात इन दिनों अच्छी देखने को मिली। कुछ युवक-युवती ‘वर्क प्लेस’ में काम करते हुए प्राथमिक आकर्षण के साथ परस्पर समझते हैं और एक अन्तराल के बाद एक दूसरे के जीवन में प्रवेश करने का सोचते हैं। ऐसे रिश्ते जल्दी नहीं टूटते और एक दायित्वशील संस्कारित दाम्पत्य का नैसर्गिक सुख भी भोगते हैं।
बहरहाल प्यार को लोगों ने अपनी दृष्टि से देखा और परखा है। मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी बीवी मुमताज के लिए ताज महल बनाया जो आज भारत में पर्यटकों का सबसे बड़ा डेस्टिनेशन है। किसी ने लिखा-
एक शहंशाह ने बनाके हसीं ताज महल,
सारी दुनिया को मुहब्बत की निशानी दी है।।
लेकिन प्रेम की इस निशानी को दूसरे ने कुछ इस तरह से देखा और बयां किया-
एक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर
हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मजाक
मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे।

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