महाकुम्भ में अभूतपूर्व व्यवस्था पर भारी पड़ी करोड़ों की आस्था
महाकुम्भ की विरासत और प्रबन्ध चमत्कार के लाभांश का जोड़-घटाव, गुना-भाग शुरू हो गया है। हो भी क्या नहीं यह महाकुम्भ पर्व तो अभूतपूर्व है ही इसका फलादेश की उम्मीद भी सबसे ज्यादा है। राम-मन्दिर निर्माण के पश्चात् इसके उद्घाटन के समय कई विवादों के बावजूद काफी जय जयकार हुई। दुर्भाग्य से उसके बाद संसदीय चुनाव का नतीजे से निराशा हाथ लगी। भाजपा की जी तोड़ मेहनत और प्रधानमंत्री जी की महायज्ञ में आहूति के मद्देनजर देश के सबसे बड़े प्रदेश और राम को जो लाये हैं वाले यशगान के बावजूद लोकसभा सीटों का ग्राफ नीचे जाना भाजपा और प्रधानमंत्री जी के लिए झटका था। इससे श्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगीजी दोनों मर्माहत हुए। कौन कम कौन ज्यादा के लिये कई तरह की अटकलें लगी।
इसके बाद महाकुम्भ में फंूक-फंूक कर कदम रखा गया। प्रचार-प्रसार, व्यवस्था, अवस्था सबको बेजोड़ किया गया। कहीं कोई कसर नहीं रह जाये इसके लिये हर मुमकिन कोशिश की गई। महाकुम्भ तो न भूतो न भविष्यति था ही- व्यवस्था एवं प्रबन्धन भी ऐतिहासिक और अभूतपूर्व था। पर होनी को कौन टाल सकता है। मौनी अमावस्था के बड़े स्नान के दिन तडक़े स्नानार्थियों की भगदड़ में बैरिकेड टूट गया और भीड़ लोगों को कुचलते आगे बढ़ती गई। पहले दिन 17 की मृत्यु के आंकडक़े आये, बाद में बढक़र मृत्यु संख्या 30 बताई गई और इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 50-60 बतायी जा रही है। गैर सरकारी सूत्रों ने निश्चित संख्या नहीं बताई पर उनका कहना है कि बड़ी संख्या में लोग मारे गये हैं। लगभग पांच सौ लोग लापता बताये जाते हैं जिनके बारे में आशंका है कि वे मारे जा चुके हैं। हालांकि कुम्भ में पहले भी इस तरह के कांड हो चुके हैं। वर्ष 2013 में हरिद्वार में भी भगदड़ मची थी और 700-800 लोग मारे गये थे। किन्तु इस बार महाकुम्भ की व्यवस्था के बारे में बड़े दावे किये गये और इसे डिजिटल कुम्भ की संज्ञा देकर एक ऐसी छवि बनाई गई कि इसमें इन्तजाम इतने पुख्ते हैं कि दुर्घटना की कोई आशंका नहीं है। हरिद्वार कुम्भ के हादसे के बाद मुझे याद है कि यह निर्णय लिया ग था कि कुम्भ में वीआईपी मुवमेंट को बन्द रखा जायेंगा क्योंकि मंत्रियों एवं बड़े पदों पर बैठे लोगों के लिये आम आदमी का रास्ता बंद करना पड़ता है। इन कथित बड़े लोगों की सुविधा हेतु जन साधारण को बड़ी जोखिम में धकेल दिया जाता है लेकिन इस बार महाकुम्भ में फिर वीवीआईपी का आगमन हो रहा है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, स्वास्थ्य मंत्री नड्डाजी, यूर्पी के मुख्यमंत्री योगी जी अपनी पूरी कैबिनेट को ही स्नान कराने ले आये। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भी 5 फरवरी को पुण्य स्नान हेतु आने कीबात है। राष्ट्रपति भी पुण्य लाभ लेने आयेंगी। मौनी अमावसकी घटना के बाद वीवीआईपी के आगमन पर प्रतिबन्ध तो नहीं लगा पर मुख्य स्नान के समय राजनीतिक पराक्रमियों के आगमन पर रोक लगा दी गई है।
महाकुंभ की घटना की जानकारी जब तक रोके रखी तब तक अखाड़ों ने स्नान नहीं कर लिया। लेकिन निरंजनी अखाड़े को घटना का पता चल चुका था इसी कारण वह अखाड़ा स्नान का बहिष्कार कर गया जिसे भी मीडिया ने छिपाये रखा है। घटना में मरने वालों की संख्या की जानकारी मौनी अमावस्या की सांझ को दी गई वो भी आधी अधूरी । ऐसा करके स्वंय योगी ने राजनीति के हावी होने का प्रमाण देश के सामने पेश किया। महाकुंभ में इलाहाबाद के अधिकारी ने मौनी अमावस्या वाली रात्रि के दो बजे के लगभग उसके बाद उक्त अधिकारी ने लाउडस्पीकर पर चिल्ला चिल्ला कर श्रद्धालुओं को उठ जाग मुसाफिर........ गा कर स्नान करने का निमंत्रण देना शुरू किया। उधर वीवीआईपी लोगों के लिए रास्ता खोलकर आम श्रद्धालु के लिये बेरिकेट लगा दिये। परिणामस्वरूप ही भगदड़ मची जिससे निपटने की प्रशासन की कोई पूर्व तैयारी नहीं कर रखी थी । महाकुंभ मेले का इंचार्ज वही अधिकारी है जो पिछले कुंभ मेले में थे जिनपर भृष्टाचार के आरोप लगाए गए थे।
महाकुम्भ में सरकारी दावे के अनुसार 9 करोड़ की भीड़ के बीच मची भगदड़ के बाद मीडिया व अन्य माध्यमों पर दबाव बनाकर आनन फानन में जिस तरह से पुरानी घटनाओं का हवाला देकर इस घटना की भयावहता को सामान्य समझाने की कोशिश की गई। योगी सरकार ने कुम्भ में आये लोगों की संख्या तो त्वरित बता दी जबकि घटना में मृत व्यक्तियों की सटीक संख्या बताने में 16 घंटे का भारी भरकम समय लग गया। मृतकों के परिजनों को 25-25 लाख की रकम की घोषणा की गइ। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अवि मुक्तेश्वनानन्द सरस्वती महाराज ने भी स्नान में वीआईपी कल्चर पर हमला करते हुए कहा कि व्यवस्था में जुटी सरकार लोगों को वीआईपी और साधारण जैसे दो वर्गों में विभक्त कर विभेद पैदा कर रही है जो कहीं संविधान संगत नहीं है।
आस्था का घटाटोप बड़ा गहरा और कभी कभी भयानक हो जाता है। मौनी अमावस्या के दिन स्नान का शुभ मुहूर्त होता है। अमृत की बिन्दु लपकने के लिए हर श्रद्धालु आतुर रहता है। हम जिस मानसिकता से सोचते हैं उससे अलग श्रद्धा और पुण्य प्राप्ति की उत्कंठ अभिलाषा इन सब व्यवधानों को कुछ नहीं समझती। मना करने के बावजूद बड़ी संख्या में श्रद्धालु घाट पर बैठ गये या लेट गये। इन्हीं लेटे हुए लोगों को ही भीड़ के रेल ने बैरिकेड तोडक़र कुचल दिया। अनियंत्रित भीड़ जब आगे बढ़ी तब खुद को रोक न पाई और फिर जो हुआ वह सबके सामने है।
यह हमारा समझाना श्रद्धालुओं के माथे के ऊपर से निकल जाता है। बंगाल में माक्र्सवादियों ने 34 साल राज किया, वे भी इस मामले में असफल रहे कि धार्मिक उन्माद या श्रद्धा पर अंकुश लगा सके। इसका परिणाम दुर्गापूजा में बढ़ती हुई भीड़ है। इसके विपरीत तो केन्द्र व उत्तर प्रदेश ने जोर शोर से महाकुम्भ में सनातन धर्मियों का आह्वान किया। आज का युग प्रचार का है। दो बातें एक साथ नहीं चल सकती। एक तरफ आप बढ़चढक़र प्रचार कर रहे हैं आह्वान कर रहे हैं और दूसरी तरफ संयम बरतने को भी कहें यह प्रयोग सफल नहीं होता। इसमें से एक को ही चुना जा सकता हो। फिलहाल हमारी श्रद्धा को हिचकोले खिलाने में पूरी सरकारी तंत्र लगा हुआ है। फिर यही ठीक और समयोचित है कि बड़े बड़े पुण्य लाभ हेतु आयोजित महाकुम्भ में छोटी छोटी घटनाओं पर ज्यादा माथापच्ची की जाये या फिर दुर्घटनाओं से साधारण लोगों को बचाने की सचमुच में मंशा है तो फिर इस धर्मान्धता से लोगों को उबारने एवं धार्मिक मूल्यों को आत्मसात करने सरकार को शिक्षा विशेषकर वैज्ञानिक शिक्षा के प्रचार प्रसार का काम करे। वैसे कहा तो यह भी गया है कि मन चंगा तो कठौती में गंगा, पर ये सारे उपदेश नक्कारखाने में तूती की तरह असहाय है।

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