कुम्भ मेले में ‘‘मोनालिसा’’ एक अनार सौ बीमार

 कुम्भ मेले में ‘‘मोनालिसा’’

एक अनार सौ बीमार

ये कैसा महाकुम्भ है जहां चमत्कारों का सैलाब लिए धूनी रमाये अनगिनत साधुओं की भीड़ में लोगों की जुबान पर सिर्फ और सिर्फ मोनालिसा हो। और यह भी कोई साध्वी नहीं कुम्भ से उसका पर उनका सम्मान साधु से भी बढक़र हुआ। वह बोलती रही कि मैं साध्वी नहीं पर उन्हें रथ पर घुमाया गया और पूरे कुम्भ में वह छायी रही। प्रयागराज महाकुम्भ में वायरल हुई मृगनयनी गर्ल हर्षा रिछारिया ने पुण्यार्थी साधु सन्तों के व्यवहार से तंग आकर पहले महाकुम्भ छोडक़र जाने का ऐलना किया था। फिर अखाड़ा परिषद के अनुनय विनय के बाद बयान दिया कि वह कुम्भ में ही रहेंगी और छोडक़र कहीं नहीं जाएंगी। यही नहीं आजीवन सनातन के प्रचार-प्रसार की बात भी कही।

महाकुम्भ मेले में मध्य प्रदश के खरगौन जिले के महेश्वर की मोनालिसा का असली नाम हर्षा रिछारिया है। वह बंजारा समुदाय से है।  प्रयागराज में चल रहे महाकुम्भ में वह अपने परिवार के साथ दस रुपये से लेकर दस हजार रुपये की रुद्राक्ष मालाएं बेचने आई थीं। इस 17 वर्ष की नव यौवना की गजब की खूबसूरती ने महाकुम्भ में जो जादू किया उसकी कोई मिसाल नहीं। उसके सुंदर नयन, मुस्कान और भोलापन विशेष आकर्षण का केन्द्र बन गये। वह जिधर से जाती जन समूह उसे घेर लेता। श्रद्धालु स्नाानार्थी उसे घेर लेते और सेल्फी के बहाने उसका रास्ता रोक लेते। कहीं समूह उमड़ जाता उसके साथ अपनी फोटो खिंचवाकर उससे मिलने की याद को संजोकर रखने के लिये। मेले में लाखों लोगों से घिर  गई। पर इस बेताबी से उसका फूल एवं रुद्राक्ष बेचने का धंधा चौपट हो गया। परेशानी इतनी बढ़ी उसे अपने मुंह को छुपाए हुआ भागते देखा गया। अब खबर यह है कि किसी तरह महाकुम्भ से भाग कर वह अपने गांव रवाना रवाना हो गई है। खास कर मीडिया वालों ने उसे इस कदर परेशान किया कि उसके लिये कोई रास्ता बचा नहीं था।


मीडिया ने उसे मोनालिसा का नाम दिया। दरअसल सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर हर्षा रिछारिया को पहले अमृत स्नान के दिन शाही रथ पर बिठाने और स्थान देने पर संत समाज ने काफी आलोचना की थी। इसके बाद उनका एक भावुक वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हुआ, जिसमें वह रोती नजर आ रही थी। सोशल मीडिया पर भी उनको लेकर तरह तरह की बातें आ रही थी।

इस सुन्दरी को मोनालिसा का नाम दिया जाना कोई अतिशयोक्ति नहीं है। जैसा कि हम जानते हैं कि इतावली चित्रकार लियोनार्दो दा विंची ने मोनालिसा की तस्वीर 1503 से 1514 के बीच बनाई थी। कहते हैं कि ये तस्वीर फलाोरेंस के एक व्यापारी फ्रांसे स्कोदेल जियो कॉन्डो की पत्नी ‘लीजा’ को देखकर बनाई गई थी। सम्प्रति यह तस्वीर फ्रांस के लूविरे संग्रहालय में रखी हुई है। बहुचर्चित गर्ल साक्षात् मोनालिसा की खूबसूरती की एक मिसाल बन चुकी है। महाकुम्भ में बाबाओं के बारे में कई तरह की बातें बनायी जा रही है। कहते हैं कि 90' बाबा बैरागी असली नहीं है। इन सबका जमावड़ा यहां मौज मस्ती के लिए ही है। कुछ भेष बदलकर आई हीराइनेंं साध्वी सजकर अखाड़े में शामिल हो रही हैं तो कोई गंगा में स्नान कर अपने बदन दिखाकर जाने किस आनंद की प्राप्ति कर रही हैं। इस नकली भीड़ के बीच एक बंजारिन लडक़ी ने सबको पीछे छोड़ दिया है। उसके पास सेलेब्रिटीज की खबरें आ रही हैं वे भी मिलने को बेताब हैं। कोई उससे शादी की तलब लिए है तो कोई उसे सिने पर्दे पर दिखाने की ललक लिए हुए है। वह मुस्कुराते और शर्माते हुए बताती है कि उसको महेश्वर में फिल्म की शूटिंग में जाए इसलिए उसका काजल तक हटवाया गया। शादी के बारे में उसने स्पष्ट किया कि वह किसी बंजारे से ही शादी करेगी।

बहरहाल, मोनालिसा की खूबसूरती का बाजार गर्म है साधु-सन्यासियों से भरे महाकुम्भ में। हर्षा रिछारिया उर्फ मोनालिसा अगर मुम्बई के ग्लैमर बाजार में आती है तो हिट भी हो सकती है। ऐसी स्थिति में इस महाकुम्भ का यह भी महातम्य हो सकता है।

हर्षा रिछारिया के महाकुम्भ प्रवास को लेकर गुगल से ली गई एक मासूम कविता प्रस्तुत है जिसे हमें सामाजिक कार्यकर्ता अंजू सेठिया ने प्रेषित किया है-

मैं बेचना चाहती हूँ,

बस माला के मनके,

पर यहाँ आये हैं,

सब लोग अलग-अलग मन के,

इन्हें कहाँ खरीदने हैं,

मेरी माला के मनके,

ये निहारना चाहते हैं,

मेरे नयनों के मनके,

कोई बस मेरी,

तस्वीर लेना चाहता है,

कोई मुझ से अपनी,

दिल की बातें कहना चाहता है,

पर जो मैं बेच रही हूँ ,

उसके खऱीददार कम हैं,

अब इस दुनियां में,

इज्जतदार कम हैं!

और अंत में -

क्या विडम्बना है कि पांच हजार करोड़ से अधिक खर्च से सजा महाकुम्भ में दावानल की तरह चर्चा की आग फैल रही है आईआईटी वाले बाबा और भूरी आंख वाली सुन्दरी की।  

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