मोटापा अमीरों की मोनोपोली नहीं है
अमीरी और मोटापे का रिश्ता बहुत पुराना नहीं है। जब किसी अमीर आदमी जिन्हें बोलचाल की भाषा में हम सेठ जी कहते हैं का चित्र बनाना हो तो उसे मोटी तोंद वाला बनाया जाता है। गरीब आदमी कहते ही दिमाग में किसी दुबले-पतले आदमी की छवि आ जाती है। सीधी-सादी समझ यह है कि अमीर आदमी के पास खाने के लिए भरपूर होता है और वह शारीरिक श्रम कम करता है जबकि गरीब कम खाकर ज्यादा मेहनत करता है। लेकिन भारत के एक जीव वैज्ञानिक का शोध कुछ अलग ढंग से इस बात की व्याख्या करता है। प्रोफेसर मिलिंद वाटवे कहते हैं कि नगदी गिनने से मोटापा बढ़ता है। अगर वह नगदी आपका ना हो तो और उसे गिनना आपकी नौकरी का हिस्सा हो, मसलन आप अगर कहीं कैशियर हों तो यह मोटापा कुछ काम बढ़ता है, लेकिन अगर जो पैसा आप गिन रहे हैं उसमें आपका मुनाफा भी शामिल है तो यह मोटापा ज्यादा बढ़ता है। प्रोफेसर वॉटवे ने इसका जो स्पष्टीकरण दिया है, वह मनुष्य के जैविक विकास पर दिलचस्प रोशनी डालता है। पहली बात समझने की यह है कि हर जीव के दिमाग में उपलब्धि केंद्र या रिकॉर्ड सेंटर होते हैं। यह केंद्र कुछ उपलब्धियां पर विशेष किस्म के रसायन छोड़ते हैं जिसे खुशी, संतुष्टि, उत्साह जैसी भावनाएं पैदा होती है। जैसा कि कहते हैं कि दुनिया पेट पर चलती है, यह बात पूरी सृष्टि के लिए सही है। सारे जीवों की ज्यादातर मेहनत भोजन हासिल करने के लिए होती है, इसलिए दिमाग के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि भोजन हासिल करना है। पेट भर जाने पर यह रिकॉर्ड सेंटर शरीर को तृप्ति का संकेत देते हैं। इंसानी दिमाग में भी ऐसा ही होता है।
प्रोफेसर वाटवेे और उनकी टीम का निष्कर्ष यही है कि सभ्यता के विकास क्रम में इंसानों के लिए सिर्फ भोजन पाना ही बड्ी उपलब्धि नहीं रही, भोजन से इतर उपलब्धियां का महत्व भी बढ़ गया। पैसा एक ऐसी उपलब्धि है जिसने दिमाग की उपलब्धि केन्द्रों को उत्तेजित करना शुरू कर दिया। संभव है, पैसे के अलावा भी कुछ ऐसी चीज है जिनकी इन रिकॉर्ड सेंटर में प्रतिक्रिया होती हो। इसकी वजह से इन केन्द्रों का कामकाज बिगड़ गया है और वह भोजन की उस मात्र से संतुष्ट नहीं होते जो शरीर के लिए जरूरी है। उन्हें संतुष्ट करने के लिए जरूरत से ज्यादा भोजन की आवश्यकता होती है और यही अतिरिक्त भोजन मोटापा बढ़ता है। सरल भाषा में हम यह कह सकते हैं कि नकदी गिनने से जो खुशी होती है वह मोटापे की वजह होती है। हमारी कई सारी समस्याओं की जड़ यह है कि इंसानी समाज में ढेर सारे बदलाव तेजी से हो गए हैं, लेकिन शारीरिक पर जैविक बदलाव इतनी तेजी से नहीं हो रहे। अभी हमारा शरीर आदि मानव से बहुत ज्यादा अलग नहीं है क्योंकि जींस में बदलाव के लिए लंबा वक्त चाहिए होता है। वह विकास की राह में कुछ हजार से ज्यादा नहीं होते इसलिए हमारे मेटाबॉलिज्म की दर नहीं बदली लेकिन भोजन की उपलब्धता और निश्चितता बढ़ गई है। शरीर की भोजन के प्रति अतिरिक्त प्रतिक्रिया भी वही है जो हजारों या लाखों साल पहले रही होगी। जब आदमी को खान-पान के लिए भारी जद्दोजहद करनी पड़ती होगी और तब भी रोज पूरा भोजन मिलने की गारंटी नहीं होगी। तब ना खाने -पीने की चीज सुरक्षित रखने के लिए गोदामों और कोल्ड स्टोरेज की थी, न कैशियर जैसी नौकरियां थीं और तब मोटापा इतनी बड़ी समस्या नहीं थी, जैसी अब है। मोटापे को लेकर हुआ यह रिसर्च मोटापे की अनेक वजहों में से एक है पर रोशनी डालता है और शायद इसके सहारे मोटापे से बचने की कुछ तरीके भी ढूंढी जा सके। मोटापा भारत समेत दुनिया के विभिन्न देशों में एक बढ़ती हुई स्वास्थ्य समस्या का विषय है। यह सभी आयु वर्ग और पृष्ठभूमि के व्यक्तियों को प्रभावित करता है। इसे शरीर में अतिरिक्त चर्बी के रूप में परिभाषित किया जाता है और आमतौर पर इसे बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) द्वारा मापा जाता है। मोटापा सिर्फ कॉस्मेटिक चिंता नहीं है, बल्कि एक पुरानी समस्या है जिसका इलाज न किए जाने पर गंभीर स्वास्थ्य परिणाम हो सकते हैं। इस ब्लॉग में, हम मोटापे के कारणों, यह जीवनशैली की समस्या है या अपने आप में कोई बीमारी है, और इससे जुड़े जोखिमों का पता लगाएंगे।
मोटापा एक ऐसी स्वास्थ्य स्थिति है जिसमें मानव शरीर में अत्यधिक मात्रा में चर्बी जमा हो जाती है। इसे आमतौर पर बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) द्वारा मापा जाता है, जिसे किसी व्यक्ति के वजन को किलोग्राम में उसकी ऊंचाई के वर्ग मीटर से विभाजित करके गणना की जाती है। 25 या उससे अधिक बीएमआई वाले अधिक वजन के माने जाते हैं, जबकि 30 या उससे अधिक का बीएमआई मोटापे की श्रेणी में आता है। मोटापा एक दीर्घकालिक बीमारी है जो अगर अनुपचारित छोड़ दी जाए तो गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती है।
मोटापा एक जटिल बीमारी है जो कई कारकों के संयोजन से होती है, जिसमें आनुवंशिकी, जीवनशैली और हार्मोनल असंतुलन शामिल हैं। हालांकि मोटापे के इलाज में डाइट और व्यायाम जैसे जीवनशैली में बदलाव प्रभावी हो सकते हैं, यह केवल इच्छाशक्ति या व्यक्तिगत जिम्मेदारी का मामला नहीं है। मोटापा एक दीर्घकालिक बीमारी है जिसके लिए चिकित्सीय देखभाल और निरंतर नियंत्रण की आवश्यकता होती है। मोटापा प्रबंधन एक जटिल प्रक्रिया है जिसके लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की ज़रूरत होती है। मोटापा प्रबंधन के लिए कई विकल्प उपलब्ध हैं, जिनमें जीवनशैली में बदलाव, दवाएँ और सर्जरी शामिल हैं।
मोटापा प्रबंधन की आधारशिला जीवनशैली में बदलाव है। इसमें स्वस्थ आहार और नियमित शारीरिक गतिविधि करना शामिल है। एक स्वस्थ आहार में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा का संतुलित भाग होना चाहिए और इसमें चीनी, संतृप्त वसा और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ की मात्रा कम होनी चाहिए। भारतीय आहार में अक्सर कार्बोहाइड्रेट युक्त आहार के सेवन पर जोर दिया जाता है, जो वजन बढ़ाने में एक अहम भूमिका निभाता है। अत: वजन कम करने के लिए कार्बोहाइड्रेट का सेवन कम करना और आहार में अधिक प्रोटीन शामिल करना महत्वपूर्ण है। इसमें मछली, पोल्ट्री, और दुबला मांस जैसे खाद्य पदार्थ शामिल हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त, मिठाई, नमकीन और चावल, रोटी जैसे उच्च कैलोरी वाले खाद्य पदार्थों को कम खाने से कैलोरी का सेवन कम करने में मदद मिलती है। जीवनशैली में बदलाव के साथ-साथ दवाओं का उपयोग मोटापा प्रबंधन में सहायक होता है। कई ऐसी दवाएँ हैं जिन्हें मोटापा के इलाज के लिए स्वीकृति मिली हैं, जिनमें ऑर्लिस्टैट, लोर्कासेरिन और फेंटरमाइन-टोपिरामेट शामिल हैं। ये दवाएं भूख को कम करके या तृप्ति की भावना बढ़ाकर काम करती हैं। यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि दवाओं का उपयोग जीवनशैली में बदलाव के स्थान में नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि उनके पूरक के रूप में किया जाना चाहिए।
गंभीर मोटापे से ग्रस्त उन लोगों के लिए सर्जरी एक कारगर उपचार विकल्प है जो जीवनशैली में बदलाव और दवाओं के माध्यम से वजन कम करने में असमर्थ रहे हैं। सर्जरी एक गंभीर निर्णय होता है और केवल वजन घटाने के विशेषज्ञ द्वारा गहन मूल्यांकन के बाद ही इस पर विचार किया जाना चाहिए।

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