छपते छपते के दो दशक पर परिचर्चा का उद्घाटन किया था डॉ मनमोहन सिंह ने

 छपते छपते के दो दशक पर परिचर्चा का उद्घाटन किया था डॉ मनमोहन सिंह ने 

उन दिनों लगभग हर महीने दिल्ली का चक्कर लगता था और राजधानी में हर बार पड़ाव होता कांग्रेस के महासचिव और केंद्रीय मंत्री श्री वी. एन. गाडगिल साहब का शाहजहां रोड स्थित मकान। बस उसी क्रम में वह क्षण भी आया जिसके बारे में लिख रहा हूं। चाय पीते पीते मैंने कहा गाडगिल साहब छपते छपते प्रकाशन ने दो दशक की यात्रा पूरी कर ली है। गाडगिल साहब बोले -‘हां बड़े जोर शोर से मनाइए अखबार की 20वीं सालगिरह। 21 साल में जैसे व्यक्ति व्यस्क होता है समाचार पत्र में भी वयस्कता आनी चाहिए।’ मेरा उत्साह बढ़ा और मेरे मुंह से बिना सोचे समझे निकल गया जी सर क्या डॉ मनमोहन सिंह कार्यक्रम में आ सकते हैं? मैंने एक असंभव सा प्रस्ताव दे डाला बिना सोचे समझे। गाडगिल साहब ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया और अपना फोन उठाया। फोन पर बोले - एफएम। मैं तुरंत नहीं समझा पर अंदाज लगाया कि फाइनेंस मिनिस्टर ही कहा होगा। फोन की जवाबी घंटी बजी और एक मिनट कुछ अपनी बात करके उन्होंने मेरे अनुरोध को अपने ढंग से कहा। फोन छोडक़र साहब मेरी तरफ मुखातिब होते हुए कहा चलिए आपका काम हो जाएगा। तुरंत नॉर्थ ब्लॉक में फाइनेंस मिनिस्ट्री में चले जाइए डॉ मनमोहन सिंह (उस वक्त वित्त मंत्री थे) आपसे मिल लेंगे। 

कार्यक्रम में वित्तमंत्री डा. मनमोहन सिंह साथ में संपादक विश्वम्भर नेवर।

मैं हतप्रभ था। अपने अंदर उठी ऊंची ऊंची लहरों के साथ अकल्पनीय उमंग के बीच दिल्ली में पहली बार टैक्सी से नॉर्थ ब्लॉक गया था। वित्त मंत्रालय और वहां वित्त मंत्री के सचिवालय में मुझे प्रतीक्षा कक्ष में बैठने के दो-तीन मिनट बाद ही उनके सचिव ने वित्त मंत्री के चेंबर में जाने को कहा। मनमोहन सिंह अपने कुर्सी से उठे और चेंबर के दूसरे कोने में सोफा पर मुझे बैठने को कहा और खुद भी बैठ गए। बड़ी मुश्किल से मैं अपने अंदर के उत्साह के अतिरेक को रोक पाया। पांच मिनट उनसे बात की, अखबार के बारे में बताया और उनकी स्वीकृति लेकर बाहर आया जहां पहले से बैठे उस समय के वरिष्ठ पत्रकार एमजे अकबर जो बाद में केंद्रीय मंत्री भी बने उनका इंतजार कर रहे थे। अकबर से एक मिनट बात की तब तक उनका भी नंबर आ गया। इस मुलाकात के लगभग दो महीने बाद भारत के वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह पार्क होटल में छपते छपते प्रकाशन के दो दशक की यात्रा के उपलक्ष में समाचार पत्र एवं लोकतंत्र विषयक सेमिनार का उद्घाटन करने आए। अन्य वक्ताओं में शामिल थे स्टेट्समैन के संपादक सी आर ईरानी  साहब, उत्तर कोलकाता से सांसद डॉ देवी प्रसाद पाल जो कुछ हफ्तों बाद डॉ मनमोहन सिंह के साथ भारत सरकार के वित्त राज्य मंत्री बनाए गए एवं अध्यक्षता की सन्मार्ग के संपादक संचालक राम अवतार गुप्त ने। प्रमुख चाय उद्योगपति ईश्वरी प्रसाद पोद्दार कार्यक्रम में स्वागताध्यक्ष थे। पार्क होटल के तीन बैंक्विट हॉल को एक करने के बाद भी कई लोगों को खड़ा ही रहना पड़ा जिसमें बहुत से नाम चीन उद्योगपति भी शामिल थे। लगभग पौन घंटा डॉ मनमोहन सिंह पहले हिंदी में और फिर अंग्रेजी में बोले। उनके भाषण में कई बार तालियां बजी। डॉ साहब धारा प्रवाह बोले और एकाग्रता के साथ लोगों ने उनको सुना। मैंने छोटे मुंह बड़ी बात कह डाली कि। मैंने अपने भाषण में कहा कि लोग डॉ मनमोहन सिंह को सिर्फ अर्थशास्त्री समझते हैं पर वह एक कुशल राजनीतिज्ञ भी हैं । यह मेरी अपनी खोजी पत्रकारिता की परिणति थी। उपस्थित कुछ लोगों ने ही ताली बजाई। अधिकांश लोग हल्की मुस्कुराहट के साथ इसे मेरी अतिथि देवो भव की मानसिकता समझ कर प्रतिक्रिया देने की उपेक्षा की। असल में यह उनका दोष नहीं, हमारे देश में राजनीतिज्ञों से यह अपेक्षा ही नहीं करते कि वे डॉ मनमोहन सिंह वाली राजनीति करेंगे। डॉ मनमोहन सिंह बाद में प्रधानमंत्री बने तो उन्हें लोगों ने मौनी बाबा की संज्ञा दी। यही नहीं एक बड़े नेता ने तो उन्हें रेनकोट पहनकर नहानेवाला बताकर उनका उपहास किया।


बोलते हुए डा. मनमोहन सिंह, मंचासीन सांसद देवी पाल, स्टेट्समैन के संपादक सी आर ईरानी एवं सन्मार्ग के सम्पादक  राम अवतार गुप्त।


राजनीति में कोई  ‘बीत राग’ का संत भी प्रवेश कर सकता है किसी ने कल्पना नहीं की थी। एक दृढ़ इरादे के साथ सत्ता की मायावी सोच से दूर रहकर देश की आर्थिक दिशा ही नहीं मोड़ी पर पूरे देश को एक नये मोड़ पर ले गये डा. मनमोहन सिंह। उनके कार्यकाल में दुनिया के बड़े बड़े मुल्कों की अर्थव्यवस्था धराशाई हो गई, मंदी के दौर से ग्रसित कई देशों को अपने खर्च में कटौती करनी पड़ी,वैसे कठिन दौर में भारत के आर्थिक स्वास्थ्य में जरा भी खंरोच नहीं आयी उसका सारा श्रेय एक और एकमात्र डा. मनमोहन सिंह को है। आज उनके चले जाने पर उनकी श्रेष्ठता का बखान करनेवालों ने उन्हें पपेट (कठपुतली) प्राइम मिनिस्टर का ‘खिताब’ दिया था। उनके निर्मल एवं धवल चरित्र पर भी लोगों ने छींटे कशे थे। एक पार्टी के प्रवक्ता ने उनके बारे में कहा कि उनका रिमोट कंट्रोल किसी और के हाथ में था। जबकि इतिहास गवाह है डॉ मनमोहन सिंह देश को ऊंचाइयों पर ले गए। डॉ मनमोहन सिंह ने सुषमा स्वराज की एक शायराना अंदाज का जवाब यह कह कर दिया ‘‘हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी।’’ उन पर एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर के नाम से फिल्म भी बनी। अपनी फौलादी इच्छा शक्ति का परिचय उन्होंने तब दिया जब भारत की न्यूक्लियर संधि के विरोध में साम्यवादियों ने सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दी तो उन्हें डा. साहब ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। सरकार गिरने की जोखिम तक उठायी। यह अलग बात है कि समाजवादी पार्टी ने समर्थन देकर उस समय सरकार को गिरने से बचा लिया। सत्ता के लिए हर तरह का समझौता करने के कई उदाहरण हमारे सामने हैं लेकिन डॉ मनमोहन सत्ता से हमेशा निर्लिप्त रहे। 

सादगी उनके व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा थी। मेरे कार्यक्रम में डॉ मनमोहन सिंह आए थे जिसका विस्तार से मैंने ऊपर जिक्र किया। उसकी एक घटना बता कर इस आलेख का उपसंहार करूंगा। पार्क होटल में मेरे कार्यक्रम के बाद एक चेंबर का कार्यक्रम था। होटल के मालिक जीत पाल ने उनके आराम करने के लिए एक सूट की व्यवस्था कर रखी थी लेकिन डॉ सिंह मेरे कार्यक्रम के बाद राज भवन में गए और वहां आराम कर फिर पार्क होटल में चेंबर के कार्यक्रम के लिए आए। अपने व्यक्तिगत जीवन में उन्होंने किसी कर एहसान नहीं लिया। सादा जीवन उच्च विचार की प्रतिमूर्ति रहे। बहुत कम लोगों को यह पता है कि उनकी दो बहने कोलकाता में ही रहती थी।  उन्हें डॉ सिंह ने कभी कोई सरकारी लाभ नहीं पहुंचा। एक बार डॉ मनमोहन सिंह ने दिल्ली के संसदीय सीट से चुनाव लड़ा। मशहूर स्तंभ लेखक और वरिष्ठ पत्रकार खुशवंत सिंह से उन्हें चुनाव में खर्च के लिए उधार लेना पड़ा था। कैसी विडंबना है कि डॉ मनमोहन सिंह जिसने देश में क्रांतिकारी आर्थिक सुधारो को अंजाम दिया वह चुनाव जीत नहीं पाए वह भी दिल्ली की शहरी सीट से। हालांकि डॉ सिंह की आर्थिक सुधार नीति ने देश के मध्य वित्त परिवारों की जीवन शैली ही बदल दी थी इसी से पता चलता है कि हमारे आवाम की मानसिकता को देश की राजनीति ने किस स्तर पर पहुंचा दिया है।

Comments

  1. Just the way you are proud to be able to be with the legend, we are proud of you too. Truly he was a man of his words and his excellence in carving India's economy was commendable. India has lost a gem and truly it's quite uncertain if another person like him would ever appear in the field of Indian Politics later. Thank you for sharing this experience.

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