बांग्लादेश: भारत का नया सिरदर्द
पड़ोस में घटनाओं का हमें आभास नहीं हुआ, केन्द्र खुफिया तंत्र को और मजबूत करे
कैसी विडम्बना है कि जिस बांग्लादेश का प्रादुर्भाव भारत की देन है, वही बांग्लादेश आज भारत के लिए सिरदर्द बन गया है। लेकिन इससे यह तात्पर्य नहीं है कि भारत ने बांग्लादेश बनाकर कोई गलती की। पाकिस्तान के दो टुकड़े कर भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने पूरी दुनिया को भारत का दमखम दिखाया था। पाकिस्तान द्वारा जब उर्दू भाषा को थोपना शुरू किया तो पूर्वी पाकिस्तान ने अपने को आक्रान्त महसूस किया। उन्होंने यह समझा भाषा थोप कर उनके हुक्मरान अपनी संस्कृति थोप रहे हैं। क्योंकि भाषा और संस्कृति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दरिद्रता के कारण पहले से ही कराह रहे पूर्वी पाकिस्तान ने कभी अभाव और गरीबी को उतना नागवार नहीं समझा जितना भाषाई आधिपत्य जमाने को। वहां आंदोलन हुआ और एक प्रकार से सिविल वार की स्थिति पैदा हो गयी। परिणामस्वरूप बहुत बड़ी संख्या में पूर्वी पाकिस्तान से पलायन कर लोग विभिन्न सीमाओं से भारत में घुस आये। इन लाखों शरणार्थियों को भारत आने से नहीं रोका गया। बल्कि भारत में उनके प्रवास हेतु कई जगहों पर शिविर बने जहां उनके खाने-पीने की व्यवस्था भी थी। हां, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूरी दूनिया को पाकिस्तान के हालत से आगाह किया। शक्तिशाली देशों से अपील भी कि वे इस मामले में हस्तक्षेप करें ताकि पाकिस्तान से शरणार्थियों का आगमन बंद हो। श्रीमती गांधी ने संयुक्त राष्ट्र संघ समेत दुनिया के कई देशों को इस स्थिति में पाकिस्तान पर लगाम लगाने एवं भारत जैसे विकासशील देश पर लाखों शरणार्थियों को रोज खिलाने एवं रहने की व्यवस्था से भारत पर पड़ रहे आर्थिक बोझ के बारे में भी उन्हें वाकिफ किया। पर जब किसी देश एवं संयुक्त राष्ट्र संघ के कानों पर जू नहीं रेंगी तो अंतोतगत्वा लिबरेशन आर्मी तैयार कर उसे पूर्वी पाकिस्तान में अतिक्रमण करवा के पाकिस्तान को सबक सिखाया। लड़ाई हुई और अंतोतगत्वा पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तान की सेना को सरेंडर करना पड़ा। विजय दिवस के रूप में भारतीय सेना आज भी उसे मनाती है।
कट्टरपंथी एवं पाकिस्तानी हुक्मरानों के पिट्ठू बांग्लादेश के प्रादुर्भाव के समय से ही मौजूद हैं। उन्होंने ही बंग बंधु मुजिबुर्ररहमान को गोलियों से भून डाला था। ठीक वैसे ही जैसे स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में नाथूराम गोडसे ने तीन गोलियों से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन का अवसान किया। बाद में बांग्लादेश में चुनाव में बंगबंधु की कन्या शेख हसीना क्षमता में आई। शेख हसीना का भारत से सरकारी एवं व्यक्तिगत स्तर पर अच्छा संबंध था। बांग्लादेश में गत चुनाव में फिर शेख हसीना प्रधानमंत्री बनी। किन्तु वहां के घटनाक्रम के परिणामस्वरूप उन्हें अचानक देश छोडऩा पड़ा और उन्होंने भारत में अघोषित शरण ले ली है।
बांग्लादेश में हिन्दुओं के मंदिर एवं उपासना स्थल तोड़े जाने का सिलसिला नया नहीं है। कहते हैं कि बांग्लादेश बनने से लेकर आज तक वहां पांच हजार मंदिरों में मूर्तियों को तोड़ा गया है। लेकिन मंदिर तोडक़र मस्जिद बनाने जैसी कोई घटना अभी तक नहीं हुई है। इससे यह जाहिर है कि उनका हमला धार्मिक असहिष्णुता की वजह से नहीं बल्कि भारत एवं भारतियों के प्रति उनके मन में क्षोभ है। इस्कॉन के प्रमुख पुजारी को न सिर्फ गिरफ्तार किया गया पर उसकी जमानत नहीं होने दी।
सारी घटनाों से पीडि़त होकर बांग्लादेश से बड़ी संख्या में लोगों ने पुन: पलायन किया है। अभी बांग्लादेश में केयरटेयकर युनूस को अमेरिका से बुलाया गया। प्रधानमंत्री शेख हसीना ने दिल्ली से दिये गये अपने पहले वक्तव्य में यह कहा कि बांग्लादेश में नृशंस हत्याओं के पीछे युनूस का हाथ है। इससे साफ जाहिर है कि युनूस अमेरिका से ढाका आया एक विशेष अजेन्डा के तहत।
बांग्लादेश के घटनाक्रम और वहां से आक्रान्ताओं के पलायन को बहुत लोगों ने हिन्दू-मुसलमान का रंग देकर सारी घटनाओं को धार्मिक रूप देने का सफल प्रयास किया है। भारत सरकार की ओर से बांग्लादेश की सरकार को प्रतिवाद संदेश दिया गया है पर अभी तक मामले की गम्भीरता को पूर्ण रूप से नजरंदाज किया जा रहा है। संसद का सत्र चल रहा है पर प्रधानमंत्री ने अभी तक कोई अलग से वक्तव्य नहीं दिया है और न ही बांग्लादेश को लेकर कोई विचार मंथन ही हुआ है। सबसे दुर्भाग्यजनक यह है कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के मंदिरों पर ही नहीं हमले हुए हैं बल्कि उनके साथ अत्याचार की काफी घटनायें हुई हैं। बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर अमानवीय व्यवहार से पूरे देश में क्षोभ है पर प. बंगाल में उसकी तीव्र प्रतिक्रिया होनी स्वाभाविक है।
इस बीच मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का यह वक्तव्य अहम है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति सेना बांग्लादेश भेजी जानी चाहिए ताकि वहां शांति स्थापित हो सके। दुनिया में ऐसे कई अवसर पर यूएनओ द्वारा शांति सेना भेजने का ²ष्टांत है। जब मानवाधिकार पर हर रोज चोट पर चोट हो रही हो तो वहां शांति स्थापना सर्वोपरी है। दरअसल अल्पसंख्यकों पर अत्याचार का एक प्रकार से बांग्लादेश भारत पर हमले जैसा घातक काम कर रहा है। हम में से जो लोग उसे हिन्दू-मुसलमान का साम्प्रदायिक रूप दे रहे हैं, उससे तो बांग्लादेश का पक्ष ही मजबूत होगा। मेरा सोचना है कि यह परोक्ष रूप से भारत पर हमला है और बांग्लादेश बनवाकर भारत ने जो पाकिस्तान को सबक सिखाया था उसी के प्रतिकार में छद्म रूप से पाकिस्तान के ही मिलिटेन्ट समर्थक वहां अशांति के लिए जिम्मेदार हैं। जब तक इसे भारत पर हमले की तरह नहीं माना जायेगा, इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता। ममता जी का वक्तव्य इसी का पहला चरण है। भारत सरकार की विफलता यह भी रही है कि बांग्लादेश में इतनी बड़ी घटनाओं का हमें आभास तक नहीं हुआ। यह भारत की ‘‘इन्टेलिजेन्स फेल्योर’’ है। इसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ रहा है। अत: केन्द्रीय सरकार को चाहिये कि वह अपने खुफिया तंत्र को और अधिक मजबूत करे। साथ ही बांग्लादेश मामले को साम्प्रदायिक रंग न देकर घटनाओं की गम्भीरता को कम करके नहीं आंके।
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