फिर आ गया हूं मैं!
अमेरिका के चुनाव में चार वर्ष के अन्तराल के बाद डोनाल्ड ट्रंप का जीतना भारत के लिये कितना गुणकारी होगा यह तो आने वाले पांच वर्ष ही बतायेंगे किन्तु प्रथम दृष्टा में तो लगता है ट्रंप का आना फायदेमंद ही होगा। इस बार चुनाव की भारत के शहरी लोगों में बड़ी चर्चा रही और पांच नवम्बर की रात या अगले दिन सुबह लोगों ने टीवी खोलकर अमेरिका की चौसर के नतीजे को बड़ी दिलचस्पी से निहारा। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी की ट्रंप से दोस्ती की भी चौपालों में चर्चा थी। ट्रंप ने भी मोदी को दोस्त कहकर ही संबोधित किया। आम धारणा है कि ट्रंप की वापसी से भारत का हित सधेगा, हालांकि सारी दुनिया जानती है कि अमेरिकी नीतियां अमेरिका पर शुरू होकर अमेरिका पर ही खत्म हो जाती है। वैसे अपने चुनाव अभियान में ट्रंप का भारतवंशियों एवं हिन्दुओं का दिल जीतने के लिये भावुक भाषण दिया जिससे भारतीय प्रवासी लट्टू हो गये और उन्होंने ट्रंप के इस कथन की गांठबांध ली कि अमेरिका के व्हाइट हाउस राष्ट्रपति भवन में उनका एक सच्चा हितैषी विराजमान है। भारतीय नस्ल के लोग एक बार भूल गये कि ट्रंप भारत की आर्थिक संरक्षण की नीतियों की आलोचना कर चुके हैं। अमेरिका फस्र्ट की नीतियों के पैरोकार ट्रंप विगत में अमेरिका से आयात होने वाली होलें डेविडसन मोटरसाइकिल पर टैरिफ घटाने को लेकर भारत के प्रति नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। मूल रूप से व्यापारी से राजनेता बने ट्रंप ने पहले कार्यकाल (2017 से 2021) के दौरान अमेरिकी उद्योगों को संरक्षण देने की जोरदार वकालत कर चुके हैं। अब वे अमेरिकी उत्पादों व सेवाओं के संरक्षण को लेकर भारत के खिलाफ आक्रामक रवैया अपनायेंगे तो बेवफाई ही समझी जायेगी।
बहरहाल ट्रंप की वापसी से अमेरिकी कारोबारी जगत खासा उत्साहित है जिसके चलते न्यूयार्क का स्टॉक एक्सचेंज खुशी से झूम उठा है। अमेरिका का पंूजी बाजार का सेन्टीमेन्ट से अलग भारत का कारोबारी नहीं हो सकता। हमारा मानना है कि दोनों एक ही गोत्र के हैं।
बहरहाल यह एक हकीकत है कि ट्रंप लौट आये हैं। यह भी चर्चा में है कि इस अप्रत्याशित चरित्र से निपटने के लिए तैयार रहना होगा। यह
व्यक्ति एक ही सांस में भारत के प्रधानमंत्री को अपना अच्छा दोस्त मानता है, उसी सांस से भारत को अमेरिका के व्यापारिक हितों के विरुद्ध नीतियां बनाने से भारत को अमेरिका के व्यापारिक हितों के विरुद्ध नीतियां बनाने वाला भी बताता है। यहां तक कि अपने चुनाव प्रचार में ट्रंप ने अमेरिकी वस्तुओं पर भारी कर लगाने के लिये भारत को दांत भी दिखाया है। मोदी ने मेक इन इंडिया का नारा दिया है और डानाल्ड ट्रंप ने अमेरिका फस्र्ट का- तो फिर एक ही म्यान में दो तलवारें कैसे टिकेंगी? टकराव तो पैदा होगा ही। दोनों ही राष्ट्रवादी हैं तो टकराव तो अवश्यम्भावी है।
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में सिर्फ कंधे पर हाथ रखकर चलना ही काफी नहीं होता। दोनों देशों के परस्पर हितों का तालमेल या टकराव नीतियों की दिशा तय करता है। इस लिहाज से ट्रंप का दूसरा कार्यकाल भारत के लिए कैसा रहेगा, यह तो 20 जनवरी में उनके कार्यभार संभालने के बाद उनकी घोषणाओं से ही पता चलेगा। ट्रंप का नेशन फस्र्ट या उसका भीतर की ओर देखना भारत में कई वेतन भोगियों को रास्ते पर ला सकता है। हम कुछ वीजा युद्ध भी देख सकते हैं।
चार साल पहले ट्रंप की जो स्थिति थी कोई सोच भी नहीं सकता था कि वे फिर राष्ट्रपति बन सकेंगे। उनको न्यूयॉर्क के 34 गंभीर मामले में दोषी ठहराया जा चुका है। पॉर्न स्टार को चुपचाप भुगतान किये जाने के मामले में भी वे दोषी करार किये गये थे। ट्रंप अमेरिकी इहिास में एकमात्र राष्ट्रपति हैं, जिन्हें पद पर रहते हुए दो बार महाभियोग का सामना करना पड़ा। इन सबके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और सबसे उम्रदराज राष्टपति बन गये हैं। हमारे देश में कांग्रेस को भी मान लेना होगा कि सोशल मीडिया पर लाइक कमेंट्स और चैनेलों में परिचर्चा से चुनाव जीतने के दिन लद गये। ये फंडे सत्ताधारी दल के लिए ठीक है जो मीडिया को बहुत हद तक अपना उपनिवेश बना चुका है। विपक्ष को एड़ी चोटी का पसीना एक कर चुनाव में उतरना पड़ता है। अकेले राहुल गांधी के मैदान में उतरने से नहीं होगा। बूथस्तर पर लड़ाकू एवं जुझारू कार्यकर्ता तैयार करने होंगे। भले ही वे हार जायें पर डटे रहना होगा। कांग्रेस को कोई चुनाव छोटा समझ कर छोडऩा नहीं चाहिये। पंचायत स्तर पर कांग्रेस को मजबूत करना होगा, शहरी निकाय चुनावों को भी अहमियत देनी होगी। प. बंगाल में ममता बनर्जी ने पंचायत चुनाव के महत्व को समझा और 2019 के चुनाव में भाजपा को जो सफलता मिली उसे रोकने के लिए पूरी ताकत झोंक दी परिणामस्वरूप 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को रोकने में सफल हुई। कांग्रेस के लिए जरूरी है कि वह छोटे चुनाव के बड़े महत्व को समझे।
ट्रंप ने चुनाव अभियान में अल्पसंख्यक भारतवंशियों और हिन्दुओं की पीठ थपथपाई। हमारे देश में इसी को अपीजमेन्ट पॉलिसी का नाम दे दिया जाता है किन्तु अमेरिका में तो वहां के लोगों ने ट्रंप का हिन्दुओं के सच्चा साथ कहने पर कोई विपरीत प्रतिक्रिया नहीं दी। विचारों की दृढ़ता से आम आदमी के बीच अच्छी छवि बनती है।
भारत में ट्रंप समर्थकों को यह समझना चाहिये कि अल्पसंख्यकों के साथ समन्वय या राजनीतिक सूझबूझ देशहित में है। इससे जनतंत्र मजबूत और आर्थिक विकास का रास्ता प्रशस्त होता है। हर बात पर हिन्दू-मुसलमान करने वाले हमारे बहुसंख्यक भाइयों को अमेरिका में ट्रंप की हिन्दू-समर्थन नीति से सीखना चाहिये। भारत मजबूत हो फिर ट्रंप जीते या कमला कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

बिल्कुल सही लिखा आपने सर कि "अमेरिकी नीतियां अमेरिका से शुरू होकर अमेरिका पर ही खत्म हो जाती हैं"।
ReplyDelete-और आपके द्वारा कांग्रेस को दी गई सटीक नसीहत भी सार्थक है !... यदि आपके इस उपयोगी परामर्श पर कांग्रेस अमल करे तो निःसंदेह उसका कायाकल्प हो जाएगा।🙏