बच्चे अपने घर में भी सुरक्षित नहीं
दस दिन पूर्व ही विश्व शिशु दिवस के अन्तर्गत भारत में भी बच्चों के कल्याण की बातें हुई। मुझे वह पुराना गीत याद आया ‘‘जिस देश का बचपन भूखा हो, फिर उसकी जवानी क्या होगी।’’ अभी तक बच्चों को पौष्टिक भोजन का अभाव की बात होती थी पर अब स्थिति खानपान के अभाव से ज्यादा भयावह बनकर सामने आयी है। वह है देश में बच्चों के शोषण एवं उनके साथ पाशविक व्यवहार की। उस स्थिति को देखकर लगता है हम कितने संवेदनशून्य होते जा रहे हैं।
बच्चों के ऊपर अपराध के क्षेत्र में स्थिति ने आज आतंक बढ़ाया है। राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के जो ताजा आंकड़े सामने आये हैं वे दिल दहलाने वाले हैं। 2021 साल की तुलना में 2022 में भारत में शिशुओं पर यौन अत्याचार में 8.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। शिशुओं पर यौन अत्याचार के कुल 1 लाख 62 हजार 449 अभियोग दर्ज हुए हैं। 2014 वर्ष से हिसाब किया जाये तो 2022 साल में बच्चों पर यौन अत्याचार की संख्या प्राय: 81 प्रतिशत बढ़ी है। 2014 के वर्ष में शिशु-यौन अत्याचार के अभियोगों की संख्या 89,423 दर्ज की गयी। देखा गया है कि महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार एवं राजस्थान की तरह पश्चिम बंगाल में 2021 वर्ष की तुलना में 2022 साल में शिशुओं पर यौन अत्याचार पांच प्रतिशत बढ़ गये।
लेकिन चाइल्ड राइट्स एंड ह्यू एवं कलकत्ता पुलिस द्वारा की गयी समीक्षा में देखा गया है पिछले दो साल में इस राज्य में बच्चों के विरुद्ध अपराध में बलात्कार एवं बच्चों पर यौन शोषण अत्याचार क्रमश: 12 एवं 18 शतांश बढ़े हैं। सबसे अधिक बाल अपराध एवं यौन शौषण की घटना बढ़ी है घरों के अंदर। यही स्थिति है बच्चों के लिए खोले गये उनकी देखभाल के प्रतिष्ठान एवं स्कूल की। इसी के बाद बच्चे जहां काम या मजदूरी कर रहे हैं उन प्रतिष्ठानों का नम्बर है।
समीक्षा में देखा गया है कि बच्चों के विरुद्ध बढ़े अपराधों में गत दो वर्षों में उल्लेखनीय बढ़त हुई है। इसके बाद ही बच्चों की हत्या, अपहरण एवं बाल विवाह जैसे अपराध बढ़े हैं। सबसे अधिक दहलाने वाली बात यह है कि बच्चे अपने घर में भी सुरक्षित नहीं है। अपने सम्बन्धियों एवं आत्मीय जनों की हवश के शिकार हुए हैं। सबसे शर्मनाक घटनाओं में शामिल हैं बच्चों के माता-पिता एवं उनके केयर टेकर अभिभावक द्वारा हो रहे शोषण। ‘‘नेशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स’’ (पॉक्सो) के प्रभारी सुधीर मिश्र ने बताया कि पॉक्सो कानून बनने एवं जुवेनाइल जस्टिस कानून की कड़ाई से हो रहे पालन होने के फलस्वरूप कुछ जागरुकता एवं सेचतनता बढ़ी है। केन्द्रीय पोर्टल में आसानी से शिकायत करने की व्यवस्था के कारण शिकायतें भी बढ़ गयी हैं।
सुप्रसिद्ध मनोरोग चिकित्सक देबांजन बंदोपाध्याय का कहना है कि बच्चों पर अत्याचार को रोकने के लिए पहले पिडोफिलिया को पहचानने की आवश्यकता है। इसे सिर्फ बीमारी कह देने से अपराध को हल्का बना दिया जाता है। जरूरत है कि इसे एक अन्य तरह का यौन-विकार कहना बेहतर होगा। बच्चे चूंकि कुछ नहीं कह पाने का साहस नहीं करते हैं अत: अपराध की गम्भीरता सामने नहीं आती है। देबांजन बाबू कहते हैं ‘‘यौन अत्याचार के लक्षण स्पष्ट देखने की हालत में इसकी वास्तविकता को समझना आसान है। किन्तु यह समझने की जरूरत है कि किसी शिशु को अन्य तरह से छूने, चूमने या उपयुक्त समय के पूर्व यौनांग को छूने यौनांग के सम्बन्ध में उसे समझाना या ऐसे वीडियो दिखाना या कम उम्र में यौन उत्तेजना को बढ़ावा दे, यह सब पिडोफिलिया के दायरे में है।’’
मनोरोग विशेषज्ञ ने इस समस्या के समाधान की चर्चा में बताया कि अभिभावकों को सतर्क रहने की जरूरत है। परिवार में ऐसा माहौल बनायें जिससे बच्चे अपनी समस्या बताने का साहस करें। ऐसी कोई घटना हो तो पुलिस को रिपोर्ट करने में न हिचकिचायें।
ऑनलाइन एवं अन्यत्र बच्चों की पोर्न फिल्मों का धंधा पूरे देश में फैला हुआ है और हमारे बंगाल में भी बढ़ रहा है। इस धंधे का सबसे बड़ा अस्त्र है सोशल मीडिया। वैसे इस धंधे का जाल देश-देशांतर में फैला हुआ है।
इन अपराधों में लिप्त लोगों को दंडित करने का प्रावधान है। 2015 साल में ‘‘जूयेनाइल जस्टिस कानून’’ वर्ष 2000 में ‘‘इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी कानून’’ एवं 2012 में पारित प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्से या पोकसो कानून के अन्तर्गत पुलिस कार्रवाई का प्रावधान है। आक्रान्त बच्चे की उम्र अगर 12 वर्ष से कम है तो दोषी साबित होने पर मृत्युदंड की सजा भी हो सकती है।
चाइल्ड लाइन 1098 नम्बर एवं पुलिस का 100 नम्बर के साथ ही है वेस्ट बंगाल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स- का वाट्सअप नम्बर 9835300300 भी उपलब्ध है। इसके अलावा भी है नेशनल कमिशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स का ई-बाल निदान पोर्टल। इसमें भेजने वाले का नाम गुप्त रखा जाता है एवं निर्दिष्ट समय के बाद दिये गये तथ्य स्वत: ही डिलिट हो जाता है। परिणामस्वरूप संगठित अपराध होने पर भी पकडऩा बहुत कठिन है। एप द्वारा पुलिस को भी खबर नहीं दी जाती है जिसकी वजह से परिवार को भी अधिक सतर्क रहने की जरूरत है। अभिभावक नियंत्रण कर सकें इस तरह का सॉफ्टवेयर के व्यवहार पर जोर देना होगा।
कोलकाता की एक समाजसेवी संस्थान का दावा है कि पिछले कुछ वर्षों में चाइल्ड सेक्स टूरिज्म में खतरनाक वृद्धि हुई है। भ्रमण के नाम पर एशिया, अफ्रीका की तरह ऐसे देशों का चयन किया जाता है जहां शिशु अत्याचार के विरुद्ध कानून बहुत कड़े नहीं हैं। खुले बाजार में शिशुओं की खरीद-बिक्री का धंधा ‘पिडोफिलिक’ कार्यों के लिए होता है।
मनोविज्ञान विशेषज्ञ एवं चिकित्सक रीमा मुखोपाध्याय कहती हैं कई मामलों में अत्याचार के शिकार बच्चों से बात करके कई आश्चर्यजनक तथ्य सामने आते हैं। इस चक्रान्त में जो बच्चे शिकार होते हैं उन्हें यह पता ही नहीं चलता है कि उनके साथ षडयंत्र चल रहा है। ये पेशेवर दलालों को ही अपना आत्मीय एवं शुभेच्छु समझ लेते हैं।
इस प्रखार समाज एवं सामाजिक व्यवस्था का यह कलंक और शर्मसाहर करने वाली व्यवस्था के बारे में बहुत से कानून बने हैं। कई कानूनों में लूपोल भी है और कई वजह से कानीून का कड़ाी से पालन नहीं होता यह दुर्भाग्य है। इस मामले में मीडिया की भी अहम् भूमिका है जिसे अभिज्ञ होने का ही यह फल है कि इस तरह की समस्या पर हम लिखकर अपने कर्तव्य का पालन मात्र कर रहे हैं। लेकिन यह आत्म सन्तोष की बात है कि इस अपराध के नेस्तनाबूद न होने तक प्रशासन को सजग रहने की जरूरत है।
बच्चों की सुरक्षा करना उन्हें सुरक्षित रखना, व्यक्ति, समाज और सरकार सबकी जिम्मेदारी है।
ReplyDeleteबच्चों के यौन शोषण पर लिखा गया लेख सामाजिक मानसिक विकलांगता को दर्शाता है। संस्कारहीन चरित्र हर दृष्टिकोण से परिवार,समाज, राष्ट्र के लिए घातक है।
ReplyDeleteविचारणीय आलेख।
आदरणीय आप जितने भी विषय अपने इस कॉलम "रविवारीय चिंतन" में लेखनीबद्ध करते हैं,वह लगभग सभी ज्वलंत होते हैं।... बच्चों के साथ जो छुपा अपराध होता है,उसे उजागर कर रहा है आपका यह चिंतित करने वाला आलेख। ... सर आपने जो हेल्फ़लाइन नम्बर दिए हैं वो बहुत उपयोगी एवं संग्रहणीय हैं।
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