आधुनिक भारत के महर्षि
नारायण मूर्ति
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भाखड़ा नंगल डैम के उद्घाटन अवसर पर कहा था कि यह स्वतंत्र भारत का मंदिर है। भाखड़ा नंगल स्वतंत्रता के कुछ ही पश्चात एक ऐसी परियोजना थी जिसने भारत में ऊर्जा संचार का काम किया था। उत्तर भारत में इसी डैम से पैदा हुई बिजली ने उद्योग और कृषि को गति प्रदान की वहीं भारतीय नगारिकों के जीवन की शैली में एक अहम् बदलाव की आधारशिला रखी। भारत के सर्वांगीण विकास की कहानी बड़ी लम्बी है किन्तु हमारे देश की संस्कृति एवं धरोहर का फलक भी विशाल है। हमने जहां आध्यात्म को जीवन के सर्वांगीण विकास का पावर स्टेशन बनाया वहीं वैज्ञानिक सोच को देश की प्रगति के आधार के रूप में भी स्थापित किया। आध्यात्म और वैज्ञानिक सोच को एक दूसरे का पूरक मानकर पंचवर्षीय योजनाओं के आधार पर राष्ट्र का संतुलित विकास को आयाम दिया गया। भारतीय जनमानस की यही सोच थी जो उसे अपने हजारों साल की विरसात से प्राप्त हुई।
नारायण मूर्ति
इसी परिपेक्ष में इन्फोसिस के जनक नारायण मूर्ति को आज के भारत या नये भारत का महर्षि कहा जाय तो मैं नहीं समझता कोई अतिशयोक्ति होगी। स्वामी विवेकानंद ने शिकागो की सभा में कहा था कि भारत ने दुनिया को शून्य दिया जिसके फलस्वरूप सूर्य-चंद्र और नक्षत्र से पृथ्वी की दूरी को नापना सम्भव हो सका। खगोल शास्त्र में अमेरिका, चीन या रूस हमसे आगे हैं किन्तु उन्हें बीज गणित की पूर्ति या रसत भारत के महर्षियों ने प्रदान की थी। वैदिककालीन ऋषि मुनियों ने ध्यान या तपस्सा के बल पर ज्ञान प्राप्त किया और उस ज्ञान का आचमन पूरे संसार को कराया। इसीलिये हमारे महर्षियों ने वर्षों की समाधि या तपस्या ज्ञान प्राप्ति के लिए की। भगवान बुद्ध हों या महावीर स्वामी ने ज्ञान योग से जीवन को समृद्ध किया। वैदिक युग में ऐसे कई ऋषि हुए जिन्होंने ज्ञान और विज्ञान से भारत भूमि को समृद्ध एवं विश्व गुरु बनाने में अपना जीवन अर्पित किया। ऋषि चारवाक एवं और भी कई ऋषियों को अर्थशास्त्र की बारीकी का पांडित्य हासिल था।
आज के भारत में भी कई ऐसे विद्वान एवं बुद्धि और ज्ञान के ज्योतिपुंज हैं जिनके अवदान को कम आंकना भूल होगी। ऐसे योगी पुरुषों में इन्फोसिस के प्राण पुरुष नारायण मूर्ति हैं जो भारत के सबसे प्रेरणादायक उद्यमियों में से एक हैं। उनकी कहानी संघर्ष, परिश्रम और दूरदर्शिता का प्रतीक है। उन्होंने तकनीक और उद्यमिता के क्षेत्र को जो योगदान दिया है वह भारत ही नहीं विश्व के लिए अमूल्य है। 20 अगस्त 1946 को शिदलाघट्टा कर्नाटक में जन्मे नारायण मूर्ति इंजीनियरिंग की पढ़ाई भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर से पूरी की। बचपन से ही गणित और प्रौद्योगिकी में उनकी रुचि थी। अपने कैरियर की शुरुआत उन्होंने पुणे स्थित एक कंपनी में सॉफ्टरवेयर इंजीनियर के रूप में की थी। पहला स्टार्टअप के रूप में उन्होंने ‘‘सॉफ्ट्रॉनिक्स’’ नामक एक कंपनी शुरू की जो असफल रही। इंफोसिस शुरू करने के लिए उ्हें अपनी पत्नी सुधा मूर्ति से 10,000 रुपये उधार लेने पड़े। 1981 में इंफोसिस की स्थापना के बाद भी शुरुआती दिनों में फंड और क्लाइंट्स की कमी के कारण उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। वही इंफोसिस आज एक वैश्विक सेवा कम्पनी है। इंफोसिस को 1999 में हृ्रस्ष्ठ्रक्त (अंतरराष्ट्रीय स्टाक एक्सचेंज का इंडेक्स) पर सूचीवद्ध किया गया, जो भारत की पहली कंपनी थी। नारायण मूर्ति ने कंपनी को एक छोटा स्टार्टअप से 100 बिलियन डॉलर वैल्यूएशन वाली कंपनी में बदल दिया।
नारायण मूर्ति ने कार्पोरेट सेक्टर में सीएसआर (कार्पोरेट सोशल रिस्पान्सिबिलिटी) को अहमियत दी और उसको साकार करने के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम किया। देखते-देखते नारायण मूर्ति का कद बड़ा होता गया और उनके काम की खुशबू में अलग तरह की सुगन्ध थी। भारत के राष्ट्रपति ने उन्हें पद्मभूषण और फिर पद्म विभूषण से सम्मानित किया। टाइम मैगजीन द्वारा नारायण मूर्ति को फादर ऑफ इंडियन आईटी सेक्टर यानि भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी का जनक बताया।
नारायण मूर्ति ने कहा था ‘‘जो असंभव लगता है, वह सही दिशा में मेहनत से संभव हो सकता है।’’
हम अक्सर कार्पोरेट सेक्टर के अधिष्ठाताओं को पूंजीपति कहने की भूल करते हैं। सामाजिक क्षेत्र में पूंजीपति को सेठ कहते हैं। सच तो यह है कि नारायण मूर्ति ने इंफोसिस को एक विशाल बरगद के पेड़ का रूप दिया जिसकी छाया में भारत का आईटी सेक्टर फल फूल रहा है। इंफोसिस भले ही 100 बिलियन डॉलर की कम्पनी हो पर नारायण मूर्ति पूंजीपति नहीं हैं। पूंजी का उपयोग कर बड़ी पूंजी का सृजन किया एवं भारत के युवा समाज को और उद्यमशील समुदाय को डिजिटल इंडिया का तोहफा प्रदान किया। वे सरलता की मिसाल नहीं बल्कि सरलता को जीवन का अभिन्न अंग बनाकर उद्यमी और पंजीपति में क्या फर्क होता है, समझाया है। हम अगर गहराई से सोचें तो जेआरडी टाटा या घनश्याम दास बिड़ला को पूंजीपति कहना न्यायसंगत नहीं है क्योंकि इन दोनों ने भारत में उद्योग एवं वैज्ञानिक विकास की मिसाल रखी और आने वाली पीढिय़ों को रोजगार व जीवन शैली बदलने का अवसर प्रदान किया है। आज पूंजी बाजार का यह हाल है कि शेयर बाजार के उतार चढ़ाव के कारण भारतीय कंपनियां जुए का खेल बन गयी है। अकारण उनका पारा चढ़ जाता है और सेन्टीमेन्ट की बेरुखी से बाजार का कई हजार करोड़ रुपये स्वाहा हो जाता है।
नारायण मूर्ति ने हाल ही में एक बहुत महत्वपूर्ण बात कही जिसका जिक्र किये बिना उनको महर्षि कहना और भी सटीक लगता है। उन्होंने कहा कि भारत के अतीत की तार्किक एवं वैज्ञानिक सोच को पुनस्र्थापित करने की आवश्यकता है। विदेशी हमलावरों एवं उपनिवेशकर्ताओं ने भारत कै वैज्ञानिक मूल्यों एवं ज्ञान की धरोहर को लगभग एक हजार वर्ष 1000 से लेकर 1947 तक बन्दी बनाकर रखा एवं युवकों की प्रतिरोधात्मक क्षमता के साथ मौलिक विचारों व विचार प्रजनन क्षमता को क्षीण कर दिया। मूर्ति ने 2024 इंफोसिस पुरस्कारों की घोषणा समारोह में सम्बोधन के दौरान यह टिप्पणी की। संयोग से वह दिन 14 नवम्बर था भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू का जन्मदिन। इजरायल में हमने अपने सबसे बड़े राष्ट्रीय लाभ की सराहना करना सीखा। हमारा दिमाग रचनात्मकता और नवीनता के माध्यम से बंजर रेगिस्तानों को समृद्ध क्षेत्रों में बदल दिया और विज्ञान व प्रौद्योगिकी में नए आयाम स्थापित किया। मूर्ति ने दिवंगत शिमोन पेरेज के हवाले से कहा-यह हर देश के लिए अभूतपूर्व विचारों की शक्ति है।
भारतीय परिपेक्ष में हमारे अंधविश्वासों एवं मान्यताओं के बीहड़ जंगल में विज्ञान व तार्किक सोच से ही भारत अपने 140 करोड़ जनधन को नये भारत बनाने में मदद कर सकता है। 5 ट्रिलियन की इकोनॉमी से कुछ लोगों को बड़ा फायदा हो सकता है एवं पूंजीपतियों की फौज तैयार की जा सकती है पर आज हम 80 करोड़ लोगों को मुफ्त खाना खिला रहे हैं और तब इनकी संख्या शायद 100 करोड़ के ऊपर करनी होगी।

आधुनिक भारत के महर्षि नारायण मूर्ति जी को आपके माध्यम से आज और अधिक बेहतर ढंग से जानने का सुअवसर प्राप्त हुआ आदरणीय....साधुवाद आपको।
ReplyDelete.... आपके द्वारा रचित "रविवारीय चिंतन" ज्ञान की खान है।🙏