बड़ों की हवस का शिकार हो रहे हैं बच्चे


 बड़ों की हवस का शिकार हो रहे हैं बच्चे

प. बंगाल एक जागरुक राज्य माना जाता है। कहते हैं -व्हाट बंगाल थिंक्स टुडे, इंडिया थिंक्स टूमॉरो, यानि बंगाल जो आज सोचता है, उसे शेष भारत कल सोचता है। यह बात सही भी है किन्तु हाल के कुछ वर्षों मं बंगाल में जो घटनायें हो रही हैं, उससे लगता है कि देश के इस शिक्षित, सांस्कृतिक एवं सामाजिक रूप से जागरुक प्रदेश कुछ कारणों से पीछे की ओर जा रहा है। अपराध के मामलों में जो घटनायें हो रही हैं, वह शर्मनाक हैं एवं बंगाल का अब उदाहरण गलत चीजों में भी लिया जाता है। इसके कारण जो भी हों किन्तु पूरे राज्य के लिये यह शर्मनाक है। हम हिन्दी भाषी या गैर बंगाली इस राज्य में आकर दो प्रमुख कारणों से बसे हैं। एक तो यहां रोजगार की संभावनायें और दूसरा बंगाल की संस्कृति जो हमें यहां खींच लाई है। किन्तु हाल की कुछ घटनाओं ने हमारे विश्वास को डगमगा दिया है। इस प्रान्त में पीढिय़ों से रहनेवाले गैर बंगाली भी इन घटनाओं से शर्मिन्दा हैं और इसे ठीक एवं दुरुस्त करने का दायित्व सिर्फ धरती पुत्रों का ही नहीं हमारे जैसे लोगों का भी है जो अन्य प्रान्तों से आकर यहां पीढिय़ों से बसे हुए हैं।

हाल ही में हुई कुछ घटनाओं का हम जिक्र कर रहे हैं जो बंगाल के ग्रामगंज में हुई जिससे बंगाल की संस्कृति को शर्मसार कर रही है।

घटना-1 : अस्पताल में भर्ती हुआ 3 साल का बच्चा। शरीर में आघातों के निशान लेकर। उसका एक्सरे करवाया गया। रिपोर्ट देखकर डाक्टर हैरान रह गए। नन्हें के शरीर में चुभी थीं सुई। कुछ दिनों के बाद उस छोटे से बच्चे की मौत हो गई। पुरुलिया की पुलिस के रिपोर्ट के अनुसार मां और उसके प्रेमी के बीच बाधा बन रहा था नन्हा बच्चा, इसलिये उसका यह अंजाम हुआ।

घटना-2 : दुकान में बिस्कुट खरीदने गया था पांच साल का छोटा  बच्चा। लौटते वक्त लापता हो गया। बीरभूम के विश्व कवि टैगोर की कर्म भूमि शांतिनिकेतन के अन्तर्गत मोलडागा इलाके में तीन दिन बाद पड़ोसी के घर की छत पर बोरे में बंद मिला बच्चे का शव। छानबीन से पता चला के पड़ोसियों के बीच आपसी हिंसा का शिकार हुआ नादान बालक।

घटना-3 : खेलने के लिये 4 साल का मासूम गया था पड़ोसीं के घर। विगत 17 अक्टूबर नदिया के शांतिपुर वासी उसी घर का का एक युवक बच्चे को हाथ पैर बांधकर बिचाली के ढेर में बैठा रखा था। बाद में बच्चे को रिहा कर अस्पताल भेजा गया। पता चला दो परिवार में विवाद का शिकार हुआ बच्चा। 

पिछले कई साल से यह अत्याचार के साथ बच्चों के ऊपर अलग तरह का अत्याचार की ऐसी कई घटना सामने आ रही हैं। घटनाओं में बड़ों का नाजायज सम्पर्क या विवाद का शिकार हो रहे हैं बच्चे। कभी पारिवारिक या नाजायज सम्पर्क कभी सम्पत्ति लेकर विवाद-सबके रोष का शिकार हो रहे हैं बच्चे। इन सबसे ऊपर नाबालिग बालिकाओं के यौन उत्पीडऩ के मामलों चौंकाने वाले हैं।

उत्तर बंगाल के कूचबिहार के चंदामली गांव में 8 साल के बच्चे के ऊपर उसके माता-पिता द्वारा ही अत्याचार की खबर पड़ोसी ने प्रशासन को फोन करके बताया। बाल सुरक्षा दफ्तर के अधिकारी घर पर गये तो माता-पिता ने दावा किया यही उनका शासन है। केवल कूचबिहार में सालाना औसतन 15 से 20 शिकायतें दर्ज होती है जिला बाल सुरक्षा अधिकारी स्नेहाशीष चौधरी ने कहा- छात्र-छात्राओं को मानसिक और शारीरक सजा निषिद्ध है इसलिये इन विषयों में जागरुकता और बढ़ानी होगी। नाबालिग बालिकाओं के अपहरण और लापता होने की शिकायत पुलिस में की जाती है। कई अभिभावकों का तजुर्बा है कि यह सब शिकायत को पुलिस प्रारंभ में ज्यादा अहमियत नहीं देते हैं। नाबालिगों के लापता होने के मामले में बहुत बार यह मान लिया जाता है कि प्रेमी के साथ भाग गई है। कुछ दिन इंतजार करके देख लें ऐसा परामर्श दिया जाता है। पूर्व बद्र्धमान में रायना में 2 साल पहले एक नाबालिग लापता हो गई थी। हाई कोर्ट ने इस मामले में सीबीआई जांच करने का निर्देश दिया था। अभी तक पता नहीं चला उस लडक़ी का। पुलिस सूत्र में दावा किया  गया है विभिन्न जिलों में घटना में फोन की लोकेशन को ट्रैप करके सफलता प्राप्त हुई है। बदहाल कानूनी परिस्थितियों का प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। समाज विरोधियों के संघर्ष के बीच पडऩे या चुनाव वाली हिंसा में मासूमों का निधन या जख्मी होने के बहुत सारे उदाहरण हैंं। इसी वर्ष लोकसभा चुनाव के बाद हावड़ा, मुर्शिदाबाद का भगवानगोला जैसी कई जगहों में राजनीतिक हिंसा के शिकार हुए हैं बच्चे। बिचाली के ढेर में पड़ा हुआ बम को बॉल समझ कर खेलते हुए विस्फोट में जख्मी या मौत-ऐसी घटनाएं बहुत हुई हैं। 2 साल पहले 24 परगना उत्तर के मिलाखा में एक नेता के घर घूमने आई थी उनकी 9 साल की भांजी। बाहर बिचाली के अंदर रखा हुआ बम को बॉल समझकर  खेलते वक्त विस्फोट में बच्ची की मौत हो गई। नेता को गिरफ्तार किया गया। दक्षिण 24 परगना  के कुल्पी से लेकर मुर्शिदाबाद का जंगीपुर या मालदा का मानिकचौक बम विस्फोट में मौत या जख्मी होने का साक्षी है।

बहुत सारी घटनाओं के बाद इलाके में विक्षोभ-अवरोध होता है। बहुत क्षेत्र में पोस्को धारा में मामला दायर किया भी जाता है। लेकिन न्याय आसानी से नहीं मिलता। यह कई अभिभावकों का दावा है। बहुत समय बाद अपराधी को गिरफ्तार किया जाता है। इसी साल सितम्बर तक पूर्व बद्र्धमान में पोस्को धारा में मामला हुआ है। 115 मुर्शिदाबाद में, 152 बहरामपुर में। वरिष्ठ वकील पियूष घोष ने कहा कि जिला अदालत में पूरे साल कितने मामले दायर होते हैं उसका 20-25 फीसदी केस का ही फैसला होता है। पोस्को मामले में निर्वाह दर और भी कम है। पुलिस का दावा है कि बाल अत्याचार कम करने में विभिन्न  स्कूल के संग एक साथ होकर जागरुकता अभियान किया है। अत्याचार का शिकार लोग क्या करेंं, कहां अपनी बात कहें, यह बताया जाता है। बहुत स्कूल में आत्मरक्षा की शिक्षा दी जाती है। लेकिन यह पहल बाल निर्यातन को  रोकने में काफी नहीं है। एक के बाद एक घटना इसके प्रमाण हैं।

खैर, जो हो 14 नवम्बर बाल दिवस पर बच्चों के कल्याण हेतु बातें होंगी और उन्हें भारत का भविष्य बताया जायेगा। पर इस भविष्य का वर्तमान कुछ उदाहरण के साथ हमने बताया ह। बंगाल जैसे  जागरुक और क्रांतिकारी की भूमिक में जब यह स्थिति है तो शेष भारत की असलियत का अनुमान लगाया जा सकता है। राजनीतिक नेता एवं प्रशासन ही नहीं सामाजिक न्याय और जन कल्याण के कार्यों की समीक्षा होनी चाहिये। प्रशासन की कमजोरियां और जागरुकता की स्थिति का जायजा लेना जरूरी है।

Comments

  1. बंगाल में बच्चों पर लगातार होने वाली इस तरह की अपराधमूलक घटनाएं सचमुच चिंतित करने वाली हैं. बंगाल जैसे साहित्य, संस्कृति से लबालब रहे राज्य के लिए स्थितियां शर्मनाक हैं. इस पर समाज,प्रशासन और राज्य के राजनीतिक जीवन से जुड़े हर दल को गंभीरता से सोचना और निराकरण का उपाय करना चाहिए.

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  2. मानसिक विकलांगता समाज के पतन का‌कारण बन रहा है।

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  3. आदरणीय आप हमेशा ज्वलंत सामाजिक मुद्दों को अपने इस कॉलम में उठाते हैं,आपकी कलम पर आमजन से लेकर, सरकारी तंत्र की नज़र जाती है।...बच्चों को सबसे बड़ी समस्या पर ध्यानाकर्षण हेतु,आपको साधुवाद।🙏

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