31 अक्टूबर
देश के दो फौलादी व्यक्तियों
के नाम भी दीये जलायें
इस बार 31 अक्टूबर को दिवाली का पर्व है। जाहिर है देश भर में रोशनी का त्योहार धूमधाम से मनाया जायेगा। दिवाली की जगमगाहट के लिये दीये जलाये जायेंगे। अयोध्या में 23 लाख दीये जलेंगे और अब तो हर साल प्रशासन दीयों की संख्या में अपना ही पुराना रेकार्ड तोड़ता है। यह कभी जरूरी नहीं था कि सिर्फ हिन्दू ही दीपोत्सव मनायें यह तो सम्पूर्ण भारतवासियों के लिए खुशी का पर्व होता रहा है। क्या मुसलमान, ईसाई, जैन, बौद्ध, आदिवासी और समाज का कामगार वर्ग इसमें बढ़चढ़ कर हिस्सा लेता है। यह राम की अयोध्या वापसी का सबब तो था ही किंतु संपूर्ण देश में इसकी पहुंच की वजह खरीफ फसलों के आगमन से जुड़ा था।
दीपक जलाकर हम सिर्फ रोशनी ही नहीं करते किसी की याद को अक्षुण्ण बनाये रखने भी दीपक जलाने की परम्परा है। हमारी संस्कृति में किसी की याद में भी दीया जलाया जाता है। मंदिर हो या मजार दोनों में दीया जलाया जाता है किसी को नमन करने का। देश के तपस्वी और जनता की भावनाओं की कद्र करने दीपक जलाये जाने की परम्परा है।
आजादी मिलने के बाद देश को एक बड़े राष्ट्र का स्वरुप प्रदान करने में जिन दो महान शख्सियत का हाथ रहा है उनमें लौह पुरुष सरदार बल्लभभाई पटेल और आयरन लेडी इंदिरा गांधी का नाम हमेशा याद किया जाएगा। सरदार पटेल ने तो देश में तकरीबन 565 स्वतंत्र रियासतों को अपने कुशल नेतृत्व और साहसी सूझबूझ से भारत देश में शामिल किया। जिससे देश में एकता के तार बहुत मजबूती के साथ इस तरह जोड़ें कि उन रियासतों ने कभी भारत सरकार के खिलाफ कभी कोई अफसोस जाहिर नहीं किया बल्कि विशाल भारत के साथ पूर्ण सामंजस्य बनाए रखा। कहीं जनमत संग्रह तो कहीं युद्ध का सहारा भी लेना पड़ा। जहां जैसी परिस्थिति रही उसमें वैसे फार्मूले का इस्तेमाल किया है।जिसे लेकर आज भी कभी-कभी विवादास्पद बातें सामने आती है। मसलन जम्मू-कश्मीर में जनमत-संग्रह ना कराना अब तक सवालों के घेरे में आता रहता है। जूनागढ़ और हैदराबाद रियासतों के लिए फौज का सहारा लिया गया।
सरदार पटेल ने देश की मजबूती के लिए उठाये कदमों को एक वर्ग ने कटघरे में खड़ा भी किया। लेकिन लौह पुरुष की प्रबल इच्छाशक्ति थी एवं देश की अखंडता और प्रगति के बारे में उनका नजरिया साफ था। महात्मा गांधी की हत्या के बाद सरदार ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर प्रतिबंध लगाया जिसको लेकर देश के तथाकथित हिन्दू आवाम को नागवार गुजरा। उनके सबसे बड़े सहयोगी पं. जवाहर लाल नेहरू भी आरएसएस पर प्रतिबंध के पक्ष में नहीं थे। यह दो विचारधाराओं का टकराव था। नेहरू उदारवादी थे किन्तु सरदार पटेल फौलादी इरादे वाले। बाद में आरएसएस पर इस शर्त के साथ प्रतिबंध हटाया गया कि यह राजनीति से दूर रहेगा एवं एक सांस्कृतिक संगठन के रूप में काम करेगा।
वहीं दूसरी ओर इंदिरा गांधी ने भारत पाक विवाद को यूएन से वापस लेने पाकिस्तान को मज़बूर किया। पड़ोसी देश अब परस्पर मिल बैठकर अपने सवालात हल कर लेते हैं। किसी अन्य देश के दबाव से इस तरह दोनों देश बच गए। यह इंदिरा गांधी की दूरन्देशी राजनीति थी। बांग्लादेश निर्माण के दौरान मुजीबुर्रहमान की मुक्ति वाहिनी को मदद कर पूर्व पाकिस्तान का सफाया कर नया देश बांग्लादेश बनाया जिससे भारत का पूर्वी क्षेत्र सुरक्षित हो गया। इतना ही नहीं उत्तर पूर्व स्थित सिक्किम देश जिसे चीन दबोचने की कोशिश लगातार करने में लगा था उसे उन्होंने अपने कौशल और साहसिक अभियान से देश का एक राज्य बनाया उसे संपूर्ण संवैधानिक अधिकार देकर ना केवल सिक्किम को ड्रेगन के ग्रास होने से बचाया बल्कि उसे पूरा संरक्षण भी प्रदान किया। इससे चीन के हौसले पस्त पड़ गए। हमारी सीमा सुरक्षित हुई। आपको यह याद रखना चाहिए कि जब कश्मीर रियासत भारत में विलीन की गई थी तब वहां प्रधानमंत्री होते थे तथा वहां कश्मीर का ध्वज तिरंगे के साथ फहराता था। इंदिरा जी ने ही कश्मीर से विश्वास पूर्वक प्रधानमंत्री की जगह मुख्यमंत्री बनाया। एक देश की पहचान लिए कश्मीर रियासत इंदिरा गांधी के प्रयासों से ही जम्मू-कश्मीर राज्य में परिणत हुई।
श्रीमती इंदिरा गांधी
इन्दिरा जी ने देश में आपात स्थिति की घोषणा की। उनके इस कदम की आलोचना भी खूब हुई। इंदिरा जी को पता था कि इस कदम से उनके प्रतिद्वंद्वी मजबूत होंगे और उनकी लोकप्रियता में ह्रास होगा। किन्तु उन्होंने अपने इरादे को अंगद के पांव की तरह मजबूत रखा। इंदिरा जी के समर्थको ने उनके इस अप्रिय किन्तु सही निर्णय का समर्थन किया। इंदिरा जी को हटाने का आंदोलन के पीछे जो साजिश रची गयी थी उनके समर्थक समझते थे। श्री जयप्रकाश नारायण जो उस वक्त इंदिरा विरोधी जन आंदोलन की मुख्य ताकत एवं मार्गदर्शक थे ने सेना और पुलिस दोनों को सरकार के आदेश नहीं मानने का आह्वान किया। इंदिरा जी को ऐसी स्थिति में देश को अराजकता की झौंक में डालने की साजिश से बचाने हेतु इमरजेंसी लगाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था। इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में श्रीमती गांधी और उनकी कांग्रेस को जबर्दस्त हार का सामना करना पड़ा। उत्तर भारत में कांग्रेस शून्य हो गयी थी। इंदिरा गांधी को चुनाव में हार के पश्चात नयी सरकार बनी। किन्तु श्रीमती गांधी दो वर्ष बाद पुन: सत्ता में आई और जनता का जबर्दस्त समर्थन भी मिला। इसी तरह प्रीवी पर्स समाप्त करना और बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर श्रीमती गांधी ने साबित कर दिया कि राष्ट्रहित के सामने उन्हें कोई दूसरा विकल्प मंजूर नहीं है। यही कारण है कि श्रीमती गांधी को हर युग में उनके फौलादी व्यक्तित्व एवं देश प्रेम के लिए याद किया जाता रहेगा।
संयोग कुछ ऐसा है कि 31अक्टूवर सरदार पटेल की जन्म जयंती है तो इसी तिथि को इंदिरा जी की पुण्यतिथि भी है। ये दो फौलादी व्यक्तित्व आज़ाद भारत के इतिहास के महत्वपूर्ण किरदार हैं। जिन्होंने प्रतिबद्ध होकर संपूर्ण दृढ़ता के साथ ऐसा कुछ कर दिखाया जिसने हिंदुस्तान के भूगोल में विस्तार किया।यह भारत की सत्य और अहिंसा की जीत के रुप में दर्ज रहेगी।
आज जब चीन द्वारा हमारे सियाचिन गलियारे और लद्दाख में पेंगाग झील इलाके में बस्तियां बसाने,सडक़,पुल आदि का निर्माण करने के चित्र देखते हैं तो ख़ून खौल उठता है। नागालैंड को उनका झंडा फहराने और पासपोर्ट देने की बात भी आम भारतीय को दुख पहुंचाती है। कश्मीर से पूर्ण राज्य का दर्जा छीनकर उसे केन्द्र शासित राज्य बनाकर कश्मीर के वजूद को ख़त्म करने की कोशिश भी निंदनीय है। पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर जिस हालात में है वह त्रासद है। ऐसी स्थिति में म्यांमार का दख़ल वहां बढ़ रहा है जिससे मणिपुर सुरक्षित नहीं कल के दिन वह म्यांमार में शामिल हो जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
कुल मिलाकर आज सरदार पटेल और इंदिरा जी बहुत याद आती हैं जिन्होंने देश की अखंडता संप्रभुता की सुरक्षा और विस्तार, बिना विस्तारवादी नीति को प्रश्रय दिए देश को स्थायित्व दिया। दोनों का अवदान हिंदुस्तान कभी विस्मृत नहीं कर पाएगा। ऐसे फौलादी, देश के इन महामानवों को देशवासियों का शत् शत् नमन।

बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteबहुत सी जानकारी मिली
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ एवं प्रणाम