कोल्हू का बैल बन गया है भारत का शिक्षित युवा
इंटरनेट और स्मार्टफोन के इस्तेमाल ने लोगों को सोशल मीडिया का आदी बना दिया है। आज के इस डिजिटल जमाने में सोशल मीडिया हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है। युवा पीढ़ी इस पर घंटों समय बर्बाद कर रही है, दोस्तों और परिवार से जुडऩे, जानकारी हासिल करने और मनोरंजन करने के लिए बढ़ चढक़र इसका इस्तेमाल हो रहा है। इसके बुरे प्रभाव भी हो सकते हैं, खासकर जब बात मानसिक स्वास्थ्य की आती है। अध्ययनों से पता चला है कि सोशल मीडिया युवाओं में तनाव का एक प्रमुख कारण बन गया है।
जब लोग सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताते हैं तो वे अपनी दूसरी गतिविधियों जैसे काम, पढ़ाई, दोस्ती और पारिवारिक रिश्तों से कटने लगते हैं। यह स्थिति उन्हें अकेला कर देती हैं और वो मानसिक तनाव का शिकार होते हैं। अक्सर हम दूसरों की खुशहाल जि़ंदगी की तस्वीरें देखते हैं, जो हमारे अंदर वैसा बनने की चाहत पैदा कर सकती हैं, हमारा दिमाग पर काबू नहीं रह पाता है। युवा अपनी तुलना दूसरों से करने लगते हैं, जिससे उनमें हीन भावना और तनाव पैदा होता है।
गाजियाबाद सिटी हॉस्पिटल में मनोरोग विभाग के डॉक्टर ए. के. कुमार बताते हैं कि आज युवा देर रात तक स्मार्टफोन का यूज करते हैं जिससे उनका रूटीन सिस्टम गड़बड़ा गया है। डॉ. कुमार आगे बताते हैं कि लेट नाइट सोने से हमारी नींद पूरी नहीं होती है जो हमें चिड़चिड़ा बना देता हैं। रात को देर तक फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने से आंखों में नींद के लिए जिम्मेदार मेलोटोनियम हॉर्मोन रिलीज नहीं हो पाता है।
फोमो (फियर ऑफ मीसिंग आउट): सोशल मीडिया हमें लगातार यह एहसास दिलाता है कि हम कुछ न कुछ मिस कर रहे हैं। यह डर जिसे फोमो के नाम से जाना जाता है, मानसिक तनाव और चिंता का कारण बन सकता है।
साइबर बुलिंग : कई बार सोशल मीडिया पर युवाओं को ऑनलाइन उत्पीडऩ और धमकियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनमें मानसिक तनाव पैदा होता है। आजकल सोशल मीडिया में फूहड़पन और अभद्रता ज्यादा पाई जाती है, जिससे युवाओं का वास्तविक दुनिया से जुड़ाव कम होता है और वे एक काल्पनिक संसंसार में वास करने लग जाते हैं।
जब भी बात संपूर्ण स्वास्थ्य की होती है तब शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक सेहत को लेकर भी ध्यान देते रहना आवश्यक हो जाता है। अध्ययनों से प्रमाणित होता है शरीर और मन एक दूसरे के पूरक होते हैं, इनमें से एक में भी होने वाली समस्या का असर दूसरे की सेहत को प्रभावित कर सकता है। पिछले कुछ वर्षों में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं के मामले तेजी से बढ़ते हुए देखे गए हैं। विशेषकर युवाओं में तनाव-अवसाद की समस्या तेजी से बढ़ती हुई रिपोर्ट की जा रही है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस तरह की समस्याओं को गंभीरता से लेते हुए इनके विशेष प्रबंधन की सलाह देते हैं।
डॉक्टर्स बताते हैं, बच्चों और युवाओं में बढ़ती मानसिक स्वास्थ्य समस्या के लिए कोविड-19 महामारी को एक प्रमुख कारक के तौर पर देखा जा रहा है। कई लोगों में लॉन्ग कोविड की समस्या के रूप में भी तनाव-अवसाद के मामले देखे जा रहे हैं। अक्सर इस तरह की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जाता है, ये गंभीर रूप ले सकती हैं।
लंबे समय तक बने रहने वाली तनाव की समस्या उच्च रक्तचाप का भी कारण बन सकती है जिसका असर प्रतिरक्षा प्रणाली की कमजोरी और हृदय रोग जैसी समस्याओं को बढ़ाने का कारण बन सकता है।
बार-बार चिड़चिड़ापन या गुस्से की समस्या: तनाव-अवसाद जैसी समस्याओं को व्यक्त कर पाने की असमर्थता की स्थिति में अक्सर आपको चिड़चिड़ापन या गुस्सा आने की समस्या हो सकती है। इसके अलावा आपके व्यवहार में परिवर्तन आना, काम में मन न लगना, लोगों के साथ समय बिता पाने में कठिनाई महसूस होना भी तनाव की समस्या का संकेत हो सकता है। इन लक्षणों पर ध्यान देते रहने और समय पर मनोचिकित्सक की सलाह लेना आवश्यक हो जाता है।
पुणे की एक कार्पोरेट में काम करने वाली युवती एना सेबेस्टिन की दो महीने पूर्व मृत्यु हो गयी। वह सीए थी। युवती की मां ने कंपनी के चेयरमैन को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि उनकी बेटी को काम के इतने बोझ तले डाल दिया गया था कि उसे दिन रात बिना सोए काम करना पड़ा। छुट्टियों के दिन भी काम करना पड़ता था। मृत युवती ने 18 मार्च को कंपनी में काम करना शुरू किया था। मुश्किल से चार महीने पूरे नहीं हुए कि उसको दिल का दौरा पड़ गया और वह चल बसी। इस घटना से कार्पोरेट की कार्य संस्कृति पर भी एक गम्भीर प्रश्न उठता है कि वे अपने यहां काम करने वालों पर काम का इतना बोझ डाल देते हैं कि उन्हें जान से हाथ धोना पड़ता है।
दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के मनोचिकित्सक डा. राजीव मेहता ने इस विषय पर एक पुस्तक लिखी है जिसमें तनाव से बचने के तरीके बताये गये हैं। डा. मेहता लिखते हैं कि दिमाग शरीर की हर क्रिया को नयंत्रित करता है। जब शरीर पर तनाव बढ़ता है तो ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है जिससे दिल का बोझ बढ़ जाता है और दिल की धडक़नों पर बुरा असर पड़ता है। इस स्थिति में हृदय और मस्तिष्क पर घातक असर पड़ता है।
निजी कंपनियों के काम का दबाव और ड्यूटी के लंबे समय से तनाव बढऩे लगता है। ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसियेशन ने एक सर्वे में पाया है कि 53 प्रतिशत भारतीय काम के बोझ और लम्बनी शिफ्ट के कारण तनाव में रहते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानि डब्ल्यूएचओ और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के अनुसार 2016 में लंबी काम करने से 7 लाख 45 हजार लोगों ने मस्तिष्काघात, हृदयाघात और दिल की बीमारी की वजह से दुनिया को अलविदा कह दिया। ऐसे मामले वर्ष 2000 में 29 प्रतिशत और बढ़ गये। इनमें से अधिकतर लोग हफ्ते में 55 घंटे से ज्यादा काम कर रहे थे। भारत में कंपनियां 9 से 12 घंटे प्रतिदिन काम करवाती है और वह भी रविवार को छोडक़र। सफ्ताह में 72 घंटे तक काम करना पड़ता है।
एना की मौत पर अफसोस जाहिर करने की बजाय हमारी वित्तमंत्री ने सुझाव दे डाला कि शिक्षण संस्थाओं में स्ट्रेस मैनेजमेंट का विषय पढ़ाया जाना चाहिए ताकि युवा तनाव को झेल सकें। कुछ लोग युवाओं को योगा का नुस्खा समझाते हैं कि प्रतिदिन पतंजलि का योगाभ्यास करें जिससे बोझ से उत्पन्न दबाव को निपटा सकें। कार्पोरेट को इससे सहारा मिलता है और लम्बी समय तालिका को वे न्यायोचित ठहराने की कोशिश करते हैं।
कई युवा लैपटॉप पर 12-16 घंटे आंख गड़ाये रहते हैं और अंगुलियां घुमाते हैं। कुछ औद्योगिक घराने इसमें अपवाद हो सकते हैं जो अपने कर्मचारियों को स्वास्थ्य को लेकर चिन्ता करते हैं।
भारत युवा प्रधान देश है। दुनिया के सबसे अधिक युवा भारत में रहते हैं। उन्हें नौकरी के लिए हर शर्त मंजूर करनी पड़ती है। ुपढ़े-लिखे युवा मोटा पैकेज के लालच में अपनी जवानी की आहुति दे बैठते हैं। परिणामस्वरूप उन पर निर्भर करने वालों का जीवन तो सुखद हो जाता है किन्तु नौकरी करने वाले व्यक्ति कोल्हू के बैल की तरह चक्कर काटते रहता है। उसकी आंखें महीने के अंत में मिलने वाले पैकेज पर रहती है और आठ-दस वर्ष काम करने के बाद उसका जीवन बैल से भी बदतर हो जाता है।
आदरणीय आपने बहुत सामायिक विषय पर नजर डाली है। आज का लगभग प्रत्येक युवा तकनीकी संयंत्रों से घिरा हुआ है, मोबाइल लैपटॉप कंप्यूटर आज युवाओं की जिंदगी का एक बहुत बड़ा हिस्सा दखल करके बैठे हुए हैं। आपने समस्त उन दुष्परिणामों पर निगाह डाली है और उनका क्रमवार उल्लेख किया है जो दुष्परिणाम आज के युवाओं को झेलना और देखने पड़ रहे हैं। आपने उड़ती हुई नींद से लेकर छुट्टियों में भी काम करते रहने की प्रवृत्ति का जो उल्लेख किया है वही कारण है कि आज बहुत से युवा अपना बुढ़ापा भी संभवत नहीं देख पाएंगे। आप जैसे चिंतक अपनी लेखनी से समाज को और समाज से जुड़े हुए अप्रत्यक्ष दोषियों को भी उनके दोष की ओर इंगित करते हैं जिनमें से वह कंपनियां है जो युवाओं को लालच देकर उन्हें सुखद कल के आवाज में आज का सुख चैन छीन रहे ऐस ज्वलंत सामाजिक विषयों को अपने आलेख का साधन बनाने हेतु मैं आपको कोटि-कोटि धन्यवाद व्यापित करता हूं।
ReplyDeleteरवि प्रताप सिंह
राष्ट्रीय अध्यक्ष~शब्दाक्षर