धूएं की धुन्ध में छिपने की बजाय आग किसने लगायी है पता लगाइये

 धूएं की धुन्ध में छिपने की बजाय 

आग किसने लगायी है पता लगाइये

प्राय: दो सौ वर्ष पहले मारवाड़ी समाज ने अपनी मरुभूमि छोडक़र बंगाल के उन स्थानों में बसना शुरू किया था जहां आवागमन के रास्ते भी नहीं थे। उन बीहड़ स्थानों पर न सुविधा थी न सुरक्षा। फिर भी देशावर में रोजगार की तलाश में समाज बन्धुओं ने आकर डेरा डाला। उत्तर बंगाल के बीहड़ पहाड़ों, असम, अरुणाचल के जंगलों में भी जा बसे और उसे अपनी कर्मभूमि भी बनाई। आधुनिक समय की बात करुं तो श्री रामनाथ गोयनका (इंडियन एक्सप्रेस क मालिक) पर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने शिकंजा कसा। दुनिया की सबसे बड़ी उनकी जूट मिल का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। लेकिन रामनाथ जी ने घुटने नहीं टेके। श्री जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में इन्दिरा हटाओ मुहिम के अगुआ बनकर देश में राजनीतिक परिवर्तन के आंदोलन में अहम् भूमिका भी निभाई। मैं व्यक्तिगत तौर पर इन्दिरा जी का प्रशंसक रहा हंू पर आपातकाल के बाद ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ राष्ट्रीय कवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता के नारे के साथ आंदोलन को सलाम भी करता हूं क्योंकि विचार स्वतंत्रता एवं अहिंसक आंदोलन जनतंत्र के दो मुख्य स्तम्भ होते हैं। यह बात और है कि सभी पार्टियों ने मिलकर जनता पार्टी में अपना विलय किया और इन्दिराजी को हटाने के उपरान्त जनता पार्टी की सरकार दो वर्ष के बाद ही धराशाई हो गई। रामनाथ गोयनका एक उद्योगपति थे, राजस्थानी प्रवासी थे। चलिये रामनाथ गोयनका जैसी हिम्मत सबमें नहीं होती। मैं एक दूसरा उदाहरण देता हूं- कोलकाता में लगभग पन्द्रह वर्ष पहले सॉल्टलेक क्षेत्र में एक स्कूली छात्रा रोमा झंवर का कुछ गुण्डों ने अपहरण कर लिया। क्लास 9 की छात्रा रोमा ने उन समाजविरोधी तत्वों का मुकाबला किया। पुलिस को बाध्य किया कि वह कारवाई करे। उन अपराधियों की पहचान की और अन्त में गुण्डे पकड़े गये। यह मारवाड़ी समाज की एक साधारण परिवार की लडक़ी के साहस की कहानी है जिसके माता-पिता कोई राजनीतिक पार्टी के नेता नहीं थे और न ही वह किसी बड़े अमीर पिता की बेटी थी जो पैसे के बल पर न्याय दिला पाता।

यह मैं इस संदर्भ में लिख रहा हूं जब पिछले सप्ताह कई सूत्रों से मेरे पास एक खबर आई कि पार्क सर्कस के पास क्वेस्ट मॉल में किसी मारवाड़ी महिला के साथ बदसलूकी की गई। यह भी खबर वायरल हुई कि पुलिस ने डायरी लिखने से भी मना कर दिया। सोशल मीडिया में यह घटना आग की तरह फैलाई गई। परिणामस्वरूप बहुत से संभ्रान्त मारवाड़ी समाज के बन्धुओं ने इस घटना का प्रतिवाद करने की बजाय यह निर्णय लिया कि उनके परिवार का कोई भी क्वेस्ट मॉल नहीं जायेगा। यानि मार्केट का ही बॉयकॉट करने की मुहिम छेड़ी गई। इसके परिणामस्वरूप क्वेस्ट मॉल में खरीददारों की संख्या काफी कम हो गई। यहां यह बता दूं कि कोलकाता महानगर का यह बड़ा मॉल किसी मशहूर मारवाड़़ी उद्योगपति की ही धरोहर है। इस कथित घटना और उसके परिणामस्वरूप कानाफूसी का जबर्दस्त दौर चला। हमने मामले की तहकीकात की। यह एक संयोग है कि पिछले दो माह से मैंने भी इसी क्वेस्ट मॉल के निकट अपना आसरा बना लिया है। यह इलाका विशेषकर क्वेस्ट मॉल के पीछे अल्पसंख्यकों का बाहुल्य है और पूरे क्षेत्र को मिलीजुली आबादी वाला मोहल्ला कहा जा सकता है। स्थानीय वार्ड पार्षद से मेरा निरन्तर सम्पर्क है और क्षेत्र में मैंने राहत सेवा के कई कार्य किये हैं। मेरे घर के बगले में रहनेवाली एक संभ्रान्त मारवाड़ी महिला प्रतिदिन कई सौ लोगों को दोपहर का भोजन करवाती है और यह सिलसिला पिछले कई वर्षों से चला आ रहा है। पास में ही पंजाब बिरादरी का भवन है जहां शादियां एवं सभी जातियों के सामुदायिक कार्यक्रम और उत्सव होते रहते हैं।

स्थानीय कराया पुलिस स्टेशन में उपरोक्त घटना की कोई डायरी (एफआईआर) नहीं है। प्रभारी का कहना है कि ऐसी कोई घटना की उन्हें जानकारी नहीं है। क्वेस्ट मॉल के प्रबन्धकों ने भी ऐसी किसी घटना से पल्ला झाड़ लिया। मैंने बहुत लोगों से कथित घटना का कोई सुराग की जानकारी लेनी चाही। आश्चर्य है कि घटना सबकी जुबान पर है पर कोई यह बताने को तैयार नहीं कि किसके साथ, कहां और कब ऐसी शर्मनाक वारदात हुई। कई लोगों ने कहा कि स्थानीय एक विशेष समुदाय के समाज विरोधियों की डर और उस समुदाय को सरकार का प्रश्रय की वजह से कोई बोलना नहीं चाहता। जिनके साथ गन्दी हरकत की गई वह या उनके आत्मीय स्वजन आगे आना नहीं चाहते।

कुल मिलाकर सारे शोर शराबे के बावजूद कोई सटीक जानकारी नहीं दे पा रहा है। इसी क्वेस्ट मॉल के बारे में एक डेढ़ वर्ष पहले भी कुछ ऐसी ही घटना की कहानी दवानल की तरह फैली थी। उस के बारे में भी जितने मुंह उतनी बात थी।

विडम्बना है कि क्वेस्ट मॉल के पास ही लड़कियों की एक मशहूर स्कूल है। अगर क्षेत्र में ऐसी घटनायें होती हैं तो किसी भी दिन स्कूल की लड़कियों के साथ भी अप्रिय घटना घट सकती है। मैं बता नहीं सकता कि क्वेस्ट मॉल की घटनाएं वास्तविक हैं या महज अफवाहें फैलायी गई हैं पर इतना जरूर कहूंगा कि इसमें लेश मात्र भी सच्चाई है तो स्कूल के प्रबंधक एवं समाज के वरिष्ठ लोगों के होंठ क्यों सिले हुए हैं? क्या उन्हें अंदाज नहीं है कि क्वेस्ट मॉल से कुछ हाथ की दूरी पर स्थित स्कूल की लड़कियां कब तक सुरक्षित रहेंगी। क्या वे उन लड़कियों के साथ किसी घिनौनी या अप्रिय घटना की प्रतीक्षा कर रहे हैं?

आश्चर्य है कि हम राजस्थानी मीरा की भक्ति और राणा प्रताप के शौर्य के साथ अपने संस्कारों को तो जोड़ते हैं किन्तु वक्त पड्ने पर हम कानाफूसी के अलावा कुछ नहीं कर पाते। मुझे याद है यहीं पर आइस स्केटिंग रिंक बना था और शुरुआती दिनों में ही किसी लडक़ी से छेड़छाड़ को लेकर गोली चल गई थी। उसी के बाद प्रबन्धकों ने आइस स्केटिंग रिंक को हमेशा के लिए बन्द कर दिया था। फिर उसी जगह पिछले पच्चीस तीस वर्षों से विभिन्न प्रकार की प्रदर्शनियां आयोजित होती रही पर किसी घटना की कोई सुगबुगाहट भी नहीं सुनी। उसी के पास एक बाजार में किसी महिला के साथ गलत व्यवहार या दुष्कर्म की घटना हो गई और इस बात का पता लगाने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया कि ऐसा कौन कर रहा है। अन्याय करने से बड़ा गुनाह अन्याय सहना होता है।

मेरी यह विनती है कि ऐसी घटनाओं की धुंध में हर अपना चेहरा छिपाने की कोशिश न करें। या तो इस तरह ‘अफवाहों’ को प्रश्रय नहीं दें और अगर सचमुच में ऐसी कोई घटना घटी है तो सरकार एवं पुलिस प्रशासन की नींद हराम कर दें।

कैसी विडम्बना है कि कोलकाता में रहनेवाले बीस लाख मारवाड़ी एवं उनके जन प्रतिनिधि सारे मामले पर अपनी तटस्थता बनाये हुए हैं। ना तो वे सामने आकर घटना की अधिकृत जानकारी दे पा रहे हैं और न ही इसका प्रतिवाद। ऐसी तटस्थ स्थिति समाज के भविस्य हेतु खतरनाक साबित हो सकती है।

समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध

जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी इतिहास।

(राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के काव्य परसुराम की प्रतीक्षा से)

Comments

  1. बहुत ही सार्थक और महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए गए हैं । यह सच है कि आग लगने के बाद भी लोग घर फूंक तमाशा ही देखने के आदी हो गये हैं। वर्तमान समय में सरकार और शासनीय व्यवस्थाओं से आम आदमी दूर रहना चाहता है। उसमें डर है कि यदि वह मुंह खोलता है तो उसको न्याय मिलेगा कि नहीं इस बात का असमंजस रहता है। कलकत्ता से कोलकाता बनने में मारवाड़ी समाज का बहुत बड़ा योगदान रहा है। दोनों समुदाय एक साथ मिलकर रहते थे। आज राजनीति के कारण लोग आपसी विश्वास खो रहे हैं। बंगाल में स्थितियों में बदलाव महसूस किया जा रहा है लेकिन बड़े लोगों का आवाज न उठाना भी भयावह है। आगे चलकर इसके परिणाम कहीं न कही सभी के लिए नुकसानदायक हो सकता है। हाथ मलने के सिवाय कोई रास्ता नहीं होगा। आपके रविवारीय परिशिष्ट लोगों को आगाह करते हैं। सोचने को बाध्य करते हैं। वरिष्ठ संपादक के रूप में आपने कलकत्ता के पांच छ दशकों को नजदीक से देखा है। आपकी शंका वाज़िब हैं।
    डॉ वसुंधरा मिश्र, कोलकाता

    ReplyDelete

Post a Comment