भारतीय समाज में नारी का सच

भारतीय समाज में नारी का सच

जब हम भारतीय में महिलाओं की स्थिति पर चर्चा करते हैं तो एक वर्ग यह कहकर अपनी पीठ थपथपा ले कि आजादी के 77 सालों में हमारी नारी शक्ति चांद पर पहुंच गई हैं, फाइटर उड़ा रही हैंं, ओलंपिक पदक जीत रही हैं, बड़़ी-बड़ी कार्पोरेट कंपनियों की पदाधिकारी बन गई हैं एवं सर्वशेष भारत की दो बार राष्ट्रपति भी बनी हैं। लेकिन व्यवहारिक तौर पर देखें तो यह संख्या महिलाओं की आबादी का एक अंश मात्र ही है। जो बड़ी उपलब्धियों ऊपर गिनाई गई हैं उसका भी छिन्द्रन्वेषण किया गया तो निराशा हाथ लगेगी। अंतरिक्ष में पहुंचने वाली भारतीय महिला लेकिन अमेरिका की नागरिक है। उसे वहां मौका मिला। पदक लाने वाली भारतीय महिला के साथ ओलंपिक में जो भी हुआ उससे कहीं अधिक अपने देश में उन्हें जलील होना पड़ा, उसकी अस्मिता के साथ खिलवाड़ करने की शिकायत को लेकर जब वह धरने पर बैठी वहां भी उसे जिल्लत झेलनी पड़ी। कार्पोरेट में बड़े पदों पर बैठी चन्दा कोचर को भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तारी के बाद जेल की हवा खानी पड़ी एवं  सेबी की चेयरपर्सन माधवी पूरी बुच गम्भीर आरोप के घेरे में हैं। भारत की दो बार बनी महिला राष्ट्रपति के बारे में कई जिम्मेवार लोगों ने एक ही बात कही कि यह तो रबर स्टाम्प है। खैर, चलो उनकी उपलब्धियों फिर भी प्रेरक हैं। व्यक्तिगत रूप से उनका हस्र जो भी हुआ हो। यह कड़वा सच है कि भारतीय समाज में महिलाओं को द्वयम दर्जे का नागरिक माना जाता है। जिसकी शुरूआत घरों से होती है। एक मध्यम श्रेणी के घर में बेटा और बेटी दोनों हैं और हाथ तंग है तो वह बेटे को पढ़ाने को प्राथमिकता देता है। यही कारण है कि अधिक लड़कियां कुछ वर्ष पढऩे के बाद ‘ड्रोप आउट’ हो जाती हैं क्योंकि उन्हें पढ़ाने की बजाये वंशवृद्धि एवं वंश रक्षा के काम की शिक्षा दी जाती है। यही नहीं उन्हें सिखाया जाता है कि कैसे ससुराल में गुडिय़ा बन कर रहना है। सब कुछ सहना-कुछ न कहना, मेरी बहना। यही पाठ पढ़ाया जाता है। उच्च मध्य या सम्पन्न वर्ग में महिलाओं को शिक्षा या उच्च शिक्षा की सुविधा मिल रही है। एक वर्ग की महिलायें जॉब में जा रही है एवं पैकेज के कारण वे अच्छी स्थिति में हैं। कुछ समय पहले हमने महिलाओं की स्थिति पर परिचर्चा हेतु एक अंतरंग गोष्ठी की थी। कोलकाता की एक नामीग्रामी कॉलेज की प्रिंसिपल ने वहां बताया कि औसतन महीने में एक लडक़ी अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर यह शिकायत करती है कि वह अपने घर में सुरक्षित नहीं है।


महिलाओं की स्थिति पर और अधिक मन्थन करेंगे तो भयावह स्थिति सामने आती है। आंकड़ें बताते हैं कि हर पन्द्रह मिनट पर भारत में एक महिला का रेप होता है। तीसरे घंटे महिला की हत्या, अपहरण हो रहा है। लेकिन इसे हम यह कहकर टाल देते हैं कि इतने बड़े देश में ऐसा होता रहता है या फिर आंकड़ों की प्रमाणिकता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया जाता है। शिक्षा के साथ बदलाव हुआ है एवं हमारी शिक्षा से परिदृश्य में परिवर्तन भी हुआ है पर ग्राम-गंज में स्थिति की भयावहता डराने एवं चौंकाने वाली है। इसके पीछे कारण का अनुसन्धान किया जाये तो हम पायेंगे कि ग्रामीण इलाकों या कस्बों में जमींदारी या सामंतवादी मानसिकता काम कर रही है। जो बाहुबली हैं स्त्री पर अपना अधिकार समझते हैं। भले ही जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हो गया हो पर बलशाली या बाहुबलियों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होता है। बदले में वे नेताओं को चुनाव जिताने में मदद करते हैं। इसके एवज में उनको अभय दान मिलता है। अपराधी जब पकड़े जाते हैं तो राजनीतिक नेता उन्हें छुड़ाने  के वादे को अंजाम देते हैं। यह कमोबेश सभी पार्टियों पर लागू होता है। अत: जब तक सामंतवादी मानिसकता रहेगी अपराध कम नहीं होंगे। कभी कभार बाहुबलियों की आपसी स्पद्र्धा में उन्हें हथियार डालने पड़ते हैं।

खैर मेरा इरादा नकारात्मक बातों को उजागर करने का नहीं है बल्कि वस्तुस्थिति तक पहुंचने का है।

समाज की महिलाओं का एक बड़ा तबका आज भी सामाजिक बंधनों को पूरी तरह तोड़ नहीं पाया है, उनका अपना स्वतंत्रत अस्तित्व नहीं या यंू कहें कि हमारा पितृसत्तात्मक समाज उन्हें जन्म से ही ऐसे सांचे में ढालने लगता है कि वे अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिये पुरुषों का सहारा ढंूढती है। वहीं यह भी सत्य है कि जब जब कोई स्त्री अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहती हैं तब तब न जाने कितने रीति-रिवाजों, परंपराओं, पौराणिक आख्यानों की दुहाई देकर उसे गुमनाम जीवन जीने पर विवश कर दिया जाता है।

हमारे देश में मध्यम श्रेणी का समाज ही सबसे सक्रिय है। संख्या की दृष्टि से भी वह सर्वाधिक है एवं हर क्षेत्र में मध्यम श्रेणी के लोग ही बाहुल्य में हैं। चाहे वह राजनीतिक हो या आध्यात्मिक, शैक्षणिक हो या आर्थिक मध्यम श्रेणी ही निर्णायक भूमिका में रहती है। मध्यम श्रेणी कुछ खास अवधारणाओं में जीती है। अभी शिक्षक दिवस पर एक शिक्षिका ने गुरु के रूप में द्रोणाचार्य के आदर्श का बखान किया। लेकिन उनके पास इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं है कि द्रोणाचार्य ने धनुष विद्या में पारंगत एकलव्य से गुरु दक्षिणा के रूप में अंगूठा मांग लिया था ताकि धनुष चलाने में वह द्रोणाचार्य के परम शिष्य अर्जुन से कहीं आगे नहीं निकल जाये। एक गुरु अपने शिष्य को अपाहिज बना दे, यह कैसे आदर्श हो सकता है। यही नहीं ऋषि के श्राप से अहिल्या पत्थर बन गई। फिर भगवान श्री राम ने अपने पांव से स्पर्श कर उसका उद्धार किया। द्रौपदी का चीरहरण हुआ, द ुर्योधन ने भरी सभा में कहा इसे नंगा कर कहा मेरी जंघा पर बैठाओ। धर्मराज युद्धिष्ठिर और कई हाथियों जितने बलशाली  भीम समेत सभी पांडव भाई ने मौन स्वीकृति प्रदान की। भगवान कृष्ण ने अपनी धर्म बहन द्रौपदी की लाज बचाई। यानि कृष्ण नहीं होते तो द्रौपदी की इज्जत लुट जाती। क्या महिलायें अब कृष्ण की प्रतीक्षा करेंगे कि वे आयें और उनकी लाज बचायें? या फिर अपने उद्धार हेतु भगवान राम के पांच स्पृश की। अगर हम इस तरह की आलौकिक परम्पराओं की कथा को वायरल करेंगी तो क्या कभी ऐसा समाज बना पायेंगे जिसमें नारी सुरक्षित हो।

यह बात कटु है पर सत्य है कि आज सडक़ पर महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की अप्रिय घटनायें जरूर होती है किन्तु बन्द कमरे में उनके साथ रेप भी होता है और वह मुंह नहीं खोल सके इसलिए उसकी नृशंस हत्या कर दी जाती है। दिल्ली में निर्भया को चलती बस में रेप कर मारा गया और आरजी कर अस्पताल के सेमीनार रूप में बलात्कार कर उसकी बर्बर हत्या की गई। इसी तरह और भी कांड है। कुल मिलाकर महिलाएं अपेक्षाकृत सडक़ पर सुरक्षित हैं लेकिन तथाकथित सुरक्षित स्थानों पर पाश्विक अत्याचार की शिकार होती है।

मेरा मकसद निराशा फैलाना नहीं है। स्थिति से आपको रूबरू करना है। जब तक नारी सजग नहीं होगी एवं अपने भविष्य का निर्णय खुद नहीं करेंगी ऐसी स्थिति से नहीं उबरेंगी।

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