भारत की बेटी विनेश फोगाट
अपनों ने प्रताडि़त किया और गैरों
ने तो बाहर का रास्ता ही दिखा दिया
पेरिस ओलंपिक के फाइनल से अयोग्य ठहराई गई भारत की बेटी विनेश फोगाट सही मायने में इस देश के लिए सबसे योग्य बेटी साबित हुई है। साथ ही उसने भारतीय नारी के बारे में पुरानी वेदना को भी फिर से उभार दिया जिसमें कहा गया है- ‘अबला नारी तेरी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी।’ घर में सताई गयी, लांछित हुई और परायों ने तो बाहर का रास्ता ही दिखा दिया। सभी प्रतियोगिताओं में उसने बेहतरीन प्रदर्शन कर देश के करोड़ों लोगों का जीत लिया लेकिन फाइनल में उसे डिसक्वालिफाई हो जाने से 140 करोड़ भारतीयों का सपना भले टूट गया हो लेकिन उसने साबित कर दिया कि वह एक जुझारू योद्धा है। देश में जिन झंझावातों से जूझकर वो ओलंपिक के मैदान तक पहुंची और वहां एक के बाद एक मैच जीती वह अपने आप में बेहद रोमांचक और साहसिक कदम था। उसने महिला फ्री स्टाइल 50 किलोग्राम सेमीफाइनल में क्यूबा की युस्नेलिया गुजमैन लोपेज को 5-0 से हराया था। उसके साथ ही वह फाइनल में पहुंच गई थीं और ऐसा माना जा रहा था कि उसने देश के लिए एक मेडल पक्का कर दिया था। हालांकि यह देश को गहरा आघात है कि विनेश फोगाट फाइनल से डिसक्वालिफाई हो गई। विडम्बना यह है कि गोल्ड मेडल मुकाबले से पहले वजन के दौरान उसका वजन 100 ग्राम अधिक पाया गया और महज इसलिए उसे अयोग्य करार दे दिया गया। हालांकि यह इतनी बड़़ी बात नहीं थी लेकिन ओलंपिक समिति को ऐसा क्यों करना पड़ा रहस्य है। भारतीय ओलंपिक समिति ने कहा यह खेदजनक है कि भारतीय दल महिला कुश्ती 50 किलोग्राम वर्ग से विनेश फोगाट के अयोग्य घोषित होने की खबर शेयर कर रहा है। रातभर टीम द्वारा किये गए बेहतरीन प्रयासों के बावजूद उनका वजन 50 किलोग्राम से कुछ ग्राम अधिक पाया गया। विनेश के पास साक्षी मलिक के बाद ग्रीष्मकालीन खेलों में पदक जीतने वाली दूसरी महिला पहलवान बनने का मौका था।
अपने ही देश में लांछित
उल्लेखनीय है कि विनेश फोगाट ने अपना वजन 53 किलो से घटाकर 50 किलो भार वर्ग में हिस्सा लिया था। किसी भी खिलाड़ी के वजन की जानकारी रखना उसके कोच का काम होता है। कोच की जिम्मेदारी होती है कि वो अपने खिलाड़ी को हर उस चीज से दूर रखें जिससे वजन बढऩे की आशंका हो। कोच को डायटिशियन के साथ मिलकर खाने पीने का ध्यान और समय समय पर उनक भार का ट्रैक रखना होता है। फोगाट अगर भार की वजह से आलंपिक से बाहर हुई है तो यह जिम्मेदारी उनके कोच और डाइटिशियन की है।
विनेश ने जिस जद्दोजेहाद से स्वर्ण लाने का उपक्रम किया था वह काबिले तारीफ है। महिला पहलवानों ने तब कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह कोच पर महिला पहलवानों का यौन उत्पीडऩ, अभद्रता, क्षेत्रवाद जैसे गंभीर आरोप लगाए थे। वह अनशन पर बैठीं। उस पर भी कोई कार्रवाई ना होते देख उन्होंने संसद के बाहर यौन हिंसा की शिकायत पर भारत सरकार की अवज्ञा हेतु जो प्रदर्शन किया था उसमें दिल्ली पुलिस ने उनके साथ जिस तरह मारपीट की उसके बावजूद विनेश ने देश के लिए ना केवल वजन घटाना बल्कि सब कुछ अपमान भुलाकर दिलोजान से ओलंपिक में खेला। इस दु:खद खबर से उनकी मित्र साक्षी मलिक के ये शब्द मेरे दिल घबराया हुआ और परेशान है। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा है कि विनेश ने जो किया है वह कल्पना से परे है। यह शायद इस आलंपिक में किसी भारतीय एथलिट के साथ हुई सबसे विनाशकारी घटना है।
ओलंपिक ने जब बाहर का रास्ता दिखा दिया
यकीनन यह घटना विनेश के लिए ही नहीं समूचे देश और उन सब खेल प्रेमियों के लिए दिल दुखाने वाली बात है जो मेहनत कर देश के लिए जी-जान से खेलते हैं। उनका साथ यदि भारत सरकार ना दे, उनकी बात ना सुने फिर भी देश के लिए खेलने वाली पहलवान विनेश बधाई की पात्र है। खैरियत है प्रधानमंत्री जी ने इस दु:खद निर्णय पर कम से कम खेद व्यक्त कर दिया है। विनेश घबराओ नहीं-आज अंधियारा है कल सुबह होगी। तुम्हारे देशप्रेम और मेहनत को सलमा। दुर्भाग्य है कि विनेश द्वारा यौन उतपीडऩ के विरुद्ध अपने आंदोलन यहां तक कि उनके अनशन के बावजूद प्रधानमंत्री जी चुप रहे। भाजपा सांसद बृजभूषण को कुश्ती अध्यक्ष पद से हटाना मजबूरी थी किन्तु वह स्थान उन्हीं के एक नजदीकी को देकर बृजभूषण कौ नैतिक बल दिया गया।
आज जब विनेश एक दर्दनाक हादसे के बाद जिस मानसिकता से गुजर रही है उसका शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।
और रही सही उम्मीद तब खत्म हो गई जब इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट (सीएएस) में सिल्वर मेडल दिये जाने को लेकर अपील भी खारिज कर दी गई। याचिका खारिज होने से केवल विनेश ही नहीं बल्कि 140 करोड़ देशवासियों को भी करारा झटका लगा है। भारत की स्वतंत्रता का 77वीं वर्षगांठ पर यह ओलंपियानी ने हमारे राष्ट्रीय जश्न को बेमजा कर दिया। अपने देश में यौन शोषण के विरुद्ध सुनहरी महिला पहलवान का आंदोलन सरकारी संवेदनहीनता की भेंट चढ़ गया और मेडल का सपना कोच और न्यूट्रिशन की बेवफाई का शिकार। ओलंपिक का पटाक्षेप तो हो गया किन्तु फोगाट के साथ घर में और घर के बाहर जो बेरहमी बरती गई उसे भारतवासी कभी भूल नहीं सकता।
कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में प्रशिक्षु कन्या के साथ जो जघन्य अपराध हुआ उसके शोर शराबे में शायद फोगाट प्रकरण की टीस दब गई है किन्तु भारत में एक जांबाज लडक़ी के शौर्य को उसके अपने ही देश में जिस निर्लजता के साथ धराशाई किया गया वह उस अभिमन्यू की याद दिलाता है जिसे उसके कथित रक्षकों ने घेर कर मार डाला था।
जब हमारी सामाजिक एवं न्याय व्यवस्था ही नारी के उत्थान की खलनायिक है तो ओलंपिक प्रशासन को क्या दोष दें जिसने भारत की बेटी को उसका पदक लूट कर बाहर का रास्ता दिखा दिया।
जीवन में कभी कभी अवसर आता है कि डिब्बे के सामने खङे है लेकिन रेल छुट जाती है इसलिए हमें अगली रेल का इंतजार करना चाहिए
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख पढकर विस्तृत जानकारी मिली
रविवारीय चिंतन
ReplyDeleteभारत की बेटी विनेश फोगाट - अपनों ने प्रताडि़त किया और गैरों ने तो बाहर का रास्ता ही दिखा दिया
on August 17, 2024
आपका लेख बहुत ही महत्वपूर्ण है। समाज अभी भी महिलाओं को आगे बढ़ते नहीं देख सकता। कोई न कोई प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक या ईर्ष्या वश उसे नीचा दिखाने में कामयाब हो ही जाता है।पेरिस ओलंपिक के फाइनल से अयोग्य ठहराई गई भारत की बेटी विनेश फोगाट अपने पूरे जी-जान से जुटीऔर सही मायने में इस देश के लिए सबसे योग्य बेटी साबित हुई लेकिन उसकी हार निराशा में बदल गई।
आपने ठीक लिखा कि साथ ही उसने भारतीय नारी के बारे में पुरानी वेदना को भी फिर से उभार दिया जिसमें कहा गया है- ‘अबला नारी तेरी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी।’ घर में सताई गयी, लांछित हुई और परायों ने तो बाहर का रास्ता ही दिखा दिया। सभी प्रतियोगिताओं में उसने बेहतरीन प्रदर्शन कर देश के करोड़ों लोगों का जीत लिया। वहीं
बंगाल की अभया की नृशंस तरीके से बलात्कार और फिर हत्या ने भी पूरे देश को हिला कर रख दिया।आम महिला और डॉक्टर महिला की स्थिति में कोई विशेष सुरक्षा विषयक सुधार नहीं हुआ है।अभी महिलाओं को और लड़ाई लड़नी बाकी है।
समाज केवल पुरुषों के अहम से नहीं चल सकेगा उसे दोनों को अहमीयत देनी होगी।
-डॉ वसुंधरा मिश्र, 18.8.24