बुद्धदेव भट्टाचार्य - एक सनातनी कॉमरेड
शीर्षक देने के पहले मुझे दुविधा हुई मेरे हिन्दूवादी बन्धु कहीं गलत न समझें कि सनातन शब्द का प्रयोग एक समर्पित माक्र्सवादी नेता के लिए क्यों कर दिया। मैंने हिन्दी शब्दकोष खंगाला तो पाया कि सनातन शब्द का अर्थ है-परंपरानुसार चला आता हुआ परंपरानिष्ट आर्थोडोक्स, सदा बना रहने वाला साश्वत, नित्य, अनादि और अनंत। बुद्धदेव बाबू को सनातनी कामरेड कहा जाय तो उनके राजनैतिक व्यक्तित्य पर एकदम फिट बैठता है।
छपते
छपते के हिन्दी दिवस कार्यक्रम उद्घाटन सत्र में बुद्धदेव बाबू। माइक पर सम्पादक
विश्वम्भर नेवर।
बुद्धदेव बाबू के अवसान से मुझे दु:ख तो हुआ पर आश्चर्य नहीं। विगत 3 वर्षों से वे बीमार ते। दरअसल बुद्धदेव बाबू थे ‘‘चेन स्मोकर’’। सिगरेट उनके मुंह या अंगुलियों के बीच रहती। परिणामस्वरूप उनके फेफड़े में सिगरेट ने अपना साम्राज्य बना लिया था। उनके फेफड़े छलनी हो गये थे। कुछ सुधार होता वे पार्टी कार्यालय 33 अलीमुद्दीन स्ट्रीट जरूर जाते। छात्र जीवन से वे माक्र्सवादी विचारक रहे। राजनीति उनके लिए आंदोलन थी पर मूलत: वे एक बुद्धिजीवी थे। कविता से उनको विशेष लगाव रहा। चाचा सुकतांत भट्टाचार्य के बहुत प्रेरित थे। बुद्धदेव बाबू दो कमरे के एक छोटे से फ्लैट में रहे, मुख्यमंत्री का पद उनके सादाजीवन उच्च विचार वाली जीवन शैली पर कोई फर्क नहीं डाल सका। यह भी एक संयोग है कि 59 पाम एवेन्यू के बहुमंजिला मकान जिसके भूतल में रहते थे, इसी मकान में कांग्रेस के प्रवीण नेता पूर्व मंत्री एवं सांसद प्रदीप भट्टाचार्य का भी फ्लैट था। राजनीतिक रूप से धूर विरोधी होते हुए भी प्रदीप बाबू और बुद्धदेव बाबू अच्छे पड़ोसी थे एवं सुख-दु:ख में एक दूसरे की खबर लेना नहीं भूलते थे। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद जब वे बीमार थे तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उनसे मिलने गयी और उन्होंने देखा कि बुद्धदेव बाबू के फ्लैट की हालत अच्छी नहीं थी। उन्होंने तुरन्त लोक निर्माण विभाग को कहकर फ्लैट के बाथरूम आदि की मरम्मत करवायी।
बुद्धदेव बाबू से मेरा नेता और पत्रकार का सम्बन्ध था। वे जब सूचना मंत्री थे तो राज्य सतरकार की बेरुखी की शिकायत लेकर मैं उनसे पहली बार राइटर्स बिल्डिंग में मिला। उनका मेरे प्रति रुख सहज नहीं लगा। लेकिन मेरी हाजिर जवाबी और अपनी बात को बेबाक कहने के मेरे लहजे से वे कुछ प्रभावित हुए और बाद में कलकत्ता सूचना केन्द्र में उनकी पार्टी की सांसद श्रीमती सरला माहेश्वरी ने उनसे जब मेरा परिचय करवाया तो बोले-‘‘इना के तो आमी जानी’’ और मेरे कंधे पर हाथ रखकर एक दो मिनट बात करते रहे।
इसी बीच सीपीएम के युवा नेता मोहम्मद सलीम के माध्यम से मेरा परिचय बुद्धदेव बाबू की पत्नी मीरा भट्टाचार्य से हुआ। वे बड़ी सरल और सात्विक महिला लगी। मेरी मीरा दी से कई बार मुलाकात हुई। फिर मैं मीरा दी की जगह उन्हें बऊदी बोलने लगा पर वे मुझे अपना भाई ही मानती थी। मुख्यमंत्री की पत्नी होने के बावजूद बऊदी ने कभी उसका अहसास नहीं करवाया। वे एक निजी कम्पनी में काम करती थी। कई बार पार्क स्ट्रीट और कैमक स्ट्रीट के संगम पर उनके दफ्तर में मैं उनसे मिला। एक दिन उस मकान में आते-जाते मेरा एक पुराना मित्र लिफ्ट में टकरा गया। बातचीत में उसने मुझे पूछा कि यहां कैसे आना हुआ। मैंने बताया कि उसके ऊपर वाले तल्ले में जो कम्पनी का कार्यालय है उसमें मुख्यमंत्री बुद्धदेव बाबू की पत्नी काम करती हैं। मैं नीचे उस मित्र से बात ही कर रहा था कि बऊदी भी उतर कर गाड़ी में बैठ रही थी। मित्र को मैंने कहा कि यही मुख्यमंत्री की पत्नी हैं। उसको आश्चर्य हुआ और उसने कहा कि इनको तो मैं लिफ्ट में कई बार देखता हूं। सीएम की पत्नी होकर कभी उसने किसी व्यक्ति को उसका आभास नहीं होने दिया।
बुद्धदेव बाबू राजनीतिक जीवन में भी सरल किन्तु स्पष्टवादी थे। ज्योति बसु के मंत्रिमंडल से उन्होंने यह कहकर त्यागपत्र दिया था कि ‘‘चोरेर मंत्रिमंडल थाकते चाई ना’’। उसको लेकर काफी हलचल हुई। ज्योति बसु का राजनीतिक कद बहुत बड़ा था। सीपीएम के वे निर्विवाद सर्वोच्च नेता थे। बुद्धदेव भी किन्तु खूंखार स्पष्टवादी थे। आज की राजनीति में तो इतना पैनापन नहीं चलता है। एक अन्तराल के बाद बुद्धदेव बाबू को पुन: मंत्रिमंडल में शामिल कराया गया। बाद में 6 नवम्बर सन् 2000 में उन्होंने ज्योति बसु के अवकाश लेने (अथवा पार्टी द्वारा दिलाये जाने) पर मुख्यमंत्री पद सम्हाला।
खांटी कम्युनिस्ट नेता होने के बावजूद बंगाल के औद्योगिकीकरण के लिए उनकी छटपटाहट सर्वविदित थे। टाटा को सिंगूर में कार उत्पादन का कारखाना लगाने हेतु बड़ी जमीन का बंटन कर दिया। बहु फसली जमीन का किसानों से लेकर टाटा को हस्तांतरण उनके औद्योगिकीकरण की बेताबी का चरमोत्कर्ष था। पर राजनीति के शतरंज में शायद पासा उलटा पड़ गया। ममता बनर्जी ने कृषकों की भूमि पर कथित रूप से उचित मुआवजा न देने को मुद्दा बनाकर बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया। उसके बाद के चुनाव में सीपीएम को राज्य से बेदखल होना पड़ा। बुद्धदेव बाबू स्वयं भी चुनाव हारे।
खैर, बुद्धदेव बाबू बंगाल के कद्दावर नेता के रूप में याद किये जाते रहेंगे। एक कवि, लेखक, पुस्तक प्रेमी, लाल चाय या काली कॉफी और सिगरेट के धुएं के बीच झांकता हुआ कामरेड हमेशा याद रहेंगे।
मेरा सौभाग्य रहा कि मेरे दो कार्यक्रमों में बुद्धदेव बाबू उपस्थित हुए। इसका श्रेय मोहम्मद सलीम को जाता है। छपते छपते द्वारा 30 मई 2002 को दो दिवसीय हिन्दी दिवस कार्यक्रम का भारतीय भाषा परिषद में उन्होंने उद्घाटन किया। हॉल खचाखच ही नहीं, क्षमता से कहीं अधिक लोग आये, बुद्धदेव बाबू को सुनने। कार्यक्रम का प्रारम्भ रवीन्द्र गीत से हुआ। मैंने देखा कि वे भी गा रहे थे। दूसरा जब बंगाल बाढ़ की विभीषिका से जूझ रहा था। सामने दुर्गापूजा। सरकारी कार्यालय बंद। मुझे जब जानकारी मिली कि दुर्गापूजा की वजह से कोई संस्था बाढ़ पीडि़तों के बीच जाकर कार्य नहीं कर पा रही है। मैंने बुद्धदेव बाबू को राहत का सेवा कार्य ऑफर दिया। वे राजी हुए। सर्कुलर रोड पर उनकी पार्टी कार्यालय के पास एक मंच बनाकर आठ ट्रक सामान भारत रिलीफ सोसाइटी की ओर से बाढग़्रस्त क्षेत्रों में भेजा गया। राहत सामान से लदी ट्रकों को हरी झंडी दिखाकर मुख्यमंत्री बुद्धदेव बाबू ने रवाना किया। वहां स्टेज से उन्होंने वक्तव्य भी दिया। साथ में मोहम्मद सलीम और सोसाइटी के उस वक्त अध्यक्ष चिरंजीलाल अग्रवाल मंच पर थे। मैंने कार्यक्रम का संचालन किया। बुद्धदेव बाबू सोसाइटी के कार्यकर्ताओं से मिले एवं सबसे बात की।
कामरेड
बुद्धदेव बाबू बंगभूमि सपूत के रूप में हमेशा याद किये जाते रहेंगे। एक सच्चे और
सनातन कामरेड के रूप में वे पक्के कम्युनिस्ट होते हुए भी मानवतावादी थे। धवल
वस्त्र उनको प्रिय था। सफेद कुर्ते में काले चन्दन के बटन उनकी पसन्द थी। चन्दन की
खुशबू उन्होंने आत्मसात की और चन्दन की ही तरह सारा विष आत्मसात करते हुए उन्होंने
संसार से विदाई ली।

आदरणीय...वामपंथियों से सबका न होने के कारण या न रखने के कारण पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत विभूति बुद्धदेव भटाचार्य जी के बारे में अधिक नहीं जानता था मैं।...उनके कार्यकाल के समय से सिर्फ इतनी बातें ज्ञात थीं... कि वो हद दर्जे के सिगरेट प्रेमी थे, सादगी पसंद थे, और अपनी पार्टी में इतने लोकप्रिय थे कि ज्योति बसु जैसे किवदंती पुरुष राजनीतिज्ञ के उत्तराधिकारी चुने गए।....लेकिन आपके इस आलेख ने इससे आगे का परिचय कराया।....यह तो अवश्य कहूँगा कि दो कमरों के साधारण से फ़्लैट में रहने वाले को मुख्यमंत्री पद केवल वामपंथी ही सौंप सकते हैं। आप के लिए यह कहना चाहूंगा कि... इस बंगाल के आप निर्विवाद रूप से ऐसे पत्रकार हैं, जिनके राजनीतिक सम्बन्धों में दल पक्षधरता के कभी कहीं नहीं दिखती।.... भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद जी से लेकर आज के समग्र राजनीतिज्ञों तक का मिलन दर्शन किसी को देखना हो तो वो आपके ताजा tv कार्यालय की गैलरी में एक लघु भ्रमण भर कर आएं!....आप सदा स्वस्थ एवं सक्रिय रहें, इसी सदकामना के साथ...
ReplyDelete--सादर प्रणाम सर!!🙏
रविवारीय चिंतन
ReplyDeleteबुद्धदेव भट्टाचार्य - एक सनातनी कॉमरेड
on August 11
शीर्षक देखकर मुझे भी बड़ा आश्चर्य लगा कि सनातनी शब्द आपने आज के राजनीतिक माहौल को देखते हुए बुद्धदेव बाबू के साथ जोड़ दिया। बाद में आपका विश्लेषण और अर्थ देखकर अच्छा लगा कि आपने सनातन शब्द को बुद्ध देव बाबू के साथ जोड़ा जो उनके चरित्र को चरितार्थ करता है।
मार्क्सवादी विचार उस युग के बहुत ही महत्वपूर्ण विचार रहे हैं और सभी को एक समान अधिकार मिले इसके लिए जी तोड़ कोशिश रही।
राजनीति में इस तरह की जो सिद्धांत को लेकर उन्होंने अपना जीवन बिताया, यह एक मिसाल है ।बंगाल उनके योगदान को हमेशा याद रखेगा,वे एक सिद्धांत वादी कॉमरेड के रूप में सदैव याद किए जाएंगे ।हम सभी उस युग के जो लोग साक्षी रहे हैं, उन्हें एक अच्छा माहौल मिला था ,बुद्धि वादी कवि लेखक साहित्यकार का साथ मिला था। राजनीति किस तरह से आगे चलकर नया मोड़ लेती है , यह भी हमने देखा।
लोग चले जाते हैं इतिहास में अपने बहुमूल्य चिह्न छोड़ जाते हैं। एक साधारण जीवन बिताने वाले मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य जी से वर्तमान राजनीतिक नेताओं को प्रेरणा लेनी चाहिए। आपका लेख बहुत ही महत्वपूर्ण विचारों से अनुप्रेरित है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।
-डॉ वसुंधरा मिश्र, 11.8.24, भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज, कोलकाता
सराहनीय एवं संग्रहणीय लेख। सनातनी -- बढ़िया व्याख्या। हार्दिक बधाई
ReplyDelete