गनीमत है हाथरस में भगदड़ से मरने वालों में कोई मंत्री का बेटा नहीं था
हाथरस में हुए कांड में 121 निर्दोष लोगों की मौत भले ही भयावह है किन्तु प्रशासन को प्रतीक्षा है कुछ समय बीतने की तब तक लोग इसे भूल जायेंगे। एक अंतराल के बाद फिर ऐसा ही कोई कांड होगा जो टीवी और अखबारों की सुर्खियां बनेगा। आप शायद अब तक भूल चुके होंगे कि हरिायणा के पंचकुला में तथाकथित संन्यासी बाबा राम रहीम के विरुद्ध एक महिला अनुयायी ने यौन शोषण का आरोप लगाया था। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल से चल रही सुनवाई के बाद 15 वर्षों से अधिक अन्तराल के पश्चात जांच पूरी हुई और बाबा दोषी पाये गये। कोर्ट का फैसला आते ही बाबा की गुंडा वाहिनी ने बेरोक लूट मार हिंसा शुरू कर दी। देखते-देखते 32 लोग हिंसा की बलि चढ़ गये। एक सांसद ने बलात्कार की घटना के विरुद्ध उल्टा बाबा का पक्ष लेते हुए कहा कि लाखों अनुयायी गलत कैसे हो सकते हैं जरूर उन साध्वियों की गलती है जो बलात्कार की शिकार हुई।
उक्त घटना को लगभग सात वर्ष हो गये पर हमारी सामाजिक और न्यायिक व्यवस्था के परि²श्य में कोई बदलाव नहीं आया है। आशाराम बापू जेल में बलात्कार के आरोपी हैं किन्तु कोर्ट में तारीख के समय हजारों भक्तों का हुजूम उनको नैतिक समर्थ देने जाता है। बल्कि दूसरे शब्दों में यह कहना ज्यादा सच होगा कि उनकी कृपा से उपकृत लोग बड़ी संख्या में अपने ऋण का आंशिक शोध करने ‘बापू’ के समर्थन में आज भी जुटते हैं। उनका यह मानना है कि ‘बापू’ निर्दोष हैं और उनकी कीर्ति से जलने वालों का यह षडयंत्र है। हाथरस कांड में भी प्रथम प्रतिक्रिया यही आयी कि यह हादसा जरूर कोई षडयंत्र है। सूरजपाल उर्फ भोले बाबा के सत्संग में लगभग ढाई लाख लोगों की भीड़ जुटी। आयोजकों ने परमिशन लेने की अर्जी में 80 हजार लोगों की भीड़ का उल्लेख किया था। शायद उन्हें भी नहीं अनुमान था बाबा की लोकप्रियता और उनके चमत्कार से चमकृत भक्तजनों की संख्या में आये ऊफान का। बाबा के व्यक्तित्व के ओज का आप अंदाज लगायें कि वे अपने भक्तों से एक रुपया भी नहीं लेते, न कोई दान-दक्षिणा या चढ़ावा ही लेते हैं। लेकिन बाबा का साम्राज्य शहर-दर-शहर फैला हुआ है। वेशभूषा देखकर कोई नहीं कह सकता कि ये बाबा हैं और कई राज्यों में इनके भक्त हैं। मीडिया रिपोट्र्स के आधार पर दावा किया जा रहा है कि नारायण सरकार हरि उर्फ भोले बाबा 100 करोड़ से अधिक संपत्ति के मालिक हैं। इस दर्दनाक हादसे के बाद दर्ज की गयी एफआईआर में लेकिन भोले बाबा का नाम नहीं है। इसी से आप समझ सकते हैं कि बाबा के प्रभाव की जड़ पाताल तक पहुंची हुई है। आईजी पुलिस ने कहा कि बाबा का रोल सामने आया तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जायेगी। सवाल यह है कि जब उनके नाम का उल्लेख ही नहीं है तो उनकी जांच क्यों कर होगी और जब जांच ही नहीं होगी तो कार्रवाई किस आधार पर की जायेगी?
हमारे देश में एक हादसे में 121 लोगों का मरना क्या कोई बड़ी घटना है। इन मरने वालों में न तो कोई मंत्री का बेटा है न ही किसी बड़े अधिकारी का साला। इस तरह की दुर्घटनाओं में मरने वाले शत-प्रतिशत गरीब लोग होते हैं। विगत 20 वर्षों में कम से कम 2000 लोग धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान इसी तरह की भगदड़ में मारे जा चुके हैं। यूपी सरकार ने न्यायिक जांच का आदेश दिया है, एक जनहित याचिका में सीबीआई पड़ताल की मांग भी की गयी है। मुख्य आयोजक का किन्तु एफआईआर में नाम नहीं है।
हाथरस में ढाई लाख लोग जमा हुए जबकि अनुमति 80 हजार लोगों की ही ली गयी थी। सत्संग स्थल में इतने विराट समावेश एवं अन्दर या बाहर आने-जाने का एक ही रास्ता बनाया गया, वह भी जहां-तहां मोटर बाइक पार्क के कारण अवरुद्ध था। रही-सही कसर बारिश ने पूरी कर दी। धार्मिक स्थलों में यह आम बात है कि पवित्र स्नान से पुण्य प्राप्त करने या मंदिरों में दर्शन की बेताबी या फिर जैसा हाथरस में हुआ, बाबा की चरण रज स्पर्श का पुण्य लाभ की परिणति जानलेवा साबित होती रही है। जांच पड़ताल की खानापूर्ति के बाद अंतोतगत्वा बिना किसी बड़ी कार्रवाई के या दो चार लोगों की गिरफ्तारी के बाद पटाक्षेप हो जाता है। यह साधारण सी बात है कि बड़े समावेश में उपयुक्त संख्या में प्रवेश द्वार एवं निकासी द्वार की व्यवस्था की जाती है। भारत जैसे देश में जहां इतनी बड़ी जनसंख्या है भीड़ प्रबंधन एवं नियंत्रण मूलभूत आवश्यकता है। हाथरस के बाबा की तो अपनी नारायणी सेना भी है। उसका दायित्व निर्वहन भी जांच का विषय होना चाहिए। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने मॉस्को एवं वियना यात्रा में ठीक ही कहा कि युद्ध में निर्दोष महिलाएं एवं बच्चे मरते हैं, इन धार्मिक प्रवचनों में भी मरने वाले अधिकांश महिलायें एवं बच्चे ही होते हैं।
एक बड़ा सवाल है जो इस बार भी समय के साथ दफन हो जायेगा। धर्म या पंथ के नाम पर भारत में अनगिनत मठ बने हुए हैं। इनके आकाओं या बाबाओं के पास अपार धन सम्पत्ति है। अक्सर यौन शोषण की वारदातें भी इन्हीं मठ में होती है। घटना के बाद एक बार ऐसा लगता है कि बहुत हो गया इस बार कुछ न कुछ होगा। पर वही ढाक के तीन पात। जनता धर्मभीरु है। इन बाबाओं में उनको भगवान दिखते हैं। कानून की रक्षा करने चाहे वह पुलिस हो या प्रशासन राजनीतिक दबाव के कारण ‘चुप्पी’ के मोड में आ जाते हैं। मरने वाले निर्दोष लोगों की कोई लॉबी नहीं ै जिसका नामदारों को भय हो। धर्मपरायण जानता विशेषकर महिलायें और बच्चे इन स्थितियों का शिकार हो जाते हैं। कानून के कथित लम्बे हाथ लेकिन अपराधियों तक पहुंचने में छोटे पड़ जाते हैं। देश की न्याय व्यवस्था, आर्थिक विकास एवं सामाजिक परिवर्तन से आम आदमी को शकून नहीं मिलता जो इन बाबाओं के आश्रम या उनके चरण रज मिलने से।
व्यास पीठ पर विराजने वाले धर्मगुरु हमारी श्रद्धा के पात्र हैं। उनके भी यह चिन्तन का विषय है कि वर्षों से उनके उपदेश एवं मार्ग दर्शन में कहां और किस बात की कमी रह गयी है कि ढोंगी बाबाओं में लोग देवत्व का दर्शन करते हैं। साथ ही यह भी एक शोध का विषय है कि इन बाबाओं के लाखों भक्तों की अटूट आस्था पर सैकड़ों लोगों के मरने की हृदयविदारक घटनाओं का उनके विश्वास पर कोई असर नहीं पड़ता।


ये वाकई में देश का दुर्भाग्य है कि आज भी अंधविश्वास और भ्रम के जाल में फसे लाखो करोड़ों लोग इन तथाकथित बाबाओं के चक्कर में पड़े रहते हैं और यदा कदा दुर्घटनाओं की चपेट में आने के बाद भी इनकी जय जयकार करते रहते हैं।
ReplyDeleteशोध का विषय है
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