शेयर बाजार की माया कोई समझ नहीं पाया

शेयर बाजार की माया

कोई समझ नहीं पाया

शेयर बाजार 80 पार। चुनाव में सरगर्मी थी इस बार 400 के पार की। नतीजा आते ही वह गर्मी तो हवा हो गयी। पर कोई स्थान कहते हैं, खाली नहीं रहता। उस ऊष्ण क्षेत्र की गर्मी को बरकरार रखने अखबारों में सुर्खियां बनी - शेयर बाजार 80 (हजार) के पार। नयी सरकार बनने के बाद शेयर बाजार ऊपर गये। कई नेता जो टीवी पर कहते हैं कि अर्थव्यवस्था डूब रही हैं, फिर वे ही नेता वापस आकर शेयर खरीद लेते हैं। शेयर ऊपर जा रहे हैं, नेताओं की सम्पत्ति ऊपर जा रही है, पर अर्थव्यवस्था नीचे लुढक़ रही है। यह बात समझ में नहीं आती। पर सभी बातें सबको समझ में आ जाये तो लोकतंत्र चौपट हो जायेगा। लोकतंत्र का दांव तब ही चलता है, जब कुछ समझदार लोग नासमझ लोगों की भीड़ पर भारी पड़ जाते हैं। पब्लिक को उलझाया जाये, तब ही लोकतंत्र की गाड़ी पटरी पर चलती है। लोकतंत्र में जो अकलमंद हो जाता है वह खुद नेता हो जाता है और जो मंद अकल का होता है, वह माथा खुजलाता ही रह जाता है।


शेयर बाजार में इंडेक्स ऊपर क्यों जाते हैं, इस सवाल का सटीक जवाब किसी के पास नहीं, उसके पास भी नहीं जो खुद को शेयर बाजार का तीसमार खां समझते हैं। शेयर बाजार और बाबा बाजार का हाल एक जैसा है, बाबा बाजार में जो बंदा किसी बाबा के हाथों ठगा जाता है वह कन्ज्यूमर फोरम में नहीं जाता, वह किसी और बाबा की तरफ चला जाता है। ऐसे ही शेयर बाजार में ठगा हुआ बंदा किसी और शेयर की तरफ चला जाता है। फिर वही एक दिन जब फुल तबाह हो जाता है और चोट खाने के काबिल कुछ बचता ही नहीं है तो खुद लंगोटी वाला बाबा बन जाता है।

शेयर बाजार ऊपर जाये या नीचे, इस धंधे में उसी को आना चाहिए, जो इसकी बारीकी को समझता हो। वैसे एक्सपर्ट लोगों का कहना है कि शेयर बाजार प्रेम की तरह है, इसे समझना मुश्किल होता है। बड़े-बड़े ज्ञानी-ध्यानी समय रहते नहीं समझ पाये। जब तक शेयर बाजार को समझेंगे, आप शेयर बाजार में गोता लगाने लायक नहीं रहेंगे। ऐसे शेयरों के भाव लगातार ऊपर जाते हैं जिनकी कंपनियां घाटे में चल रही है। एकदम निकम्मे और नशेड़ी लडक़ों के पीछे सुंदरी या पाड़े की तारिकायें या फिर कमाऊ बालिकाएं मोहित हो जाती हैं। प्रेम और शेयर बाजार में तर्क तलाशना मुश्किल है। दिल लगा गधी से तो परी भी क्या चीज है। पर इसका मतलब यह नहीं कि प्रेम और शेयर बाजार बिल्कुल ही एक जैसे हैं। इनमें कुछ फर्क भी है। प्रेम में बंदे की जेब एक झटके में नहीं, धीमे-धीमे कटती है। पर शेयर बाजार में तो एक ही दिन में आदमी करोड़पति से रोडपति हो सकता है। इसलिए प्रेम के मुकाबले शेयर बाजार के झटके में ज्यादा धार होती है।


कलकत्ता का शेयर बाजार भारत का सबसे पुराना शेयर बाजार है बल्कि दक्षिण एशिया का दूसरा सबसे पुराना स्टाक एक्सचेंज है। शेयर बाजार और स्टॉक एक्सचेंज एक ही बात है पर स्टॉक एक्सचेंज बोलने से लगता है कि आप पढ़े-लिखे खिलाड़ी हैं। कलकत्ता में शेयरों की खरीद-फरोख्त का इतिहास 1800 दशक की शुरुआत से ही है, तब ट्रेड करने के लिए कोई स्थायी स्थान नहीं था। ऐसा कहा जाता है कि स्टॉक ब्रोकर एक नीम के पेड़े के पास इक_ा होते थे। कलकत्ता का पहला विधिवत स्टॉक एक्सचेंज मेरे परिवार के पुश्तैनी मकान 2, रॉयल एक्सचेंज प्लेस जो बाद में मेरे पिताजी एवं इनके भाइयों ने यूको बैंक जिसके उस वक्त चेयरमैन श्री घनश्याम दास बिड़ला थे, को बेच दिया। कलकत्ता में लायन्स रेंज में एक्सचेंज की वर्तमान इमारत का निर्माण सन् 1928 में किया गया था। 1997 में एक्सचेंज ने अपने मैन्युअल ट्रेडिंग को कम्प्यूटरीकृत ट्रेडिंग सिस्टम में बदल दिया। 2001 में एक बड़े भुगतान निपटान प्रणाली घोटाले का शिकार हुआ, जिसके कारण एक्सचेंज बंद हो गया। परिणामस्वरूप कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज (सीएसई) के 300 सदस्यों को निलंबित कर दिया गया था। 2007 में सीएसई और बीएसई (बॉम्बे स्टाक एक्सचेंज) के साथ पिगी बैग व्यवस्था में प्रवेश किया। 2012 में सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) को स्टाक एक्सचेंज के कान मरोडऩे का दायित्व दिया गया।

मेरे मित्र तरुण सेठिया कलकत्ता स्टाक एक्सचेंज के सलाहकार सदस्य हैं। शेयर बाजार की अदाकारी से वे वाकिफ हैं। वैसे इस बाजार के प्लेयर बड़े रुखे होते हैं किन्तु तरुण सेठिया फिल्मी गाने विशेषकर पुरानी फिल्मों के तराने सुनने के शौकीन हैं। इससे भी बड़ी बात है कि वे आशु कवि भी हैं त्वरित कविता लिखने में माहिर हैं। तरुण जी से शेयर मार्केट में रजिस्टर्ड कम्पनियां घबड़ाती भी हैं। कई वर्ष पहले जब एक के बाद एक कार्पोरेट पूंजी बाजार में प्रवेश करते हुए पब्लिक इश्यू लाती थी। ये कम्पनियां प्रेस कांफ्रेन्स में अपने इश्यू के बारे में प्रकाश डालती थी। प्रारम्भ में अखबार और मीडिया वालों के साथ शेयर ब्रोकर बुलाये जाते थे। तरुण जी से मेरी पहली मुलाकात वहीं हुई। मैंने देखा वे बड़े तेज-तर्रार सवाल करेत और इश्यू लाने वाली कई कम्पनियों के डायरेक्टरों को जवाब देने में पसीना छूट जाया करता था। तरुण जी कम्पनियों के अन्दर की बात समझते थे और कुछ बड़े पेचीदे सवाल दागने में माहिर थे। उनके मुकाबले मीडिया इतनी बारीकी से पूंजी बाजार के अन्दरुनी बातों को नहीं समझती। तरुण सेठिया जैसे कुछ धाकड़ शेयर ब्रोकरों के चलते प्रेस सम्मेलन में ब्रोकरों को बुलाने की परिपाटी बन्द कर दी गयी ताकि मीडिया वालों को पूंजी बाजार की ग्रन्थियों की कानोंकान खबर न हो।

तरुण सेठिया ने मुझे बताया कि शेयर मार्केट के स्पीड ब्रेकर एवं उसको संयत करने के लिए 1992 में सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया यानि सेबी का गठन किया गया। इसके बाद स्टाक एक्सचेंज उसके आधीन हो गये। शेयर में एक्सपर्ट ओपियिन अथवा गहरा मंथन या विश्लेषण जरूरी है। हिन्दुस्तान मोटर, आयरन यानि इंडियन आयरन स्टील पहले कलकत्ता मार्किट का सबसे पॉपुलर मिशन होता था आज उसका कोई नामलेवा नहीं है। छोटे और नवागन्तुक निवेशक म्यूच्यूअल फंड में पैसे लगायें तो बेहतर है। पहले सिर्फ यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया था आज प्राइवेट और पब्लिक अनेक म्युच्यूअल फंड हैं। सभी सेबी के आधीन हैं। जो नियम और अनुशासन में नहीं चलते उनकी तबाही निश्चित है। कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग एक देश का जाना माना ब्रोकर था जिसके देश भर में सैकड़ों ऑफिस थे लेकिन आज वह डिफाल्टर हो गया है, बातों-बातों में तरुण सेठिया ने कहा। यह सच है कि शेयर बाजार की माया को कोई समझ नहीं पाया। तरुण सेठिया जैसे निष्ठावान लोग अपवाद हैं जो सही रास्ता बताते हैं।


Comments

  1. दुनिया का सबसे बड़ा स्वीकृत जुआ है शेयर का खेल।...आपकी नज़र इधर भी गयी.... धन्य हैं आप !..विस्तृत लेखन दृष्टि को नमन!🙏

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  2. बहुत ही सार्थक और महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किया है। शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव बहुत ही संवेदनशील हैं जिसे समझ नहीं है न जाए। वह भी ऐसा रुपया भंडार है जहां से देश के बडे-बडे फैसले लिए जाते हैं। कभी भी बड़े पैमाने पर खतरे आ सकते हैं। - डॉ वसुंधरा मिश्र, कोलकाता

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