ऊधो, मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं
कृष्ण ब्रज भूमि छोड़ मथुरा कूच कर गये किन्तु उनका मन ब्रज भूमि में ही अटका रहा। अपने खास सखा को उन्होंने मन की बात कही। कृष्ण बोले- ऊधो ब्रज भूमि मेरे तन मन में इस तरह बस गयी है कि मैं भूल नहीं पा रहा हूं। माता जसोदा और बाबा नंद को प्रात: निहार कर जो सुख की अनुभूति होती है वह यहां कहां? गोपियों और ग्वाल सखाओं के साथ हंसना और खेलना भुलाया नहीं जाता। सूरदास कहते हैं कि कृष्ण ने ऊधो को कहा ब्रजवासियों के साथ हंसना खिलखिलाना भूल नहीं पा रहा हूं।
ब्रज भूमि जैसे कृष्ण के रोम रोम में बसी थी यही हाल ऐसे कई लोगों का होता है जिन्होंने अपना समय कभी कलकत्ता में बिताया हो। हाल ही में इसी आसक्ति की शिकार कोलकाता में कुछ समय बिताने के बाद तीन विदेशी डिप्लोमेट हो गये। अमेरिका की कौन्सुल जनरल मिलिन्डा पावेल को अपने कार्यकाल अगस्त में समाप्त होने के पश्चात स्वदेश लौटना होगा। लेकिन मिलिन्डा ने सिटी ऑप जॉय कलकत्ता में जो समय बिताया वह उसे भूल नहीं पायी है। वर्ष 2021 में कलकत्ता आयी थी और चार वर्ष से भी कम समय में मिलिन्डा इस शहर की मुरीद हो गयी। चालू भाषा में कहें तो कलकत्ता को दिल दे बैठी। मिलिन्डा ने कार्यकाल पूरा कर घर वापसी पर अपनी भावना व्यक्त करने से अपने को रोक नहीं सकी। उसने कहा कि कलकत्ता मुझे छोडऩा ही होगा क्योंकि मेरा कूटनीतिक दायित्व पूरा होने जा रहा है। किन्तु मैं इस शहर को भुला नहीं पा रही हूं। यहां जो प्यार और आत्मीयता का बोध मिला है उसकी मैं मुरीद हूं। मिलिन्डा ने कहा कि अपने व्यस्त कार्यकाल में मैं कई स्थानों का सघनता के साथ आनन्द नहीं ले सकी। फिर कलकत्ता आऊंगी और जी भर के अपने मन का करूंगी। अमरीकी वाणिज्य दूत ने कहा कि उत्तर कलकत्ता जो इस महानगर की धडक़न है, वहां घूमने और देखने की मेरी ख्वाइश है। इसी उत्तर कलकत्ता में बंगाल के मनीषियों एवं भारत की विभूतियों का जन्म हुआ और उनका यह कार्य क्षेत्र भी रहा। उत्तर ककतत्ता की राजबाडिय़ां जहां कभी एक परिवार रहता था अब अपने प्रांगण में बदलाव कर कई परिवारों का आवास बन रहा है। इस प्रत्यावर्तन को निहारने की इच्छा है। साथ ही मिलिन्डा का कहना है कि अब उत्तर कलकत्ता से बहुत लोगों ने दक्षिण में भवानीपुर, बालीगंज और साल्टलेक व दूसरे भागों में अपना बसेरा बनाया है। बड़ा दिलचस्प और रोमांटिक स्थानान्तरण है। इन सबको देखूंगी, समझूंगी और इस महानगर के जीवन के नैसर्गिक आनन्द की अनुभूति प्राप्त करूंगी।
कलकत्ता में सिर्फ मिलिन्डा का ही ब्रज भूमि की तरह मन नहीं अटका है, और भी कई कूटनीतिक विदेशी भी इस प्रेम पाश में जकड़ चुके हैं। जर्मनी की कौन्सुल जनरल मैडम बरबरा वोस और आस्ट्रेलिया के डेप्युटी हाई कमिशन रोवान एन्सवर्थ भी इस शहर में बसने की ईच्छा रखते हैं। इन दोनों विदेशी कूटनीतिक अधिकारियों का कार्यकाल भी समाप्त होने जा रहा है और मिलिन्डा की तरह उनका भी कलकत्ता में कोई आसियाना बनाने की महती इच्छा है। मिलिन्डा ने एक कदम आगे सुझाव दिया है कि वे तीनों मिलकर कलकत्ता में कोई अपार्टमेन्ट बना लें एवं फिर आते-जाते रहें। तीनों विदेशी डिप्लोमेट को योगाभ्यास करने हेतु भी कलकत्ता में रहने का मन है। मिलिन्डा ने कहा कि वे अब अवकाश के बाद योगाभ्यास करेंगी।
मिलिन्डा से मेरी कई बार मुलाकात हुई। उसने कभी पराये देश का सा व्यवहार नहीं किया। स्थूलकाय के बावजूद जब वह बात करती हैं उनकी बॉडी सिहरने लगती है। बांगड़ हाऊस में होली के कार्यक्रम में मेरे आग्रह पर ही वे आयीं थी। वहां ओल्ड एज होम की एक सौ से अधिक प्रौढ़ महिलाओं व मारवाड़ी महिला समिति की सदस्याओं के साथ रंगों का त्यौहार मनाया। खूब जमकर होली के रंग में विभोर हो गयी। यही नहीं ताजा टीवी के डांडिया कार्यक्रम में भी नेताजी इन्डोर स्टेडियम में आकर रासगरभा में रम गयी। कहीं कोई हिचकिचाहट या दूरी का अहसास नहीं था। मैं सोचता हूं यह स्वच्छन्दता उसे भारत में ही मिल सकती है, वह भी कलकत्ता और सिर्फ कलकत्ता में ही।
कलकत्ता शहर ने कई लोगों को अपना दिवाना बनाया है। मिर्जा गालिब एक मुशायरे में यहां आये थे। उस समय तक उनको ज्यादा ख्याति नहीं मिली थी। कुछ ईष्र्यालु लोगों ने मिर्जा गालिब के कार्यक्रम में हूटिंग भी की। लेकिन गालिब ने कलकत्ता के बारे में यह कह कर उन सबको भी अपना फैन्स बना लिया-
कलकत्ते का जो जिक्र किया
तुमने हम नशीं
एक तीर मेरे सीने में मारा
कि हाय हाय
कलकत्ता ही वह शहर है जहां बड़ी संख्या में राजस्थानी आकर बस गये। वहां की देवभूमि जिसके बारे में राजस्थान के राष्ट्रकवि कन्हैयालाल सेठिया ने लिखा था-‘‘इसमें देव रमण नै आवे, धरती धौरां री’’। उस देवभूमि में बसने वाले लाखों राजस्थानी ऐसा मानते हैं कि अब कलकत्ता ही उनकी सरजमीं है। कुछ तो जादू या वशीकरण का मंत्र है कलकत्ते की मिट्टी में। मदर टेरेसा यह सोचकर कलकत्ता नहीं आयी थी कि वह यहीं बस जायेगी। यहां सिर्फ बसी ही नहीं ‘मानवता’ के उद्धार कार्य में इतना रम गई कि इस शहर की जब तक एक बत्ती भी टिमटिमाती रहेगी ‘मदर टेरेसा’ को याद किया जाता रहेगा। लखनऊ की अवधभूमि से निकलकर वाजिद अली शाह गंगा के रास्ते कलकत्ता आये और यहीं के हो गये। खुद ही नहीं अपने खानसामा (बावर्ची) और पनेड़ी (पानवाला) को भी यहीं बसा लिया। यहीं दफन हो गये। इमामबाड़ा में उनकी कब्र गवाह है।
बहादुर शाह जफर, मुगल साम्राज्य के अंतिम बादशाह को जब ब्रिटिश हुकूमत कैद कर रंगून ले गये, हुगली से गुजरते हुए उस महान देशभक्त कवि-शायर की आंखें भर आयी थी। मुल्ला मोहम्मद जान गुजराती थे कलकत्ता में आये जकडिय़ा स्ट्रीट में मुहम्मद जान स्कूल बनायी, नाखुदा मस्जिद भी उनकी ही देन है। वे फिर वापस गुजरात नहीं गये। कवि निराला का जन्म बंगाल में ही हुआ, मानसिक विक्षुब्धता की अवस्था में जब एक बार वे हावड़ा स्टेशन पहुंचे तो ट्रेन से उतर नहीं रहे थे - टैगोर को बुलाने की रट लगा रहे थे। एक लम्बी सूची है कलकत्ता के परवानों की। ‘‘तेरा जलवा जिसने देखा वह तेरा हो गया।’’
कुछ दुरावस्था के चलते आज जब कलकत्ता को बुरा भला कहते हैं तो मेरे कलकत्ता प्रेम को ठेस सी लगती है जहां मेरे पिताश्री 9 वर्ष की उम्र में ‘‘आदमी बनना है तो कलकत्ता चलो’’ कहकर लाये थे। सचमुच कलकत्ता में आदमी रहते हैं और यहीं देवी देवता बनते हैं। विश्वास नहीं हो तो कुम्हारटोली आकर देख लें।

बहुत सुंदर लिखा है। शीर्षक तो बहुत ही सटीक और महत्वपूर्ण है। विदेशी यहां की संस्कृति के रंग में रंग जाते हैं। यहां का आतिथ्य सत्कार और निभश्छल भावों का साथ विदेशियों को खूब आकर्षित करता है। आपका लेख विदेशी डिप्लोमेट लोगों की भावना को उजागर करता ही है साथ में कोलकाता की सांस्कृतिक विशेषता को रेखांकित करता है। कोलकाता में राजस्थान से आए लोग बहुत बड़ी संख्या में बसे हुए हैं और ये उनका अपना है। कोलकाता साहित्य संस्कृति कला का केंद्र है। हम कोलकाता के ऋणी है। बधाई और शुभकामनाएं। डॉ वसुंधरा मिश्र, भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज, कोलकाता
ReplyDeleteआदरणीय,आप अपनी और अपने पुरखों की ज़मीन राजस्थान को जितना प्यार करते होंगे, सम्भवतः उससे तनिक भी कम प्यार कलकत्ता को भी नहीं करते हैं, आपका प्रस्तुत लेख यह मुनादी करता है। आपको पढ़ना एक संस्कृति को पढ़ लेने के समान होता है।...साधुवाद।🙏
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