‘‘हिन्दुस्तानियों के हित के हेत’’ ही है आज भी पत्रकारिता का मूलमन्त्र
‘छपते छपते’ हर वर्ष 30 मई को हिन्दी पत्रकारिता दिवस का पालन परिचर्चा के माध्यम से करता है। दरअसल 30 मई को हिन्दी पत्रकारिता दिवस मनाने की शुरुआत ‘छपते छपते’ ने ही की थी। इसी कड़ी में गुरुवार को राजस्थान सरकार के सूचना केन्द्र में में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता बीआर अम्बेडकर शिक्षा विश्व विद्यालय की कुलपति डा. सोमा बंदोपाध्याय ने की।
छपते छपते द्वारा आयोजित ‘हिन्दी पत्रकारिता का विकास और चुनौतियां’ विषयक परिचर्चा में भाग लेते प्रबुद्ध जन।
हिन्दी के पहले अखबार उदंत मार्तण्ड जिसका प्रकाशन सन् 1826 में कलकत्ता से प्रारंभ हुआ में संपादक पं. युगल किशोर शुक्ल ने अपने संपादकीय में लिखा था इस पत्र के प्रकाशन का उद्देश्य ‘‘हिन्दुस्तानियों के हित के हेत’’ है। इस प्रकार हिन्दी का पहला पत्र हिन्दुस्तान के लोगों के हित को साधने हेतु हुआ था। लगभग दो सौ वर्षों की इस लम्बी यात्रा में आज भी समाचारपत्र का यही मूलमन्त्र है। इस पावन उद्देश्य की पूर्ति में समाचारपत्रों का प्रकाशन कितना खरा उतरा है यह समालोचना एवं विचार मन्थन का विषय है। इस बीच प्रकाशन तकनीक में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं किन्तु प्रकाशन के उद्देश्य को पूरा करने में सम्पादक एवं प्रकाशन की कितनी निष्ठा है इस पर बड़ा प्रश्न चिन्ह है। आज गोदी मीडिया की चर्चा है। मीडिया जगत में ‘बिग प्लेयर’ आ गये हैं। टीवी, सोशल मीडिया, पोर्टल, आदि आदि कई सूचना सेवा से जुड़े हुये हैं। किन्तु वे किसका हित साध रहे हैं इस पर गंभीर चिन्तन होना चाहिये।
इसी परिचर्चा में भाग लेते हुए भारतीय भाषा परिषद् के निदेशक एवं प्रमुख साहित्यिक पत्रिका वागर्थ के संपादक प्रो. शंभुनाथ ने कहा कि आज हिन्दी पत्रकारिता दिवस मनाकर हम दु:ख की अनुभूति करते हैं कि हम कहां से चले थे और कहां पहुंच गये। उन्होंने याद दिलाया कि उदंत मार्तण्ड में विज्ञापन प्रकाशित किया जाता था कि सर्प के दंश से उबरने के लिए दवा लें। इसका उद्देश्य अंधविश्वास को खत्म करना एवं वैज्ञानिक सोच को प्रोत्साहित करना था। लेकिन आज भी लोग अंध विश्वास के अंधकार से निकले नहीं हैं। दुर्भाग्य है कि अब सूचना ही सत्य है। एक झूठ को बार-बार बोलकर उसे सत्य बनाने का कुचक्र चल रहा है, शंभुनाथ ने कहा।
महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के संचार विभाग के अध्यक्ष डा. कृपा शंकर चौबे ने कहा कि पत्रकारिता का जनोन्मुखी होना उसकी पहली शर्त है। पत्रकारिता में तमाम तरह की विकृतियां अभी हैं जो इसके मूल उद्देश्य से मीडिया को भटका रहा है। पत्रकारिता बहुत हद तक उद्देश्यहीन होती जा रही है। व्यवसायिकता हावी हो रही है यह दुभाग्य है। हिन्दी समाचारपत्र के प्रकाशकों पर इस संकट से उबरने का दायित्व है। डा. चौबे ने कहा कि एक समय था जब सम्पादक बनाने का विज्ञापन में वेतन के साथ हर संपादकीय पर जेल और सूखी रोटी की शर्त होती थी। दुर्भाग्य है कि हिन्दी पत्रकारिता आजादी के बाद विसंगतियों, फेक न्यूज और बाजारवाद की शिकार हो गई। वरिष्ठ पत्रकार श्री सन्तन कुमार पांडेय ने इस बात पर चिन्ता प्रकट की कि हिन्दी भाषियों की संख्या सर्वाधिक होने के बावजूद हिन्दी पत्रों की प्रसार संख्या कम है। पांडेजी ने पत्रकारों को विवेकशील होने का सुझाव दिया ताकि वे समयानुसार अच्छे और बुरे का सटीक विवेचना कर सकें।
वरिष्ठ पत्रकार कलकत्ता प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष राज मिठौलिया ने कहा कि हिन्दी पत्रकारिता का इतिहास देश की राजनीतिक तथा सांस्कृतिक जागृति का इतिहास है। देश में नवजागरण लाने का प्रमुख श्रेय भारतीय भाषाओं के समाचारपत्रों को जाता है एवं स्वतंत्रता के बाद इन्हीं समाचारपत्रों की भूमिका राष्ट्र के नवनिर्माण में भागीदार के रूप में सामने आयी। इसमें प्रमुख भूमिका हिन्दी पत्रों की रही। मिठौलिया ने हिन्दी पत्रों में बंगीय भमिका का भी उललेख किया। 1854 में हिन्दी का पहला दैनिक पत्र भी कलकत्ता से ही निकला जिसके संपादक एक बंगाली सज्जन बाबू श्याम सुंदर सेन थे।
भारतीय संस्कृति संसद के सलाहकार, अक्षर और समकालीन सृजन के संपादक श्री प्रियंकर पालीवाल ने कहा कि यह दुभाग्य है कि भारत की आत्मा जिसमें बसी है उस कृषि क्षेत्र की सबसे अधिक उपेक्षा समाचारपत्रों में हो रही है। स्वास्थ्य, खेल, फिल्म, व्यापार सभी की कवरेज प्रमुखता से होती है और उसके लिये संवाददाता सेवारत हैं किन्तु कृषि क्षेत्र की गतिविधियों के समाचार नगण्य होते हैं। न ही उनके लिये कोई अलग संवाददाता होता है।
राजस्थान सूचना केन्द्र के प्रभारी श्री हिंगलाज रतनू ने छपते छपते की पहल की सराहना करते हुए राजस्थान की मीडिया स्थिति पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि राजस्थान की संस्कृति एवं मरु प्रदेश का इतिहास हमारे प्रादेशिक पत्रों में फोकस में रहते हैं। उन्होंने कहा कि राजस्थान में पर्यटन बड़ा उद्योग है और उसकी बंगाल के लोगों तक पहुंचाने का कार्य बंगाल के हिन्दी व बांग्ला समाचापत्रों ने बखूबी किया है। बंगाल और राजस्थान के बीच सेतु, बनने का कार्य राजस्थान सूचना केन्द्र सफलतापूर्वक कर रहा है। हमारे उच्च अधिकारियों को सूचना केन्द्र में हो रहे कार्यक्रम की त्वरित जानकारी दी जाती है। राजस्थान सरकार बंगाल के समाचारपत्रों को अहमियत देती है।
परिचर्चा की अध्यक्ष डा. सोमा बंदोपाध्याय ने कहा कि मोबाइल और सोशल मीडिया द्वारा बड़े पैमाने पर फेक-न्यूज के जरिये पेश की जा रही चुनौतियों के बावजूद प्रिंट मीडिया का वजूद बना रहेगा। मेरा विश्वास है कि सूचनाओं की विश्वसनीयता के लिए प्रिंट मीडिया सबसे मजबूत माध्यम के तौर पर अपनी जगह बना रखेगा। सोमाजी ने यह भी कहा कि हिन्दी ने उन्हें प्रादेशिक क्षुद्रता से मुक्त रखा है। एक सुझाव में उन्होंने कहा कि समाचापत्रों की विश्वसनीयता का हरदम ख्याल रखना चाहिये। मेरी राय में स्वस्थ्य पत्रकारिता के लिए कुशल पत्रकार और सुधि पाठक भी होने चाहिये। धन्यवाद ज्ञापन किया विक्रम नेवर ने।
परिचर्चा में उपस्थित कुछ लोगों ने पुनश्च के बतौर पत्रकारिता की चुनौतियों पर संक्षिप्त वक्तव्य रखा। इनमें नाम उल्लेखनीय हैं सीताराम अग्रवाल, कवि सुरेश चौधरी, रीता चांद पात्र, ख्वाजा अहमद हुस्सैन। परिचर्चा में उपस्थित अन्य गणमान्य में यूको बैंक के राजभाषा अधिकारी अजयेन्द्र नाथ त्रिवेदी, फादर सुनिल रोजैरिया, दी वेक की संपादक शकुन त्रिवेदी, काली प्रसाद जायसवाल दुबेला, पं. बंगाल सूचना विभाग के अधिकारी जयप्रकाश मिश्रा, शब्दाक्षर के संस्थापक अध्यक्ष रवि प्रताप सिंह, अंजू सेठिया, रोमा दास, सीमा भावसिंहका, सीमा गुप्ता, जयगोविन्द इन्दौरिया, पत्रकार पुरुषोत्तम तिवारी, सच्चिदानन्द पारेख, रावेल पुष्प, प्रभात खबर के संपादक कौशल किशोर, सदीनामा के सम्पादक जितेन्द्र जितांशु, मीनाक्षी सांगानेरिया, प्रदीप अगरवाल, ओमप्रकाश चौबे, प्रदीप धानुक, सुरेश शॉ।

Comments
Post a Comment