गंभीर संकट की ओर बढ़ता मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी का हॉस्पिटल

 गंभीर संकट की ओर बढ़ता मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी का हॉस्पिटल

मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी मारवाड़ी समाज की प्राचीन्तम संस्था है। कलकत्ता महानगर में प्रवासी समाज का यह ऐसा मंच रहा है जिसके माध्यम से राजस्थानी समाज ने अपनी सेवा की परम्परा को आयाम दिया। साधन सम्पन्न लोगों ने इसे पोषित किया और कार्यकर्ताओं ने अपना समय और पसीना देकर इस संस्थान को पुष्पित-पल्लवित किया। मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी की स्थापना एक छोटी सी किन्तु मार्मिक घटना से एक सौ वर्ष से भी अधिक पहले हुई थी। किसी श्रमिक को चोट लगी थी एवं आसपास कोई चिकित्सा केन्द्र या क्लीनिक नहीं था जिसमें उसका त्वरित इलाज हो सके। घटनास्थल के समीप समाज के कुछ लोग बैठे थे, उसी वक्त उनके दिमाग में आया कि कोई चिकित्सा केन्द्र होना चाहिये जहां चोटिल या बीमारी से आक्रान्त व्यक्ति का इलाज हो। छोटी सी घटना ने सोसाइटी को जन्म दिया। धीरे-धहीरे वहीं क्लीनिक मारवाड़ी समाज की उदारता एवं कर्तव्य बोध से आगे बढ़ती रही। स्वनामधन्य घनश्याम दास बिड़ला, जमुनालाल बजाज जैसे युग पुरुषों ने इस संस्था को अपना सानिध्य प्रदान किया। किन्तु साधन के साथ साधना ने भी हाथ बढ़ाया और कार्यकर्ताओं के समपर्ण की भावना ने मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी को बुछ वर्षों में वटवृक्ष का आकार देने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी।


एक वक्त था जब देश में कहीं भी प्राकृतिक विपदा आती तो सोसाइटी वहां राहत पहुंचाने पहुंच जाती। बिना किसी औपचारिकता के कार्यकर्ताों का जत्था सामान के साथ राहत पहुंचाने हाजिर हो जाता एवं राहत कार्य में जुट जाते। वैसे भी उस समय सेवा कार्यों में बड़े और छोटे में कोई भेदभाव नहीं था। 

सासाइटी मात्र एक चिकित्सा केन्द्र नहीं अपितु एक वृहत सामाजिक मंच बन गया था। उस समय मारवाड़ी समाज की राजनीतिक पगडंडी भी सोसाइटी होकर जाती थी। सामाजिक कार्यकर्ताओं के राजनीतिक प्रशिक्षण का भी यही केन्द्र था। समाज के जो लोग राजनीति में गये उनका प्रादूर्भाव सोसाइटी से ही हुआ। कांग्रेस का राजनीतिक वर्चस्व था किन्तु कांग्रेस विरोधी राजनीतिक कर्मियों की कर्मस्थली भी सोसाइटी ही थी। बुद्धिजीवियों का भी जमावड़ा सोसाइटी के प्रांगण में यदा कदा होता रहता। कुल मिलाकर मारवाड़ी समाज के व्यापार को छोडक़र सभी विधाओं की धडक़न मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी बन गई थी।

यहां यह बताना अप्रासंगिक नहीं होगा कि स्वतंत्रता के पश्चात् कांग्रेस के जितने भी अधिवेशन हुए चाहे वे उत्तर भरत में हों या दक्षिण भारत के किसी शहर में पूर्वांचल में हों या सुदूर सभी में अधिवेशन के हजारों प्रतिनिधियों की भोजन व्यवस्था का दायित्व सोसाइटी को ही सौंपा जाता था। देश के प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्रियों एवं सभी कांग्रेस कर्मी सोसाइटी के भोजन शिविर में एक साथ बैठकर खाना खाया करते थे। उसकी वजह यह थी कि कांग्रेस के नेताओं के साथ सोसाइटी का आत्मीय सम्बन्ध था। सोसाइटी में वर्षों तक मैनेजर रहे ओंकार लाल वोहरा राजस्थान से सांसद हुये। और भी कुछ नाम हैं जिन्होंने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत सोसाइटी के कार्यकर्ता के रूप में की  और बाद में वे मंत्री या सांसद बने। दिल्ली या राजस्थान से जब भी कोई नेता कलकत्ता आता, सोसाइटी का परिदर्शन उसके कलकत्ता प्रवास का आवश्यक पड़ाव होता ही था। इस अतीत के परिपेक्ष में मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी एक राष्ट्रीय संस्थान बना। रानीगंज में भी उसकी शाखा खुली। रांची में लगभग 40 एकड़ का एक विशाल रिसोर्ट की स्थापना की गई वहां सैंकड़ों कोठियां बनी जहां कलकता और दूसरे शहरों से लोग स्वास्थ्य लाभ के लिए जाते थे। सोसाइटी की कई इकाइयां कलकत्ता के आसपास खुली। कलकत्ता में भी कलाकार स्ट्रीट में एक पूड़ी, मिठाई की दुकान खोली गई जहां शुद्ध घी की बनी पूडिय़ा परोसी जाती रही। इसका उद्घाटन स्वयं नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने किया था।

सोसाइटी के क्रमश: बढ़ते रहने का एक बड़ा कारण यह था कि समाज के साधन सम्पन्न एवं साधारण कार्यकर्ता दोनों सोसाइटी के रथ को हांकते थे। यह संस्था नहीं संस्थान बन गया था।

1980 के दशक के पश्चात् कार्यकर्ताओं का मोह भंग शुरू हुआ। सोसाइटी के चुनाव को लेकर गुटबाजियों का दौर शुरू हुआ। सोसाइटी के तपे हुए कार्यकर्ता ने दूसरी संस्थाआं की ओर रुख किया। इसका प्रभाव संस्था की गतिविधियों पर स्वाभाविक रूप से पड़ा। परिणामस्वरूप सोसाइटी का सेवा कार्य सिकुड़ते-सिकुड़ते अस्पताल तक सीमित हो गया। सेवा के अन्य मुकाम कार्यकर्ताओं के अभाव में बंद होते गये। सोसाइटी के नाम के साथ ही ‘रिलीफ’ शब्द रह गया किन्तु वास्तव में रिलीफ की गतिविधियां बंद करनी पड़ी। पहले कार्यों का विस्तार था किन्तु बाद में अस्पताल संचालन के अलावा सभी कार्यों को विसर्जित करना पड़ा। अस्पताल संचालन में थी अर्थाभाव का संकट मंडरराने लगा।

सोसाइटी आज आर्थिक संकट के साथ-साथ वैचारिक संकट से भी जूझ रही है। कार्यकर्ताओं में तालमेल की कमी एवं आपसी संशय का आलम है। सोसाइटी के सचिव श्री गोविन्दराम अग्रवाल संस्थान को पूरा समय देते हैं किन्तु उनके लम्बे कार्यकाल से उनके सेवाव्रत पर कुछ लोग प्रश्नचिन्ह लगाने लगे हैं। गोविन्दराम जी अब सोसाइटी के अध्यक्ष हैं किन्तु कमिटी के सदस्यों में कुछ उनसे क्षुब्ध हैं। परिणामस्वरूप तीस वर्षों से उनका सेवा पद पर बने रहने की उनकी मंशा कुल लोगों को रास नहीं आ रही है। कार्यकर्ताओं में आपसी तालमेल नहीं है। थाना-पुलिस व कानूनी कार्रवाई से सोसाइटी की छवि मलीन हो गई है। सोसाटी को अनुदान में भी कमी आई है। कार्यकर्ताओं की गुटबाजी के साथ कर्मचारियों में भी खेमेबाजी का दौर शुरू हो गया है। समाज या सोसाइटी के संरक्षकों में ऐसा कोई नहीं है जो अपने व्यक्तित्व के प्रभाव से झगड़ते हुए उभय पक्ष को एक साथ कर सके। सोसाइटी के कर्मचारी भी इस गुटबाजी से निर्लिप्त नहीं है। पूरा वातावरण तनावपूर्ण हो चुका है।

इस परिस्थिति में सोसाइटी एक डूबता टाइटैनिक कहा जा सकाता है। अध्यक्ष और सचिव के दो स्तम्भों पर सोसाइटी खड़ी है पर दोनों स्तम्भ चरमरा रहे हैं। सचिव के इस्तीफे को सर्कुलेट कर दिया गया है किन्तु सोसाइटी के सचिव प्रह़लाद राय गोयनका का कहना है गन्दी राजनीति शुरू हो गइै है। गोयनका ने कहा उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया वे पद पर बने रहना चाहते हैं। किन्तु गोविन्दराम जी के कार्यकर्ताओं की लॉबी गोयनका जी से दो दो हाथ करने में लगे है। कुल मिलाकर सोसाइटी कार्यकर्ताओं का आपसी द्वन्द चरम पर है। कार्यकर्ता पस्त हैं और संकट बरकरार है। सोसाइटी में मरीजों की कमी हो गई है। कई बार तो आधे से अधिक बेड खाली रहते हैं।

समय रहते इस स्थिति को चंगा नहीं किया गया तो बड़ाबाजार में लम्बे अर्से से बंद पड़े हरलालका अस्पताल, मेयो अस्पताल, राजाराम भिवानी अस्पताल, लोहिया हॉस्पिटल, पोलक स्ट्रीट का गुजराती अस्पताल की लम्बी सूची में मारवाड़ी अस्पताल का नाम भी शुमार हो जायेगा।

Comments

  1. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  2. पोलॉक स्ट्रीट के गुजराती अस्पताल को बंद
    हुए बरसो हो गए। वहां अब मार्केट चल रहा है।

    ReplyDelete

Post a Comment