भारतीय परिवारों पर ऋण का कहर

भारतीय परिवारों पर ऋण का कहर

कर्ज बढ़ रहा है, बचत तो लगभग रसातल में जा चुका है

भारतीय परिवारों की परम्परा उधार लेने या कर्जदार बनने से परहेज करने की रही है। भारतीय किसान के बारे में कहा जाता है कि वह कर्ज में जन्म लेता है, कर्ज में ही पलता है और मरने के समय परिवार पर कर्ज का बोझ छोड़ देता है। इसके बावजूद पारिवारिक तौर पर भारतीय परिवारों में अधिक बचत करने तथा कम कर्ज लेने की प्रवृत्ति रही है। बचत करने एवं कर्ज से परहेज के कारण ही जब 2008 में दुनिया में भारी मन्दी आई, अमेरिका जैसा पूंजीवादी देश की कई दिग्गज कार्पोरेट कम्पनियां धाराशायी हो गयी और दुनिया की कई देशों की स्थिति यह हो गयी थी कि आर्थिक मन्दी के चलते उन्होंने विदेशी दौरे रद्द कर दिये। वहीं भारत पर इस मन्दी का कोई असर नहीं हुआ। इसका श्रेय डॉ. मनमोहन सिंह जैसे अर्थविद को जाता है जिन्होंने पहले वित्तमंत्री के रूप में और बाद में देश के प्रधानमंत्री के रूप में ऐसे कदम उठाये कि भारत की अर्थव्यवस्था डगमगायी नहीं। दुरुस्त और यथावत रही।


अब यह परि²श्य बदलता जा रहा है। पिछले वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसम्बर 2023) में पारिवारिक ऋण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 39.1 प्रतिशत के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया। यह अनुपात एक वर्ष पहले 36.7 प्रतिशत रहा था। वर्ष 2021 के जनवरी-मार्च की अवधि में पारिवारिक ऋण का अनुपात 38.6 प्रतिशत था। इस कर्ज का 72 प्रतिशत हिस्सा गैर-आवासीय ऋण है, जो आवास के लिए हासिल किये जाने वाले कर्ज की तुलना में तेज गति से बढ़ता जा रहा है। आवास के कर्ज में वृद्धि 12.2 प्रतिशत रही, जबकि गैर आवासीय ऋण में बढ़ोतरी 18.3 प्रतिशत हुई। मोतीलाल ओसवाल फाइनेशियल सर्विसेस लिमिटेड की हालिया रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि कर्ज के आंकड़े इंगित कर रहे हैं कि लोग परिसंपत्तियां खरीदने की अपेक्षा उपभोक्ता वस्तुओं की खरीद या फिजूखर्ची पर अधिक खर्च कर रहे हैं। कुछ अन्य अध्ययनों में पाया गया है कि ऐसे लोगों की संख्या भी बढ़ रही है, जो कर्ज चुकाने के लिए अधिक व्याज दरों पर व्यक्तिगत ऋण ले रहे हैं।

भारतीय समाज में पारिवारिक इकाई का सिर्फ सामाजिक ही नहीं आर्थिक अहमियत भी है। एक आदर्श परिवार की आर्थिक संरचना के बारे में कबीर का जीवन-दर्शन ही भारतीय जीवन दर्शन रहा है-

साईं इतना दीजिए जामे कुटुम समाय

मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाय।

आम लोगों पर कर्ज का बोझ तेजी से बढ़ा है। वहीं, उनकी बचत में भी चपट लगी है। एसबीआई की रिसर्च रिपोर्ट से ये जानकारी मिली है। रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले वित्त वर्ष 2022-23 में परिवारों की वित्तीय बचत करीब 55 प्रतिशत गिरकर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 5.1 प्रतिशत पर आ गई, जबकि इन परिवारों पर कर्ज को बोझ दोगुना से भी अधिक होकर 15.6 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया। एसबीआई रिसर्च की विश्लेषणात्मक रिपोर्ट के मुताबिक, घरेलू बचत से निकासी का एक बड़ा हिस्सा भौतिक संपत्तियों में चला गया है और 2022-23 में इनपर कर्ज भी 8.2 लाख करोड़ रुपये बढ़ गया। इनमें से 7.1 लाख करोड़ रुपये आवास ऋण एवं अन्य खुदरा कर्ज के रूप में बैंकों से लिया गया है। 

पिछले वित्त वर्ष में घरेलू बचत गिरकर जीडीपी के 5.1 प्रतिशत पर सिमट गई, जो पिछले पांच दशक में सबसे कम है। वित्त वर्ष 2020-21 में घरेलू बचत जीडीपी के 11.5 प्रतिशत के बराबर थी, जबकि महामारी से पहले 2019-20 में यह 7.6 प्रतिशत थी। सामान्य सरकारी वित्त और गैर-वित्तीय कंपनियों के लिए कोष जुटाने का सबसे महत्वपूर्ण जरिया घरेलू बचत ही होती है। ऐसे में परिवारों की बचत का गिरना चिंता का विषय हो सकता है। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के समूह मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने कहा कि महामारी के बाद से परिवारों की वित्तीय देनदारियां 8.2 लाख करोड़ रुपये बढ़ गईं, जो सकल वित्तीय बचत में हुई 6.7 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि से अधिक है। इस अवधि में परिवारों की संपत्ति के स्तर पर बीमा और भविष्य निधि एवं पेंशन कोष में 4.1 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई। वहीं परिवारों की देनदारी के स्तर पर हुई 8.2 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि में 7.1 लाख करोड़ रुपये वाणिज्यिक बैंकों से घरेलू उधारी का नतीजा है। 

पिछले दो साल में परिवारों को दिए गए खुदरा ऋण का 55 प्रतिशत आवास, शिक्षा और वाहन पर खर्च किया गया है। घोष ने कहा कि यह संभवत: निम्न ब्याज दर व्यवस्था के कारण ऐसा हुआ है। इससे पिछले दो वर्षों में घरेलू वित्तीय बचत का स्वरूप घरेलू भौतिक बचत में बदल गया है। उन्होंने कहा कि वित्तीय परिसंपत्तियों की हिस्सेदारी घटने से वित्त वर्ष 2022-23 में भौतिक परिसंपत्तियों की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत तक पहुंच जाने की उम्मीद है। उनका यह भी मानना है कि रियल एस्टेट क्षेत्र में सुधार और संपत्ति की कीमतें बढऩे से भौतिक संपत्तियों की ओर रुझान बढ़ा है। महामारी के दौरान घरेलू ऋण एवं जीडीपी का अनुपात बढ़ा था लेकिन अब उसमें गिरावट आई है। मार्च, 2020 में यह अनुपात 40.7 प्रतिशत था लेकिन जून, 2023 में यह घटकर 36.5 प्रतिशत पर आ गया। 

बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, पिछले दो वर्षों में पर्सनल लोन बढ़ रहे हैं। पिछले वर्ष 2022-23 में घरेलू वित्तीय देनदारियां काफी बढ़ गई हैं। इसका कारण होम लोन में उल्लेखनीय वृद्धि है। गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों के लोन में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई। हालांकि उद्योग क्षेत्र के लिए ऋण पिछले 15 महीनों में केवल सात प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। यही नहीं लोग अधिक रिटर्न कमाने के लिए बाजार के साधनों की ओर रुख कर रहे हैं। लेकिन खतरा ज्यादा है। इसलिए म्यूचुअल फंड आज बहुत आकर्षक हो गए हैं।

एक्सपर्ट के अनुसार, घरेलू बचत होना इसलिए जरूरी है कि हम अभी भी बाहरी वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) जैसे विदेशी फंडों के साथ विकास को वित्तपोषित कर सकते हैं, लेकिन उनके पास अन्य मुद्दे भी होंगे। जिन देशों को उच्च स्तर के निवेश की आवश्यकता है, वे बचत पर निर्भर होंगे। इसके अलावा यहां तक कि सरकारी उधार को बैंकों और वित्तीय संस्थानों (एफआई) द्वारा सदस्यता के माध्यम से वित्त पोषित किया जाता है, लेकिन अंतत: घरेलू कॉरपोरेट्स और अन्य की बचत से वित्त पोषित किया जाता है। बचत के लिए चुनौतियों के संबंध में हाजरा ने कहा कि नई कर योजना को बचत को हतोत्साहित करने के रूप में देखा जाता है क्योंकि कई निवेश छूट के लिए उपलब्ध नहीं हैं। जब तक इन निवेशों को कटौती/छूट के रूप में नहीं दिया जाता, नई कर व्यवस्था आकर्षक नहीं हो सकती।

एक ओर परिवारों का कर्ज बढ़ रहा है, तो दूसरी ओर उनकी बचत लगभग पांच दशक में सबसे कम स्तर पर है। परिवार के पास मौजूद कुल पैसे और निवेश में से देनदारियों को घटाने के बाद जो राशि बचती है, उसे पारिवारिक बचत कहते हैं। कर्ज बढऩे और बचत घटने का हिसाब स्पष्ट है इसलिए हमारे पुरखे चेता गये हैं- तेते पांव पसारिए जेती लंबी सौर।


Comments