उफ गर्मी! - बड़ी तकलीफ है पर थोड़ा मजा भी

उफ गर्मी!

बड़ी तकलीफ है पर थोड़ा मजा भी

इस बार गर्मी सुर्खियों में है। चुनावी सरगर्मी के कारण हेडलाइन्स के साथ समझौता करना पड़ा वर्ना उफ गर्मी, बेहाल गर्मी, जानलेवा गर्मी का प्रकोप अखबारों की लीड न्यूज बन जाती। मैं बंगाल और कोलकाता की बात कर रहा हूं। हमारा देश विविधता का देश है। गर्मी में भी हमारी विविधता बरकरार है। तभी तो उष्णता का रेकार्ड तोडऩे वाले मरु प्रदेश राजस्थान वर्तमान में गर्माहट में बंगाल से बहुत पीछे है। जैसलमेर में 31 डिग्री, जोधपुर में 34 तो जयपुर में 33, बीकानेर पारा 31 डिग्री पर टिका हुआ है। दक्षिण बंगाल में भीषण गर्मी पड़ रही है। लू जैसी परिस्थिति चल रही है। लू राजस्थान या उसके आसपास क्षेत्रों में जेठ आषाढ़ के महीने शब्द कोष से निकल कर अखबारों के सिर चढ़ जाता था पर इस बार बंगाल ने लू का ‘‘किडनैप’’ कर लिया। कोलकाता समेत दक्षिण बंगाल के जिलों में तीन दिनों तक लू चलने की भविष्यवाणी है। अगले कुछ दिनों तक अधिकतम तापमान सामान्य से 4-6 डिग्री अधिक रह सकता है। इन पंक्तियों के लिखते समय कोलकाता का अधिकतम तापमान 40 डिग्री को पार कर जायेगा। लगता है अभी और सतायेगी गर्मी, चढ़ेगा पारा।

लू की चेतावनी पहले ही जारी की जा चुकी है। इस बार गर्मी की वजह से स्कूलों में छुट्टियां आगे बढ़ गयी है। शिक्षा विभाग ने 22 अप्रैल से छुट्टी की घोषणा कर दी है। आमतौर पर मई में शुरू होती है। सरकारी एवं सरकारी सहायता से पोषित होने वाले विद्यालयों में 22 अप्रैल से छुट्टी की घोषणा कर दी है। भीषण गर्मी के कारण छात्रों को ही नहीं शिक्षकों तक को स्कूल आने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। स्कूलों  के गैर शिक्षक कमि4यों की भी छुट्टी रहेगी। यही नहीं हाइकोर्ट ने वकीलों को गाउन पहनने से छूट दे दी है।

गर्मियां बेहाल कर देती हैं। डॉक्टरों एवं अनुभवी लोगों की सलाह है कि ज्यादा पानी पीयें, हलका खायें, सिर क कड़ी धूप से बचायें। रास्तों में शीतल जल के प्याऊ कई संस्थाओं एवं व्यवसायिक संगठनों ने खोल दिये हैं ताकि राहगीरों को पानी के लिए तरसना नहीं पड़े। पानी का व्यवसाय करने वालों के लिए यह अच्छा मौका है जब वे जल संकट का फायदा उठा सकें। अब तो पानी भी बंद बोतलों में बिकता है। गनीमत है पानी की बोतल के दाम नहीं बढ़े हैं पर यह कृपा कब तक बनी रहेगी, कहना मुश्किल है। पेय पदार्थों, कोक आदि की पूछ बढ़ गयी है। कोकाकोला, ऑरेंज, पेप्सी, स्पिरिट, लिमका आदि आदि भाव खा रहे हैं। लेकिन चाय की खपत कम नहीं हुई है। पानी की खपत बढ़ी है पर चाय की चुस्की का अपना मजा होता है। एयरकंडीशन मशीन, वाटर कूलर, फ्रीज आदि की मांग में उछाल आ गया है। इनके दाम भी बढ़ गये हैं।

इसी बीच गर्मी से संतप्त लोगों में सुरसुरी पैदा करने वाली खबर पर जमकर चर्चा हो रही है। रेगिस्तान के शहर के तौर पर मशहूर दुबई में फिलहाल बाढ़ का कहर है। वहां के शॉपिंग मॉल्स में पानी भरा है। पार्किंगों में गाडिय़ां तैर रही है और सडक़ें तालाब बनी पड़ी है। हालात यह है कि एयरपोर्ट भी बाढ़ में डूब गये हैं और हवाईपट्टी ही नहीं दिख रही। आखिर रेतीली जमीन पर अचानक इतनी बारिश क्यों हुई? हर किसी का यही सवाल है। दरअसल वैज्ञानिकों ने बताया कि यह विज्ञान का चमत्कार है जिसका खामियाजा दुबई शहर और उसके लोग भुगत रहे हैं। सोमवार और मंगलवार को क्लाउड सीडिंग के लिए विमान उड़ाये गए थे। इसके जरिये कृत्रिम बारिश करायी गयी। लेकिन यह पूरा प्लान तब फेल हो गया जब कत्रिम बारिश की कोशिश में बादल ही फट गया। कहते हैं वहां इतनी बारिश महज कुछ घंटों में हो गयी जो डेढ़ साल में हुआ करती थी।

गर्मी से संतप्त लोगों को दुबई की खबर कुछ रोमांचित कर सकती है पर यह दूर के ढोल सुहाने वाली बात है। हमारे यहां जिन्दगी दुभर हो गयी है और राहत की बारिश होने की संभावना नहीं है। बिहार, उत्तर प्रदेश में पारा 40 डिग्री के पार पहुंचने लगा है। तापमान या लू की चिंता इस साल इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि यह चुनाव का समय है। गर्मी के कहर के कारण 19 अप्रैल को पहले चरण के चुनाव में बंगाल, त्रिपुरा में मतदान बम्पर है किन्तु यूपी, बिहार में मतदान सुस्त है। वैसे चुनाव हर बाल अप्रैल-मई के महीनों में ही होता है। मौसम विभाग के अनुमान के अनुसार मई का महीना तपेगा। निकट भविष्य में होने वाली बेचैनी के बीच अच्छी खबर यह है कि इस बार मानसून सामान्य से अधिक मेहरबान रहेगा। जून और सितम्बर के बीच सामान्य से अधिक मानसूनी बारिश होने की सम्भावना है। ध्यान रहे, पिछले वर्ष देश में सामान्य से कम बारिश हुई थी इसलिए इस बार सामान्य से अधिक बारिश किसी खुशखबरी से कम नहीं है। वास्तव में, हमें मौसम के बारे में समग्रता से सोचना चाहिए। ज्यादा गर्मी भी ठीक नहीं और न ज्यादा बारिश, पर जलवायु परिवर्तन का जो हाल है उसके अनुसार हमें दोनों ही परिस्थितियों के लिए तैयार रहना चाहिए।

ग्रीष्म ऋतु भारत की प्रमुख चार ऋतुओं में से एक है। ग्रीष्म का आतप बढ़ते ही चहल-पहल कम हो जाती है। वृक्षों के साथ हमारी निकटता बढ़ जाती है। बसन्त और पावस की तुलना में ग्रीष्म पर कम कविताएं लिखी गई हैं। आधुनिक साहित्य में भी ग्रीष्म पर केन्द्रित कविताएं खूब लिखी जा रही हैं। सूरज हमारी पृथ्वी पर जीवन बनाए रखने के लिए अनिवार्य है परन्तु उसका अतिशय ताप हमारे मन में झुंझलाहट ही पैदा करता है। डा. रामदरश मिश्र की कविताओं में ग्रीष्ण के सूर्य को कष्टों को प्रतीक बनाकर प्रस्तुत किया गया है-

किसने बैठा दिया है मेरे कंधे पर सूरज

एक जलता हुआ असह्य कब से ढो रहा हूं

साधारणत: हम सोचते हैं कि गर्मी पर कविताएं या गीत कौन लिखेगा पर हमारी धारणा निर्मूल नहीं तो पूर्ण सत्य नहीं है। अब आपके आश्चर्य की पराकाष्ठा तब होगी जब मैं फिल्म उजाला में शंकर जयकिशन के संगीत पर गीतकार हसरत जयपुरी द्वारा लिखित लता और मन्ना डे का गाया हुआ शशि कपूर-माला सिन्हा पर फिल्माया यह गाना आज भी गुनगुनाया जाता है-

झूमता मौसम मस्त महीना

चांद सी गोरी एक हसीना

आंख में काजल

मुख पर पसीना

याला याला दिल ले गई।

‘‘मुख पर पसीना’’ इसी गर्मी का अहसास कराता है। इस तरह के गीत कम से कम गर्मी से राहत पहुंचाते हैं- यह तो मानना ही होगा।


Comments

  1. सामाजिक जागरूकता का अनुपम उदाहरण। फिल्म से गाना भी ढूंढ निकाले। सामयिक लेख, सही चेतावनी। बोतलबंद पानी के दाम नहीं बढ़े हैं। करारा व्यंग्य।

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