बड़ाबाजार में विपत्तजनक बाडिय़ों के लोग अपनी मौत का इन्तजार करते हैं

बड़ाबाजार में विपत्तजनक बाडिय़ों के लोग अपनी मौत का इन्तजार करते हैं

बड़ाबाजार कोलकाता शहर का सबसे पुराना इलाका है। जैसा कि इसके नाम से जाहिर है, यह व्यापारिक केन्द्र है। गंगा किनारे पर बसा बड़ाबाजार वह क्षेत्र है जो हावड़ा पुल से उतर कर कोलकाता में प्रवेश का पहला पादान है। पूर्वी भारत का व्यापार यहीं से नियंत्रित था, हालांकि अब असम, उड़ीसा, झारखंड और पूर्वोत्तर राज्यों में कई बाजार बन गये हैं। इसलिए वहां के लोगों को कलकत्ता या बड़ाबाजार आना नहीं पड़ता किन्तु बड़ाबाजार अभी भी बड़ा-बाजार है जहां कई जिनसों की खरीददारी करने आना ही पड़ता है। आलू पोस्ता, लोहापट्टी, सोनापट्टी, बागड़ी मार्केट आदि ऐसे केन्द्र हैं जिनका वर्चस्व आज भी जस का तस है।

कलकत्ता लगभग तीन सौ वर्ष पुराना शहर है। भारत के विभिन्न हिस्सों से लोग यहां आकर बस गये। कई मारवाड़ी परिवार दो सौ वर्ष से अधिक पहले यहां आ गये थे। पुराने बंगाली जमींदारों के मकान हैं। जाहिर है मकान अब जर्जर अवस्था में है। घनी आबादी वाले इलाकों में ऐसे मकान और बाजार हैं जो खंडहर के रूप में परिवर्तित हो चुके हैं। उनके आवासियों पर मौत का खतरा मंडरा रहा है पर वे इस खतरे से आंख मूंदे हुए हैं। किसी समय राजस्थान, हरिायणा, यूपी, बिहार से आये लोग सबसे पहले यहीं आकर बसे थे पर धीरे-धीरे उनमें अधिकांश कोलकाता के सुदूर इलाकों में जा बसे। हावड़ा, फूलबगान, कांकुडग़ाछी, साल्टलेक आदि इलाकों में इनमें से कई ने रैन बसेरा बना लिया। परिणामस्वरूप बड़ाबाजार के आवासी कम होते गये और उन जगहों में व्यापारिक गतिविधियां होने लगी। इसका नतीजा यह हुआ कि आज बड़ाबाजार लोगों के रिहायसी इलाकों की बजाय मार्केट एवं दुकानों में तब्दील हो गया। ऐसे सैकड़ों मकान हैं जहां पहले लोग रहते थे अब वे मार्केट बन गये हैं। कटरे हैं जहां सैकड़ों दुकानें एक छत के नीचे कारोबार में संलग्न हैं। दुकानदारी करने वालों में अब महिलाओं की संख्या बढ़ रही है। दिन में इन कटरों में स्त्रियां झुंड में आकर बाजार करती हैं जिनमें बुर्का पहनी हुई मुस्लिम स्त्रियां भी शामिल हैं। बड़ाबाजार में महिला खरीददारों की संख्या में भारी इजाफा का प्रमाण है कि पहली बार सत्यनारायण पार्क के पास तंग जगह में भी एक अलग महिला शौचालय खोलना पड़ा क्योंकि प्राय: कटरों में अभी तक महिला शौचालय की व्यवस्था नहीं है।

बड़ाबाजार में व्यापार कर बड़ी संख्या में लोग लखपति, करोड़पति हो गये। कभी रिक्शा में आने-जाने वाले व्यापारियों के पास मर्सीडीज और उससे भी अधिक कीमती गाडिय़ां हो गयी हैं, यही नहीं दक्षिण कोलकाता, साल्टलेक, आदि क्षेत्रों में कई करोड़ के फ्लैट में वे रहने लगे हैं। लेकिन वहीं आज भी इस व्यापारिक क्षेत्र के जर्जर मकानों में लोग बड़ी संख्या में रहने पर मजबूर हैं। एक-एक कमरे में दो-तीन परिवार भी रहते हैं। यह जानते हुए कि सौ साल पुराने मकान किसी भी घड़ी धराशायी हो सकता है, मजबूरी में रहते हैं। आपको ऐसे मकान भी मिलेंगे जहां छत पर कोठरी बनाकर लोग रहते हैं। छत पर पानी की टंकी वाली जगह भी परिवार पल रहा है। और ऐसे तो कई मकान हैं जहां ऊपर के तल्ले में जाने की सीढिय़ां नहीं हैं। काठ की सीढिय़ां लगाकर लोग ऊपर चढ़ते हैं और स्त्रियां व च्चे भी इन्हीं सीढिय़ों के सहारे अपने कमरों में जाते हैं।

2017 की शाम 16 शिवतल्ला स्ट्रीट का मकान अचानक धड़ाधड़ गिर गया और तीन किरायेदारों की मृत्यु हो गयी। बाबूलाल लेन में एक पुराना मकान ध्वस्त हो गया। बड़ाबाजार के वार्ड नम्बर 23 जहां राजस्थानी समाज के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं, में 575 मकानों में 150 से अधिक ऐसे हैं जिन्हें कार्पोरेशन ने विपत्तजनक बाड़ी घोषित कर चुकी है एवं किरायेदारों को मकान खाली करने की नोटिस मिल चुकी है। बांसतल्ला में एक पुराना मकान नीमबाड़ी दो चौक का मकान है। कई गणमान्य मारवाड़ी इस मकान में कभी रह चुके हैं। अब सभी दूर से इलाकों में चले गये। लेकिन मकान में फिर भी कई किरायेदार हैं। कई वर्षों के अन्तराल के बाद वह मकान बिक गया। ऐसे बहुत मकान हैं जिन्हें खाली करवाना एवरेस्ट की चोटी पर चढञने से ज्यादा मुश्किल है।

कलकत्ता कार्पोरेशन से मिली खबर के अनुसार साढ़े तीन हजार मकान ऐसे हैं जो किसी भी दिन धूल चाट सकते हैं। 150 मकान ऐसे हैं जिन्हें तोड़ा जाना नितान्त आवश्यक है। पुराने इलाके जैसे काशीपुर, बड़ाबाजार, बागबाजार, शायमपुकुर, पाथुरिया घाट, हाथीबागान, कॉलेज स्ट्रीट, बऊबाजार, रिपेन स्ट्रीट, तिलजला, भवानीपुर, चेतला में ऐसे मकानों की संख्या सबसे अधिक है। इन मकानों के किरायेदार ही नहीं मकान के नीचे से गुजरने वाले पथाचारियों पर मकान का हिस्सा गिर सकता है। कार्पोरेशन चाहता है कि इन खंडहर बने मकानों को गिरा देना नितान्त आवश्यक है पर इनके किरायेदार मकान छोडऩा नहीं चाहते। सन् 2022 में 40 मकानों का पूरा या हिस्सा गिर पड़ा था। दुर्घटना में कई किरायेदार एवं मकानों के नीचे से गुजरने वाले लोग मारे गये।

कलकत्ता कार्पोरेशन के बिल्डिंग विभाग ने एक योजना के अन्तर्गत मकान मालिक एवं किरायेदारों को अवसर देती है कि वे मिलकर मकान का पुनर्निर्माण कर सकते हैं। कार्पोरेशन मकानों में अतिरिक्त तल्ले निर्माण की इजाजत भी देते हैं ताकि किरायेदारों को पुनर्वास किया जा सके। ऐसा नहीं करने पर कार्पोरेशन को अधिकार है कि वह असुरक्षित या जर्जर मकानों को तोडक़र नया मकान बनाये ताकि जानमाल की क्षति न हो।

कुल मिलाकर महानगर की आवासीय समस्याओं का समाधान है किन्तु किरायेदारों की मजबूरी है कि वे जाये तो जायें कहां? मकान मालिकों पर किरायेदारों को भरोसा नहीं है क्योंकि मकान मालिकों की बजाय अब निर्माण का काम प्रमोटरों के हाथ में चला गया जहां समाजविरोधियों की साझेदारी भी रहती है। ऐसे में कार्पोरेशन के लिए मुश्किलें हैं पर यह लाइलाज नहीं है।


Comments

  1. आदरणीय, आपने बहुत संवेदनशील मुद्दे पर अपनी लेखनी के माध्यम से नज़र डाली है।..आप के अंतस में एक पत्रकार के साथ,एक समाजसेवी का भी निवास है।...आपके लेखन का व्यपाक असर होता, सरकार का ध्यानाकर्षण भी आपकी कलम करती है।...ईश्वर से कामना है आप यूँ ही सदा सक्रिय रहें, और दीर्घजीवी हों।🙏

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  2. 🖕आपके लेखन का व्यापक असर होता है। (पढ़ें)

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  3. सामाजिक संवेदना से परिपूर्ण चेतावनी भरा लेख। सराहनीय

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