समरथ को नहीं दोष गोसाईं
भारतीय समाज में बड़े एवं ऊंचे आदर्शों का अक्सर हवाला दिया जाता है। भारत भूमि में एक से एक तपस्वी, त्यागी, बलिदानी एवं विद्वान लोगों ने जन्म लिया। मानवता के उद्धार हेतु राम, कृष्ण, बुद्ध और गांधी जैसी विभूतियां तपोभूमि में आयीं एवं जनमानस को सामाजिक परिवर्तन के लिये उद्वेलित कर भारत के इतिहास िको बदला। किन्तु क्या विडम्बना है कि आज के भारत में सभी तरह के अपराध तुंग पर है। हमें अपनी संस्कृति एवं संस्कारों पर गर्व है, किन्तु यह भी कटु सदस्य है कि हर 68 मिनट पर भारत की एक बेटी या तो मार दी जाती है या उसे अपनी जिन्दगी को खत्म करने की ओर धकेल दिया जाता है। हर दिन दहेज से प्रताडि़त 21 लड़कियां मौत के मुंह में चली जाती है। जघन्य अपराध में लिप्त मात्र 35 प्रतिशत लोगों को ही सजा मिलती है। समाज में परिवर्तन हुआ है किन्तु परिवर्तन का हाथ कातिल से बहुत दूर है।
नाच मेरी बुलबुल कि पैसा मिलेगा
अनंत अंबानी-राधिका मर्चेंट के प्री वेडिंग फंक्शन में बॉलीवुड के तीनों खानों ने किया जबरदस्त डांस।
इतिहास साक्षी है कि सामाजिक बुराइयां एवं कुरीतियां हमेशा ऊफर से शुरू होती है और कालान्तर में मध्य श्रेणी को भी अपने गिरफ्त में जकड़ लेती है। समाज के सम्पन्न या धन कुबेर बन्धु अपने नीहित स्वार्थ के लिए सामाजिक उदण्डताओं को प्रोत्साहित करते हैं और उसका खामियाजा पूरे समाज को भुगतना पड़ता है। विवाह-शादियों में आडम्बर, फजूलखर्ची, फुहड़पन का कुछ लोगों ने इसलिए सूत्रपात किया ताकि वे अपनी सम्पन्नता का भौतिक आनन्द भोग सकें। बड़े लोगों में इन सब मामलो में आपसी प्रतिस्पद्र्धा भी वैसे ही होती है जैसे पुराने समय में जमींदारों में मूंछ की लड़ाइयां होती थी।
रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी की चौपाई है-‘‘समरथ को नहिं दोष गोसाईं।’’ तुलसी बाबा ने यह लिखकर समाज की धृष्टताओं पर चोट की थी। इसका अर्थ है ‘‘सामथ्र्यवान का कोई दोष नहीं होता है।’’
संसार का यह अनोखा नियम है कि समर्थ और शक्तिशाली व्यक्ति चाहे कितनी ही बड़ी भूल कर बैठे उसे कोई धोष नहीं देता जबकि वैसी ही भूल के लिए दुर्बल और निर्धन व्यक्ति को तरह-तरह के दण्ड भोगने पड़ते हैं। समरथ को दोष न देने की बात आज नई प्रचलित नहीं हुई ऐसा तो सदा से होता आया है। श्रीराम ने बालि को छिप कर धोखे से मारा। उनको दोष नहीं दिया गया। अर्जुन ने भीष्म पितामह को शिखंडी के आगे खड़ा करके मारा। उनको किसी ने दोष नहीं दिया। भीम ने दुर्योधन को गदा युद्ध में, गदा युद्ध के नियम का उल्लंखन करके मारा तो उसे कोई दोष न दिया गया। समाज और शासन द्वारा समरथ को दोष न देने की नीति ने समाज में गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार, व्यभिचार जैसी भयानक समस्याओं को जन्म दिया। किसी गरीब कन्या का अपहरण होने पर पुलिस चुप्पी साधे बैठी रहती है और किसी मंत्री की कन्या का अपहरण होने पर सरकारी मशीनरी की नींद हराम हो जाती है। आखिर ऐसा क्यों? राजनीति हो या धर्म, शिक्षा हो या रोजगार सभी क्षेत्रों में जितने भी कायदे कानून हैं वे सब दुर्बल, विपन्न और ऐसे लोगों के लिए है जिनका कोई भी सगा-संबंधी किसी उच्च पद पर नहीं है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने इन्हीं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए ‘‘समरथ को नहिं दोष गुसाईं’’ की कड़वी सच्चाई से हमें रूबरू कराया।
हाल ही में देश के सबसे धनी अम्बानी परिवार में मुकेश अम्बानी के सुपुत्र अनन्त के शुभ विवाह के पूर्व एक प्री वेडिंग का धमाकेदार आयोजन गुजरात के जामनगर में किया गया। इससे पहले कभी प्री वेडिंग जश्न के बारे में नहीं सुना। आयोजन तीन दिन चला। कुल मिलाकर 1400 करोड़ रुपये पानी की तरह बहाया गया। अब विवाह आयोजन में कितना खर्च होगा पता नहीं, फिर विवाहोपरान्त भी कुछ बड़ा धमाका किया जा सकता है। बड़ी फिल्मी हस्तियों से लेकर, देश-विदेश के चोटी के सेठ-साहूकारों ने इसमें शामिल होकर वर-वधु की बलाइयां ली। समाचारपत्रों में उनकी नाचने की मुद्रा में फोटो छपी। इससे यही सारांश निकला कि पैसा अच्छों-अच्छों को नचा सकता है। ‘‘नाच मेरी बुलबुल कि पैसा मिलेगा’’ का गाना इस आयोजन में अंजाम देता दिखाई दिया। यह भी चर्चा हुई कि अम्बानी परिवार ने अभी तक ऐसा कुछ नहीं किया है कि जिसमें आम आदमी का भला हो। मुम्बई में कोकिला बेन के नाम से अस्पताल है जहां इलाज बड़ा महंगा है। मुझे इस संदर्भ में एक बात याद आई। मुकेश अम्बनी ने मुंबई में एक भव्य आलीशान मकान ‘‘अंटीलिया’’ का अपने रहने के लिए निर्माण कराया था। उस पर 15 हजार करोड़ का खर्च हुआ। इस रहीसी की काफी चर्चा हुई। देश के सबसे प्रतिष्ठित उद्योगपति श्री रतन टाटा ने फोन कर मुकेश अम्बानी को बधाई नहीं दी पर एक सवाल पूछा - तुम अपने आलीशान मकान पर इतना खर्च कर आखिर क्या बताना चाहते हो? मुझे मालूम नहीं श्री मुकेश अम्बानी ने इस पर क्या जवाब दिया। इसी संदर्भ में बता दूं कि स्व. घनश्याम दास बिड़ला अपने प्रपौत्र के विवाह में सिर्फ इसलिये नहीं गये क्योंकि उसकी उम्र विवाह के लिए कानूनी रूप से निर्धारित उम्र सीमा से कुछ कम थी। ऐसे भी उद्योगपति भारत में हुए हैं जिन्होंने समाज के सामने आदर्श रखा। इसलिए पाठक यह नहीं समझें कि सभी एक जैसे होते हैं। लेकिन अधिकतर नामचीन लोग अपने धन का प्रदर्शन करने हेतु वैवाहिक एवं सामाजिक आयोजनों को हथियार बनाते हैं। बड़े धनकुबेरों के इस प्रदर्शन को मध्यम श्रेणी भी अनुसरण करती है। परिणामस्वरूप विवाह के आडम्बर एवं खर्च सुरसा के बदन की तरह बेलगाम बढ़ते जा रहे हैं। 10-20 करोड़ तो अब आम बात हो गयी है। इसमें अपना धन होता है या बैंकों या साहूकारों से उधार, यह तो वे ही जानें किन्तु यह सच है कि आर्थिक रूप से खलास होने वाले लोग बाजार में अपनी साख एवं रसूख बनाये रखने अथवा बढ़ाने इन आयोजन में जमकर खर्च करते हैं ताकि अन्दरुनी बात का किसी को पता नहीं चले। अवश्य यह बात अम्बानी पर लागू नहीं होती किन्तु आडम्बर दिखावे आदि की प्रवृत्ति से समाज अंतोतगत्वा विनाशोन्मुख होता है।

कुछ भी नहीं बदला , न तुलसीदास के समय और न आज। "समरथ को नही दोष गुसाईं ", अच्छा आलेख बधाई
ReplyDeleteअच्छा होता है 1400 करोड़ में गरीबों के कल्याण के लिए आवास गरीब कन्याओं की शादी के लिए फंड बनाया जाता लेकिन पैसे तो अंबानी है इसलिए हम कौन होते हैं समीक्षा करने वाले
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा
अन्य अखबारों की भी सम्पादकीय नजरों से गुजरती हैं, किन्तु जो खरी खरी बात आपकी सम्पादकीय में पढ़ने को मिलती है अन्यत्र यह स्पष्टवादिता दृष्टिगोचर नहीं होती। आप खरी बात लिखते वक्त सम्भवतः उसके विपरीत प्रभाव की परवाह नहीं करते । आदरणीय आपकी निर्भीक पत्रकारिता को नमन!....सच कहा आपने... हजारों करोड़ अपने घर पर और पुत्र विवाह पर उड़ा देने वाले उद्योगपति का,समाज के लिए योगदान शून्य है।....मेरा अतिरिक्त निवेदन है कि जब आप इन आलेखों का संकलन प्रकाशित करते है, उनमें हम पाठकों की प्रतिक्रियाएं भी, आलेख के नीचे प्रकाशित की जाएं।...सदा की भांति क्रांतिकारी विचारों से परिपूर्ण आलेख हेतु बधाई आदरणीय।
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