हास्य कवि सम्मेलन में रामजी के नाम पर लगे ठुमके

हास्य कवि सम्मेलन में रामजी के नाम पर लगे ठुमके

होली में हास्य कवि सम्मेलनों की परम्परा पुरानी है। देश के कई शहरों में कवि सम्मेलन आयोजित होते हैं। कवियों का इन दिनों बाजार गर्म होता है। कोलकाता शहर में सबसे ज्यादा हास्य कवि सम्मेलन आयोजित होते हैं। इन सम्मेलनों में अच्छी खासी भीड़ भी जुटती है। इन आयोजनों के टिकट भी बेचे जाते हैं और प्राय: सभी टिकट फटाफट बिक जाते हैं। इस तरह इनके सफल आयोजनों का परिणाम यह हुआ कि नामचीन कवियों के भाव भी आसमान छूने लगे हैं। आयोजकों के लिये कोई मुश्किल नहीं होती क्योंकि कवियों को सुनने ऊंचे दाम के टिकट भी बिक जाते हैं। नामधारी कवि दस-बारह लाख रुपये तक लेते हैं। कुछ कवियों ने बॉलीवुड में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा ली है। इससे कवि सम्मेलनों के बाजार में उन्हें ऊंचे दाम मिलने लगे हैं। कवि सम्मेलनों में अक्सर पांच-छह कवि भाग लेते हैं जिनमें एक-दो के नाम की चमक भीड़ जमा करने के लिए काम आती है। शेष कवि इस तरह के मंच पर बैठने एवं अपनी कवितायें सुनाने का लोभ संवरण नहीं कर पाते। अपना मार्केट बनाने के लिए इस तरह के कवि सम्मेलन उनके लिए इनटर्नशिप का काम करते हैं। वे कम पैसे लेकर आ जाते हैं क्योंकि उन्हें दूरगामी लाभ होता है।


खैर, यह कवि सम्मेलनों का अर्थशास्त्र है। इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिये क्योंकि इसमें मांग और आपूर्ति यानि Demand Supply का फार्मूला लागू होता है।

उत्तर भारत विशेषकर हिन्दी पट्टी के शहरों में हास्य कवि सम्मेलन के बड़े आयोजन इसलिए भी होते हैं क्योंकि वहां के लोग रोजमर्रा जीवन की आपाधापी से परेशान रहते हैं। उन्हें मनोरंजन की ऊर्जा की जरूरत पड़ती है। उनकी दुखती रग को झंकृत करने में हंसाने वाली कवितायें उनके लिये टॉनिक का काम करती है। व्यस्त और अस्तव्यस्त लोगों को हास्य कवि सम्मेलन में हंसने और ठहाके लगाने का मौका मिलता है तो कुछ दिन ही सही वे खुशमिजाज नजर आते हैं। उन्हें साहित्य के प्रति कोई अनुराग नहीं है किन्तु शब्द विन्यास एवं उसके अन्तर्निहित अर्थ मध्य वर्ग में मेहनतकश लोगों को दुर्लभ हंसी को सुलभ कराते हैं।

एक समय था जब भारतीयों में हर राष्ट्रीय और धार्मिक पर्वों पर कवि सम्मेलनों का आयोजन किया जाता था। मनोरंजन के सीमित साधनों के चलते कवि सम्मेलन एक महा आयोजन सा होता था और शृंगार से हास्य तक करुणा से वीर रस तक सब कुछ जन-जन के मन तक पहुंचता था। किन्तु समय के साथ हर चीज का या हर कला का बाजारीकरण होने लगा। 

जल्दी से जल्दी लोकप्रियता हासिल करने की होड़ में साहित्य की गरिमा, सभ्यता और संस्कृति को ताक पर रखकर आवाज, पहनावे और द्विअर्थी संवादों के साथ घटिया और फुहड़ हास्य को अपना कर ऐसे कवि सम्मेलनों की प्रचुरता ने कवि सम्मेलनों के स्वर्णिम युग की हत्या कर दी है। मंच पर माहौल बनाने के बहाने सुत्रधार और कवियत्रियों के बीच के द्विअर्थी संवादों से वाहवाही लूटकर कवि सम्मेलनों को सफल बताने वालों की भूमिका कम नहीं है।

कुल मिलाकर इन कवि सम्मेलनों में लोग द्विअर्थी शब्दों और घटिया चुटकुले सुनकर ठहाके तो लगा देते हैं किन्तु मन से प्रफुल्लित नहीं होते यानि हंसी का नैसर्गिक सुख जो उन्हें कभी मिलता था, अब नदारद है। मैं एक उदाहरण देता हूं प्रसिद्ध शायर निदा फाजली ने एक शेर कहा था- ‘‘अपना गम लेके कहीं और न जाया जाए, घर में बिखरी हुई चीजों को सजाया जाए। घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो कुछ यूं कर लें किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए।’’ आज के तनावपूर्ण, भागदौड़ और प्रतिस्पर्धा के दौर में हास्य की जरूरत पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गयी है। वैज्ञानिक और चिकित्सकीय शोध में यह बात साबित हो चुकी है कि हंसने से मनुष्य का इम्युनिटी सिस्टम भी मजबूत होता है। शहरों में लाफिंग क्लब खुल रहे हैं, जहां लोग मॉर्निंग वाक के बाद इक_े होकर ठहाके लगाते हैं, मुस्कुराते हैं। लाफ्टर शो आयोजित होने लगे हैं। यह चीज समझनी होगी कि हास्य को अपने जीवन में शामिल करने से उनके व्यक्तित्व में निखार आता है। व्यंग्य की एक पंक्ति लोगों को हंसाती भी है और कुछ सोचने-समझने के लिए मानसिक रूप से तैयार करती है। बाबा नागार्जुन का व्यंग्य लोग आज भी गुनगुनाते हैं- ‘‘हास्य से इतर व्यंग्य की चोट बड़ी असहनीय होती है पर जिस पर व्यंग्य किया जाता है वह भी सोचता है।’’ आज का हास्य व्यंग्य किस स्तर पर पहुंच गया है उसका एक उदाहरण इस होली में किसी हास्य कवि के मुखारबिन्द से मैंने सुना। कविता नहीं चुटकुला था- रात में जब सो रहा था, मकान में कुछ हल्ला हुआ। मैंने उठकर खबर ली तो पता चला कि मकान की पानी की टंकी में किसी ने जहर मिला दिया है। सुनकर मैं वापस कमरे में आ गया तो पत्नी ने पूछा क्या बात है। मैंने कहा कि कुछ नहीं पानी पीकर सो जाओ। इस चुटकुले में क्या हास्य है। पत्नी की मजाक या पतियों का व्यंग्य बहुत किये जाते हैं पर क्या हम कल्पना भी (भले ही चुटकुले में) कर सकते हैं पत्नी जहर पीकर मर जाये। किन्तु इस पर भी लोगों ने ठहाके लगाये, पास में बैठी बेचारी महिलायें हत्प्रभ थी। वे समझ नहीं पा रही कि इस पर कैसे प्रतिक्रिया प्रकट करें। साहित्य का बाजारीकरण हो गया है किन्तु उसको पत्नीहन्ता की घृणित सीमा तक पहुंचा कर कवि किस साहित्य का सृजन कर रहे हैं?

इस बार कवि सम्मेलन में एक नया मोड़ आ गया। अलीपुर के विशाल प्रेक्षागृह में लगभग दो हजार श्रोताओं की उपस्थिति में एक कथित कवियत्री ने रामजी पर मधुर राग में रामजी के आने और सनातन करेगा दिल्ली की गद्दी पर राज, गीत सुनाया, पहले स्टेज पर उस कवियत्री ने नृत्य किया फिर नीचे हॉल में श्रोताओं को भी नाचने का आह्वान किया। आधा घंटे तक रामजी के नाम पर खुद ठुमका लगाया और लोगों से भी ठुमका लगवाया। वहां लोग नामी हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा को सुनने की प्रतीक्षा कर रहे थे। सुरेन्द्र जी दो घंटे से मंच पर बैठे थे। हास्य कविता के नाम पर झूमने और नाचने के क्रम से हास्य सम्राट इतने क्षुब्ध हुए कि कविताओं के नाम पर कुछ खानापूर्ति करके उन्होंने अपने काव्यपाठ की इतिश्री की। श्रोता झूमे, ठहाके भी लगाये पर क्या यह कवि सम्मेलन कहा जायेगा? बाद में सुरेंद्र जी ने दिल्ली पहुंचकर मुझे बोले, मालूम होता तो मैं कवि सम्मेलन में जाता ही नहीं।

कवि सुरेन्द्र शर्मा, काका हाथरसी, शैल चतुर्वेदी, मानिक वर्मा, ओमप्रकाश आदित्य, अशोक चक्रधर की शानदार परम्परा को आगे बढ़ाने वाले हास्य कवि हैं, लेकिन उक्त कवि सम्मेलन में उनका हस्र कुछ इस प्रकार हुआ- बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले।


Comments

  1. आप ने एक कड़वी सच्चाई से यहां रूबरू करवाया है।हास्य कवि सम्मेलन के नाम पर फूहड़ हास्य परोसकर लाखो रुपए लेकर ये तथाकथित हास्य कवि सिर्फ और सिर्फ लोगों को बेवकूफ ही बनाते हैं ।

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  2. सामयिक खबर दी और अच्छी खबर ली आपने इन तुकबाज़ों की। सामूहिक जीवन के हर क्षेत्र में सर्कस पसर चुका है। कॉमेडी भी अब सर्कस है। अब तो खैर ऐसे कार्यक्रमों में जाने की इच्छा ही नहीं होती और एक वो भी दौर था जब पहले से तय करते थे और पास नहीं तो टिकट जैसे भी हासिल हो, उसके लिए सोर्स सिफारिश भी लगानी पड़ती तो जोर लगते थे। हाँ, शरद जोशी जी की गद्य परंपरा में संपत सरल का चुटीलापन आकर्षित करता है और वो यूट्यूब पर मिल जाता है। पर समूह में उठते ठहाकों में अपना स्वर मिलाने का सुख गायब हो गया है।

    अब तो रामजी भी लगता है लाचार हो गए हैं।

    होली के साथ नए लेखा वर्ष की शुभकामनाएँ ।

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  3. राम तेरे नाम का हो रहा व्यापार
    हो रहा व्यापार बन रहा व्यवहार
    धिक्कार है धिक्कार है ऐसे व्यापार और व्यवहार पर।।

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