राजनीतिक पार्टियां और जजमान - यह रिश्ता क्या कहलाता है?

 राजनीतिक पार्टियां और जजमान

यह रिश्ता क्या कहलाता है?

हमारे देश में व्यवसाय जगत एवं उद्योगपतियों से राजनीतिक दलों द्वारा चंदा लेना कोई नयी बात नहीं है। यह बात और है कि पहले दो पांच करोड़ रुपये काफी होते थे अब यह राशि कई सौ या कई हजार करोड़ों में पहुंच गयी है। समय के साथ चन्दे की रकम भी उछाल खाती रही। लेकिन इस बार 18वीं लोकसभा चुनाव के पूर्व कुछ ऐसे तथ्य सामने आये हैं जो न सिर्फ चौंकाने वाले हैं बल्कि वे इस बात की चिन्ता पैदा करते हैं कि हमारी डेमोक्रेसी किस दिशा में जा रही है। जनता के लिए और जनता का कहा जाने वाला लोकतंत्र अब जनता से कितना दूर जा चुका है और किसकी गोदी में जाकर बैठा है इसे समझने की जरूरत है। इस बार बहुचर्चित इलेक्ट्रोल बॉन्ड ने हमारे लोकंतत्र की कलई खोलकर रख दी है। अधिकांश बॉन्ड खरीददारों ने वर्तमान शासक भारतीय जनता पार्टी को मुक्त हस्त दान देकर अपनी पसंदीदा सरकार बनाने की मंशा जाहिर की है। कुछ ग्राहकों ने कई राजनीतिक दलों की झोली भरकर यह खुलासा कर दिया कि कौन जाने किस भेष में बाबा मिल जाये भगवान। यह सब प्रकट इसलिए हो गया क्योंकि कुछ स्वयंसेवी गैर सरकारी संस्थाओं ने सुप्रीम कोर्ट को अर्जी लगायी कि इलेक्ट्रोल बॉन्ड धन वसूली का सशक्त माध्यम बन गया है इसको रद्द कर दिया जाये। सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी याचिका मान ली, और बॉन्ड पर भविष्य के लिए विराम लगा दिया। बॉन्ड को गैरकानूनी या अवैध करार करना मधुमक्खी के छत्ते को छेडऩे से ज्यादा खतरनाक था इसलिए उसके भावी लेनदेन को रोक दिया गया।


गैर सरकारी संस्थाओं के पदाधिकारियों के एवं एडवोकेट प्रशांत भूषण ने बताया कि इलेक्ट्रोल बॉन्ड की योजना एक बड़ा घोटाला है। इसके कई शर्मनाक पहलू हैं जिनके बारे में विरोधी दल भी बहुत मुखर नहीं है क्योंकि इस करतूत में शासक दल के साथ बाकी विपक्षी दल भी नंगे हुए हैं। इसलिए बॉन्ड पर बड़े हंगामे की गुंजाइश कम हो गयी है। इलेक्ट्रोल बॉन्ड की खरीद पर जो दांत तले अंगुली दबाने वाले विस्फोटक तथ्य खुलासा हुए हैं उन पर ध्यान देने की जरूरत है।

सोलह ऐसी कम्पनियां हैं जिन्होंने विगत तीन सालों में कोई मुनाफा नहीं कमाया लेकिन उन्होंने कुल मिलाकर 710 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे हैं। इसमें 460 करोड़ रुपये ई-बांड के माध्यम से भाजपा की झोली में डाले गये। बॉन्ड घोटाला योजना के नियमानुसार बॉन्ड जारी होने के पन्द्रह दिन के अन्दर बॉन्ड को कैश करवाना होगा वर्ना वह राशि पीएम रिलीफ फंड में चली जायेगी। स्टेट बैंक ने 15 दिन बीतने के बाद बॉन्ड को कैश कवराने की पेशकश पर वित्त मंत्रालय से पूछताछ की तो बताया गया कि यह धनराशि भाजपा के लिए है। ताकि कोई कानूनी अड़चन नहीं आये। इस तरह सत्ताधारी दल की मदद के लिए यह सुरक्षित फंडा तैयार किया गया।

यह भी याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण व अन्य ने बताया कि कुछ कम्पनियों ने भाजपा को 1,751 करोड़ रुपये इलेक्ट्रोल बॉन्ड के माध्यम से दिये जिसके बदले में उन्हें 62 हजार करोड़ रुपये का धंधा मिला। बात यहीं खत्म नहीं होती। 41 प्रतिष्ठान समूह ने भाजपा को 2471 करोड़ की धनराशि बांड के माध्यम से उस वक्त दी जब सीबीआई, ईडी एवं इनकम टैक्स वालों ने उन्हें जाकर धमकाया। इलेक्ट्रोल बॉन्ड के जरिये जो धन वसूला गया उसका आधा अकेली भाजपा की तिजोरी में गया। लेकिन इस तरह के सौदागरों में भाजपा अकेली नहीं है, कुछ अन्य राज्यों में सत्ताधारी पार्टी ने भी ऐसे ही बड़े प्रतिष्ठानों को अपने जाल में फंसाया।

इलेक्ट्रोल बॉन्ड योजना एक धन वसूली का बड़ा घोटाला है। इस घोटाले की जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से करायी जानी चाहिए। सीबीआी, ईडी की स्वयं इस घोटाले में भागीदारी है इसलिए विशेष जांच दल का गठन किया जाना चाहिए। सारे मामले में राजनीतिक दलों एवं कार्पोरेट वल्र्ड की सांठगांठ बहुत साफ नजर आती है। ऐसे में गरीब या साधारण आदमी तो भगवान भरोसे ही है। इलेक्ट्रोल बॉन्ड योजना नागरिकों के उस मौलिक अधिकार को खारिज कर देता है जिसमें जागरुक व्यक्ति यह जानना चाहता है कि किस प्रतिष्ठान ने किस राजनीतिक दल को कितने दिये। अब जबकि इलेक्ट्रोल बॉन्ड को जाहिर करने का निर्देश दिया गया है, जानकारी मिली है कि 2019 की 19 अप्रैल जबसे राजनीतिक दलों को बॉन्ड के जरिये धन वर्षा शुरू हुई है, कुल 12,5000 करोड़ रुपये की खैराती प्राप्त हुई है।

इस कर्मकांड में दो ²ष्टांत मर्मस्पर्शी है जिसको लेकर काफी चर्चा है। एक तो वैक्सीन बनाने वाली कम्पनी ने 500 करोड़ रुपये दिये इसलिए जबर्दस्ती हमें आपको वैक्सीन लगवायी जा रही थी। एक बात और- जो राम को लाए हैं-इलेक्ट्रोल बॉन्ड भी वही लेकर आये हैं। गाय काटने वाले बूचरखाना चलाने वाली कम्पनी ने भी 250 करोड़ रुपये का चंदा दिया है।

और अंत में-

रुपया बनाम डॉलर

26 मई 2014 : 58 रुपये 86 पैसे

23 मार्च 2024 : 83 रुपये 59 पैसे

इलेक्ट्रोल बॉन्ड की लूट से सीधा सरोकार नहीं है पर देश के आर्थिक हालातों और उसके दुष्परिणामों से खतरे की घंटी आपकी नींद हराम कर सकती है- सन् 2014 में भारत ग्लोबल हंगर इन्डेक्स में 55वें नम्बर पर था अब वह 111वें नम्बर पहुंच गया है।

भारत दुनिया के उन देशों में सर्वोपरि है जहां गरीब और अमीर के बीच की खाई सबसे चौड़ी है। एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2022-23 में भारत की सबसे अमीर एक प्रतिशत आबादी की आय में हिस्सेदारी बढक़र 22.6 प्रतिशत हो गयी है। वहीं संपत्ति में उनकी हिस्सेदारी बढक़र 40.01 प्रतिशत है। भारत में आर्थिक विषमता दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और अमेरिका से भी अधिक है। वल्र्ड बैंक ने भारत को विकासशील देश से हटा दिया है। अब भारत लोअर मिडल इनकम कैटेगरी में गिना जाएगा। भारत जांबिया, घाना, ग्वाटेमाला, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों की श्रेणी में आ गया है।

Comments

  1. इस हम्माम में सब नंगे हैं. कोई पूरा नंगा है और कोई थोड़ा कम ... नंगों का बाजार है .

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