मातृत्व का इससे बड़ा उपहास क्या होगा?
मां को मजबूत बनाते हैं मोदी जी
थैंक यू मोदी जी!
भक्ति की उपासना हमारी संस्कृति का आधार है। हमारे यहां सर्वव्यापी चेतना (शक्ति) की उपासना मातृ-रूप में की जाती है। यह सर्वविदित है कि संसार के समस्त प्राणियों के लिए मातृभाव की विशेष महिमा है। व्यक्ति अपनी सर्वाधिक श्रद्धा स्वभावत: मां के चरणों में ही अर्पित करता है। सर्वप्रथम माता में ही देवत्व का दर्शन होता है- मातृ देवो भव:।
तात्विक ज्ञान कहता है कि यह संपूर्ण ब्रह्मांड किसी देवी शक्ति से ही संचालित हो रहा है। उन्हीं महाशक्ति के बल से न सिर्फ ब्रह्मा सृष्टि की रचना, विष्णु पालन तथा महेश संहार करते हैं, बल्कि हम अपने दैनंदिन कार्यों का संपादन करने में भी सफल होते हैं। मार्कण्डेय पुराण के देवी-महात्म्य में लिखा है- या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेणि संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:। अर्थात् जो देवी सबमें शक्तिरूपा होकर विद्यमान हैं, उनको बार-बार नमस्कार है। अस्तु सभी देवताओं के पूजन के माध्यम से महाशक्ति की अर्चना स्वयंमेव संपन्न हो जाती है।
यह भी एक सुखद संयोग ही है कि सभी धर्मों एवं मान्यताओं में मां की श्रेष्ठता को स्वीकार किया गया है। धर्म और ईश्वर को खारिज करने वाले लोग भी मां के सामने नतमस्तक होते हैं। सोवियत रूस एक साम्यवादी देश रहा जिसके महान् कथाकार मेक्सिस गोर्की ने ‘मां’ उपन्यास की रचना कर अपने रचना कौशल का लोहा मनवाया। लेखक चाहे माक्र्सवादी विचारधारा का हो या मनुवादी मां को अपनी आंतरिक एवं बाह्य शक्ति का केन्द्र मानता है।
भारत में बाजारबाद की जड़ें कितनी गहरी हो चली हैं उसका एक उदाहरण अभी टीवी पर चल रहे एक सरकारी विज्ञापन के जरिये उजागर हुआ है। इस विज्ञापन के संवाद और संदेश को मैं हू बहू लिख रहा हूं-
मां हमें दुनिया की काली नजर से बचाती है
मां हमारे सपने सजाती है
मां हमें पढ़ाती है - बढ़ाती है
मां हमें पैरों पर खड़ा करती हैं
मां हमारे लिए कितना struggle करती है
मां हम सबको मजबूत बनाती है
लेकिन मां को मजबूत कौन बनाता है?
मोदी जी!
किसी को नल देकर, किसी को गैस, किसी को टॉयलेट देकर, किसी को बिजली, किसी को लोन देकर, तो किसी को डिजिटल बनाकर
मेरी मां मजबूत तो भारत मां मजबूत
यह मोदी सरकार की गारंटी है
थैंक यू मोदी जी!
मां को मजबूत बनाते हैंं मोदी जी, गैस, लोन, टायलेट, बिजली देकर- आदि-आदि। राजनीतिक अखाड़े में मोदी सरकार के उपदान को लेकर बहुत तर्क-वितर्क हो सकते हैं, पक्ष में बहुत सारे दावे किये गये हैं एवं विपक्ष ने उन दावों को लेकर मोदी सरकार को घेरा भी है। खैर यह राजनीतिक खेल है हमें इस पर कुछ नहीं कहना है। पर मां को मजबूत बनाते हैं मोदी जी जैसा प्रचार भारत के उन करोड़ों लोगों की भावना को ठेस पहुंचाता है जो मां को भौतिक मर्यादाओं से ऊपर समझती है। मां आधा पेट खाकर भी बच्चों को पालती है। अपना खून पिलाकर भी शिशु का पेट भरती है। भौतिक सुखों से भरपूर जीवन जीने वाले भी मां के ऋण से उऋण नहीं हो पाते।
प्रचार तंत्र भावनाओं में सेंध लगाता है तो उस पर लगाम लगाने की बात कई बार उठी है। इसलिए अभी तक वृद्धाश्रम के विज्ञापन प्रकाशित करवाने की हिम्मत किसी ने नहीं की क्योंकि वे आवश्यक होते हुए भी ‘‘पितृ देवो भव, मातृ देवो भव’’ के हमारे मूल्यों को ध्वस्त करते हैं।
हमारे राजनीतिक नेता कभी अपनी सीमायें लांघ जाते हैं। कभी ‘इंदिरा इज इंडिया’ का नारा भी लगा था हालांकि अखबारों में इश्तिहार देने का दु:स्साहस किसी ने नहीं किया किन्तु कांग्रेस के अंदर और बाहर इस तरह के नारों की कटु आलोचना हुई। समाचारपत्रों ने अपने संपादकीय में इस तरह की भावना के खतरों से लोगों को आगाह किया था। आज इस तरह के मतलब के लिए अंधे होकर यह कहना कि मां हमें मजबूत बनाती है-पर मां को कौन मजबूत बनाता है-(उत्तर) मोदी जी। वह कैसे गैस देकर, लोन देकर, टायलेट देकर आदि-आदि। व्यावसायिक विज्ञापनों में बहुत सारे ग्लैमर एवं सनसनी पैदा करने वाले दावे किये जा सकते हैं। किन्तु सरकार मां को बाजार में खड़ा कर उसे भावनात्मक शोषण का हथियार बनाये इसे कदापि स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। एक बच्चा जिसके लिए मां ईश्वर से भी बड़ी सत्ता है वह यह कभी सोच भी नहीं सकता कि मेरी मां को मजबूत बनाते हैं मोदी जी। मुझे आश्चर्य एवं दु:ख हुआ कि इस तरह की आक्रामक मूल्यविहीन पब्लिसिटी मातृ देवो भव के मानने वालों के देश में कैसे बर्दाश्त की जा सकती है। पश्चिमी देशों में भी भौतिकता एवं खुदगरजी इतनी तुंग पर नहीं हुई कि वे इस तरह के विज्ञापनों को स्वीकार करे।
यह किसी राजनीतिक आलोचना वश नहीं लिख रहा हूं। हमारे आकाओं को आगाह करना चाहता हूं कि मां को बक्शिये, कुछ तो शर्म कीजिये अपने लिये नहीं तो कम से कम बच्चों के लिए। मां का भक्त शक्ति-पुत्र होता है, वह जीवन के झंझावातों में भी कभी निर्बल नहीं होता।
मां और पुत्र के सम्बन्ध पर चार लाइनों की एक मार्मिक कविता के साथ इस आलेख को विराम देना चाहता हूं-
Salute माँ
After hard work from morning to evening
पत्नी पूछती है, क्या बचाया
बच्चो पूछते हैं, क्या लाये
पर मां पूछती है, कुछ खाया?

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