बड़े बेआबरु होकर तेरे कुचे से हम निकले
पिछले सप्ताह एक वैवाहिक कार्यक्रम में फरीदाबाद (हरियाणा) गया। दो दिन बाद दिल्ली आ गया। काफी अंतराल बाद दिल्ली आना हुआ, तो दो दिन वहां भी रुक गया। दिल्ली का मिजाज भी बदला है, राजधानी के रुआब में भी फर्क आ गया। पहले दिल्ली की प्रेस क्लब में कई जाने पहचाने चेहरे नजर आते थे, पर इस बार बड़ा अकेलापन लग रहा था। आईएनएस बिल्डिंग में ठहरा था। यह अखबार वालों का ही मकान है। इसका शिलान्यास भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद एवं उद्घाटन पंडित जवाहर लाल नेहरू ने किया था। विशेषकर दिल्ली के बाहर से निकलने वाले समाचार पत्रों के दफ्तर है इस आईएनएस बिल्डिंग में। यहां से पैदल चलें तो पांच मिनट में संसद भवन पहुच सकते हैं। प्रेस क्लब भी इसके बहुत करीब है। इसमें कई बड़े नेताओं, राजनीतिक पार्टियों की प्रेस कांफ्रेन्स होती रहती है। क्लब का एक हिस्सा कवर्ड है एवं बाहर मैदान भी है। अन्दर बाहर दोनों जगह खाने-पीने की व्यवस्था। मैं जब आईएनएस बिल्डिंग में रुकता हूं तो खाना प्रेस क्लब में खाता हूं। पीने के शौकीन पत्रकारों का यहां का मयखाना बहुत पसन्द है। विशेषकर रात में खाने से ज्यादा पीने वालों की संख्या होती है। मैं ठहरा ‘‘टी टोट्लर’’ इसलिये सबको निर्लिप्त भाव से देखता हूं। खैर, प्रेस वालों के साथ एक गेस्ट भी जा सकता है। मेरे साथ मेरा छोटा बेटा विक्रम ‘जिम्मी’ भी था। इस बार आईएनएस में बुकिंग भी सहज में मिल गयी। यहां कमरा मिलना बहुत मुश्किल होता है। मैंने रजिस्टर में देखा कि बहुत कम लोग आ रहे हैं।
नए संसद भवन के बाहर लेखक
उत्तर भारत के प्रमुख हिन्दी दैनिक अमर उजाला का मुख्यालय एवं प्रेस दिल्ली के पास ही नोयडा में है। कहने को नोयडा उत्तर प्रदेश में है लेकिन व्यावहारिक रूप से दिल्ली का उपनगर ही कहें तो उपयुक्त होगा। अमर उजाला मूलत: आगरा से प्रकाशित दैनिक समाचारपत्र है जिसके अब 22 संस्करण प्रकाशित होते हैं। यूपी, मध्य प्रदेश, हिमाचल, पंजाब, उत्तराखंड के प्राय: सभी शहरों से अमर उजाला का प्रकाशन है। पत्र के सलाहकार सम्पादन श्री विनोद अग्निहोत्री मेरे मित्र हैं। उनसे मिलने चला गया। देश की मौजूदा स्थिति पर विनोद जी बड़े टीवी चैनलों में अक्सर दिखाई देते हैं। विभिन्न विषयों पर बातचीत में हिस्सा लेते हैं इसलिए देश भर में एक वरिष्ठ पत्रकार के रूप में उनकी पहचान है। उनसे मिलने के बाद अखबार के मालिक श्री राजुल माहेश्वरी से मिला। उसी दिन मैं बहादुर शाह जफर मार्ग जहां लाइन से कई प्रमुख समाचार पत्रों के भवन हैं, में स्थित ‘तेज’ बिल्डिंग में गया जहां श्री रमेश गुप्ता के साथ हमें दोपहर का भोजन करना था। वे अखिल भारतीय समाचारपत्र सम्पादक सम्मेपन के वर्तमान में अध्यक्ष हैं। उनके पहले इनके अग्रज श्री विश्वबन्धु गुप्ता इस संस्था के अंतिम सांस तक अध्यक्ष थे। दो वर्ष पूर्व उनका 93 वर्ष की आयु में देहान्त हो गया था। विश्वबन्धु जी का समाचार जगत में बड़ा नाम है। उनके साथ मुझे चीन की यात्रा करने एवं देश में कई शहरों में जाने का अवसर मिला था। विश्वबन्धु जी वर्षों तक राज्यसभा के सदस्य भी थे।
दिल्ली प्रवास में हमारी आतुरता नया संसद भवन देखने की थी। स्वाभाविक है पत्रकार होने के नाते नये संसद भवन को जाकर देखूं। अभी संसद का अधिवेशन नहीं था इसलिये संसद भवन का मुआयना करने में कोई दिक्कत भी नहीं होनी चाहिए, ऐसा मेरा सोचना था। आप जानते हैं कि संसद के दो सदन हैं- लोकसभा और राज्यसभा। लोकसभा में प्रेस विभाग के डायरेक्टर श्री एम के शर्मा से मिला। काफी देर चाय-बिस्कुट पर गुफ्तगू हुई। उन्होंने नये संसद भवन का नक्शा जो उनकी टेबल पर था, दिखाया। पहले से ज्यादा क्षमता है, सुविधायें भी है। मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि दोनों सदनों की प्रेस गैलरी भी बड़ी है। किन्तु सेन्ट्रल हॉल का नये भवन में कोई प्रावधान नहीं है। सेन्ट्रल हॉल दोनों सदन के बीच एक बड़ा हॉल होता है जहां संयुक्त अधिवेशन आयोजित किया जाता है। बजट अधिवेशन के समय राष्ट्रपति दोनों के संयुक्त सत्र का उद्घाटन करते हैं। कुछ समय के लिये मैं आवाक रह गया क्योंकि इसी सेन्ट्रल हॉल में मुझे तीन दिन का पास मिला करता था। ऐसे में वहां बैठकर सभी सांसदों, केन्द्रीय मंत्रियों, पूर्व सांसदों और बाहर से आये हुए वीआईपी जिसमें राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल हैं, से मुलाकात हो जाती थी एवं उनके साथ कुछ देर के लिए अड्डेबाजी करने का मौका मिलता था। संसद भवन में सस्ता खाना भी अब उपलब्ध नहीं है। कुल मिलाकर वे सभी सुविधायें वापस ले ली गयी हैं जिसके चलते पत्रकारों को देश के हालात पर कुछ ताजा जानकारी मिल जाती थी। शर्मा जी ने कहा कि संसद के स्टाफ, कामगार दूर-दूर से आते हैं। पहले सस्ता खाना मिल जाता था पर अब नहीं है। उन्होंने अपने चेम्बर से हमें दिखलाया कि कैसे कुछ कामगार संसद के गलियारेै में थककर लेटे हुए थे। संसद सदस्यों के लिए खाने के लिये पहले जैसी ही व्यवस्था है पर उनके अलावा पास होल्डरों को नहीं। दरअसल प्राय: सभी सांसद संसद भवन के आसपास नार्थ एवेन्यू, साउथ एवेन्यू, मीना बाग, फिरोज शाह रोड आदि में रहते हैं एवं दोपहर में घर जाकर भी खाना खा सकते हैं। दिक्कत उन्हें होती है जो सुदूर क्षेत्रों से आते हैं। इस तरह सेन्ट्रल हॉल नदारद, पास होल्डरों के लिए सस्ता खाना भी अब अतीत की चीज हो गया है। एक और महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ है। अब पास पर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा है कि संसद भवन में किसी मीडिया मैन से बात करना सख्त मना है। लोकतंत्र के मन्दिर में चौथे स्तम्भ यानि प्रेस से बतियाना अब वर्जित है। मैंने प्रेस निदेशक शर्मा जी को कहा कि अब हमारे जैसे लोगों के लिए तो कुछ भी नहीं है। उनका कहना था कि कुछ लोग यहां लॉबी का दुरुपयोग करते हैं इसलिए सरकार ने नये नियम बना दिये हैं। आप अधिवेशन के समय आइये- प्रेस गैलरी की सुविधा है (जहां से आप संसद के माननीय सदस्यों की कार्रवाई को देख सकते हैं।) मैंने सोचा कि यह तो लोकसभा, राज्यसभा टीवी पर ज्यादा सलीके से घर बैठे देखी जा सकती है। नये संसद भवन को भी देखने पर अभी प्रतिबन्ध है। कुछ दिन पहले दो नवयुवक हरी गैस के साथ दर्शक दीर्घा से कूद गये थे। देश के भाग्य विधाता सर्वोच्च सदन का जब नया भवन बना था, प्रधानमंत्री ने उसकी खूबियां गिनाते हुए कहा कि यह सदन पहले वाले से कहीं ज्यादा सुरक्षित एवं महफूज है। ऐसे चाकचौबंद उच्च सुरक्षित सदन में कैसी सुरक्षा है इसकी हवा पहले सत्र में ही निकल गयी थी। दो युवक अन्दर और तीन बाहर ने संसद की सुरक्षा को ठेंगा दिखाकर अपनी उदंडता को अंजाम दिया था। वे सभी जेल में हैं एवं उन्हें किये की सजा मिल ही रही है। जिस सांसद ने उनको अंदर आने का पास बनवा कर दिया वे अभी 18वीं लोकसभा चुनाव की तैयारी में लगे हैं।
जाहिर है लोकतंत्र के नये मंदिर को देखने और उसकी सुविधाओं का जायजा लेने की हमारी तमन्ना दिल में ही रह गई। लोकतंत्र के इस भव्य एवं विशाल मंदिर के बंद पट के सामने अपनी फोटो खिंचवाकर हम अपना सा मुंह लेकर लौट आये।
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वाह सर, लेख तो बड़े मन से पढ़ा... पर आपकी अंतिम पंक्ति पढ़ कर हँसी आ गयी।😄
ReplyDeleteवर्तमान परिदृश्य की वास्तविक जानकारी प्रभावपूर्ण शब्दो मे, बढ़िया
ReplyDeleteThank you for throwing light on the current status of democracy and the lost importance of the fourth pillar media. India is a democratic country but this term has actually lost it's significance. Felt extremely blessed to have this opportunity to read your article. Thank you for sharing.
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