अहम् ब्रह्मास्मि!
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को इस बात का श्रेय मिलना ही चाहिये कि उन्होंने अब तक की चली आ रही सभी मान्यताओं, विश्वास और रीति रस्मों की हवा निकाल कर रख दी। जगद्गुरू शंकराचार्य पीठाधीश के स्वामी हों या मठों के मठाधीश। जब राम लल्ला की प्राण प्रतिष्ठा हुई तो उसका अपने नक्षत्रानुसार मुहूर्त निकाला गया और पूरे मंत्रोच्चारण के साथ आंख की पट्टी खोली गई। विराजे राम लल्ला ने देखा वही जो वे दिखाना चाहते थे। अपने अपने मठों में और पीठों पर धर्माचार्य या महाचार्य नाक भौंह सिकोड़ते रह गये और राम लल्ला प्राणवान हो गये। भगवान श्री राम को इस तरकीब की जानकारी नहीं थी वर्ना एक धोबी के घुसुर पुसुर को वे इसी तरह हवा में उड़ा देते जिस तरह धर्म के आलाकमानों द्वारा जारी किये गये दिशा निर्देश को सत्ता ने फंूक मारकर धराशाई कर दिया। कुल मिलाकर राजनीतिक तेजस्विता धर्मसत्ता पर भारी पड़ गई और सनातनी पराक्रम पेपर टाइगर साबित हुआ। जनकपुरी में सीता स्वयंवर के लिये पधारे कई राजा-नरेश अपने अपने राजमहलों में जाकर सिमट गये और दशरथ-नंदन क्षत्रीय पुत्र राम के गले में सीता ने वर ताला डाल दी। शिवजी के धनुष को तोडऩा सिर्फ और सिर्फ श्री राम के ही बूते की बात थी। यह अलग बात है कि किस्मत सभी ने आजमाई। प्राण प्रतिष्ठा में शंख ध्वनि बहुतों ने की पर मिट्टी की मूरत को जीवन्त बनाना अकेले मोदी जी के ही ‘पौरुष’ का ही कमाल था। कांग्रेस के प्रवक्ता आचार्य श्री प्रमोद कृष्णम ने ठीक ही कहा कि अयोध्या में मन्दिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ही बना लेकिन नरेन्द्र मोदी रामभक्त नहीं होते तो यह मन्दिर नहीं बनता। प्रमोद कृष्णम जी पूरे खेल में अपनी दाढ़ी नोचतेे देखे गये क्योंकि उन्होंने सोचा था कि सोनियाजी, राहुलजी प्राण प्रतिष्ठा में अंतोतगत्वा शामिल हो जायेंगे। उनकी हार्दिक इच्छा थी कि राजीव गांधी ने जिस मन्दिर स्थल के दरवाजे का ताला खुलवाया और उसका शिलान्यास करवाया, उसकी इतिश्री एवं परिणति में भी उनका परिवार अवश्य शामिल हो गया। पर ऐसा नहीं हुआ। सोनिया जी ने यह कहकर निमंत्रण खारिज कर दिया कि पूरे आयोजन का राजनीतिकरण हो रहा है अत: वहां जाना उन्हें मुनासिब नहीं लगता।
प्राण प्रतिष्ठा जिन पंद्रह जोड़े जजमानोंं ने करवाई उनपर टीवी का फोकस नहीं हो पाया। अधिकांश लोगों को उन पांच भाग्यशाली महन्तों का नाम भी नहीं पता लगा जिन्होंने इस अभूतपूर्व मांगलिक आयोजन को आयाम प्रदान किया। टीवी परिदर्शन का क्रिकेट मैच या आईपीएल की तरह एक टीवी चैनल को एकाधिकार का सौभाग्य दिया। इसमें उनकी भी कोई गलती नहीं थीं क्योंकि ‘बरसी वहां, वहां पे, समंदर थे जिस जगह, ऊपर से हुकुम था, तो घटाएं भी क्या करें।’
खैर, जो हुआ ठीक ही हुआ। जो बोता है, वहीं तो फसल काटता है, इसलिए भले ही कुछ सन्त महात्मा, हाथ मलते रहे अपनी बौखलाहट छिपा न सके और साधु के भेष में आकर रावण सीता को हर ले गया। अब तो हर साल 22 जनवरी को राष्ट्रीय प्रतिष्ठा दिवस मनाने की घोषणा की बात चल रही है। इसी प्रतिष्ठा दिवस को राष्ट्रीय छुट्टी की घोषणा भी हो सकती है। इन संभावनाओं के बीच बिहार में बड़ी उठापटक हो गई। नीतीश जी ने नौंवी बार पलटी मारी। उनके इस अभूतपूर्व करिश्मेे को भी राम नाम के साथ जोड़ दिया गया। वे पलटूराम कहलाये। राम भक्तों ने भी राम नाम की इस दुर्लभ संधि को आत्मसात कर लिया। हमारे देश में राम शब्द का प्रयोग व्यापक है- अनन्त है राम नाम का फलक। मैंने पहले भी लिखा था कि हमारे देश में राम के नाम का सर्वाधिक प्रयोग किया गया है। कथाओं में कहानियों में, आचार व्यवहार में, लोकोक्तियों में, मुहावरों में, भय से, प्रेम से, आशा और निराशा में, यहां तक कि अपने विकारों की अभिव्यक्ति में भी राम नाम सुगमम है। इसके लिये किसी की अनुमति लेनी नहीं पड़ती। कहा भी गया है- ‘राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट’ और पूर्ण विराम नहीं लगाया जाता। भय भी दिखाया जाता है कि- ‘अन्तकाल पछतायेगा, जब प्राण जायेंगे छूट।’ हमने ऊपर पलटू राम का जिक्र किया। जिसे मुकुट मणि की तरह नीतीश कुमार को उनके नौवें अवतार के बाद पहनाया गया। इसमें पहले ऐसे क्रिया कलाप को ‘आया राम - गया राम’ के जुमले से विभूषित किया जाता रहा है। मजे की बात यह है कि इस तरह के नकारात्मक कार्य या ‘फजीहत कराने डॉट कॉम’ वाली हरकतों को भी राम के नाम के साथ ‘अटैच’ करने से परहेज नहीं किया गया। इससे राम नाम के महा सागर की अथाह सम्पदा में कोई फर्क नहीं पड़ता।
इस परिपेक्ष्य में अगर रामलल्ला को लाने एवं उन्हें एक विशाल आलीशान मन्दिर में स्थापित कर प्राणवान करने के संकल्प को पूरा करके पांच सौ वर्ष के लम्बे संघर्ष को अंजाम देने के स्तुत कार्य का महाप्रसाद का हक मिले यह स्वयंसिद्धा है। इसके लिये तर्क ही आवश्यकता नहीं है। इन्दिरा जी की हत्या के बाद उनकी चिता के पास पुत्र राजीव गांधी को दूरदर्शन पर घंटों तक दिखाया जाना उन्हें चार सौ के पार दिलवा सकता है तो फिर 2024 के चुनाव परिणामों में संदेह करना उचित नहीं होगा।
2024 लोकसभा चुनाव के प्रति मोदी जी की सरकार स्वाभाविक रूप से आश्वस्त हंै। उसके परिणाम में कहीं कोई संदेह की गुंजाइश नहीं लग रही है। यही कारण है कि अंतरिम बजट में वित्तमंत्री सीतारमण जी ने कोई लोकलुभावन प्रस्ताव नहीं रखा। हालांकि देश में अब तक के सभी अंतरिम बजटों में एक ही बात की समानता है कि उनमें ऐसे प्रस्ताव शामिल किये गये जो उस वक्त की सत्तासीन दल को चुनाव जिताने में मदद कर सके। निर्मला जी ने पहले ही कह दिया था कि वे कोई लोकार्षक बजट पेश नहीं करने जा रही हैं। उसी के अनुरूप अन्तरिम बजट के प्रस्तावों में इसके सिवा कि एक करोड़ घरों को मुफ्त सौर ऊर्जा प्रदान की जायेगी कोई लोकप्रिय बजट प्रस्ताव नहीं है।
राम मन्दिर प्रकरण के बाद देश में राजनीतिक अटकलबाजियों की गुंजाइश नहीं के समान है। विपक्ष का इंडी गठबंधन करीब करीब टूट चुका है एवं इसमें शामिल दल सह प्रतिभागियों के विरुद्ध मुखरित हो गये हैं। पं. बंगाल की तृणमूल सुप्रीमो ने तो कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और अकेले चुनाव लडऩे की घोषणा कर दी। नीतीश निकल ही नहीं गये मोदी जी के डबल इंजन वाली रेल में बैठ गये। आम आदमी पार्टी ने पंजाब में सभी सीटों पर चुनाव लडऩे की घोषणा कर दी है। कांग्रेस के नेता श्री जयराम रमेश ने कहा है कि इंडिया गठबंधन लोकसभा चुनाव के लिए है, विधानसभा के लिए नहीं। इस तरह के वक्तव्य से आम आदमी भ्रमक स्थिति के भंवर में फंस गया है। लोकसभा और राज्य की विधान सभाओं में अलग अलग मानसिकता एकाध जगह को छोडक़र कहीं पर भी नहीं बनी। ऐसे में देश की वर्तमान परिस्थिति को ठाकुरजी का प्रसाद समझ कर चबा जाइये एवं गले उतार लीजिए। श्री शिवमंगल सिंह की कविता की दो पंक्तियां याद आ गईं उसी से इस चिन्तन का उपसंहार करना ही उचित होगा-
मैं नहीं आया, तुम्हारे द्वार
पथ ही मुड़ गया था।

देश के सभी नेतागण सिर्फ आपसी रंजिश और तोड़ फोड़ में ही लगे रहते हैं, जिसे देखकर अत्यंत पीड़ा होती है। आपका यह लेख पढ़कर आनंद आ गया। साधुवाद।
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