गुजरने के 60 वर्ष बाद भी क्यों नेहरू का भय सता रहा है?
शिवसेना के मुखपत्र सामना ने कुछ वर्ष पहले अपने एक सम्पादकीय में लिखा था कि अगर नेहरू भारत के प्रधानमंत्री नहीं होते तो मोदी जी जिस भारत के प्रधानमंत्री होते वह अफ्रीका का कोई देश जैसा ही होता। पिछले दिनों लोकसभा एवं राज्यसभा में बजट सत्र के समापन पर प्रधानमंत्री श्री नेन्द्र मोदी ने कांग्रेस की कटु आलोचना करते हुए भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर जबर्दस्त हमला किया। स्वाभाविक सवाल उठता है कि आज की हुकूमत को उस नेता के गुजरने के 60 वर्ष बाद भी उसका सा भय क्यों सता रहा है।
पं. जवाहर लाल नेहरू देश के स्वतंत्रता संग्राम में एक योद्धा के रूप में लगभग दस वर्ष जेल के सलाखों के पीछे रहे जबकि मोदी जी या उनके पार्टी के नेता एक दिन भी जेल जाना तो दूर ब्रिटिश सरकार के प्रकोप का कभी शिकार नहीं हुए। यह विडम्बना हे कि जिस पार्टी को लोगो ने एक दिन भी ब्रिटिश परतंत्रता के विरुद्ध संग्राम नहीं किया उनके नेता आज कोशिश कर रहे हैं कि नेहरू के अवदान को भारत के इतिहास से नेस्तानाबूद कर दिया जाये। मोदी जी एवं उनके अंधभक्तों को चाहिये कि वे पं. नेहरू के बारे में उनकी पार्टी के सबसे प्रतिष्ठित एवं अग्रणी नेता अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, भैरोसिंह शेखावत द्वारा नेहरू के कार्यों पर की गई टिप्पणी को एक बार फिर सुन ले। अटल जी ने संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर बोलते हुए कहा था कि विचारों में मतभेद होते हुए भी नेहरू के आजादी पूर्व एवं बाद में योगदान को नहीं स्वीकरना भारी भूल होगी।
आजादी के संघर्ष में कांग्रेस के नेता एवं महामा गांधी के विश्वसनीय सिपाही के रूप में जवाहर लाल की अहमियत को किसी राग या द्वेष के कारण कम आंकना उचित नहीं। स्वतंत्रता के तुरंत पश्चात् जब अंतरिम सरकार बनी तो कांग्रेस की कार्यसमिति में बेशक सरदार बल्लभ भाई पटेल के समर्थकों की संख्या अधिक थी किन्तु महात्मा गांधी की सलाह पर नेहरू को ही चुना गया। यह जानना जरूरी है कि गांधी जी ने नेहरू को ही देश के पहले प्रधानंमत्री पद का दायित्व क्यों सौंपना चाहा। पटेल और गांधी दोनों गुजराती थे। यही नहीं सरदार पटेल गांधी जी के अनुयायियों में सबसे आगे थे। किन्तु वे लौह पुरुष यानि अडिग रहनेवाले एवं फौलादी इरादों वाले व्यक्ति थे। गांधी जी चाहते थे कि एक ऐसा नेता प्रधानमंत्री बने जिसमें अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक की समझ हो एवं उससे भी ज्यादा जरूरी था कि कांग्रेस के अन्दर व बाहर के सभी समूहों को साथ लेकर चलने की कूबत हो। इस कसौटी पर नेहरू का व्यक्तित्व ज्यादा कारगर साबित होगा, यह गांधी जी की सोच थी। सरदार पटेल की राष्ट्रभक्ति, प्रशासनिक क्षमता किसी संदेह के परे है किन्तु नेहरू के स्वभाव में जो उदारता एवं समावेशी दृष्टि थी वह पटेल में नहीं थी। पटेल की ही क्षमता थी कि 6 सौ रियासतों को भारत में विलय करा सके किन्तु विभिन्न विचारधाराओं के सूरमाओं को अपने साथ लेकर आगे चल सके इसमें नेहरू पर गांधी को ज्यादा भरोसा था। पटेल एवं नेहरू दोनों के व्यक्तिव की बारीकी से समझ गांधी को ही थी। इसलिए नेहरू को प्रधानमंत्री चुना गया एवं सरदार पटेल ने उप प्रधानमंत्री व गृहमंत्री का दायित्व सम्हाला। 1952 में पहला आम चुनाव हुआ तब तक पटेल का स्वर्गवास हो गया एवं देश की पहली चुनी हुई सरकार के नेहरू प्रधानमंत्री बने।
नेहरू जी ने अंतरिम सरकार के समय अपने प्रधानमंत्री काल में उनलोगों को भी मंत्रिमंडल में बड़ा पद दिया जिनके साथ कुछ मामलों में उनके वैचारिक मतभेद थे। जैसे श्री बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर, यहां तक कि विपरीत विचारधारा के डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी नेहरू मंत्रिमंडल में शामिल किये गये। पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से संतुलित विकास, मिश्रित अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत भरत में सरकारी उपक्रमों का गठन और संचालन नेहरू की देन है। ‘सेल’ के अन्तर्गत चार दिग्गज इस्पात कारखाने इंग्लैंड, सोवियत रूस, जर्मनी के तकनीकी सहयोग से स्थापित किये गये। इन कारखानों के फलस्वरूप आज भारत में तीस लाख से अधिक लोहे के पंजीकृत व्यापारी एवं दुकानदार हैं जिनकी वार्षिक आय एक लाख से कई करोड़ तक की है। भारत के बड़े उद्योगपतियों एवं अमेरिका जैसे शक्तिशाली पूंजीवादी देश के विरोध के बावजूद नेहरू ने भारत के पेट्रोल यानि खनिज तेज का अनुसंधान किया, ऑयल एंड नेचुरल गैस (ओएनजीसी) की स्थापना की। उसी प्रयास का नतीजा है कि भारत अपनी जरूरत का एक तिहाई पेट्रोल खुद बनाता है। यही नहीं एफसीआई, फर्टिलाइजर कार्पोरेशन, अंतरिक्ष अनुसंधान हेतु इसरो जैसे एक दर्जन से अधिक दिग्गज संगठनों की स्थापना नेहरू युग की देन है जिसके बल पर भारत की आर्थिक प्रगति सबसे तेज रफ्तार से चल रही है। कालान्तर में हरित क्रान्ति, श्वेत क्रान्ति, प्रतिरक्षा हेतु ऑर्डिनेन्स फैक्ट्री, जीआरएसई, के साथ तकनीका शिक्षा हेतु आईआईटी, स्वास्थ्य के क्षेत्र में एम्स बनाने एवं उसके विस्तार का श्रेय जवाहर लाल नेहरू एवं उनकी वैज्ञानिक सोच को है जिसका अनुसरण श्रीमती इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिम्हा राव ने किया। कालान्तर में बैंकों का राष्ट्रीयकरण का साहसिक कदम श्रीमती इन्दिरा गांधी ने उठाया और राजीव जी ने सफल संचार क्रान्ति का इतिहास रचा जिसमें शैम पेट्रोडा उनके अभिन्न सहयोगी थे।
आजादी के वक्त मात्र सात गांवों में बिजली थी। आज शायद ही ऐसा गांव हो जहां बिजली न हो। मात्र 5 प्रतिशत रेल पटरियां ब्रॉडगेज थी आज 95.4 प्रतिशत रेल ट्रैक ब्रॉडगेज है एवं राजधानी, दूरंतो, शताब्दी जैसी तेज गति से चलनेवाली ट्रेनें हैं। भारत में विश्वस्तर के विश्वविद्यालय हैं, तकनीकी कॉलेजों का जाल फैला हुआ है और इसमें अधिकांश कार्य नेहरू जी के समय से पूरा हो गया था। भाखड़ा नंगल जैसा विश्वस्तर का डैम बनाया गया। भारती पंचशील जैसे विश्व शान्ति के मूल मंत्र का जनक बना, पंडित नेहरू गुटनिरपेक्ष देशों के सर्वमान्य नेता बने। यही नहीं साम्यवादी रूस एवं पूंजीवादी अमेरिका दोनों ने भारत के साथ सम्बन्ध को अहमियत दी। नेहरू के नेतृत्व में ही गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों का खेमा तीसरी शक्ति के रूप में उभरा था।
मोदी जी के नेहरू एवं गांधी परिवार पर लगातार आक्रमण के पीछे भी उनका भय है कि इस परिवार के अवदान को अगर भुलाया नहीं गया तो उनका सिक्का चलनेवाला नहीं है। लेकिन मोदी जी को समझ लेना चाहिये कि भारत भूमि इतनी कृतघ्न नहीं है कि नेहरू-गांधी परिवार के स्वतंत्रता संग्राम एवं उसके उपरान्त विकास में अहम भूमिका को भूल सकें। अतीत में नेहरू जी के बारे में कई भ्रामक बातें फैलायी गई। कश्मीर की समस्या नेहरू की देन है, उनमें से एक है जबकि सच्चाई यह है कि अगर नेहरू व शेख अब्दुला प्रयास नहीं करते तो कश्मीर का भारत में विलय नहीं होता। नेहरू-पटेल मतभेद को बढ़ा चढ़ा कर गिना जाता है। वंशवाद, परिवारवाद की बात तो रोज सुनने में आती है। जब तक नेहरू जिन्दा थे श्रीमती इन्दिरा गांधी संसद की सदस्य भी नहीं चुनी गई। न ही इन्दिरा जी की राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में कोई भूमिका थी। इन्दिरा व राजीव दोनों ही अतिवाद के शिकार हुए एवं उन्हें प्राण गंवाने लड़े। गांधी नेहरू परिवार के बलिदान की तुलना भारत के किसी भी परिवार से नहीं की जा सकती ह।

गांधी- नेहरू परिवार के योगदान को याद देश हमेशा याद रखेगा चाहे इसे मिटाने वाले जितनी भी कोशिश कर ले, वे स्वयं मिट जाएंगे, पर इन्हें नहीं मिटा पाएंगे।
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