आनन्दलोक के डीके सराफ जी
अपने पागल प्रलाप में भगवान का नाम तो मत घसीटिये
आनन्दलोक अस्पताल एवं उसके कर्णधार डी के सराफ ने सोमवार 8 जनवरी को हिन्दी के कुछ समाचारपत्रों में पूरे पेज का विज्ञापन छपवा कर प्रलाप किया है। सराफ जी के दिल और दिमाग में जहर भरा है जिसे वे न उगल पा रहे हैं, न ही निगल पा रहे हैं। इस बार उनकी सनक का शिकार रामलला हो गये और पता नहीं उनके विज्ञापन के शीर्षक ‘‘रामलला तुम मत आना’’ से उनका क्या अभिप्राय है। हर बार की तरह उस लखटकिया विज्ञापन में सेठ साहूकारों पर थू-थू किया है। देवकुमार सराफ ने अपनी भड़ांस निकालने के लिए इस बार राम जी का सहारा लिया है। बहुत से समाज सेवियों को अयोध्या में मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में आने का निमंत्रण बांटा जा रहा है। ठाकुर-ठाकुर करने वाले और राम नाम जपना पराया माल अपना की कहावत को चरितार्थ करने वालों को ऐसी पुण्यात्माओं की लम्बी सूची में शामिल नहीं किया गया। बेचारे देवकुमार खिसियानी बिल्ली की तरह खंभा नोचते ही रह गये। उन्होंने उपरोक्त विज्ञापन में कई बहकी-बहकी एवं बिना सिर पैर की बातें लिखी है। और अंतिम पैरा में भगवान से उन्हें मनुष्यत्व का जामा पहाने की याचना की है। फिर थूक बिलोते बिलोते सराफ जी लिखते हैं ‘‘इन तथाकथित सेठ-साहूकारों को, इन समाजसेवकों को, इन पंडित पुजारियों को कभी माफ मत करना जो एक तरफ तो भागवत का पाठ करवाते हैं और दूसरी ओर तुम्हारी निन्दा पर निर्विकार भाव से चुप रहते हैं। ठाकुर तुम्हीं सोचो कि मानवता के कितने बड़े शत्रु हैं।’’ इस तरह सेठ साहूकारों के मोटे चन्दे से एक गैरेज में शुरू हुई आनन्दलोक की कई शाखाएं खोली। बिड़ला जी से झूठ बोलकर दान की मोटी रकम ली। आज बिड़ला पार्क में सराफ जी की नो इन्ट्री है क्योंकि बिड़ला हाउस के वर्तमान कर्ताओं ने सराफ जी की असलियत का पता चल गई।
डी. के. सराफ
मैंने पहले भी डी के सराफ जी को चुनौती दी थी कि उन्होंने गरीबों के लिये हजारों मकान बनाने का दावा किया था, उसकी सूची दें वर्ना अपना यह भ्रमजाल समेट लें। प. बंगाल सरकार के एक ब्लाक डेवलपमेंट अधिकारी ने राज्य सरकार को एक पत्र लिखकर बताया कि जिन 90 मकानों की सूची आनन्दलोक के कर्ता देवकुमार सराफ ने भेजी है उसमें काफी खोजबीन के पश्चात् मात्र एक मकान के अस्तित्व का पता चला है। उस पत्र को मैंने छपते छपते में प्रकाशित कर झांसा-शिरोमणि को चुनौती दी कि वह अपने दावे को प्रमाणित करें या फिर दानदाताओं की आंख में धूल झोंकने से बाज आयें।
एक अप्रवासी भारतीय महिला ने सराफ जी को अस्पताल बनाने के लिए दान में बड़ी रकम दी। सराफ जी ने कहीं भूमि पूजा भी करवा ली। लेकिन वह कथित अस्पताल आज तक नहीं बना। उस अप्रवासी महिला के पास चन्दे की रसीद है जिसकी छाया प्रति हमने अखबार में छापी। सराफ जी उसकी रकम डकार गये और अब वह अप्रवासी महिला जब कभी भारत आती है सराफ जी उसके सामने आने की हिम्मत नहीं करते।
आनन्दलोक का कोविड की बीमारी में कोई सेवा की भूमिका नहीं थी जो चिकित्सा के क्षेत्र में आज तक की सबसे बड़ी घटना है। इस दौरान सराफ जी ने अपना इलाज भी किसी अन्य अस्पताल में करवाना ही बेहतर समझा।
सराफ जी अपने सेवा कार्यों के लिए अपनी पीठ खुद ही ठोक लेते हैं। कई बार जनसेवा में अपनी हेकड़ी की बात करते समय वे भूल जाते हैं कि कलकत्ता में कई संस्थान हैं जो मुफ्त में चश्मा देते हैं। चक्षु ऑपरेशन में परिवार मिलन के मुकाबले सराफ जी का आनन्दलोक बौना है। अपने को चिकित्सा सेवा में अग्रणी की ताल ठोकने वाले पाखंडी देवकुमार सराफ को नहीं मालूम कि पुष्करलाल केडिया ने जनसेवा में अपना पूरा जीवन लगा दिया था। लकवाग्रस्त होने के बाद भी 20-25 वर्ष वे अंतिम सांस तक सेवा में लगे रहे। उनके द्वारा तैयार किये गये कई सामाजिक कार्यकर्ता कई सार्वजनिक संस्थाएं चला रहे हैं जबकि सराफ जी ने एक कार्यकर्ता तैयार नहीं किया। श्री सरदार मल कांकरिया ने समाज के सहयोग से अस्पताल एवं स्कूलें बनायी और 95 वर्ष की उम्र में भी सेवा मूलक कार्य कर रहे हैं। ऐसे अनेकानेक ²ष्टांत हैं जिसमें लोगों ने लोक कल्याण की अलख जगाई और जीवन दानी कहलाये।
अभी हाल के विज्ञापन में सराफ जी ने लिखा है कि वे बिना जाति धर्म के भेदभाव के सेवा कर रहे हैं। उन्हें जानकारी नहीं है या फिर वे जानकर अनजान बन जाते हैं कि मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी, विशुद्धानन्द अस्पताल, जैन हॉस्पिटल, लायन्स क्लब हावड़ा अस्पताल में जाति धर्म से ऊपर उठकर काम हो रहा है। हिन्दू-मुस्लिम सभी धर्मावलम्बियों की चिकित्सा हो रही है किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होता। यही नहीं बड़ाबाजार में मारवाड़ी समाज द्वारा स्थापित स्कूलों में बड़ी संख्या में मुस्लिम समाज के छात्र-छात्राओं को बिना भेदभाव के शिक्षा दी जा रही है। अगर विश्वास नहीं तो विशुद्धानंद स्कूलें, टांटिया हाई स्कूल, मारवाड़ी बालिका विद्यालय में जाकर स्वयं देख लें। दरिद्रनारायण की सेवा में कई संस्थायें जुटी हुई हैं एवं ऐसे नि:स्वार्थ सेवाभावी लोगों की कमी नहीं है।
आनन्दलोक के पूर्व चेयरमैन श्री ओमप्रकाश धानुका एक ऐसे अजातशत्रु हैं जिनका परिवार अपने सेवा भाव के लिए जाना जाता है। उन्होंने आनन्दलोक में अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया था और सराफ जी के अनुनय विनय के बाद भी नहीं माने। वर्तमान चेयरमैन श्री अरुण पोद्दार ने भी सराफ जी के इस तथाकथित सेवा प्रतिष्ठान के अध्यक्ष पद छोड़ दिया था किन्तु सराफ जी ने किसी तरह उनके पांव पकडक़र त्यागपत्र वापस करवाया। सराफ जी ने अखबारों में विज्ञापन देकर सूचित किया कि पोद्दार जी मान गये हैं। अब हर विज्ञापन में उनकी फोटो सबसे ऊपर छापते हैं, हालांकि उन विज्ञापनों में सराफ जी नाम सिर्फ अपना ही देते हैं। कई उद्योगपतियों एवं समाजसेवियों का मानना है कि अरुण जी पोद्दार किसी मजबूरी के कारण इस संस्थान से अपने को मुक्त नहीं कर पा रहे हैं। कुछ ट्रस्टियों ने भी आनन्दलोक से त्यागपत्र दे दिया था किन्तु उन्होंने सराफ जी द्वारा चरण वंदना के बाद इस्तीफा वापस ले लिया। डी के सराफ अपने जीवन के 84 बसन्त एवं पतझड़ देख चुके हैं, वे स्वस्थ रहें, दीर्घायु हो किन्तु भगवान के लिए किसी समाज को या बुद्धिजीवियों को गाली देने से बाज आयें। कोरड़ों रुपये विज्ञापन पर खर्च कर अपनी छवि को निखारना छोडक़र इस धन का सदुपयोग लोक कल्याण हेतु करें। कुत्ता भी जब बैठता है तो अपनी जगह साफ कर लेता है, सराफ जी आपका पांव कब्र में लटक रहा है, अब कुछ तो ईमानदारी बरतिये।
तथाकथित समाजसेवियों की ऐसे लम्बी फ़ेहरिस्त है
ReplyDeleteकमाल मुंह में राम बगल में छूरी। खुद का अस्पताल पर अपना इलाज दूसरे के यहॉं। बिड़ला गेट बंद। प्रवासी महिला से नज़र न मिलाएं। गजब। खटिया खड़ी कर दिए।
ReplyDeleteआदरणीय आप हमेशा दोहरा मुखौटा लगाने वालों के मुखौटे नोच कर उन्हें बेनकाब करते हैं। ये महाशय भी वैसे ही दोहरे मुखौटे वाले हैं। मरीजों के धन को इतर माध्यम से उड़ाना इनका शगल है, अब आपने कलम उठा ली है, तो इनको सुधरना ही होगा।...धन्यवाद आपको।
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