चुनाव में वादों से जी भर गया तो अब राजनेताओं ने गारंटी का भ्रमजाल बुन दिया
कई वर्ष पहले बड़ाबाजार के सत्यनारायण पार्क में एक बहुत बड़े शायर आये थे। उनका नाम था शमसी मिनार्क। मेरी उम्र कम थी। उनको सुनने का मौकाी मिला। शमसी मिनार्क साहब की एक कविता की कुछ पंक्तियां मुझे आज भी याद है-
सब कुछ है अपने देश में
रोटी नहीं तो क्या
वादे लपेट लो जो
लंगोटी नहीं तो क्या
हाल के वर्षों तक राजनीतिक दल विशेष रूप से चुनावी सभाओं में वादों की वर्षा करते थे एवं जनता उन वादों पर भरोसा करती थी। गीरीबी हटाओ से लेकर हर हाथ को काम हर खेत को पानी तक के लोक लुभावन वादे सरकारी पक्ष के दलों द्वारा किये गये। हमारे गणतांत्रिक देश में प्राय: सभी राजनीतिक दलों को सत्ता सुख प्राप्त हुआ है। केन्द्र में और राज्य दोनों में हर पार्टी थोड़े-बहुत समय के लिए सत्ता में रही है। वादा करना और फिर उसे भूल जाने पर किसी प्रेमी-प्रेयसी का एकाधिकार नहीं रहा, राजनीति में भी इसकी घुसपैठ हुई। ‘‘वादा तेरा वादा, वादे पे तेरे प्यार आ गया’’ वगैरह गीत लोकप्रिय हुये क्योंकि इसमें नीहित भाव सच्चाई की कसौटी पर खरे थे।
अभी-अभी पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव हुए जो सबसे अधिक चर्चा में है। विश्लेषण तो हर चुनाव परिणाम का होना चाहिए। अब भी होगा। पर एक बात तो इस बार स्पष्ट उभर कर सामने आयी है वह यह है कि राजनीतिक दल यह मानकर नहीं चल सकते कि मतदाता उनकी बात पर भरोसा करेगा ही। न ही यह माना जा सकता है कि मतदाता को हमेशा भरमाया जा सकता है। इसी तरह, इस बात पर भी विचार होना चाहिए कि हमारे यहां जिस तरह का चुनाव प्रचार होता है, या फिर मतदाता को रिझाने की जिस तरह से कोशिशें होती हैं, वह जनतांत्रिक मूल्यों की ²ष्टि से कितनी सही है?
इस चुनाव में हमने देखा कि वादे और दावे तो हुए ही, एक नया शब्द भी ईजाद किया गया- गारंटी। वैसे तो वादा भी गारंटी ही होना चाहिए, पर इस बार चुनाव-प्रचार में इस शब्द पर विशेष जोर दिया गया। कांग्रेस पार्टी ने शायद सबसे पहले यह शब्द काम में लिया था, फिर प्रधानमंत्री ने इसे ‘‘मोदी की गारंटी’’ कह कर लपक लिया। भले ही यह किसी ने नहीं बताया कि कथित गारंटी पूरी करने का आधार क्या होगा, पर लगता है, गारंटी का जादू काम कर गया। चुनाव प्रचार की एक और बात जिस पर गौर किया जाना जरूरी है, वह यह है कि इस बार उन मुद्दों की बात बहुत कम हुई है जिन्हें जिंदगी के जरूरी मुद्दे कहा जाता है। इस बात को बार-बार दोहराया गया कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के कार्यकाल में हमारा भारत विश्व की पांचवी अर्थव्यवस्था बन गया है और शीघ्र ही हम ‘‘विकसित देशों’’ की श्रेणी में आ जायेंगे। तीसरी वैश्विक अर्थव्यवस्था बन जायेंगे। मतदाता को किसी ने य बताने की जरूरत नहीं समझी कि पांचवीं या तीसरी वैश्विक अर्थव्यवस्था का मतलब क्या होता है? मतदाता को अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों से यह पूछना चाहिए कि पांचवें से तीसरे नंबर तक आने से उसकी दो जून की रोटी सुरक्षित हो जायेगी? विडम्बना तो यह है कि आज एक और विकसित देश बनने के वादे किये जा रहे हैं और दूसरी ओर अस्सी करोड़ भारतवासियों को मुफ्त अनाज देने की व्यवस्था से घिरे हैं हम। गरीबी की तरह ही बेरोजगारी का मुद्दा भी कुल मिलाकर अनसुना ही रहा। विपक्ष के भाषणों में यह शब्द कभी-कभी सुनाई दे जाता था, पर उस ताकत से नहीं उठाया गया जितनी ताकत से उठाया जाना चाहिए था।
महिलाओं ने बढ़-चढक़र मतदान में हिस्सा लिया है, यह सही है। चुनाव परिणामों पर भी इसका निश्चित असर पड़ा है। पर क्या यह बात किसी ने पूछी कि आधी से अधिक महिलाएं शारीरिक ²ष्टि से कमजोर क्यों है? महिलाओं को लाभ दिलाने के वादे किये, सस्ता सिलेंडर, घर में नल, नकद सहायता आदि की तो बहुत दुहाई दी गयी, पर विधायिका में महिलाओं को तीस प्रतिशत भागीदारी देने और उसका समर्थन करने वालों में से किसी राजनीतिक दल में इन चुनावों में एक-तिहाई उम्मीदवार खडऩे करना जरूरी नहीं समझा।
देश के मूलभूत मुद्दों पर हमाशे हर पार्टी ने वादा खिलाफी की है। अब भारी भरकम ‘गारंटी’ की बात कर उसे पूरा करने की क्या गारंटी है? क्या यह गारंटी सरकार ले सकती है कि जो भ्रष्टाचारी है उन्हें जेल के सींकचों के पीछे रखा जायेगा? विपक्ष के इस आरोप का जवाब अभी तक नहीं मिला कि सरकार द्वारा घोषिक बड़ा भ्रष्टाचार करने वालों ने जब सत्ताधारी दल को अंगीकार किया तो जेल की बजाय वे राज्य के वरिष्ठ मंत्री या मुख्यमंत्री बनाये गये। पन्द्रह लाख रुपये हर व्यक्ति के एकाउंट में जाने की गारंटी का क्या हुआ? कश्मीर में 370 के बाद आतंकवाद के खात्मे का क्या हुआ? दो करोड़ों लोगों को हर साल रोजगार की गारंटी कैसे हवा हो गयी। मणिपुर में तीन महीने में तीन सौ लोगों की हत्या पर कुछ कहेंगे सरकार? वगैरह-वगैरह ऐसी कई गारंटियों के बारे में जनता को बताया जायेगा? क्या हमारे देश में जनतंत्र की यह गारंटी है कि जो सत्ता में आयेगा, वह वादे और गारंटी का खेल खेले और जनता हाथ ताली बजाकर उसका स्वागत करेगी?

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