बारह हाथों का चमत्कार
हिन्दू-मुस्लिम एकता का उत्कृष्ट उदाहरण
भारत के इतिहास में संभवत: पहली घटना थी कि आम श्रमिकों को बचाने के लिए इतने बड़े पैमाने पर बचाव-राहत का अभियान चलाया गया। जब तक उद्धार कार्य पूरा नहीं हुआ देश भर में बेचैनी थी और बहुत से लोगों की सांस रुकी हुई थी। कदम-कदम पर बाधाएं आई। अंत भला तो सब भला। 400 घंटे तक गुफा में फंसे रहने के बाद सारे श्रमिक सकुशल बाहर निकले। उन्होंने अपने जीवन का गुजारा केवल ड्राई फ्रूट्स और चने खाकर भीतर बह रहे स्रोत के पानी से किया। उनके पास सोने का बिस्तर था, न शौचालय की सुविधा। ऑपरेशन सिलक्यारा में सभी मजदूरों की जिंदादिली एक नजीर बन गयी। इस बात की मुक्त कंठ से प्रशंसा करनी होगी कि बचाव कार्य में लगी राहत एजेंसियां, सेना, वायुसेना, देश में विदेश में सुरंग विशेषज्ञों ने एक जुट होकर अभियान में भाग लिया। उन श्रमिकों के मनोबल की प्रशंसा भी करनी होगी जिन्होंने सत्रह दिन तक भयंकर परिस्थितियों में धैर्य नहीं खोया और अन्त तक उनका भरोसा बना रहा कि उनके लिये लोग फिक्रमंद हैं और उनको बचाने के लिये हरसंभव कोशिश हो रही है।
हर घटना कुछ सबक छोड़ जाती है। इस घटना से भी अगर सबक न लें तो भावी संतति हमें कभी माफ नहीं करेगी। ऐसी सुरंग बनाने से पहले भूस्खलन की आशंका और पहाड़ की क्षमता का वैज्ञानिक आधार का मूल्यांकन किया जाना चाहिए। साथ ही ऐसी सुरंगों के भीतर उनके धंसने की स्थिति में राहत-बचाव कार्य की वैकल्पिक व्यवस्था होनी चाहिए। यदि ऐसा हादसा होता है तो किसी सुरंग के धंसने की स्थिति में बचाव का रास्ता बचा रहे। हिमालयी पहाड़ों पर बड़ी विकास योजनाओं का बोझ किस सीमा तक डाला जाना चाहिए। केदारनाथ त्रासदी, हिमालय में जमीन धंसने की घटनाओं को ध्यान में रखकर बड़ी विकास परियोजनाओं की दिशा-दशा तय की जानी चाहिए। हमें ऐसी आपदाओं से बचाव में मानवीय प्रयासों को भी कमतर नहीं आंकना चाहिए। ऑगर मशीन के ब्लेड टूटने के बाद रेस्क्यू ऑपरेशन टीम में निराशा छा गयी थी। फिर रैट माइनर्स के अथक प्रयास से निराशा को आशा में बदल दिया। ऐसी विकट स्थितियां फिर पैदा न हों, इस दिशा में गंभीर प्रयासों की जरूरत है। यह संयोग ही था कि त्योहार का समय होने के कारण वहां मात्र 41 लोग ही काम कर रहे थे, वरना अगर कोई अन्य समय होता तो यह संख्या उससे दस गुना होती। ऐसी हालत में स्थिति विस्फोटक हो सकती थी।
एक बात और अच्छी हुई कि 41 श्रमिकों की जिन्दगी बचाने की इस बेमिसाल घटना का श्रेय लेने के लिए किसी ने धक्का मुक्की नहीं की। पूरा देश ने देखा कि इन कामगारों का जीवन इन्हीं के मजदूर भाइयों ने बचाया। किसी ने हवन या यज्ञ नहीं किया। अमिताभ बच्चन को जब चोट लगी तो देश में कई अमिताभ बच्चन फैन्स क्लब ने पाड़े-मोहल्ले से चंदा लेकर हवन किया और जब बिग बी बच गये तो उन्होंने अपनी पीठ थपथपाई कि हमारे हवन का ही चमत्कार है। हमारे देश में आजकल हर छोटी-बड़ी वारदात को हिन्दू-मुसलमान के रंग में रंग दिया जाता है। गनीमत है सुरंग में फंसे मजदूर भाइयों पर किसी ने केसरिया या हरा रंग नहीं पोता। पांच राज्यों में चुनाव प्रचार चरम पर था पर किसी की जीभ हिन्दू-मुसलमान का स्वाद चखने को नहीं लपलपायी। देवदूत बनकर आये रैट-माइनर्स के धर्म व वर्ग को लेकर श्रेय देने के मामले में सबने चुप्पी साधी।
रैट माइनर्स की टीम में पांच हिन्दू थे तो सात मुसलमान भी। 41 श्रमिकों में दो को छोडक़र सभी हिन्दू थे। किन्तु बचाने वाले रैट माइनर्स ने भारतीय राजनीति में आज के दिन जुड़े इस आयाम की ओर नजर भी उठाकर नहीं देखा और उनके हथौड़े बेधडक़ चलते गये। यूपी के योगी का बुलडोजर वहां नहीं चला क्योंकि उत्तरकाशी में किसी को उजाडऩा या नेस्तनाबूद करना नहीं वहां मुद्दा 41 कीमती जीवन को बचाना था। हालांकि बचाव कार्य पूरा करने वाली कंपनी के प्रमुख ने कहा कि सुरंग में फंसे 41 लोगों को बचाने में हिन्दू-मुस्लिम दोनों ने मिलकर भूमिका निभाई। जिन 12 लोगों ने खुदाई की उनमें- हसन, मुन्ना कुरैशी, नसीम मलिक, मोनू कुमार, सौरभ, जतिन कुमार, अंकुर, नसीम खान, देवेन्द्र, फिरोज कुरैशी, रशीद अंसारी और इरशाद अंसारी शामिल है। बारह भारतीय मजदूरों ने जान जोखिम में डालकर फंसे हुए 41 मजदूरों को सुरक्षित निकालने वाली इस टीम को केन्द्र सरकार द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिए। लेकिन कुछ संकीर्ण विचारों वाले इसमें भी अलग-अलग लोगों को हीरो बना रहे हैं। कुछ लोग सबका नेतृत्व करने या टीम चुनने के लिए प्रधानमंत्री की प्रशंसा कर रहे हैं। कैसी विडम्बना है कि सुरंग बनाने वाली कंपनी व इसके अधिकारी इन 17 दिनों तक पर्दे के पीछे या छिपे रहे।
रैट माइनर्स की बारह व्यक्तियों वाली टीम में हिंदू-मुस्लिम दोनों का होना हमें यह संदेश देता ही है कि केन्द्र सरकार समेत हर जगह दोनों वर्ग के लोग हों तो सफल होने से हमें कोई नहीं रोक सकता। तभी हम सही माने में विश्व गुरु हो सकते हैं। बाहरी दुनिया के लोग हमारा मजाक उड़ाते हैं कि ‘‘आप लोग ईसाइयों और मुसलमानों को उनके धर्म की वजह से निशाना बनाते हैं। आप नफरत भरे हिंदू राष्ट्रवाद की राह पर चल रहे हैं, जिसे लोकतांत्रिक देशों में शायद ही कोई पसंद करता हो। इसके बाद भी हम सोचते हैं कि दुनिया के गुरु बनेंगे।’’ सिलक्यासा-बारकोट सुरंग में कोई आपातकालीन निकासी की व्यवस्था नहीं थी। हम सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था होने का दावा करते हैं, लेकिन टेक्नोलॉजी और आपदा प्रबंधन के मामले में हमें रैट माइनर्स का ही सहारा लेना पड़ता है।

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